निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
सच्चा भक्त जो उपदेश को आदेश मान लेता हैं
उत्तमा स्वात्म चिंता,देह चिंता च मध्यमा,अधमा काम चिंता स्यात्,पर चिंता धमा धमा
1.जैन धर्म में तीन चीजें नहीं है, पहला छल कपट का आचरण नहीं किया, विज्ञापन नहीं किया।दूसरा आचरण में शिथिलता नहीं लाए तीसरा शक्ति का विचार नहीं किया,राजाओं का शरण में नहीं लिया ,दूसरे धर्म का कत्लेआम मूर्तियां मंदिर खंडित नहीं किया।जैन धर्म ने यह सब 3 कारण भी अन्य धर्म को समाप्त करने के लिए नहीं किया।
2.दूसरों जीवों को कष्ट देना सही नहीं, यह आप कार्य गलत कर रहे हो,चाहे विपरीत भाव सामने वाले के लिए कर रहे हो तो भी आप उपदेश दे सकते हो आदेश नहीं देना चाहिए।चेलना रानी श्रेणिक राजा का उदाहरण।
3.जिस पर पूरे संसार ने बुरे दृष्टि बना रखी है आजकल विज्ञापन का युग है, उस चीज को जितना विज्ञापन होता है उतना वह चीज नकली कहलाती है असली माल का विज्ञापन नहीं, लोग उसे खोजता हुए आते हैं, सच्ची वस्तुएं हैं, लोग उससे तिरोहित होते जा रहे हैं।
4.ऋषभ देव चाहते तो मारीच को आदेश दे सकते थे, परन्तु नहीं,भगवान ऋषभ देव ने कहा कि धर्म करने का है, आदेश नही दिया जाता ,
शिक्षा– जैन धर्म अपने प्रति दुर्भाव विपरित भाल करने वालों के प्रति भी दया भाव समभाव रखता है
संकलन ब्र महावीर