माता-पिता को एक तरफ बेटे के दिये हुए दुख और एक तरफ नरक के दुख, तो मां-बाप नरक के दुख पसंद करेंगे : मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
माता-पिता को एक तरफ बेटे के दिये हुए दुख और एक तरफ नरक के दुख, तो मां-बाप नरक के दुख पसंद करेंगे
1.बेटे का आनंद-बेटा जब बड़ा हो जाए और माता-पिता को कोई चिंता नहीं हो यह बेटेपने का आनंद है जब बेटे को कोई जरूरत हो और वह कहे की मेरे पापा यह सब कुछ कर देंगे यह पितापने का आनंद है।गाड़ी में बैठे हो ड्राइवर गाड़ी चला रहा हूं मालिक सो रहे हैं यह गाड़ी का आनंद है ये आनंद बेटे और सब भोगोपभोग वस्तुओ का सही आनंद है।
2.मा बेटे- माता पिता के नियंत्रण में जब तक बेटा है, तब तक उसकी लिए दिन रात चिंता करते हैं, पिता 25 साल तक बेटे को अच्छा बनाने के लिए नौकरी धंधा शादी की चिंता में लगा रहता है, पिता जिंदगी भर उसकी चिंता हर क्षण उसकी चिंता करते रहते हैं ,जब बेटा आनंद ले अब तुम्हें नहीं मिलेगा जब बेटा बड़ा हो जाता है और अपना कमाने लगता है तब बेटे का आनंद उनको मिलने का था, क्योंकि बेटा अब अपनी जिंदगी के बारे में सोच रहे हैं।फिर वह माता-पिता की चिंता नहीं करेगा माता पिता को नहीं देखेगा
3.आस्तित्वमान-कुंदकुंद आचार्य ने सम्यकदर्शन की परिभाषा मैं कहां अस्तित्वमान हो या नाआस्तित्वमान हो व्यक्ति को नास्ति ज्यादा दिखता है ,तुम्हें यह अनुभूति हो रही है कि तुम हो,मैं आस्तित्वमान हो तुम हूं या नहीं ,हमें अपने अस्तित्व को नहीं मान पा रहे हैं हमें कि तुम हो या नहीं तुम्हें सब मिटता हुआ दिखता है, आस्तित्वमान से डरके कब तक चलेंगे।
4.असत्य हमें आकर्षित कर रहा है सत्य से भय खा रहे हैं।
5.गुरु शिष्य का विश्वास- गुरु को विश्वास था कि शिष्य बड़ा हो गया है मुझे मेरे शिष्य पर पुरा विश्वास है और शिष्य को भी गुरु पर विश्वास हो तो समझो की कोई चिंता नहीं जैसे आचार्य विद्यासागर आचार्य ज्ञानसागर जी को एक दूसरे पर विश्वास था।
शिक्षा-जब बेटा बड़ा हो जाए मां बाप को सुख देना चाहिए ये बेटे पने का आंनद हैं।
सकंलन ब्र महावीर अशोक कलिंजरा