घनघोर जंगल टाइगर रिजर्व,चीतों भालू वन्य जानवरों की उपस्थिति, जंगल मे विहार,जंगल मेंआहार,जंगल में रात्रि विश्राम, पंचम काल में चतुर्थ काल का दृश्य – रास्ते का परिज्ञान नहीँ, पर ऐसे आगे बढ़ रहे जैसे मार्ग पूर्व परिचित

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11 अप्रैल 2023/ बैसाख कृष्ण पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ औरंगाबाद / नरेंद्र अजमेरा /पियुष कासलीवाल
पंचम काल में चतुर्थ काल का दृश्य शिखर जी से महापारणा, महा तपस्या, महा पंचकल्याणक, दीक्षाओं के बाद अन्तर्मना संघ का विहार उदगांव हेतु चल रहा है।प्रायः पूरा विहार जंगल के मार्ग से ही हो रहा है।

6 अप्रैल गुरुवार को रामकृष्ण मिशन आश्रम में आहार चर्या के बाद विहार चल रहा था कि अचानक गुरुवर मुख्य मार्ग छोड़ कर जंगल के मार्ग में चले गये, उनके साथ कुछ श्रावक भी।किसी को रास्ते का परिज्ञान नहीँ था पर गुरूवर पगडंडियों पर ऐसे आगे बढ़ रहे थे कि जैसे उन्हें ये मार्ग पूर्व परिचित हो जबकि वह कभी इधर आये नहीं।

घनघोर जंगल टाइगर रिजर्व,चीतों भालू वन्य जानवरों की उपस्थिति।शास्त्रों में पढ़ा कि चतुर्थकाल में मुनि जंगल मे रहते थे।इस पंचम काल की 21 वीं शताब्दी में वही दृश्य अन्तर्मना दिखा रहे हैं।जंगल मे विहार,जंगल मेंआहार,जंगल में रात्रि विश्राम।साथ रही डॉ आकाश जैन,डॉ स्वाति जैन व श्रेयस जैन,मैनपुरी ने बताया कि बड़ा ही आनन्द आया रास्ते में, पानी के झरने,विशाल पर्वत,घनघोर जंगल,सन्नाटा घने वृक्ष, केवल पतली पगडंडी।आगे स्थान पर पगडंडी भी समाप्त।कोई मार्ग नहीं,तभी एक व्यक्ति दूध की बाल्टी लिए अचानक वहाँ दिखा।

उसने महाराज को विनय पूर्वक नमस्कार कर मार्ग बताया व थोड़ा साथ भी चला फिर अदृश्य हो गया।आगे एक व्यक्ति और मिला उसने कहा आगे जंगली जानवर बहुत हैं।वह अंदर झोपङी में गया व एक कुल्हाड़ी लेकर आया व बोला चलो हम रास्ता बताते हैं।आगे मार्ग बताकर वह भी गायब हो गया।

हम लोग जो सड़क मार्ग से आये वह चिंतित हो रहे थे, परन्तु गुरुभगवन प्रसन्न थे।बाद में आ जाने पर पूछा तो बोले मेरे मन में अचानक एक तरंग सी उठी और मैं चल दिया व वही तरंग मार्गदर्शन देती रही। बहुत शानदार विहार हुआ।ऐसे प्राकृतिक दृश्य दुर्लभ हैं।23 फरवरी से रांची को छोड़ विहार जंगल मे ही हो रहा है।

23 ता को आचार्य श्री की 35वीं दीक्षा जयन्ति भी घने जंगल में मनी। बिना सूचना आमंत्रण के सेकड़ो लोग पूरे देश से पधारे और “जंगल में मंगल” हो गया जिसका पूरा श्रेय श्री डॉ आकाश जी को जाता है।

यह बहुत ही आश्चर्य लगता है कि इस पंचम काल मे चतुर्थ काल की चर्या साक्षात दिखाने वाले महा तपस्वी ,महामुनिराज इस धरा पर विचरण कर श्रमण परम्परा को जीवंत कर रहे हैं।
ऐसे महा तपस्वी अन्तर्मना मम दीक्षा गुरु भगवन प्रसन्नसागर जी के चरणों में नमन वंदन।वह जयवंत हों।