03 मई2023 / बैसाख शुक्ल नवमी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/औरंगाबाद /डोंगरगढ़/ नरेंद्अजमेरा पियुष कासलीवाल
संयम तप की यह साधना
करती है धर्म की अलौकिक प्रभावना
हर जगत ने माना जैन संत की होती अदभुत साधना
हे पावन निर्ग्रंथ संत आपकी कोटि-कोटि अनुमोदना।
जब त्याग तपस्या की जीवंत मूर्तियों का एक साथ समागम होता है तो एक नया इतिहास लिख दिया जाता है और समाज और राष्ट्र को नई एक प्रेरणा देता है।
विशेषकर दिगंबर जैन संतो का महा समागम ऐसे ही पावन क्षण देखने को मिला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ की धरा पर जब पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की चरण वंदना हेतु इस सदी के उत्कृष्ट तप साधक अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज पियुष सागर जी महाराज ससंघ चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ पर आए।
यह क्षण इतना दुर्लभ था कि जिन्होंने भी इन दृश्यों को देखा और जो श्रद्धालू वहां मौजूद रहे वह अपने आपको भाव विभोर होने से नहीं रोक पाए इन पावन क्षणों में आचार्य श्री प्रसन्नसागर महाराज ने विनय संपन्नता की भावना का एक उदाहरण दिया पूज्य महाराज श्री ने आचार्य श्री के चरणों का विनय भाव के साथ पाद प्रक्षालन किया। जब गुरु चरणों में उन्होंने नमोस्तु निवेदित किया तो वह भी एक अलौकिक प्रस्तुत कर रहा था।
आचार्य श्री प्रसन्न सागर महाराज ने जो स्वयं तप त्याग साधना का जीता जागता उदाहरण है जेसे ही उन्होंने आचार्य श्री के चरणो में निवेदित किया ‘गुरु चरण ही मेरे तीर्थ है’ और उन्होंने त्याग करते हुए कहा कि आपके समक्ष में आजीवन शक्कर एवम चटाई का त्याग करता हूं ऐसे दुर्लभ क्षण बहुत कम देखने को मिलते हैं। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है की दिगंबर संत की साधना अपने आप में एक अभूतपूर्व है।