सम्मेदशिखर जी-अन्तर्मना के आशीर्वाद व तप के पुण्य से आचार्य श्री संभव सागर जी महाराज ने दी भक्त चौधरी को अपनी पिच्छिका
औरंगाबाद। सम्मेदशिखर जी – एक भक्त के लिए गुरु से जुड़ी हर चीज़ श्रेष्ठतम होती है। कहते हैं, गुरु जिस स्थान पर निवास करते हैं वह स्थान भक्त के लिए कैलाश है, वहाँ के वक्ष, कल्प-वृक्ष हैं, वहाँ बहता जल गंगा है, उस जगह उगने वाली जड़ी – बूटियाँ संजीवनी बूटी हैं, वहाँ की वायु प्राण वायु है, वहाँ का भोजन परमात्मा का प्रसाद है तथा जल अमृत ।
जब एक शिष्य गुरु के साथ ध्यान के लिए बैठता है, समय उसके लिए वहीँ रुक जाता है, क्योंकि उस समय शिष्य को गुरु की स्थिति और गुरु द्वारा की गयी वर्षों की साधना का अनुभव होता है। ऐसे साधना के सुमेरु पर्वत की ओर अग्रसर साधना महोदधि अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज जो जैन धर्म के तीर्थ राज सम्मेदशिखर जी मे उत्तम सिंहनिष्क्रीड व्रत (496 उपवास 61 पारणा ) की साधना में लीन है। उन्ही की साधना से प्रेरित उनके आत्मीय भक्त श्रावक श्रेष्ठी परम गुरु भक्त व अपने गुरु के साथ जैन धर्म के कठिनतम वर्तो का पालन करने वाले ‘मनोज़ जैन चौधरी'(हैदराबाद )इस वर्ष अपने गुरु के साथ लधु सिंहनिष्क्रीड व्रत की साधना कर रहे है। जिसमें वह 80 दिन के इस उपवास में 60 दिन उपवास व 20 दिन पारणा करेंगे।
गौरतलब है कि जैन जगत के इसिहासरथ वर्तमान में देशभर के सम्पूर्ण जैन समाज में पहले ऐसे श्रावक साधनश्रेष्ठी है जो इस व्रत का पालन कर रहे है।
श्री चौधरी का पुण्य कहे कि इससे पहले भी वह गुरु देव के साथ ..3 बार सोलह कारण व्रत के साथ 6 रसों का त्याग, 64 रिद्धि व्रत, कनकावाली व्रत जैसी तप साधना कर चुके है। अपने गुरु के साधना से भक्त साधक गुरु आशीर्वाद से अपनी तप साधना में लीन है।
जिसका परिणाम यह हुआ कि श्रावक शिरोमणि मनोज जैनचौधरी को आचार्य श्री संभव सागर जी महाराज ने रक्षाबंधन के पावन अवसर पर मिला अद्वितीय अकल्पनीय अद्भुत आशीर्वाद देते हुए त्रियोग आश्रम शास्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी में अपनी पिच्छिका उन्हें प्रदान कर उन्हें अपना मंगल आशीष प्रदान किया। व गुरुदेव में साथ उनके उपवास की अनुमोदना की इसी लिए कहा गया है
युद्ध भूमि में योद्धा तप, सूर्य तपे आकाश
तपस्वी साधक अंदर से तपे करें कर्मों का नाश।
पियुष कासलीवाल नरेंद्र अजमेरा रोमिल जैन