अन्तर्मना सिंह निष्क्रिय व्रत धारी आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज का 601 दिन बाद तीर्थराज सम्मेद शिखरजी से निमियाघाट पंचकल्याणक के लिए, फिर महाराष्ट्र के लिए पदविहार

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14 फरवरी 2023/ फाल्गुन कृष्ण नवमी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

सम्मेदशिखर जी-557 दिनों की सिंघनिष्कडित व्रत की कठिन मौन साधना के समापन के बाद सोमवार को सम्मेद शिखरजी की से अन्तर्मना आचार्य 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ससंघ का महाराष्ट्र के लिए मंगल विहार करेंगे। हालांकि, इससे पहले वे निमियाघाट पहुंचेंगे। वहां आयोजित 10 दिवसीय कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद वहां से महाराष्ट्र के लिए पदविहार करेंगे। इसलिए कहा गया है कि रमता योगी बहता पानी, जिस प्रकार कहते हुए नदी का जल निर्मल होता है ठीक उसी प्रकार रमते हुए योगी के भाव भी निर्मल होते हैं

ज्ञात हो की अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज का तीर्थ राज में 21 जून 2021 में भव्य मंगल प्रवेश हुआ था तीर्थराज में दो चातुर्मास के साथ कई ऐतिहासिक काम किए जिसमें सबसे महत्वपूर्ण सिंह निष्क्रिय व्रत 557 दिन की मौन एकांत उपवास साधना जो तीर्थराज के सबसे ऊंची चोटी स्वर्णभद्र कूट पर रहकर तपस्या करते हुए स्वर्णभद्र टोंक को स्वर्णमयी बनाते हुए पूरे टोंक को नए रूप दिए इसके बाद पहाड़ पर विराजमान चोपड़ा कुंड (दिगंबर जैन मंदिर) जो कई वर्षों से बंद था उसे खुलवा कर उसे भी नए रूप आचार्य श्री का मंगल आशीर्वाद से संपन्न हुआ ।

साथ ही मधुबन के तलहटी में आचार्य श्री के आशीर्वाद से बिषपंथी कोठी का कायाकल्प किया गया कोठी में एक अन्तर्मना निलय बनाया गया जो अपने आप का आधुनिक धर्मशाला का रूप दिया गया है। इसके बाद 24 समवशरण मंदिर में तपस्वी सम्राट आचार्य श्री 108 सन्मति सागर जी मुनिराज का धातु के प्रतिमा विराजमान कर समाधि स्थल बनाया गया जो अपने गुरु के प्रति समर्पित भाव दिखा। मधुबन के तीनमूर्ति मंदिर के पास एक स्वर्णमयी मंदिर नया बनाया गया जो अपने आप मे सोने का मंदिर दिख रहा है जिसका महापारणा ओर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव आचार्य श्री के सानिध्य में संपन्न हुआ ।

इसी क्रम में सिद्धायतन में 1008 आदिनाथ भगवान की मंदिर के साथ भक्तामर के 48 कड़ा का मंदिर बनाया गया जो शिखर जी के लिए एक नया रूप दिखा ।आचार्य श्री के सानिध्य में महापारणा महोत्सव में प्रथम बार 7 दिनों तक पूरे शिखर जी मे जैन के अलावा अजेनो के लिए भी खाने की व्यवस्था की गई जो यह समय शिखर के इतिहास में प्रथम बार हुआ।अन्तर्मना ओर। उपाध्याय सौम्य मूर्ति मुनि श्री 108 पीयूष सागर जी महाराज के सानिध्य में सम्मेद शिखर में कई अनूठे कार्य हुए जो आचार्य श्री के जाने के बाद जन-जन को याद रहेंगे मंगल विहार में जैन ओर अजेनो को आचार्य श्री की कमी खलेगी ।अन्तर्मना ने सभी धर्मावलम्बी को अपना खूब खूब आशीर्वाद दिया और कहा कि मेरी पहाड़ पर साधना इन कर्मचारियों और वहाँ के आदिवासी लोगो के सहयोग से हुवा ।

मंगल विहार की बेला को आभार बनाने की तैयारी में जुटे मधुबनवासियों की उपस्थिति मैं अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने आशीष वचन सुनाया। अन्तर्मना के स्नेह से मधुबनवासी गदगद हो गए। अन्तर्मना के आशीर्वचनों को सुनकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो जगत के लिए कल्याणकारी दिव्य ध्वनि का उद्बोधन किया जा रहा हो, पूरा पंडाल आचार्य महाराज के चरणों में पड़ा ।

अन्तर्मना ने आगे कहा कि लोग परमात्मा पर राजनीति करना बंद करो- प्रसन्न सागरजी : पारसनाथ पर्वत को परमात्मा का स्थान बताते हुए अन्तर्मना कहते हैं यह किसी की जागीर नहीं है, जो पूजे उसका है। परमात्मा हर किसी के हैं। पारसनाथ को लेकर टिप्पणी करने वाले नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि परमात्मा पर राजनीति करना बंद करो। सिरफिरे लोग हैं जो धार्मिक आस्था को राजनीति का अड्डा बना रहे हैं। पारसनाथ सम्मेद शिखरजी शाश्वत है, पृथ्वी पर दो ही स्थान शाश्वत है एक अयोध्या और दूसरा शिखरजी । पारसनाथ पर्वत के 12 योजन तक निवास करने वाले सभी जीव नियम से स्वर्गवासी हैं उनका स्थान परमात्मा के चरणों में है। कोई नदी नहीं पूछती कि तुम क्या हो, वह तो सबकी प्यास बुझाती है। इसी तरह पारसनाथ के पर्वत को पूजने वाले आदिवासी समुदाय भी पर्वत को उतना ही पवित्र मानते हैं जितना जैन मानते हैं।

आगे अन्तर्मना ने कहा कि जो साक्षात भूमि तीर्थराज के पर्वत ओर कण कण को पूजता है तीर्थराज ओर पारसनाथ उसी के हो जाते है। इस विहार के संघपति दिलीप जी हुम्मड ,के साथ सेकड़ो भक्त मधुबन से विहार कर निमियाघाट पहुँचे विशेष आकाश जैन,कोडरमा के मनीष सेठी,संजय,टुन्नू अजमेरा,कोलकोत्ता के विवेक गंगवाल आदि साथ चल रहे थे।

राज कुमार अजमेरा,कोडरमा मीडिया प्रभारी