अगर भीतर में उठने वाले विचार शुभ है, तो समझ लेना तुम्हारा दीपक जल चुका है और तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है, शुभ है: आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी

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शिखरजी , श्री सम्मेद शिखरजी स्थित गुणायतन परिषद के अवलोकनार्थ पूज्य आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ससंघ गुणायतन परिषद पर पधारें
सम्मेदशिखर जी । शास्वत सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजी स्थित गुणायतन परिषद के अवलोकनार्थ पूज्य आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ससंघ गुणायतन परिषद पर पधारें जहां पूज्य मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज ने आचार्य श्री ससंघ को गुणायतन परिसर स्थित निर्माणाधीन जिनालय ऑडिटोरियम आदि का अवलोकन कराया मुनि श्री ने मंदिर में बन रही एक एक कलाकृति ओर गुणस्थान के बारे में बताया । इस अवलोकन में आचार्य श्री के साथ पूज्य मुनि 108 पीयूष सागर जी के साथ संघ के सभी मुनिराज ओर माता जी भी थे साथ ही गुरुभक्त मनोज जैन चौधरी हैदराबाद, बंटी जैन अहमदाबाद डाल संजय जैन इंदौर आकाश जैन शिवम जैन के अलावा बहुत भक्त साथ मे थे

इस अवसर पर गुरदेव ने प्रवचन मे कहा की
दुनिया की खबर रखने वाला इंसान, ज़िन्दगी के अन्तिम क्षणों तक अपने से — बेखबर बना रहता है। इसलिए — सांझ होने से पहले एक दीप जला लेना। आओ अब घर लौट चलें, बाहर बहुत भटक लिये, अब इस भटकन का अंत करें। सांझ होते ही पशु पक्षी भी अपने अपने घरों की ओर नींडो की ओर लौट आते हैं। उन्हें भी पता है कि सुरक्षा अपने ही घर में है, तुम तो इंसान हो। अंधेरा गिरने वाला है, सूर्य ढ़ल चुका है, अंधेरा आ रहा है, इससे पहले तुम अपने घर लौट आना। कभी अपने भीतर झांककर यह भी देख लेना — कि वहाँ क्या-क्या घट रहा है।

भीतर वाले की खबर भी ले लेना, लेकिन तुम तो भीतर वाले से एकदम बेखबर हो, तुम भी — कभी कभी अपने घर — अपने आप में रहा करो — और देखा करो कि — वहाँ का संसार कैसा चल रहा है–? अपने भीतर में कैसे-कैसे भाव उठ रहे हैं–? अगर भीतर में उठने वाले विचार शुभ है, तो समझ लेना तुम्हारा दीपक जल चुका है। और तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है, शुभ है।

यदि तुम्हारी भावनाएं शुद्ध है, भाव शुद्ध है, तो आगामी भाव भी शुभ ही होगा। और यदि भीतर के भाव, भीतर के विचार अशुभ है, गंदे है, पाप पूर्ण है, क्लेश और संक्लेश मय है, तो फिर किसी ज्योतिषी से अपना भविष्य पूछने की जरूरत नहीं है। तुम्हारे भीतर के भाव ही बता रहे हैं, कि तुम्हारा भविष्य अंधकार में है—?
आदमी के जैसे भाव होते हैं..
वैसे ही भव का सृजन होता है…!!!
– नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल