निमियाघाट/कोडरमा-अहिंसा संस्कार पदयात्रा के प्रणेता साधना महोदधि भारत गौरव उभय मासोपासी अंतर्मना आचार्य प्रसन्नसागरजी ने कहा:-
पाप और पुण्य जीवन में दो तत्व हैं जीवन की गाड़ी इन्हीं दोनों से चलती है मगर मैं पूछता हूं कि जिस गाड़ी में एक ट्रैक्टर का हो और दूसरा पहिया साइकिल का वह गाड़ी कितना चलेगी और कब तक चलेगी आज तुम्हारे आज तुम्हारे जीवन के साथ यही हो रहा है तुम्हारे जीवन की गाड़ी में एक पहिया ट्रैक्टर का है जिसका नाम है पाप और दूसरा पहिया साइकिल का है जिसका नाम है पुण्य तुम्हारा पाप का पहिया भारी है और पुण्य का पहिया कमजोर अब क्या होगा जीवन गाड़ी स्थिर है
जरूरत है कि हम जीवन में पुण्य बढ़ाएं पुण्य का पहिया मजबूत बनाएं ताकि गाड़ी को शक्ति मिल सके हर सुबह हर शाम हो सके तो हर रात थोड़ा-थोड़ा पुण्य जरूर करें पुण्य जरूर बढ़ाते चलें पुण्य अगर बढ़ेगा तो जीवन बढ़ेगा पाप बीज बोकर कोई भी पुण्य की फसल नहीं कर सकता पाप से बीपी हुए बिना प्रभु से प्रीति नहीं हो सकती और प्रभु से प्रीति हुए बिना स्वयं की प्रगति नहीं हो सकती आत्मानुभूति नहीं हो सकती पाप का पहिया पहले से ही भारी है और हम उसे और भारी करने में लगे हैं और पुण्य जो पहले थोड़ा बहुत करते थे वह भी नहीं हो रहा है उसे भी बंद कर दिया है
अब क्या होगा गाड़ी खड़ी हो जाएगी और खड़ी हुई कि कहते हैं ना चलती का नाम गाड़ी और खड़ी का नाम खटारा अच्छी खासी जिंदगी की गाड़ी आज खटारा बन गई है जिसमें होने के अलावा सब बजता है और पहिए के अलावा सब हिलता है आदमी तो आपको केवल बड़ा ही नहीं रहा है बल्कि पाप को ही पुण्य समझ बैठा है और उस पाप को बिना किसी भय शर्म और झिझक के खुशी-खुशी करने में लगा है आदमी ने पता नहीं आंख पर कौन सा चश्मा चढ़ा लिया है कि उसे पाप अब पुण्य नजर आ रहा है
-कोडरमा मीडिया प्रभारी राज कुमार जैन अजमेरा, नवीन जैन