आज देश में 60 लाख साधु संत विचरण कर रहे हैं यदि वे देश में 6 लोगों को ही बदल दें, तो धरती स्वर्ग बन जाएगी : अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर

0
463

16 अप्रैल 2023/ बैसाख कृष्ण एकादशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ अकलतरा/औरंगाबाद नरेंद्र /पियूष जैन

जब तक राग है जब तक दिल में आग है आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपने जीवन को जीने की कला नहीं आती जीवन में जो जितना फ्री है वह उतना ही बिजी है और जीवन में जो बिजी है वह फ्री नहीं है, जीवन में हम राग द्वेष एवं मोह के जकड़ में समाते जा रहे हैं हमारे लिए अपने पास समय नहीं है जीवन को जीना है तो मोह माया को छोड़कर वीतराग की ओर बढ़ना होगा, हर व्यक्ति जीवन में किस्मत का धनी होता है बस उसे जीवन में किस्मत को आजमाने का तरीका आना चाहिए

यदि तुम्हें कोई एक चीज बदलना है तो सिर्फ अपने आप को बदल लो तुम्हारे बदले बिना संसार नहीं बदलेगा, आचार्य भगवान से भारत को वास्तव में साधु संतों की जरूरत है का सवाल पूछने पर आचार्य भगवान ने बताया कि जरूरत है पर इतनी नहीं, सही साधु संतों की जरूरत है आज देश में 60 लाख साधु संत विचरण कर रहे हैं यदि वे देश में 6 लोगों को ही बदल दें, तो धरती स्वर्ग बन जाएगी, भारत के भविष्य के सवाल पर गुरुदेव ने कहा कि मैं भारत के भविष्य को शिखर की ऊंचाइयों पर देख रहा हूं मेरा विश्वास है कि देश आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर होगा और विश्व गुरु कहलायेगा, गुरुदेव ने प्रतिस्पर्धा से प्रगति की ओर, तनाव से प्रेम की ओर, मानवता से राष्ट्रीयता की ओर, मुस्कान से परमात्मा की ओर एवं चरित्र से संवेदना ओं की ओर जाने का संदेश दिया गुरुदेव ने नष्ट होती नैतिकता, गुम होते आदर्श, विलुप्त होती मानव सेवा, लुप्त होती गुरु शिष्य की परंपरा पर चिंता व्यक्त की।

जैन मुनि अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज का ससंघ अमरकंटक से अकलतरा नगर के आज अंबेडकर चौक में आगमन पर जैन समाज के साथ-साथ समस्त नगर वासियों द्वारा भव्य अगवानी की गई। जैन समाज के साथ-साथ नगर वासियों द्वारा आचार्य श्री की पूजा अर्चना एवं आरती करने के साथ-साथ आशीर्वाद प्राप्त किया गया धुमाल पार्टी एवं गाजे बाजे के साथ आचार्य संघ को जैन मंदिर तक ले जाया गया आचार्य संघ के आगमन को लेकर जैन समाज के लोगों द्वारा अपने अपने घरों के सामने स्वागत द्वार लगाने के साथ-साथ फ्लेक्स एवं बैनर लगाया गया, आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज की जय हो के नारों से नगर गूंज उठा, जैन मंदिर में आचार्य संघ द्वारा भगवान का दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया गया

अकलतरा नगर में आगमन के पश्चात आचार्य संघ का चेहरा खिल उठा, 42 डिग्री तपती धूप में अचार्य संघ अमरकंटक से 170 किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए नगर में पहुंचा, 16 वर्ष की आयु में ब्रम्हचर्य दीक्षा ली थी – आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज का जन्म मध्य प्रदेश के छतरपुर में 23 जुलाई 1970 को अभय कुमार जैन एवं शोभा देवी जैन के पुत्र के रूप में हुआ था, बचपन से ही धार्मिक कार्यों में रुचि होने के साथ-साथ वैराग्य मार्ग की ओर ध्यान आकर्षित होने से 12 अप्रैल 1986 को 16 वर्ष की आयु में गुरुदेव ने ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया 18 अप्रैल 1989 को आचार्य पुष्पदंत सागर महाराज से मुनि दीक्षा लेने के साथ-साथ 23 नवंबर 2019 को आचार्य पुष्पदंत सागर महाराज द्वारा आचार्य की पदवी प्रसन्न सागर जी को प्रदान की गई, मैं कौन हूं कहां से आया हूं और कहां जाता हूं इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए आचार्य श्री प्रसन्न सागर महाराज ने दिलीप उर्फ पप्पू नाम से आचार्य प्रसन्न सागर महाराज तक की यात्रा जीवन में पूरी की।

ब्रिटेन की संसद द्वारा भारत गौरव सम्मान एवं वियतनाम विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया – अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज को जैन धर्म में विशेष कार्यों के लिए ब्रिटेन की संसद में भारत गौरव के सम्मान से सम्मानित करने के साथ-साथ वियतनाम विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है, मानव मूल्यों के रक्षार्थ परस्पर मैत्री, वात्सल्य एवं शांति का उपदेश देने पर इंडिया बुक रिकॉर्ड, एशिया बुक रिकॉर्ड एवं गिनीज बुक रिकॉर्ड से भी गुरुदेव को सम्मानित किया गया है, गुरुदेव को भारत के साथ साथ विश्व भर में अब तक 250 से अधिक राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

जैन धर्म के सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखर में 557 दिनों तक मौन व्रत धारण किया गया – आचार्य श्री प्रसन्न सागर महाराज द्वारा जैन धर्म के सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखर में 21 जुलाई 2021 को जैन धर्म के सर्वोच्च तप सिंहनिषकिडित आरंभ करते हुए 23 जनवरी 2023 तक 557 दिनों तक लगातार मौन व्रत धारण करने के साथ-साथ 496 दिन उपवास रखने के साथ-साथ 61 दिन ही आहार ग्रहण किया गया एवं कलयुग मे कठिन व्रत के माध्यम से जैन धर्म का नाम पूरे विश्व में ऊंचा किया गया।