29 नवंबर 2022/ मंगसिर शुक्ल षष्ठी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ औरंगाबाद
परमपूज्य परम तपस्वी अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर’ जी महामुनिराज सम्मेदशिखर जी के बीस पंथी कोटी में विराजमान अपनी मौन साधना में रत होकर अपनी मौन वाणी से सभी भक्तों को प्रतिदिन एक संदेश में बताया कि तेल की बूंद को झूठ का पानी कभी डूबो नहीं सकता..!
सत्य को तलवार काट नहीं सकती, जहर मार नहीं सकता, अग्नि जला नहीं सकती। सत्य को पैसा खिलाकर दबा भी नहीं सकते। मौन सत्य है, झूठ सत्य का जामा पहनकर डांस कर रहा है, आखिर कब तक-?
एक व्यक्ति जान बचाकर भागते भागते आया और सन्तके चरण में बैठ गया। बोला गुरूदेव – मेरे पीछे तीन बदमाश नंगी तलवार लेकर मारने आ रहे हैं। आप जीवन दान दो। सन्त ने कहा- वो सामने रूई का ढ़ेर लगा है, उसमें छिप जाओ, वह जाकर छिप गया। उतने में वो बदमाश आ गये। सन्त से पूछा- महात्मा जी, यहाँ कोई व्यक्ति आया क्या-? सन्त ने कहा- हाँ आया था। बदमाश ने पूछाकहाँ है वो-?
सन्त ने कहा- वो रूई के ढ़ेर में छिपा है। बदमाश बोले – सन्त श्री आप भी मजाक करते हैं। रूई के ढ़ेर में वो क्यों छिपेगा-? सन्त ने कहा – वहीं छिपा है। वे बदमाश, सन्त को भला बुरा कहते हुये चले गये। जैसे ही बदमाश गये – वह व्यक्ति बाहर आया और सन्त से बोला – आप बड़े ढोंगी सन्त महात्मा हो। आपने हमको छिपा भी दिया और बदमाशों को बता भी दिया। आप तो मेरी जान से खिलवाड़ कर रहे थे।
तब सन्त ने कहा – अरे भाई! हमने तुम्हें रूई से नहीं ढका था, मैंने तुम्हें सत्य से ढका था। सत्य पर कोई तलवार – वार नहीं कर सकती। तुम छिपे थे, ये सत्य है। हमने छिपाया, ये भी सत्य है। हमने कहा – वहाँ छिपा है, ये भी सत्य है क्योंकि हमने तुम्हें रूई से नहीं, सत्य से ढका था और वह सत्य इतना मजबूत था कि उन बदमाशों को भरोसा ही नहीं हुआ।वो उसे रूई का ढ़ेर समझ रहे थे और मैं सत्य देख रहा था।
जो सत्य का जीवन जीते हैं, वही सन्त होते हैं…!!!।
नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद