निमियाघाट, कोडरमा-अहिंसा संस्कार पदयात्रा के प्रणेता साधना महोदधि भारत गौरव उभय मासोपासी आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज निमियाघाट के सहस्त्र वर्ष पुरानी भगवान पारसनाथ की वरदानी छांव तले विश्व हितांकर विघ्न हरण चिंतामणि पारसनाथ जिनेंद्र महाअर्चना महोत्सव पर भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए।
अंतर्मना प्रसन्नसागरजी ने कहा:- तुम्हारे पास जो भी दौलत है वह संतों की बदौलत है, तुम्हारे पास जो कुछ भी है ,वह संतो के आशीष का फल है, इसलिए अगर कभी सौभाग्य मिले दान,पूजा,विधान,परोपकार करने का तो कभी पीछे मत हटना, क्योंकि आज तक किसी संत ने पाप कार्यों के लिए दान करने को नहीं कहा, सौभाग्यशाली होते हैं वह भक्त जिन्हे गुरु दान पुण्य सेवा के लिए संकेत देते हैं यदि कोई मुनि,आचार्य -असहाय को सहयोग करने के लिए।
-दीन दुखी को दान।-भूखे को खिलाने के लिए कहे –
तो आनाकानी मत करना। ना पीछे हटना ना ज्यादा सोच विचार करना अपितु गुरु आज्ञा को सौभाग्य मानकर स्वीकार कर लेना, संत ने तुम्हे एक पुण्य का अवसर प्रदान किया है क्योंकि संत हर किसी को आदेश नहीं देते है , तुम्हारा अपना ही पुण्य है, जो संत तुम्हारे पुण्य को सौभाग्य में तब्दील कर रहे हैं ,
अतः गुरुओं की सेवा में अपनी चंचल लक्ष्मी का सदुपयोग करते रहना, गुरुओं की सेवा बंद मत कर देना, वरना मामला खटाई में पड़ जाएगा ,प्रभु की पूजा भक्ति विधान बंद मत करना, वरना दुर्भाग्य तुम्हारे सिर पर चढ़ जाएगा
आचार्य प्रसन्न सागर ने कहा:—अहंकार – परमात्मा और तुम्हारे बीच एकमात्र बाधा है, तुम्हारे और प्रभु के बीच अहंकार ही विवाद है अगर अहंकार की दीवार ढह जाए तो ,तुम्हारे लिए प्रभु के द्वार खुल जाएंगे
अहंकार दीवार है और समर्पण द्वार है, समर्पण के द्वार से ही ईश्वरी दृष्टि मिलती है, अगर अपना सच्चा समर्पण प्रभु को कर दो, तो प्रभु प्रकट होने के लिए बाध्य हो जाएगा
-कोडरमा मीडिया प्रभारी राज कुमार अजमेरा, नवीन जैन