उमड़ी सम्मेद शिखरजी जी /औरंगाबाद । तपस्वी मोन पूर्वक सिंहनिष्कडित व्रत करने वाले अन्तर्मना प्रातः स्मरणीय आचार्य श्री 108 परम पूज्य प्रसन्न सागर जी महाराज का 557 दिनों की मौन साधना ओर 457 उपवास ओर 61 आहार के साधक आचार्य श्री ससंघ तीर्थराज सम्मेदशिखर जी के बीसपंथी कोठी में साधना कर रहे है आज आचार्य श्री की 71 वॉ दिन पारणा महोत्सव के रूप में हजारों लोग उपस्थित हुवे सभी गुरुवर की एक झलक पाने को लालायित थे आज 9 दिन के बाद पारणा हुवा अब 9 दिन बाद पुनः पारणा होगा आचार्य श्री की मौन वाणी है लिखित कहा की
यह तन विष की बैलरी, गुरू अमृत की खान..
शीश दिये तो गुरू मिले, तो भी सस्ता जान..!
गुरु की तलाश, गुरु की खोज – कितनी कठिन है। उससे भी कहीं ज्यादा कठिन है शिष्य होने की यात्रा। शिष्य बनना भी अपने आप में एक बहुत कठिन साधना है। गुरु बनाना आसान है, पर शिष्य बनना आसान नहीं है। इसलिए आजकल शिष्य बनने की पहल कोई नहीं करता है। सब तरफ गुरु बनाने की पुरजोर कोशिश जारी है। बहुत से लोग मेरे पास आते हैं। और कहते हैं गुरुदेव मैं आपको गुरु बनाना चाहता हूँ-? मैं मना कर देता हूँ। मैं कहता हूँ – कि मेरी दीक्षा को 33 साल हो रहे हैं। हमने आज तक गुरु नहीं बनाया। मैं खुद शिष्य बनकर जी रहा हूँ। शिष्य बनना कठिन काम है। शिष्य बनने में समर्पण है, सरलता है, विनम्रता है। आप शब्द पर गौर करो – मैं आपको गुरू बनाना चाहता हूँ। गुरु बनाने में अहंकार की बू आ रही है, और शिष्य बनने में प्रेम की सुगंध। ये कोई नहीं बोलता है कि मुझे आपका शिष्य बनना है। बनने में अहंकार को चोट पहुँचती है, स्वयं को मिटाना पड़ता है, मिटना कठिन काम है।
जो शिष्य बनने को तैयार है, उनके लिये हमारे द्वार हमेशा के लिये खुले हैं…!!!। सौम्य मूर्ति मुनि श्री 108 पीयूष सागर जी महाराज ने प्रवचन में कहते है की पहले कड़वा सच इस छोटे से वाक्य को, जिन्दगी का मूल मन्त्र बनाओ – बेटा कुल वंश बने यह जरूरी नहीं, वो कुल अंगार भी बन सकता है, जिस घर में बेटी नहीं समझो उसके पास दिल नहीं ।
हर बेटी के भाग्य में पिता होता है, लेकिन हर माता पिता के भाग्य में बेटी नहीं होती है । बेटी होने का अर्थ है मंगल, शुभ, सौभाग्य,लष्मी का आगमन ।क्यो की कन्या मंगल है, कन्हैया नहीं । कहीं यात्रा में आप जा रहे हो और सामने से कन्या दिख जाए तो यात्रा मंगल ओर शुभमय हो जाता है ।बेटों से ज्यादा आजकल बेटियां माता-पिता का ध्यान रखती है बेटों से जीवन चलता है यह गलतफहमी मन से निकाल दो क्योंकि महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, विवेकानंद,दयानंद विनोवा भावे ,आचार्य कुंदकुंद,जैसे महापुरुषों के कोई पुत्र नहीं थे फिर भी आज इतिहास में अमरता का वरदान लिए जन जन के प्राणों में बसे हुए हैं इसलिए वंस चलने या डूबने के बात ही व्यर्थ है। वंश की चिंता करना छोड़ो । क्यो की वंश का अंश कुल दीपक बने ये कोई जरूरी नहीं है,
वह कुल अंगार बन सकता है । वंश का अंश परमहंस बने ये कोई जरूरी नहीं वह कंस भी बन सकता है ।
विवाह के बाद अक्सर बेटा पत्नी का हो जाता है ,लेकिन बेटी विवाह के बाद कितना ध्यान अपने मां-बाप का रहती है शायद उतना ध्यान बेटा नहीं रख पाता है ।और हां बेटी विवाह के बाद अपने मां-बाप को जमाई के रूप में एक पुत्र दिलाती है ।बेटी होने का अर्थ है समर्थन सरलता विनम्रता । बंटी जैन अहमदाबा डाँ संजय जैन मनोज चौधरी नितीन जैन विवेक गंगवाल आदी मान्यवर ऊपयित थे ।
पियुष कासलीवाल नरेंद्र अजमेरा