13 जनवरी 2022/ माघ कृष्ण षष्ठी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
जैन संत अन्तर्मना 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज ने अपनी मौन वाणी से मधुबन की स्थिति को बताया
पानी में रहकर मगर से बैर आखिर कब तक-???
सम्मेदशिखर जी-सूकून वहाँ नहीं जहाँ धन मिले – सूकून वहाँ है जहाँ मन मिले..
खुद जितना शान्ति से रहोगे, दूसरे को उतना ही शान्ति से जीने दोगे..
इसलिए – जीओ और जीने दो..!
किसी ने प्रश्न पूछा था – गुरूदेव, घर पर बहुत अशान्ति रहती है, क्या करें-?
हमने कहा – कुछ मत करो, आप खुद शान्त हो जाओ, शान्ति आपोआप हो जायेगी।
बात इतनी सी थी कि – तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत की स्वच्छता, पवित्रता, धार्मिकता को बरकरार रखने के लिए सरकार से अनुरोध किया था कि इसे पर्यटन स्थल नहीं बनाया जाये। लेकिन छोटी सी बात कहाँ से कहाँ पहुंच गई—?
संथाल आदिवासी समाज जो वर्षों वर्षों से पर्वत की सुरक्षा, व्यवस्था और सम्वर्धन में पारसनाथ भगवान एवं मरांग बुरू के प्रति अटूट आस्था विश्वास रखने वाले भक्त सदियों से पर्वत पर आते हैं। दर्शन वन्दन करके अपने भाग्य को सौभाग्य में तब्दील करके उतर जाते हैं।
संथाल आदिवासी समाज के बिना जैन तीर्थ यात्री, आधे और अधूरे हैं। क्योंकि यही लोग सम्पूर्ण जैन यात्रियों को पर्वत की वन्दना करवाते हैं और आनंद से नीचे पहुंचा देते हैं।
संथाल आदिवासी समाज के सभी लोग इमानदार, समझदार और समर्पित भाव से सभी यात्रियों को वन्दना करवाते हैं।
पहली बार जैन समाज के बड़े, बुजुर्ग, माता बहिने, बच्चे बच्चीयां सड़कों पर उतरे — सिर्फ तीर्थराज सम्मेदशिखर की पवित्रता, स्वच्छता, संरक्षण के लिए।
हम अपनी बात कहें – आपको सुनकर आश्चर्य होगा—?
हम 10 महिने से स्वर्ण भद्र कूट पर विराजमान हैं, 24 घन्टे यदि कोई मेरी सेवा, सुरक्षा, व्यवस्था में तत्पर तैयार रहते हैं तो यही लोग।
पूरे पर्वत पर एक भी जैन कर्मचारी नहीं है और जो एक दो पुजारी है तो वह सराग जैन जिनको णमोकार मंत्र के अलावा कूछ नहीं आता।
जैन समाज कद, पद और अधिकार के लिए करोड़ो रूपये बरबाद कर देगा मगर तीर्थों की व्यवस्थाओं के लिये — ओ माई गोड —-
08 जनवरी, 2023 को गिरिडीह जिला प्रशासन, सम्पूर्ण जैन समाज, जनप्रतिनिधि और आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों की एक सफल सार्थक बैठक हुई, जिसमें सभी की भावनाओं का सम्मान करते हुये तीर्थराज सम्मेद शिखर पारसनाथ पर्वत पर, जैन समाज और संथाल आदिवासी समाज पहले की तरह धार्मिक, नैतिक, व्यवहारिक रीति रिवाज और परंपरा का पालन करते हुये धार्मिक लाभ में सहभागी बनेंगे l
यहाँ के सभी कर्मचारी एवं आदिवासी समाज का समर्पण, सेवा और अखण्ड विश्वास के कारण ही हमारी माता बहिने कभी भी इनके साथ अकेली डोली हो या बाइक पर वन्दना के लिये निसंकोच, निडर होकर चली जाती है। अन्यथा आज का माहौल किसी पर भरोसा करने जैसा नहीं है।
तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत की 27 किलोमीटर की पद यात्रा, इतनी दुर्गम और कठिन है कि अकेले अपने दम पर कर पाना संभव ही ना हो पाता। इसलिए जिन बातों से मन की अशान्ति बढ़े, आपसी रिश्तों में दरार पड़े, मन परेशान हो, वैसा कोई भी कार्य ना करे और ना किसी को करने दे।
तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत पर दोनों पक्ष — एक दूसरे के बिना आधे अधूरे हैं। सन्त, सरिता, सूरज, धर्म और हवा पर कभी किसी एक का, एकाधिकार हो ही नहीं सकता। सबका समान अधिकार है।
सभी तीर्थराज सम्मेद शिखर के अन्ध भक्तों से आत्मीय अपनत्व विश्वास के साथ एक निवेदन —
तीर्थराज सम्मेद शिखर जी की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कोई भी जैन व्यक्ति किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी सोशल मीडिया पर न करें।
ध्यान रखें – स्थानीय आदिवासी समाज के साथ सहयोग के बिना आप हम ऐसे ही हैं जैसे धूप में टमाटर, बरसात में पापड़। इसलिए आपस में प्रेम, सदभाव, भाईचारा बना रहे।
संकलन कर्ता : जैन राज कुमार अजमेरा , कोडरमा