साधना के सुमेरु पर्वत की ओर अग्रसर अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर…..
शिकरजी , गणाचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज के आत्मीय शिष्य भगवान महावीर के बाद उग्रतम तपश्या करने वाले व आज के विषम कठिन समय व पंचम काल मे भी ऐसी कठोर साधना करने वाले एक मात्र दिगम्बर जैन संत *आचार्य अन्तर्मना तपाचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज* आगामी 21 जुलाई से अपनी 557 दिन की सिंहनिष्क्रीडित व्रत व उत्कृष्ट तप मौन आराधना की और अग्रसर होने जा रहे है।
अपनी साधना रूपी चर्या से आज अहिंसा परमो जैन धर्म की प्रभावना को जन जन तक पहुँचा ने वाले व अपने गुरुजनो के पदचिन्हों पर चल कर अपनी ऊर्जा को आत्मकल्याण से जोड़ कर जगत में प्राणी मात्र के लिए समीचीनता की भावना रखने वाले तपश्वि सन्त अन्तर्मना वर्तमान में अपने जीवन काल के 3500 उपवास से भी अधिक की साधना कर चुके है। ऐसे साधनामोहदधि जैन सन्त धर्म की सबसे कठिनतम साधना करने हेतु जैन धर्म के सबसे बड़े तीर्थ सम्मेदशिखर जी बीस पंथी कोठी मे विराजमान है।
जहाँ वे 21 जुलाई से सिंहनिष्क्रीडित व्रत व मौन आराधना 496 उपवास की साधना की शुरुवात करेगे जो 557 दिन में पूरी होगी। इस बीच वे 496 उपवास व 61 दिन पारणा ( आहारचर्या ) करेंगे। आध्यत्मिकता से ओतप्रोत जग में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले तीर्थंकर मार्गी दिगम्बर सन्त अपने साधना काल मे मौन व्रत का संकल्प भी लेंगे। वर्तमान में वे सतत एक आहार एक उपवास करते आ रहे है व आजीवन अष्टमी व चतुर्दशी का उपवास का पालन कर रहे है। इसके पूर्व भी 80 व 186 दिन की सिंहनिष्क्रीडित व्रत साधना कर चुके है। 1 लाख किलो मीटर से भी अधिक अहिँसा पद यात्रा के माध्यम से सतत धर्म प्रभावना कर रहे है। इसीलिए उन्हें कठिनतम साधना के लिये जाना जाता है। समिति अध्यक्ष अजय कुमार जैन आरा पटना व सदस्य गण अपनी सेवा देगे।
*शास्त्रानुसार व्रत का फल:-*
जैन धर्म के शास्त्र हरिवंश पुराण के अनुसार सिंहनिष्क्रीडित व्रत की साधना 557 दिन में पूर्ण होती है। इस व्रत के फलस्वरूप मनुष्य वज्र व्रषभ नाराच संहनन का धारक, अंनत वीर्य से सम्प्पन, सिंह के समान निर्भय और अणिमा आदि गुणों से युक्त होता हुआ शीध्र ही सिद्ध हो जाता है।
24 तीर्थंकर भगवान महावीर के जीव ने ‘नंदन’ मुनिराज के भव ने कनकावाली रत्नावली, मूक्तवली और सिंहनिष्क्रीडित आदि अनेक व्रतों का अनुष्ठान किया था। उसी प्रकार 21 वे तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान के जीव ने भी तीर्थंकर से तृतीय भव पूर्व ‘ सुप्रतिष्ठि ‘ मुनिराज की अवस्था मे इन कनकावली आदि अनेको व्रतों का अनुष्ठान किया था। और आज भी बहुत से युग पुरूष इन व्रतों का अनुष्ठान करते रहते है।
धर्मानुसार इन व्रतों को पूर्ण कर चुके है
दशलक्षण व्रत के 10 उपवास परतापुर बांसबाड़ा सन 1988, रत्नत्रय के 3 व पंचमेरु के 5 उपवास नोगामा सन 1989, चारित्र शुद्धि व्रत के 1234 उपवास अहमदाबाद सन 2000 व्रत पूर्ण सन 2003, ज्ञानपच्चीसी व्रत के 25 उपवास सन 2001 गिरिडीह, सम्मेद शिखर व्रत के 25 उपवास सन 2002 धूलियांन, पंचमेरु व्रत के 5 उपवास सन 2004 दिसपुर, चतुर्दशी व्रत आजीवन संकल्प तपश्वि सम्राट सन्मति सागर जी सन 2009 में संकल्प लिया। जिनसहस्त्रनाम व्रत के 1008+11 उपवास सन 2013 उदयपुर,अष्टनिका / सोलह कारण व्रत के 32 उपवास सन 2015 नागपुर से लगातार, जीणगुण सम्पति व सोलहकारण व्रत के 16+63 उपवास सन 2016 बेंगलोर, कर्मचूर व्रत में 296 उपवास सन 2017 जयपुर,
सिंहनिष्क्रीडित व्रत के 59+154 उपवास क्रमश 80 व 186 दिन का उपवास सन 2017 पदमपुरा, चौसटरिद्धि व्रत के 64+2 उपवास सन 2018 अहमदाबाद, समोशरण व्रत के 24 उपवास सन 2019, अष्टमी व्रत आजीवन सन 2019 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से संकल्प लिया।
णमोकार मंत्र व्रत के 35 उपवास सन 2019 पुष्पगिरी सोनकच्छ, भवना विधिव्रत के 50 उपवास सन 2020, भक्तामर व्रत के 48+2 उपवास सन मनशा पूर्ण महावीर, ओर अब 557 दिन की साधना 496 उपवास 61 पारणा सन 2021से 22 -23 जनवरी तक।
-नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल रोमिल जैन