557 दिवस की मौन साधना के दौरान 496 दिन उपवास करेंगे
प्रात: स्मरणीय,विश्व वंदनीय,इस सदी के महान तपस्वी साधक अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ससंघ शाश्वत तीर्थराज सम्मेदशिखर स्थित गौतम गणधर की टोंक पर विराजमान है।पूज्य अंतर्मना गुरूदेव सम्मेदशिखर जी में मधुबन से 9 किलोमीटर ऊपर पर्वत पर स्थित गौतम गणधर की टोंक पर करीब 10 जुलाई तक रहेंगे इसके पश्चात बीस पंथी कोठी में विराजमान रहेंगे।शाश्वत तीर्थराज सम्मेदशिखर जी जैन सम्प्रदाय का सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र है इसे तीर्थो का राजा भी कहा जाता है इस तीर्थ से जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकर मोक्ष गए थे।अंतर्मना गुरुभक्त चन्द्र प्रकाश बैद पीयूष नरेंद्र जैन रोमिल जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज शाश्वत तीर्थराज की पावन धरा पर दिगम्बरत्व सन्त एवं जैन समाज मे तप,त्याग और तपस्या की नई इमारत लिखने जा रहे है।महा तपस्वी अंतर्मना आचार्य इसी माह में कुछ दिवस पश्चात से ही सिंह निस्क्रीडित व्रत की अद्धभुत मौन महासाधना करने जा रहे है यह मौन महासाधना 557 दिन तक लगातार चलेगी इस मौन महासाधना के 557 दिन के दौरान पूज्य गुरुदेव 496 दिन उपवास करेंगे एवं मात्र 61 दिन ही आहार ग्रहण करेंगे।
पूर्व में भी अंतर्मना गुरूदेव ने तप त्याग तपस्या के अनेको कीर्तिमान स्थापित किये थे जिसमें पदमपुरा चातुर्मास के दौरान अखंड मोन पूर्वक सिंह निस्क्रीडित व्रत की साधना की जिसमे गुरुदेव ने 186 दिन की मोन साधना करते हुए 153 उपवास किये थे। पूज्य आचार्य श्री ने अपने दीक्षा काल के 32 वर्षों में अब तक 3500 से ज्यादा उपवास की कठिनतम साधना की है जिसमे 64 दिन,48 दिन,32 दिन,16 दिन एवं 10 दिन के लगातार अनेको बार उपवास कर चुके है।
दिगम्बरत्व सन्त समाज मे आचार्य प्रसन्न सागर जी ने तपस्या की अद्धभुत मिसाल कायम की है।
अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज के पिछले कई वर्षों से 1 दिन आहार एक दिन उपवास का व्रत चल रहा है उपवास के अगले आहार वाले दिन अगर अष्टमी या चौदस होती है तो आचार्य श्री 2 दिन के उपवास के बाद तीसरे दिन आहार ग्रहण करते है।अंतर्मना गुरूदेव प्रतिदिन प्रात: 2.30 बजे से लेकर रात्रि 12 बजे तक धर्मध्यान,साधना एवं तपस्या में लीन रहते है एवं उपवास के दौरान भी विहार में अनेक किलोमीटर का पद विहार करते है एवं प्रतिदिन मध्यान भीषण गिष्म काल की भरी धूप में सूरज के नीचे छत पर बैठ कर घण्टों तपस्या करते है।
गुरुदेव अब तक देश के 32 राज्यो में अहिंसा संस्कार पदयात्रा के माध्यम से 1 लाख किलोमीटर से भी ज्यादा की पद विहार यात्रा तय कर चुके है।पूर्व में भी शाश्वत तीर्थराज सम्मेद शिखर जी तीर्थ क्षेत्र की अंतर्मना गुरुदेव ने एक दिन में 8 वन्दना करके गौरव प्राप्त किया था।
किशनगढ़ के गुरुभक्तों ने गुरूदेव के दर्शन किये
किशनगढ़ से अंतर्मना गुरु भक्तों ने तीर्थराज सम्मेदशिखर जाकर गुरूदेव के दर्शन किये गुरु भक्तों ने आठ दिवसीय यात्रा के दौरान गुरूदेव के सानिध्य में पर्वतराज की वंदना,विधान,अभिषेक,पूजन का धर्मलाभ लिया साथ ही पूज्य गुरुदेव ससंघ को आहार देने का सौभाग्य प्राप्त किया।किशनगढ़ के गुरु भक्तों में चन्द्रप्रकाश बैद,आरतीबैद,अंशुल,प्रिया,अक्षत,सृष्टि एवं जलज सम्मिलित थे।
गुरूदेव अनेकों उपाधियों से विभूषित
तप,त्याग,साधना से सर्जन के सोपान एवं वाणी के सलिल प्रवाह के अधिपति होने के नाते अंतर्मना गुरुदेव को विभिन्न उपाधियों से विभूषित किया गया है।गुजरात शाषन द्वारा महामहिम राज्यपाल ओ.पी.कोहली के कर कमलों से गुरुदेव को साधना महोदधि की उपाधि से विभूषित किया गया। विश्व की सबसे बड़ी राखी रक्षासूत्र नामक कार्य ,कृत्य एवं लेखन के लिये वियतमान विश्व विद्यालय की मानक उपाधि से सम्मानित किया गया जो जैन समाज के साथ सम्पूर्ण भारत के लिए गौरव का विषय है।
ब्रिटेन की संसद में सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा आपको भारत गौरव की उपाधि से विभूषित किया। अंतर्मना गुरूदेव के दीक्षा गुरु आचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज ने भी उनको तपाचार्य की उपाधि से विभूषित किया। अंतर्मना गुरूदेव का नाम इंडिया बुक रिकॉर्ड,एशिया बुक रिकॉर्ड एवं गिनीज बुक रिकॉर्ड में भी दर्ज है।इस बार सम्पूर्ण देश के जैन समाज की निगाहें पूज्य गुरूदेव की अद्धभुत तपस्या पर लगी हुई है।
– नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद