भाद्रपद शुक्ल अष्टमी : 48 वां अवतरण दिवस मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज- वात्सल्य के सागर- मृदु वाणी जनकल्याणी

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5 सितम्बर 2022/ भाद्रपद शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
पूर्व नाम : ब्र. सर्वेश जी
पिता-माता : श्री वीरेन्द्र कुमार जी जैन एवं श्रीमती सरिता देवी जैन
जन्म : 13.09.1975, भाद्रपद शुक्ल अष्टमी
जन्म स्थान : भोगांव, जिला मैनपुरी (उत्तर प्रदेश)
वर्तमान में : सिरसागंज, फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा : बीएससी (अंग्रेजी माध्यम)
भाई : सचिन जैन
बहिन : सपना जैन
गृह त्याग : 09.08.1994
क्षुल्लक दीक्षा : 09.08.1997, नेमावर
एलक दीक्षा : 05.01.1998, नेमावर
मुनि दीक्षा : 11.02.1998, माघ सुदी 15, बुधवार, मुक्तागिरीजी
दीक्षा गुरु : आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

मुनिश्री प्रणम्य सागर जी महाराज श्रमण साधुओं की वंदनीय परम्परा में महनीय स्थान के अधिकारी पुण्य पुरुष हैं| आपके महान परिचय को लेखनी से लिख पाना अत्यंत दुर्द्धर है| पहाड़ को काटकर सुरंग निकाली जा सकती है, धरती को चीर कर पानी निकाला जा सकता है, आसमां को फाड़कर धरती पर भागीरथी को धरती पर लाया जा सकता है लेकिन आपके जैसे गुरु की महिमा का वर्णन संभव नही|

आप एक नहीं अनेक गुणों के धारी हैं, आप एक नहीं अनेक सलाह व सुराह के दर्शायक हैं, चतुर्थ काल सम आपकी चर्या है, आप वात्सल्य के सागर हैं, आपके मुख पर मंद मधुर मुस्कान प्रतिपल रहती है, आपकी मृदु वाणी जनकल्याणी है| यह आपकी वाणी का ही जादू है कि प्रवचनसार जैसे महान ग्रन्थ पर आपके प्रवचनों का ध्याय पारस, जिनवाणी एवं यूट्यूब जैसे चैनलों के माध्यम से विश्व भर में सुने गये|

आपके तपोनिष्ठ जीवन का एकमात्र ध्येय सम्यक ज्ञान के साथ एकान्त श्रुतोपासना है| श्रुतोपासना की निरंतरता के क्रम में आपके द्वारा महान ग्रंथो की रचना हुई है| यह आपकी लेखनी का ही जादू है कि प्राकृत भाषा जो कि हमारे आगम की भाषा है जिसे आज लोग भूल गए थे इसे भी “पाइय-सिक्खा” पुस्तक श्रृंखला की रचना से इतना सरल बना दिया कि जन जन में प्राकृत सीखने की लहर उठ गयी है

आपके द्वारा रचित “पाइय-सिक्खा” पुस्तक इतनी सरल हैं जिसे आज 5 वर्ष से लेकर 70 वर्ष तक के वृद्ध, युवा महिलाएं एवं बच्चे पढ़ रहें हैं|