लहराती ध्वजा एवं शिखर पर चमचमाता कलश युक्त जिन मन्दिर होता है महान मंगलकारी- मुनी श्री प्रणम्य सागर जी महाराज

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आगरा, दि.07/09/2021, आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महाराज ने आज पार्श्व कथा के 34 वे दिन तीर्थंकर के समवषरण का वर्णन करते हुये बताया कि समवषरण मे 10 प्रकार की ध्वजायें स्वर्ण के खम्बो पर लहराती हुयी हर आने वाले का स्वागत करती हैं,10 प्रकार की ध्वजाऔं पर क्रमष: माला, वस्त्र, मयूर, कमल, हन्स, गरुण, सिंह, व्रषभ,हाथी, व चक्र के चिन्ह होते हैं! इसी सन्दर्भ मे उन्होंने बताया कि जिनमन्दिर के शिखर पर लगी मुख्य जिनध्वजा भी कपडे की लहराती ध्वजा होनी चाहिए व हर 3-4 माह मे उसे बदलते रहना चाहीये, इसी प्रकार मन्दिर के शिखर पर चडा कलश भी सदैव चमचमाता रहना चाहीये, यह महान मंगलकारी होते हैं!

जिन मन्दिर प्रांगण मे अगर स्थान है तो उपरोक्त दस चिन्ह युक्त ऊंची ऊंची ध्वजा चमचमाते पीतल या स्टील के रौडों मे लगवाकर जिनमन्दिर के प्रवेश मार्ग पर लगवाने चाहीये, अगर यह भी न सम्भव हो तो शिखर पर ही मध्य मे मुख्य ध्वजा व चारो ओर ऊपर बताई ध्वजा लगानी चाहीये!

मानस्थम्ब या ध्वज ढन्ड, मन्दिर जी मे विराजित मूल प्रतिमा से 12 गुना बडी होनी चाहिए! मुनीश्री द्रारा पार्श्व कथा के अन्तर्गत इसी प्रकार नित्य नयी नयी रोचक जानकारी दे सभी को खूब धर्म लाभ दे रहे हैं, इसी लिये एम डी जैन की फील्ड पर बना विशाल पान्डाल भी कभी कभी छोटा पढ जाता है!