बम जलायें जरूर, लक्ष्मी-गणेश पूजा जरूर, पर थोड़ा इनको जान तो लो हजूर, जानिये, क्या कहते हैं मुनि श्री प्रणम्य सागरजी

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सान्ध्य महालक्ष्मी EXCLUSIVE
कुछ समय पूर्व सान्ध्य महालक्ष्मी ने मुनिश्री प्रणम्य सागरजी से चर्चा की तो दीपावली मनाने पर उन्होंने बहुत कुछ जानकारी दी।
आज कुछ युवा और बच्चे पटाखे-बम छोड़ने से बाज नहीं आते, चंचला लक्ष्मी के लिये भगवान के आगे हाथ जोड़ते नहीं थकते, पर यू लक्ष्मी को फूंकने से नहीं बाज आते। यह सब पर्यावरण के मस्तक पर इंसानी चोट है और जब इसकी जवाबी प्रतिक्रिया प्रकृति करती है तो उस प्राकृतिक विपदा से त्राहि-त्राहि मच जाती है। क्या बम चलाने-बजाने जरूरी हैं?

इस पर मुनि श्री प्रणम्य सागरजी कहते हैं, हां, अगर आप बम जलाना ही चाहते हैं, तो जरूर जलाइये। पर बमों की सही पहचान करना सीख लीजिए। चार प्रकार के बम हैं, वो आपके पास हैं भी, इस दिन उन्हें अपने पास से निकालिये और जला डालिये ऐसे, जैसे फिर दोबारा पैदा ही ना हो। ये चार बम आपके अंदर ही हैं, निकालो और खत्म कर दो उन्हें, इतना सामर्थ्य ला दो। ये बम हैं – क्रोध, मान, माया, लोभ के। दीपावली पर हमें अपने अंदर भरी हुई कषाय रूपी बमों को नष्ट करके मनानी चाहिये और इन्हीं कषाय के नष्ट होने पर केवलज्ञान की प्राप्ति होती है, चाहे वो भगवान महावीर स्वामी हो या फिर गौतम गणधर स्वामी, हमें सही प्रकाश उत्पन्न करना है, जो केवलज्ञान का सूचक है।

ये जो विस्फोटक रूपी मसाला जलाते हो, यह प्रदूषण फैलाता है, प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है। दूसरों को कष्ट देता है, अंधकार फैलाता है। छेड़छाड़ प्रकृति से नहीं करें, नहीं फैलायें प्रदूषण, दूसरों के जीवन में प्रकाश लायें। आप भीतर का प्रदूषण हटाने की बजाय रसायनिक प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, जो जीवन के लिये घातक है। जैन धर्म अपने पर कंट्रोल करना सिखाता है, अभय देना सिखाता है, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।

लक्ष्मी-गणेश की पूजा के प्रति धर्मसभाओं में कई बार मुनिश्री प्रणम्य सागरजी ने कहा है कि दिवाली के दिन आप लोगों को जिनेन्द्र भगवान की भक्ति करनी है। सुबह भगवान के मोक्षकल्याणक की और शाम को गणधर परमेष्ठी की भक्ति करनी है। उन्हीं गणधर परमेष्ठी को हम गणधर भी और गणेश-लक्ष्मी भी कहते हैं। ध्यान रखो, जैनों के गणेश जी हैं इन्द्रभूति गौतम गणधर, जिन्हें महावीर स्वामी के निर्वाण के दिन ही केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

लक्ष्मीजी का खुलासा करते हुये मुनि श्री ने कहा कि जो हमारे भीतर ज्ञान है, वही पूर्ण रूप से विकसित हो जाये, यही सबसे बड़ी लक्ष्मी और सबसे बड़ा वैभव है, क्योंकि लक्ष्मी ज्ञान से आती है। जो लोग ज्ञान के माध्यम से लक्ष्मी प्राप्त करते हैं, उनके पास लक्ष्मी हमेशा बनी रहती है। आज दुनिया में बड़े-बड़े अरबपति लोगों के पास में भी लक्ष्मी तभी टिक कर रहती है, जब उनके पास अपना कोई ज्ञान होता है, बुद्धि होती है। ध्यान रखो, आदमी लक्ष्मी से नहीं, ज्ञान से टिकता है। जितना ज्ञान बढ़ा, उतनी लक्ष्मी बढ़ेगी।

केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी की उपासना करो और उसकी फोटो कैसी होती है? इस पर लोगों पर प्रश्न खड़ा करते हुए मुनिश्री कहते हैं कि वैसी नहीं, जैसी तुम सबने घरों में लगा रखी है। तुम सब मिथ्यादृष्टि हो क्योंकि तुम गुरुओं के सामने कुछ बोलते हो, और घर में जाकर कुछ और करते हो। झूठ बोलने वाला, मिथ्या बुद्धि रखने वाला, गलत सोच रखने वाला मिथ्यादृष्टि होता है। गुरु के सामने कहते हो लक्ष्मी तो केवलज्ञान लक्ष्मी है और गणेश जी है गौतम गणधर स्वामी, पर घर में, दुकान में जाकर के लक्ष्मी-गणेश का रूप ही बदल जाता है।

मुनि श्री ने स्पष्ट कहा कि आप लोगों को केवल ज्ञान – गौतम गणधर की पूजा करनी ही नहीं आती। जब तक आपके भीतर ऐसा छिपाव-दुराभाव रहेगा, तब तक आपको भक्ति का सही रूप से पुण्य नहीं मिलेगा, क्योंकि भक्ति में समर्पण होना चाहिए और समर्पण भी एकतरफा होना चाहिए, संशय नहीं होना चाहिए। हमारे सामने भगवान केवलज्ञानी के रूप में है, गणधर स्वामी 64 प्रकार की ऋद्धियों सहित हैं, तो इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहना।