शिव के तांडव नृत्य के जैसा आनंद देता है श्रमण शतक, संसार जैसा था, वैसा है, वैसा ही रहेगा। परंतु यह कोई…. – मुनि श्री प्रणम्य सागर

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22 अप्रैल 2023/ बैसाख शुक्ल एकम/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ अर्हं टीम

आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा रचित श्रमण शतक, निरंजन शतक, भावना शतक, परिषह जय शतक, निजानुभव शतक पर संगोष्ठी का आयोजन शहपुरा नगर में किया गया, जिसमें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से अनेक विद्वान उपस्थित रहे।

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने कहा जो हमें दिख रहा है वह बाह्य जगत की यात्रा है। जब हम भीतर की यात्रा करेंगे, तो हमें चेतन रूप दिखेगा। जब बाहर की और देखेंगे, तो यह संसार जड़ या अचेतन के रूप में दिखता है। जब हम बाहर जगत को देखने में गलती करते हैं, तो हम भीतर की यात्रा नहीं कर पाते। जैन दर्शन में संसार को माया नहीं कहा गया, किंतु यह जगत अपने अंदर के मोह के कारण मोह माया स्वरूप है। चेतन पदार्थ को चेतन देखो, अचेतन को अचेतन देखो। बाहर जगत माया नहीं है, वह तो जीव अजीव रूप में पिंड स्वरूप है। संसार जैसा था, वैसा है, वैसा ही रहेगा। परंतु यह कोई माया नहीं है। यह सब हमे माया जैसा दिखता है, जब हमारे अंदर मोह होता है। जिनके अंदर नहीं होता, उन्हें संसार कोई माया के रूप में नहीं दिखता, ऐसे साधक श्रमण कहलाते हैं। उन्हें संसार दो रूप में दिखता है, एक चेतन दूसरा अचेतन। श्रमण की यह परिभाषा आचार्य श्री ने श्रमण शतक में दी है, जो उचित है। श्रमण शतक पढ़ने में ऐसा आनंद आता है जैसा शिव जी के तांडव नृत्य देखने में।

दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 15-16 अप्रैल को शहपुरा भिटौनी नगर में अर्हं ध्यान योग प्रणेता परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी के सान्निध्य में आयोजित किया गया।

उल्लेखनीय है कि शहपुरा में चल रहे विद्वत संगोष्ठी के प्रथम दिन पूरे देश से लगभग 30 विद्वान उपस्थित हुए और उन्होंने संगोष्ठी के तीन सत्रों में अपने विचार व्यक्त किए। प्रो. शिवकुमार शर्मा, प्रो. भक्तिपुत्र रोहतम, प्रो. अशोक कुमार जैन, डॉ. रवि गुप्त मौर्य, प्रो. शीतल चंद्र जैन, ब्रह्मचारी विनोद भैया जी, डॉ. फिरोज खान, प्रो. संगीता मेहता, डॉ. निशित गौड, प्रो. जय कुमार जैन ने अपने आलेख व्यक्त किए। परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने अपना सान्निध्य और मार्गदर्शन प्रदान किया।