अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी की मोनव्रत साधना के 100 दिवस पूर्ण

0
1904

सिंह निष्कीड़ित व्रत की सफ़लता के लिए गुरु भक्त करेंगे जिनेंद्र भक्ति…..
औरंगाबाद। शिखरजी:- भगवान महावीर की साधना सत्य की साधना थी, साधना काल का सफर उनके वर्द्धमान से महावीर बनने का सफर था । प्रभु महावीर के दीक्षा लेने से लेकर प्रभु के ज्ञान प्राप्ती तक की यात्रा में प्रभु को लगभग साढ़े बारह वर्षों का समय लगा । धरती वीर महावीर ने अनेक कष्टो को सहा औऱ अंततः क्षमाशील महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। इसी मार्ग पर चल कर अनेको आचार्यो ने साधना तप के माध्यम से अपना कल्याण किया। इन्ही मोक्ष मार्गी तपस्वीयों की राह पर चलते हुवे साधना के सुमेरु पर्वत की और अग्रसर अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने अपने सिंह निष्क्रीडत व्रत की साधना के 100 दिवस पूर्ण किये l

557 दिन की कठिन मोन साधना में गुरुदेव के 100 दिवस पूर्ण होने पर भक्तो में अपार उत्साह है।
कहते है ना कि समस्त मंत्रों का मूल गुरु है और गुरु ही परम तप, परम सत्य है। गुरु की प्रसन्नता मात्र से शिष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। ऐसे गुरु जिनकी साधना मात्र से भक्तो का पुण्यप्रवलता की और बढ़ रहा हो तो भक्तो की खुशी अपने आप अंतर्मन से उत्साहित होगी।

इसी उत्साह को आत्मा अनुभूति की ओर ले जाने के लिए अंतर्मना गुरुभक्त गुरुदेव के 100 साधना दिवस पूर्ण होंने पर व सिंहनिष्क्रित व्रत की निर्विघ्न सम्पन्नता के लिए जिन मंदिरो मे मंत्र जाप, आरती, पाठ कर व्रत की अनुमोदना करेंगे l

शास्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी के 20 पंथी कोठी मे ससंघ अंतर्मना गुरुदेव अपनी साधना मे लीन हे l गुरुदेव के पारणा दिवस पर अंतर्मना की एक झलक पाने को भक्तो का तांता लगा रहता हे l भक्तो के प्रेम समर्पण को अपने ह्रदय में विराजमान कर गुरुदेव आरती,गुरु -भक्ति के समय साधना कक्ष से ही समय समय पर अपना आशीर्वाद व आशीष प्रदान कर भक्तो कों उत्साहित करते रहते हे l.
-नरेंद्र रोमिल पियुष जैन औरंगाबाद