जिसने पहले किसी को संकट से बचाया है उस पर कोई संकट आता है तो जिसे बचाया वह संकट से निकालता है। पूर्व भव में यदि किसी ने किसी को मारा है तो इस भव में उसे मार खानी पड़ती है। पूर्व भव में जो जिसकी रक्षा करता है इस भव वह उसकी रक्षा करता है। पूर्व भव में जो जिसके प्रति उदासीन रहता वह इस भव में वह उसके प्रति उदासीन रहता है। जिसे देखकर तुम्हें क्रोध आ जाए तो यह पक्का समझना कि वह पूर्व भव में तुम्हारा शत्रु था।
जिसे देखकर मन प्रसन्न हो जाए तो मानो कि यह पूर्व भव में तुम्हरा मित्र था। तिर्यंच जीव जो हमें कष्ट देते हैं वह सब हमारे पापकर्म का ही फल है। शक्तिशाली होते हुए भी हम अपने आपको युद्ध में नहीं बचा पाते हैं तो यह सब पाप कर्म का ही फल है। संसार में तप, दान ही रक्षा करता है। वही संकटो से बचाता है। हमे दिखाई देता है कि पिता, पुत्र, परिवारजन हमारी रक्षा करते हैं, पर यह सही नही है क्योंकि मृत्यु को प्राप्त जीवन को कोई धन, शक्ति नही बचा सकती है। वास्तव में हमें जीवन भर विवेक के साथ किए दान, व्रत, शील आदि ही बचाते हैं। जिसने पूर्व भव में दया, दान आदि के द्वारा धर्म नही किया वह सुख, शांति, दीर्घ जीवन की इच्छा करता है तो वह इच्छा निष्फल ही रहेगी।