कर्म गति ने तो सीता पर भी लगा दिए लांछन – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

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पद्मपुराण के पर्व तिरासी में राम, सीता और लक्ष्मण के अयोध्या में प्रवेश के बात सीता पर लांछन का वर्णन है। आइए उसे पढ़ते है।

राम जब अयोध्या में आए तो अपार वैभव भी साथ आया। इसका वर्णन शब्दों में नही किया जा सकता। बस यह कह सकते हैं कि स्वर्ग के समान ही था। इसी बीच कुछ क्षुद्र लोग बातंे करने लगे कि यह नगरी स्वर्ग जैसी सुंदर है पर इस नगरी में एक बड़ा दोष दिखाई देता है जो कि महानिन्दा और लज्जा का कारण है तथा सत्पुरुषों के योग्य नहीं है।

वह दोष यह है कि विद्याधरों का राजा रावण सीता को हर ले गया था और उसने अवश्य ही उसका सेवन किया होगा। अब वही सीता वापस लाई गई है। क्या राम को ऐसा करना उचित है ? अहो जनों ! देखो जब क्षत्रिय, कुलीन, ज्ञानी और मानी पुरुष यह काम कर रहे हैं तो अन्य पुरुष का क्या कहना। इस प्रकार क्षुद्र मनुष्यों के द्वारा प्रकट सीता का अपमान पूर्व कर्मोदय से लोक में सर्वत्र विस्तार को प्राप्त हो गया। देखा कर्मों का उदय कि सती, पवित्र सीता के ऊपर भी अशुभ कर्मो के कारण लांछन लगा।

इस कर्म सिद्धांत से सीख लेनी चाहिए कि जब सीता जैसी पवित्र आत्मा पर कर्मो के कारण ऐसा लांछन लग सकता है तो सामान्य स्त्री को कितनी सवाधानी रखनी पड़ेगी। अपनी दिनचर्या, उठने-बैठने, बोलने आदि में कितना ध्यान रखना चाहिए। हमारा मन तो पवित्र है पर जो दिखाई देता है वही अपमान का कारण बनता है। काजल की कोटडी में जाओगे तो दाग तो लेगा ही यह कहावत प्रसिद्ध भी है।

अनंत आगर