न जाने कितनी बार इस मल से भरे शरीर को सौंदर्य प्रसाधनों के माध्यम से सुंदर बनाने की कोशिश की है, पर आजतक नही बना पाया हूं। न जाने कितने तिर्यंच जानवरों की हिंसा से यह सौंदर्य प्रसाधन बनते हैं। उन सब का दोष मुझे लगा है। इस तरह न जाने कितने अशुभ कर्म का बन्ध कर पाप कर्म का जीवन में संचय कर लिया है… क्या पाप कर्म से कभी शरीर सुंदर बन सकता है? सुंदर शरीर के लिए भी तो शुभ शरीर नाम कर्म का उदय चाहिए। यह बात आजतक नही समझ पाया मैं।
भगवान आज जब तुम्हें ह्दय में धारण कर ध्यान में बैठा तब न जाने किस शुभ कर्म के फल से यह पता चला कि शरीर की सुंदरता सौंदर्य प्रसाधन से नहीं बल्कि शुभकर्म बन्ध से जो पुण्य का संचय होता है उससे होती है। तीर्थंकर भगवान का शरीर जन्म से सुंदर इसीलिए तो होता है क्योंकि उन्होंने पुण्य का संचय किया है।
हे भगवान… मैंने अज्ञानता के कारण शरीर को सुंदर बनाने के लिए आजतक पाप का कितना संचय कर लिया है यह तो मैं भी नही जानता हूं। यही नहीं मैंने न जाने प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचाया होगा। जल, वायु, पेड़-पौधें का नाश किया होगा। अकेले मेरे लिए नहीं किया होगा पर इसमे निमित्त तो मैं भी बन गया हूं।
आज संकल्प करता हूं कि अब शरीर को सुंदर बनाने के लिए सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग नही करूंगा बल्कि मोक्ष की इच्छा से भगवान की आराधाना करूंगा तो शरीर सुंदर अपने आप हो जाएगा।