आचार्य श्री शांतिसागर महाराज हरिजनों के प्रति दया का अतुलनीय भाव रखते थे। वह कहते थे कि हरिजन गरीबी के कारण अपार कष्ट भोग रहे हैं। हमें इनका तिरस्कार नहीं करना चाहिए बल्कि उनके आर्थिक कष्ट दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। केवल उनके साथ बैठकर भोजन करने से उनका कष्ट दूर नहीं हो सकता।
उनका कहना था कि शूद्रों और गरीबों का उद्धार राजसत्ता कर सकती है। आचार्य श्री ने जब जयपुर में चार्तुमास किया तो उस समय अस्पृश्योद्धार के नाम पर बहुत सारे लोगों ने अनेक मेहतरों के यहां मैला साफ किया। तब आचार्य शांतिसागर ने कहा कि अगर इनका सच्चा उद्धार करना है तो इनको सदाचार के पथ पर लगाना होगा और साथ ही इन्हें भूमि देकर इनकी आजीविका की व्यवस्था करनी होगी।
उन्होंने अपने उपदेशों से अनेक हरिजनों का नैतिक जीवन ऊंचा बनाकर सच्चा उद्धार किया। उनका कहना था कि पाप-प्रवृत्तियों का त्याग ही आत्मा को ऊंचा उठाता है। इसी वजह से अनेक हरिजन आचार्य शांतिसागर महाराज के भक्त हो गए थे।