श्रावक को कभी उपकार नहीं भूलना चाहिए – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

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पद्मपुराण के पर्व इक्यासी में एक प्रसंग है जो बताता है कि श्रावक को कभी उपकार नही भूलना चाहिए। यह प्रसंग हम सब को अंगीकार करने योग्य है।

राम का अयोध्या जाना तय हुआ उसके बाद विभीषण ने दूत अयोध्या भेजा और यह सूचना भरत राजा की भेजी की राम आयोध्या आ रहे हैं। यह समाचार जानकर राम और कौशल्या आदि सब माताएं प्रसन्न हुईं। दूत के पंहुचने के बाद हजारों विद्याधर वहां पहुंचे और आकाश से अयोध्या में चारों और नाना प्रकार के रत्न ,स्वर्ण आदि की वर्षा हुई।

अयोध्या के हर घर के आंगन में रत्नों और स्वर्ण के ढेर लग गए। उसका बात भरत ने भी यह घोषणा करवा दी कि किसी के यहां और कोई कमी हो तो वह राज महल में आकर ले जाए। वहां की प्रजा ने कहा अब कुछ भी रखने को जगह ही नही है प्रभु।

विभीषण के द्वारा भेजे गए विद्याधर कारीगरों ने अयोध्या की रचना को और सुंदर बनाया और स्वर्ण-चांदी का उपयोग कर अयोध्या में जिनमंदिर, मण्डप, भवन, दरवाजे, तोरण, बावड़ी आदि बनाए। सुंदर सजावट की गई। इससे अयोध्या नगरी लंका से भी सुंदर नगरी बन गई। अयोध्या नगरी नौ योजन चैड़ी बारह योजन लम्बी और अड़तीस योजन परिधि में थी। 16 दिन में कारीगरों ने अयोध्या नगरी को ऐसा बना दिया कि 100 वर्षो तक उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। यह वर्णन हम सब के लिए श्रावक धर्म को मजबूत करने वाला है।

-अनंत सागर