सम्मेदशिखर जी – तपस्वी मोन पूर्वक सिंहनिष्कडित व्रत करने वाले अन्तर्मना प्रातः स्मरणीय आचार्य श्री 108 परम पूज्य प्रसन्न सागर जी महाराज का 557 दिनों की मौन साधना ओर 457 उपवास ओर 61 आहार के साधक आचार्य श्री ससंघ तीर्थराज सम्मेदशिखर जी के बीसपंथी कोठी में साधना कर रहे है
आचार्य श्री के मंगल आशीर्वाद से परम पूज्य मुनि श्री 108 सौम्य मूर्ति पीयूष सागर जी मुनिराज ने अपने प्रवचन में बतलाया कि कर्म ऐसा करो जिससे तुम्हे कभी बाद में पछताना न पड़े। तुम यह मत सोचो कि हम बन्द कमरे में छुप कर कोई पाप कर रहे हैं कोई नहीं देख रहा है, यह आपका भ्रम है।भाइयों भगवान तो हमेशा ऑनलाइन है सभी को उसके द्वारा किए कार्यो का परिणाम उनके खाते में जमा कर लिया जाता है।
तुम्हारे मन में किसी जीव को दुख पहुंचाने का ख्याल आया समझ लेना मेरे परिणाम बुरे होने वाले हैं। जैसा करोगे वैसा भरोगे जिस प्रकार किसान अपने खेत मे गेंहू फेंकता है तो गेहूं उगता है और चना फेंकता है तो चना उगता है उसी तरह हम जैसा परिणाम करेंगे वैसा ही हमे अपने जीवन मे मिलेगा। हमेशा सभी की सेवा करो, गुरुजनों की सेवा करो,बड़ों का सम्मान करो, अपने जीवन में सदा समर्पित भाव लाओ। सभी को अच्छा भाव जागृत करना चाहिए।
अच्छा विचार लाना चाहिए, किसी को तकलीफ ना दो।दीन दुखी की सेवा करो,धार्मिक कार्यो में मन लगाओ, ओर धर्म के प्रति समर्पित रहो। जिससे सभी का पुण्य बढ़ेगा सुख शांति और समृद्धि बढ़ेगी।
– पियुष नरेंद्र जैन