पौष कृष्ण एकादशी – पावन दिन, पावन संकल्प- एकता-उत्थान, बस यही 10 विकल्प

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यह कलम चल रही है, वो दिन है साल का एक अति पावन दिन पौष कृष्ण एकादशी। वैसे तो सभी कल्याणकों, पर्वों के दिन पावन होते हैं, पर चन्दा-पारस तीर्थंकरों के जन्म-तप कल्याणक के साथ यह दिन अति पावन बन जाता है, शायद जब तक ये पंक्तियां आप तक पहुंचे, तब तक अंग्रेजी तिथि का कलेण्डर ही बदल जायें और पूर्व संस्कृति में जन्मे हम लोगों में से तब तक अंग्रेजी तिथि का कलेण्डर ही बदल जाये और पूर्व संस्कृति में जन्मे हम लोगों में से कई पाश्चात्य संस्कृति में डूबने-इतराने लगे।

1. कोरोना ने सिखाये बदलाव
पिछले कुछ वर्षों में जैन समाज में कई परिवर्तन देखे जा रहे हैं, फिर भी अनेकता के होते हुए एकता की दिखती किरण दोपहर के दमकते सूरज की भांति देदीप्यमान नहीं हो पा रही। कोरोना महामारी ने, जो अब तीसरी बार फिर आने की दस्तक देने लगी है, उसने हमें अपनी जीवन शैली में बदलाव लाने को मजबूर कर दिया। पर उसका दूसरा राउण्ड पूरा हुआ, हम वापस आ गया अपनी पुरानी आदतों पर।

2. जनगणना के प्रति जागरूकता
2022 में गिनती फिर होनी है। सन् 2011 में 44,51,253 तक सिमटा जैन समाज, जब गिनती में कहा जा रहा था कि यह गिनती एक करोड़ के पार होगी, बशर्ते सभी जैन बंधुओं ने अपने धर्म के आगे जैन लिखा होता। वक्त है सबको जागरूक करने का, गौत्र कोई भी हो, धर्म तो जैन है, फिर धर्म कालम में जैन ही लिखें, कहें, बतायें, क्योंकि इस बार संभवत: गिनती डिजीटल होगी और कई अनेक सवाल भी पूछे जाएंगें।

3. धूम पंचकल्याणकों की, पर जैन धन खिसकता अजैनों की ओर
कोरोना के कारण बंद द्वार क्या खुले, पंचकल्याणकों की लहर आ गई, लहर नहीं, आंधी-सी आ गई। हां,पहले भी होते थे, पर अब तो एक-एक मंदिर में 2-4 बार पंच कल्याणक किये जाने लगे है। सान्ध्य महालक्ष्मी नये मंदिरों के निर्माण का पूरा समर्थन करता,पर साथ ही इस बात की भी अपील करता है कि लाखों से करोड़ों के खर्च को कम कर, उसे मानव कल्याण में भी लगाया जाये। जो खर्च होता है, वो टेंट में, खान-पान में, प्रचार में, मूर्ति निर्माण में, ट्रांसपोर्ट में, लाइट-बैंड बाजे के रूप में बड़ा हिस्सा अजैन वर्ग पर पहुंचता है और जाता है शत प्रतिशत जैन समाज की जेब से।

4. बदलती – क्षरण होती विरासतें
हमारे तीर्थों-मंदिरों को बदलने, अपना हक जमाने की कोशिश कुछ वर्षों से तेजी से चल निकली है। अफसोस है कि हमारी राष्ट्रीय स्तर की अनेक कमेटियां इसको रोकने, बचाने, संवर्धन, संरक्षण के लगभग नाकारा साबित हुई हैं। इसका एक कारण यह भी है कि जैन समाज जागरूकता के लिये, केवल साधु वर्ग की ओर देखता है, वही मानता है और हमारे संत व विद्वत वर्ग इस ओर अपनी पहल नहीं कर रहे, जिसकी आज महती जरूरत है।

5. आवश्यकता कल्याण कार्यों की
आज शिक्षालय, चिकित्सालय की जरूरत तेजी से बड़ी है। सभी जैन धनाढ्य नहीं हैं। वर्ष 2021 में आत्महत्या व धर्मांतरण की अनेक सूचनायें मिली। जैन समाज के लिये धार्मिक कार्यक्रमों के खर्च में कुछ कटौती कर ऐसी कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है। वर्ना हमारा विघटन और गिनती नीचे की ओर खिसकती ही जाएगी। आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा जेलों में हथकरघा, जबलपुर के तिलियाघाट में पूर्णायु आयुर्वेदिक अस्पताल के बाद, अब कुण्डलपुर में इस दिशा में कुछ और घोषणाओं की आशा है। ऐसी पहल में अन्य संतों की भागीदारी भी जरूरी है।

6. एक हो जाओ, एक रहो
महावीर के लाल, अब भी एक नहीं हो रहे। यह एकता नीचे पायदान पर दिखती है, पर टॉप पर यानि साधु-संतों द्वारा इस ओर कोई ठोस कदम न उठाने से, हम चार कदम बढ़ते हैं, तो वहीं चंद दिनों में पीछे खिसक जाते हैं। 18 दिनों का पर्यूषण किरण तो दिखा सकता है, पर हमें सूरज बनने के लिये कदम-कदम पर आवश्यकता है।

7. आपसी विवाद अदालत नहीं, मेज पर बैठ कर दूर करें
कहीं हम मूर्ति बदलने, एक-दूसरे से अधिकार छीनने, अपने नये इतिहास को प्राचीन करने, दूसरे की कमियां गिनाने में ही पूरा समय निकाल देते हैं और अदालतों में लड़ने वाले हम लोग मेज पर बैठकर विवाद को मिटाने की कोशिश नहीं करते। आज एक ना होने से राजनीतिक व सामाजिक स्तर पर हमारी छवि धूमिल ही रही है।

8. कर्तव्यहीन अपनी-अपनी कुर्सी-कुर्सी छोड़े
आज अनेक तीर्थों, मंदिरों, संस्थानों के नेतृत्व में विवाद यूं ही दिखते हैं। 10 से ज्यादा केस अदालत तक पहुंच चुके हैं। क्या बदलाव नहीं होना चाहिये। कुर्सी पर चिपकना नहीं, काम करना होगा, तभी समाज को गति मिलेगी। आज तो कई जगह संतों का भी कमेटियों में, कार्यों में, चयन में, हस्तक्षेप होने लगा है। जहां कर्तव्यहीन और समाज की मांगानुसार कार्य नहीं कर पा रहे, उन्हें स्वयं उतरना चाहिये।

9. संत व श्रावक में बढ़ती शिथिलता पर लगे विराम
कहीं संत द्वारा आत्महत्या की मजबूरी, वहीं विहारों में होती दुर्घटनायें, अनाचार की बढ़ती घटनायें, एक बार फिर ‘शिथिलता पर विराम’ लगाने की आवश्यकता पर बल देने लगी है।

10. बंटकर नहीं, मिलकर लड़ो
कही अनोप मंडल जैसे लोग बरगला रहे हैं, तो कहीं सरकार की अनदेखी, ऐसे कई पहलुओं पर अलग-अलग लड़ने की कोशिश करते हैं, अगर ताकतवर जैन समाज एक होकर, साथ मिलकर लड़े, चाहे राजनीतिक स्तर हो या अदालती द्वार पर, या फिर सामाजिक स्तर पर, एक होकर लड़ेंगे तभी जीत पाएंगें। बंद मुट्ठी की ताकत, बंटी अंगुलियों से हमेशा जीतती है।

ये थे दस खास, जो पिछली घटनायें और नूतन वर्ष 2022 के लिये हमें बदलाव करने के लिये आवाज देती हैं – जैन कुल में जन्में हैं, तो समाज के लिए कुछ तो कीजिए। जितना कर सकते हैं, उतना ही करिये, पर टीका-टिप्पणी की बजाये, जागिये और दूसरों को भी जगाइये।

हर नई सुबह की शुभकामनायें।
– शरद जैन