#पावागढ़ जहां जैन मंदिर बन गए कूड़ाघर और ऊपर बने #काली_मंदिर को 130 करोड़ का सहयोग, जैन मंदिर जर्जर हालत में ,पर शून्य सहयोग

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29 सितम्बर 2022/ अश्विन शुक्ल चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
भारत जैसे देश की सरकार से आप यह उम्मीद कभी नहीं कर सकते कि वह भेदभाव करेगी । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 18 जून 2022 को पावागढ़ पहाड़ी के ऊपर बने महाकाली मंदिर पर ध्वजा लहराई, जिस पर प्रशासन द्वारा विभिन्न मदों में 130 करोड़ रुपए का सहयोग दिया।

उसी पावागढ़ पहाड़ी पर 7 जैन तीर्थ भी है, सिद्ध क्षेत्र है यह। जहां से 50000000 महामुनिराज मोक्ष गए हैं। लव कुश की भी है मोक्ष स्थली है और आज यही तीर्थ क्षेत्र अपने भेदभाव की गाथा पुकार पुकार करके रहा है कि भारत देश के सबसे प्राचीन धर्म से ऐसा भेदभाव क्यों । यह पावागढ़ 3280 एकड़ में फैला है। बहुत बड़ा क्षेत्र है ।

गोधरा के दक्षिण में 68 किलोमीटर चलना पड़ता है, तो वहीं बड़ोदरा से पूर्व में 50 किलोमीटर चलने पर यह पावागढ़ आता है, जहां दर्जनों हेरिटेज साइट है ऊपर पहाड़ पर इसे सिद्ध स्थली भी कहा जा सकता है , वहां पहले सुपार्शनाथ मंदिर के पास तक रोपवे जाता था ।

अब नया रोप वे इस तरह बनाया गया है कि वह सीधा कलिका मंदिर पर जाकर रुकता है यानी अब साथ जैन मंदिरों को एक प्रकार से अलग कर दिया है। चलो सीढ़ियों से, तब कर पाओगे दर्शन। यहां पर 7 जैन मंदिर हैं।

प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी, 23वें तीर्थंकर श्री पारसनाथजी और फिर श्री चिंतामणि पारसनाथ जी का एक और मंदिर है एक तरफ । श्री चंद्रप्रभु, श्री सुपार्श्वनाथ जी, महावीर स्वामी जी और शांतिनाथ जी के मंदिर भी हैं

अभी हाल में यह एक तस्वीर एक चैनल महालक्ष्मी , सांध्य महालक्ष्मी के पाठक ने भेजी है, जोकि गत सप्ताह, यहां पर दर्शन करने आए। पर उनका कहना है कि मैं तो लव-कुश मंदिर की सीढ़ियां भी नहीं चल पाया । उसके चारों तरफ दरवाजे पर, इस तरह कूड़ा बिखरा हुआ था , जैसे यह किसी निगम का कूड़ा घर हो और जिस पर, गधा वहां पर उसको खा रहा था । बदबू आ रही थी ।

यह दृश्य कोई नया नहीं है। जर्जर हो रहे हैं यहां पर जैन मंदिर। और उनको देखने वाली एएसआई जैसे आंख मूंदे पड़ी है एक ऊपर मंदिर है, जो भी संभव है कभी जैन मंदिर रहा होगा ,क्योंकि उसकी सीढ़ियों पर तीर्थंकर प्रतिमाएं उकेरी हुई थी

और कहा जाता है अब उन सीढ़ियों को भी वहां से हटा दिया गया है यानी कोई भी ऐसा प्रमाण नहीं छोड़ा, जिससे कहा जाए कि कभी वहां पर तीर्थंकर भी मूर्तियां थी। क्या यह भी हो सकता है कि पहले वह मंदिर श्रमण व वैदिक परंपरा का संयुक्त मंदिर हो।

यहां पर एक शिव मंदिर भी है पर उसके बाहर इस तरह तीर्थंकर प्रतिमा जब उकेरी हुई दिखती है , तो मन में अलग भाव तो आते ही हैं कि सच्चाई क्या कुछ और है। कब तक जैनों पर इस तरह से अपनी विरासत को लुटने के लिए मजबूर किया जाता रहेगा।

पर आज ताकत और बाहुबल के सामने एकतरफा बदलने में कोई देर नहीं की जाती। यूनेस्को हेरीटेज से संरक्षण प्राप्त यहां पर एक हिंदू मंदिर की कायापलट करने में 130 करोड़ खर्च हो जाते हैं और 7 जैन मंदिरों पर आंखें बंद कर दी जाती है।