काय की मलिनता दूर करते हो,मन की भी करो
सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 14 सितंबर 2021
आओ आओ रे पर्यूषण प्यारो, मंदिर चाला रे
आओ आओ रे…
मंदिर चाला रे कि सारा नियम निभा लिया रे
आओ आओ रे…
पर्यूषण महिमा री भारी, जाने जग यू सारो रे
जप तप त्याग रीति निभा सा धर्म हमारो रे
आओ आओ रे…
गुरु जना री सेवा कर लिया जीवन सफल बनावा रे
जीवा और जीने दे सबने यूं ही सिखावा रे
आओ आओ रे…
संयोजक श्री अमित राय जैन : भ. महावीर देशना फाउंडेशन जैन समाज में एकता समन्वय और सौहार्द की दृष्टि से स्थापित किया गया वह संस्थान है जो पूरे देशभर के अंदर और विदेशों में जैन समाज के उन सभी व्यक्तियों के बीच में सेतु का काम करेगा जो कि जैन समाज को आज की इस वैश्विक परदृश्य पर आधुनिक रूप पर एक-दूसरे के साथ जुड़ा हुआ देखना चाहते हैं और भविष्य की दृष्टि से एक-दूसरे के सहयोग की कामना करते हैं। भ. महावीर देशना फाउंडेशन ने 18 दिवीसय पर्यूषण महापर्वों की श्रृंखला जो पिछले वर्ष प्रारंभ की, उसका इस वर्ष आज 11 वां दिन है। मंच पर विराजमान साधुवृंद के चरणों में नमन और आगंतुकों का अभिनंदन करते हुए सभा का शुभारंभ किया।
डायरेक्टर श्री मनोज जैन : मेरी भावना की पंक्तियां –
जिसने राग-द्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया,
सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया।
बुद्ध वीर जिन हरि-हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो
भक्ति भाव से प्रेरित हो, वह चित्त उसी में लीन रहे।
विषयों की आशा नहीं, जिनके साम्यभाव धन रखते हैं
निज परके हित साधन में जो, निश दिन तत्पर रहते हैं।
स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते हैं
ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुख समूह को हरते हैं।
11वें दिन की प्रयोगशाला भ. महावीर देशना फाउंडेशन की तरफ से स्वागत करते हुए उत्तम शौच को कुछ इस तरह कहा – उत्तम शौच लोभ परिहारी, संतोषी गुण रत्नभंडारी।
शुचिता यानि मन, जीवन, वाणी सुंदर करो
महासाध्वी जी प्रीति जी – मधु जी महाराज :
हे प्रभु वीर दया के सागर, सब गुण आगर ज्ञान उजागर
जब तक जीव हंस हंस जिऊं, ज्ञान सुधा अमृत पीलूं
सत्य, अहिंसा का रस पीयूं, छोड़ू लोभ घमंड बुराई
चाहूं सबकी मीत भलाई, जो करना सो अच्छा करना
फिर दुनिया में किससे डरना,
हे प्रभु अपना मन हो सुंदर, वाणी सुंदर जीवन सुंदर
हे प्रभु वीर दया के सागर, सब गुण आगर ज्ञान उजागर
इस प्रकार प्रभु वीर के चरणों में हमने भावना भाई है कि मेरा मन, जीवन, वाणी सुंदर हो। जैन आगम के अंदर मन, वचन और काया त्रिलोगों की साधना बताई है, उसे अधिक से अधिक निर्मल कैसे बनें, इसी साधना को आत्मसाधना कहा है। आज का शुचिता धर्म जो है, वो भी यही संदेश देता है।
मन मलिन, तन सुंदर कैसे, विष रस भरा पनघट जैसे आज दुनिया के अंदर तन की स्वस्थता के लिये बहुत से साधन उपलब्ध हैं, या यूं कहे कि माल, बाजार, पार्लर सारे इसी से भरे हुए हैं कि तन को कैसे सजाया जाए और न जाने उसके पीछे कितनी हिंसा रही है, लेकिन फिर भी उसका फल ले रहे हैं सुंदरता। जो काया जड़ है, नष्ट होने वाली है, पर पूरा जगत उसकी सुंदरता के लिये मेहनत कर रहा है। साबुन, लिपस्टिक, पेस्ट, पाउडर से लेकर सारे कास्मेटिक्स तन की सुंदरता के लिये हैं, परंतु मन की सुंदर के लिये चलना होगा तो हमारे इस दशलक्षण और 8 दिवस के पर्युषण पर्व के 18 दिवसीय के इस मॉल में जाना होगा। वहां के एक-एक धर्म को आचरण में लाना होगा कि मैं कैसे निर्लोभी, शुद्धि, अकषाय बनूं। कषाय की मलिनता मेरे अंदर से निकल जाएं, ये भावना सिर्फ और सिर्फ इस दशलक्षण में आती है। एक-एक लक्षण के अंदर कषायों से जुड़े हुए भाव, कि इस कषाय, उस कषाय को निकाल देना।
उसमें भी अंदर ग्रेड रखी हुई है। जैन तत्व ज्ञान के अंदर हाय, हायर और हाइस्ट जैसे अनंतानुबंधी, अप्रत्याखानी, प्रत्याखानी और संज्वलन। दश धर्म एक-एक मोती है और एक माला में पिरोये हुए हैं, वे मोती की माला हमें इन 18 गुणों के कारण मिल सकती है। आज का धर्म शुचिता – जीवन कैसे निर्मल कषाय रहित हो, ये सिद्धता आ जाती है आत्मावलोकन करने से और सम्यक्तव की प्राप्ति करे। सम्यक्त्व एक बार आ जाती है तो कहीं भी गलती नहीं होती और कहीं भी मन मलिन नहीं होता।
आज कहने से ज्यादा, करना होगा। ये समय आया है जब हम अपने को बदले, विचार को बदले। अत्यधिक नम्र, सरल, पवित्र बन जाए ताकि एक-दूसरे के सम्प्रदाय को ऊंचा-नीचा न देखते हुए अधिक से अधिक संख्या में हम आगे बढ़ेंगे। प्रभु तो दया के सागर है, करुणा के भंडार है और वे निश्चित हमारी साधना को, इस प्रयत्न को सहयोग देंगे, आशीर्वाद देंगे और एक न एक दिन ऐसा आएगा जो हम आज लाखों की गिनती में आए हैं, करोड़ों की हो जाएं और खाली संख्या ही नहीं क्वालिटी भी हो। ये 18 दिन क्वालिटी के हैं, हमें अपनी क्वालिटी को बढ़ाना है।
कहते बहुत हैं,
आचरण में भी उतारना होगा
डायरेक्टर अनिल जैन सीए : भ. महावीर और भ. बुद्ध में एक समानता है। दोनों ने एक ही बात की कि ह्यूमन लाइफ इज विद सफरिंग्स यानि जो दुख है हमारे जीवन के, उन्हें खत्म करना है। दोनों ने कहा कि हमें ध्यान करना होगा और एक अच्छा व्यवहार रखना होगा। दोनों ने कर्म सिद्धांत को माना और दोनों ने अनेक ऐसी बातें हैं – चाहे वह रत्नत्रय की, उन्होंने थ्री ज्वैल्स – बुद्धा, धम्मा और संघा। हम कहते हैं सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र। भूटान में 84 प्रतिशत बौद्ध रहते हैं और इस देश ने दुनिया को हैप्पीनेस दी है। इस सारे प्रकरण से मानना होगा कि विभाजन जो है, बुद्ध का महावीर के साथ हुआ जबकि दोनों के पास कर्म सिद्धांत है, दोनों के पास तीन ज्वैल्स हैं, दोनों के पास भी कर्म निर्जरा के आठ रास्ते हैं। बस कहने और करने का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन पहले 500 बरस में हम लोग नहीं हुए, दोनों ने अपना-अपना वंश, धर्म, दृष्टिकोण अलग-अलग चलाएं। दोनों में न उस समय विवाद था, न आज, 2584 वर्ष के बाद विवाद है। तो आज हम देखें कि हमने विवाद क्यों किया?
उसका मात्र एक कारण है कि हम जैनों को एक हो जाना है। ये संगीत – गीत पिछले साल भी सुना और पिछले 30 सालों से सुन रहे हैं। यदि हम एक हो जाते हैं तो हम 54 करोड़ क्यों नहीं हुए, इस बात पर विचार करिए। जब वो हमारे से 34 वर्ष बाद पैदा हुए तो 54 करोड़ कैसे हो गए, वो दस देशों में राज करने वाले हो गये और हम देश तो छोड़िए एक छोटे से कस्बे पर भी राज करने वाले नहीं हुए। जो संघ आज बैठा है उसे इसका समाधान सोचना पड़ेगा। क्या इन 18 दिनों में निकलेगा? क्या सचमुच यहां मौजूद प्रत्येक व्यक्ति जो एक-एक इंस्टीट्यूशन के रूप में है, चाहते हैं कि हम एक हो जाएं, मन से चाहते हैं, क्या दिल से चाहते हैं कि हमें अपरिग्रही होना चाहिए, क्या भ. महावीर की देशना अलग-अलग हो सकती है? इन सारों की बात एक है कि ऐसा नहीं हो सकता, तो मैं कहूंगा कि खाना पकाकर फ्रिज में रखने से स्वाद नहीं मिलता, स्वाद लेना है तो खुद चखो या दूसरे को चखाओ। जब तक हम अपने आचरण को विचारों को नहीं उतारेंगे तो हम केवल कहते रहे जाएंगे।
भ. महावीर देशना फाउंडेशन का मंच एक कारपोरेट के रूप में है। ये हैं उस रूप में जिसमें अनेक चैम्बर्स आॅफ कामर्स काम करते हैं, यूएनओ की व्याख्या के रूप में है, ये वो मंच है जिसमें कोई चुनाव नहीं होगा, किसी किस्म के वाद-विवाद की संभावना न हो। मैं ऐसे मंच से आज पुन: आह्वान करता हूं कि आप सब लोग आएं, अलख जगाएं, लोगों को जोड़े, स्वयं जुड़े और जितने आप लोगों के भक्त हैं, जितने हमारे साथी-मित्र हैं, उन्हें हम बुलाना होगा, सामने बैठाकर दिखाना होगा कि सचमुच हम आपकी बात का समर्थन करते हैं, तभी हम शायद एक-एक कदम आगे बढ़ पाएंगे, नहीं तो हम अगले वर्ष 18 दिन तक अगर मौका मिला तो यही चर्चा करेंगे।
जैन तत्वों के पीछे की साइंस समझाइये, युवा पीढ़ी खिंची चली आएगी
डॉ. सुधा कांकरिया जैन : युवा पीढ़ी को अगर हमारे साथ जुड़ना है या दो पीढ़ियों में एकता लानी है तो हमारे जो जैन तत्व हैं, उस तत्व के पीछे जो साइंस, विज्ञान छिपा है वो अगर स्पष्ट हो जाए तो युवा पीढ़ी भी इन जैन तत्वों के साथ जुड़ जाएंगे और हम एकता का निर्माण कर सकेंगे। सम्पूर्ण स्वास्थ्य की परिभाषा डब्ल्यू एचओ ने की है कि जब हम शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक लेवल पर स्वस्थ होते हैं तो हम सम्पूर्ण स्वस्थता को प्राप्त करते हैं। अगर देखा जाए तो आज कल का जो जीवन है, Hurry – Worry – Curry का है। इसमें फिजीकल स्वास्थ्य मैंटेन करना मुश्किल हो गया। आज हार्ट, कैंसर, डिप्रेशन बढ़ते जा रहे हैं, अन्य बीमारियां और कोरोना जैसी महामारियों को मद्देनजर रखते हुए हमारा सम्पूर्ण हैल्थ मैनटेन करने का जो रहस्य है वह जैन तत्वों, जैन सूत्रों में छिपा है। जैसे शाकाहार, रात्रि भोजन त्याग, आइसोलेशन इसके कारण हम शारीरिक रखरखाव कर सकते हैं, फिजीकल हैल्थ को प्राप्त कर सकते हैं। वैसे ही मौन साधना, मेडिटेशन, प्रतिक्रमण, क्षमापना है – ये सभी मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य देती हैं।
शाकाहार सब जानते हैं। रात्रि भोजन का त्याग – जब हम कोई भी फूड लेते हैं, तो पेट में अंदर अन्न जाने के बाद उसका कम्पलीट डाइजेशन होने के लिये चार घंटे का समय आवश्यक होता है। अगर हम 6 बजे भोजन करते हैं तो 10 बजे तक ये अंदर जो अव्यय हैं, आर्गन्स हैं, उन्हें काम करना पड़ता है। अगर हम 8 बजे या 10 बजे भोजन किया तो 4 घंटे जोड़ लीजिये यानि रात को 2 बजे तक हमारे अंदरूनी आर्गन्स को कार्य करना पड़ता है, कष्ट करना पड़ता है, ओवरटाइम करना पड़ता है। अगर इंसान ओवरटाइम करता है तो बीमार होता है, तो जब आर्गन ओवरटाइम करेगा तो बीमार हो जाएगा। दूसरा परिभाषा है कि जब हम अहिंसा तत्व का पालन करते हैं, रोज खुद को बोलते हैं लेकिन रात्रि का भोजन करना, एक आत्म हिंसा भी है। हम रात में भोजन कर अपने अंदरूनी आर्गन्स पर हिंसा कर रहे हैं। इसलिये रात्रि भोजन का त्याग करना बहुत जरूरी है, जिससे हमें हैल्थ भी मिलती है और अहिंसा तत्व का पालन करके पुण्य भी मिलता है।
दूसरा प्याज और लहसुन का त्याग भी आवश्यक है। मेडिकली देखें तो इस पर बहुत सारे रिसर्च हुए। इसमें एक सल्फर नाम का होलाइट एसिड होता है, उसकी विशेषता है कि वह बल्ड और ब्रेन का बैरियर को नष्ट करते हुए ब्रेन में प्रवेश करता है। ब्रेन के अंदर जो न्यूरोंस हैं, उनको डैमेज करता है। न्यूरोंस डैमेज से हमारा रिएक्शन टाइम जो है, वह धीरे हो जाता है। मतलब जब इमरजेंसी आई है, तो क्विक और सही डिसीजन लेना होता है, लेकिन जो प्याज और लहुसन खाते हैं उनमें ये दोनों ही बातें स्लो डाउन होती हैं। तो युवा पीढ़ी को यह बात समझनी होगी।
तीसरा प्रतिक्रमण का महत्व : रोज प्रतिक्रमण करना महत्वपूर्ण हैं। आज की दुनिया अतिक्रमण में जा रही है। सोच-विचार में, भावनाओं में, वाणी में, शब्दों में, कर्म करने में सभी जगह अतिक्रमण हो गया है। तो ये अतिक्रमण को छोड़ते हुए प्रतिक्रमण करना एक कदम सही दिशा में लेना, एक कदम पीछे आना और नार्मल स्टैंडर्ड, एक्रेट लाइफ को जीना बहुत जरूरी है। हम देख रहे हैं कि असत्य, झगड़े, क्रोध, विकार बढ़ते जा रहे हैं, इन सबसे हमें एक कदम पीछे आना है और जो भगवान महावीर ने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, दया, क्षमा, शांति, समता, ममता, बंधुता, एकता – ये जो तत्व हमें सिखायें हैं, इन तत्वों को लेना है, तो प्रतिक्रमण करना जो हमें प्रतिक्रमण से हटाता है। खुद को रोज के रोज अवलोकिक करें कि मेरे हाथ से कुछ गलती हुई है क्या? मेरी गलती से किसी को दुख हुआ है क्या? अगर ऐसा हुआ तो मैं उनकी क्षमा मांगू और दूसरों की गलती से मेरा मन दुखी हो गया तो मैं उनको माफ भी करूं। ये दोनों बात जब होंगी तो मन का बोझ हल्का हो जाएगा। मन स्वच्छ हो जाएगा और इसके कारण मानसिक प्रदूषण वो कम हो जाएगा।
जो साइकोमेस्टिक बीमारी बढ़ती ही जा रही है। यह बीमारी मन से होती है। मन अगर प्रदूषित हो जाए तो फिर शरीर के ऊपर और फिर सामाजिक स्वास्थ्य के ऊपर भी प्रभाव डालते हैं। तो प्रतिक्रमण करना इसलिये आवश्यक है। वैसे ही मौन साधना, मेडिटेशन भी मानसिक प्रदूषण को फुलस्टाप लगाती है, मन को शक्तिशाली, सामर्थ्यशील करती है। हमारे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक स्वस्थता के लिये इन नियमों का पालन करना ही होगा।
डॉ. अशोक मेहता जैन, सूरत: हमने तीर्थंकर भगवंतों, अरिहंतों को नहीं देखा लेकिन अरिहंतों स्वरूप सभी आचार्य भगवंतों को कोटि-कोटि वंदन करता हूं। भ. महावीर देशना फाउंडेशन जो पिछले वर्ष से चारों फिरकों की एकता और समन्वयता जो कार्य कर रही है, 18 दिवसीय जो पर्यूषण पर्व का अभियान इस देशना समिति के चारों डायरेक्टर – सुभाष जी, अनिल जैन, राजीव जी और मनोज जी जैन और संयोजकगण तथा सभी कार्यकर्ता प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कृतज्ञता प्रकट करता हूं कि उन्होंने ऐसा कार्य प्रारम्भ किया है, जैन समाज को एक करने का विश्व स्तर पर आपने इस कार्य का जो बीड़ा उठाया है, उसके लिये बहुत-बहुत कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। जो सेवा का प्रकल्प, जो हम कर रहे हैं, वो सारी प्रेरणा के स्टार्ट करने वाले हमारे पूज्य श्री रविन्द्र जी मुनि महाराज को नमन है।
आचार्य श्री शिवमुनि जी महाराज का आत्मसाधना का एक ही लक्ष्य रहता है। भ. महावीर ने जिस तरह से साढ़े बारह वर्षों तक ध्यान किया और साधना की, वही साधना हमें मोक्ष दिला सकती है। उसके लिये हमें आत्म ध्यान साधना के अलावा हमारे पास कोई और विकल्प नहीं होता है कर्मों की निर्जरा के लिए। दान करने से हमें पुण्य तो मिलता है, लेकिन कर्मों की निर्जरा के लिये आत्म साधना करनी पड़ेगी।
हम आठ की जगह अट्ठारह दिनों तक साधना में रह सकते हैं, हम धर्म से जुड़ सकते हैं। तो जितने भी हमारे श्रमण हैं, श्रावक-श्राविकाएं हैं मिलकर प्रयास करें तो हम 8 की जगह 18 दिन पर्यूषण मना सकते हैं और उससे हमें कई तरह से सरकारी तरफ से कठिनाई आती है जैसे कत्लखाने बंद करने के लिये हम 8 या 10 दिन कराने की बजाय 18 दिन के लिये प्रयास करें।
जैन मंच पर कंसलेटेंसी सेंटर खोला
जहां मिले युवाओं को समाधान
परम अस्मिता जी महासती : आज जो जनरेशन है, उसे हर चीज अपने हिसाब से चाहिए, अपनी इच्छाओं के हिसाब से चाहिए और अगर हमें उन्हें वो दें जो उन्हें चाहिए, उसे वे स्वीकार कर लेते हैं। अगर किसी रेस्टोरेंट में जाते हो और वहां एक ही मैन्यू है जहां सिर्फ 4-5 चीजें हैं और दूसरा मैन्यू है जिसमें भरा पूरी च्वास है। आप दूसरा मैन्यू ही लोगे जिसमें वैरायटी है, क्योंकि उसमें वो है जो आपको खाना है। आज का युवा, आज की पीढ़ी एक से प्रवचन को सुनना नहीं जानती। भगवान महावीर के दृष्टांत हैं, कहानियां हैं जो बहुत लाभकारी हैं लेकिन वह फिक्सड मैन्यू है, लेकिन युवा को कस्टामाइज्ड मैन्यू चाहिए। यह प्लेटफार्म बहुत ही अच्छा है जिस पर हम जैनत्व को नये अलग लेवल तक ले जा सकते हैं। भ. महावीर को चिर काल तक, एक लंबा आयुष्य देना चाहते हैं, तो जरूरी है कि युवाओं का ध्यान रखना होगा, क्योंकि वो ही जैन ध्वजा आगे लेकर जाएंगे। आज बहुत ही कम लोग धार्मिक मंच पर बैठते हैं। मैं चाहूंगी कि भगवान महावीर देशना फाउंडेशन अगर सचमुच भविष्य के लिये काम करना चाहते हैं, आने वाली जनरेशन के लिये कुछ काम करने की जगह उन्हें प्रवचन देने की बजाय, काउंसेलिंग सेशन देने चाहिए, जहां पर हम यूथ को आमंत्रित करें। आपके साथ विश्व के बहुत सारे साधु-संत जुड़े हैं। क्यों नहीं काउंसलिंग सेंटर खोलें जहां यूथ अपनी समस्यायें लेकर आएं, और जब आप उन्हें समाधान देंगे तो वे जैन धर्म को अपना धर्म समझेंगे।
अभी उन्हें जैन का लेबल तो मिल गया है लेकिन उनका लेवल जैन का नहीं है, वो ऐसा इसलिये क्योंकि उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता। इसके लिये हमें युवाओं से इस मंच पर अपनी समस्याएं साझा करने के लिये बुलाना चाहिए। संत-साध्वी समस्याओं का निदान दें। जैसे एक युवा कहता है कि मैं बहुत पढ़ रहा हूं लेकिन सफलता नहीं मिलती। तब उसको हमें बताना होगा कि सिर्फ मेहनत ही नहीं, हमारे भगवान ने कहा है कि हमें अपने विनय गुण को बढ़ाना होगा। जैसे ही विनय गुण बढ़ेंगे तो आपके अशुभ कर्म क्षय होते जाएंगे और सफलता अपने आप आपके पास आ जाएगी। अगर आज के यूथ को जैनेजिम इस तरह प्रस्तुत किया जाता है तो बताइये कौन नहीं आएगा भगवान महावीर के सूत्रों को सुनने के लिए। हमारे संतों को सुपर स्पीकर्स नहीं सुपर साइक्लोजर्स बनना होगा। हम कुशल बोलकर उन्हें आकर्षित कर सकते हैं लेकिन हम उनकी समस्याएं दिमागी रूप से हल नहीं कर पाएंगे। अगर यूथ को मेंटली प्रोब्लम्स का सोल्यूशन नहीं मिलता तो वे आपके प्रवचन सुनने के लिये वहां मौजूद नहीं होगी। हमें अपने को सुपर साइकोलोजिस्ट बनना होगा। हमें हमारे यूथ को कैसे मंच पर लाना है।
संवाद से समाधान निकलते हैं
उपाध्याय रविन्द्र जी महाराज: बारं-बार यहां एक प्रश्न आ रहा है जैन एकता का। मैं छोटा था, मैंने सन् 1975 के आसपास जब भ. महावीर का 2500वां निर्वाण महोत्सव मनाया गया, तो मैं जैन समाज की अनेक गतिविधियों को बहुत नजदीक से देखा। लालकिले के सामने परेड ग्राउंड में बहुत आयोजन हुए, दिल्ली के बाराटूटी चौक पर चारों सम्प्रदायों के द्वारा अनेक आयोजन हुए वो हमारी एकता को उजागर करने का एक तरीका, एक माध्यम था और वह कार्यक्रम बहुत-बहुत सफल तरीके से आयोजित हुआ। मोटे तौर पर देश के काफी बड़े भूभाग पर विचरण करने के बाद मैं कह सकता हूं कि जैन एकता का विशेष संकट तो नहीं है। छोटी – मोटी समस्याएं और मानवीय व्यवहार कहीं न कहीं थोड़ा बहुत देखने में आता है, लेकिन विषय हमें चिंतित होने की जरूरत नहीं है। लेकिन एकता के लिये माहौल बनाना, बार-बार प्रेरणा करना सुंदर वातावरण करना, बार-बार अपनी समस्याओं पर चिंतन करना यह सदैव आवश्यक था और आगे भी आवश्यक रहेगा।
मैं ऐसा मानता हूं कि जब तक जैन धर्म की चारों शाखाओं में रोटी-बेटी का संबंध है, तो हमें बहुत अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। मैं देखता हूं कि हमारे लोग बौद्धिक स्तर पर लड़ सकते हैं, कदाचित् जुबान से भी कुछ वाद-विवाद कर लेते हैं। कहीं मंदिर, स्थानक, तीर्थ का कोई झगड़ा हुई तो हिंसात्मक प्रदर्शन न करते हुए ज्यादा से ज्यादा क्या करते हैं, कोर्ट कचहरी में चले जाते हैं। वहां जाएंगे, ज्यादातर जज हैं वो देखते हैं कि जैन समाज का केस आ गया, अरे ये समाज तो पढ़ा लिखा है, बुद्धिजीवी है फिर भी ऐसी विवाद की स्थिति कैसे आ गई? जज भी जल्दी – जल्दी फैसला न कर, कहता है कि आप ही कम्प्रोमाइज कर लो, क्यों हमें मजबूर करते हैं – यह संकेत है कि हम समझें। कई बार यह बात लिखने, बोलने में आई कदाचित् जैन समाज में किस प्रोपर्टी, जमीन-जायदाद धार्मिक क्षेत्र में, जैन संस्थाओं, जैन कॉलेजों, स्थानकों-मंदिरों की, तीर्थों की उसमें कभी कोई विवाद हो गया, तो परस्पर संवाद को बंद न करें। संवाद बनाकर रखें, संवाद से समाधान निकलते हैं। एक बात आवश्यक है कि हम प्रांतवाइज मंच बनाए, उसे कोर्ट न कहे, जिसमें रिटायर्ड जज, वकील, प्रबुद्ध श्रावक लोग हैं, जो न्यूट्रल भाव से एक पक्ष, दूसरा पक्ष, तीसरे पक्ष आदि -आदि की बातों को बड़े धैर्य से सुनें और उनका समाधान दें लेकिन वह केस उसका लिया जाएं जहां दोनों पक्ष रिटर्न में कहें कि जैन मंच से जो भी न्याय मिलेगा, उससे हम सहर्ष स्वीकार करेंगे।
मैं अनेक शहरों में, दिल्ली में विशेष तौर पर कि किसी ने विज्ञान भवन में बुलाया तो दौड़कर गया, चारों सम्प्रदायों के आयोजन में दौड़कर गया, अहिंसा कुंभ में तरुण सागरजी ने बुलाया तो तन मन धन से सम्पूर्ण समाज के लिये लग गया, इसमें मैं ही उसमें नहीं लगा बल्कि ऐसी विचारधारा के संत संन्यासी कल थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे। पिछले 50-60 सालों में देखें तो आचार्य सुशील मुनि ने जैन एकता के लिये काम किया और उसके बाद अनेक मुनियों ने जैन एकता के प्रयास किये। महावीर जयंती और क्षमापना ये दो कार्यक्रम ऐसे हैं जहां मंच सांझा करने में कोई दिक्कत होनी ही नहीं चाहिए। एक मंच था भारत जैन महामंडल जो लगभग फिलहाल ठंडा हो गया है, वह मुंबई तक सीमित रह गया और अब कोई गतिविधि सुनने में नहीं आती। नार्दन इंडिया में जैन सोशल ग्रुप बने हुए हैं, उसमें अनेक परंपराओं के लोग सामाजिक स्तर पर मिलते हैं, घूमने जाते हैं, थोड़ी धार्मिक गतिविधियां करते हैं, बातचीत करते हैं, वो हमारी निकटता को बढ़ाने का काम करते हैं और वर्तमान में बड़े नगरों के अंदर जैन स्थल बनने लग गये जो चारों सम्प्रदायों द्वारा संयोजित होते हैं, उनके द्वारा बहुत अच्छा कार्य चल रहा है।
कई बार किसी भी संप्रदाय के बड़े संत के जन्म जयंती, दीक्षा के 50 साल का कार्यक्रम है, क्या चारों संप्रदाय के साधु-संत नही ंआते क्या? आते हैं, सब मिलते हैं, संवाद होते हैं तो हम जैन एकता के विषय हमें बहुत अधिक चिंतित भी न हो लेकिन कोशिश भी जारी रखें। हम में से किसी को भी मालूम पड़ता है कि चारों परम्पराओं में से फला आचार्य, फला श्रावक जैन एकता को खंडित करने के लिए लेख लिखता है, प्रवचनों में बोल रहा है, तो वहां 4-6 श्रावक मिलकर जाएं, विनयपूर्वक हाथ जोड़कर कहें कि महाराजश्री साहब आप खटाई डालने का काम न करें, ये भाषा आज के जमाने में उपयोगी नहीं है। किसी जमाने में हमारी आपसी सम्प्रदाय में शास्त्रार्थ हुआ करते थे, आज यह नहीं होते। शास्त्रार्थ का युग गया, अब मिलकर बैठकर, चर्चा करने का युग है।
आचार्य श्री देवनंदी जी : एक ओर हम लोग अपने कर्मों की निर्जरा करते हुए दस धर्मों का पालन कर रहे हैं, उन दस धर्मों में क्रोध, मान, माया को छोड़ने के पश्चात् चौथा दिन लोभ त्यागने का दिन है। हम अपनी लोभ तृष्णा वृत्ति का त्याग करें, अहं की पुष्टि का त्याग करें। किसी को धन का लेकर ममत्व है तो किसी को मंच और माइक का। ममत्व और लोभ एक प्रकार से परिवार, समाज और देश के विघटन का कारण बनता है। जहां जितना लोभ बढ़ता है, वहां उतना पाप की बहुलता बढ़ जाती है। मानसिक दूषणता आ जाती है, वैचारिक अपवित्रता भी आ जाती है। आज हमें अपनी लोभ कषाय का त्याग करके समाज को एक करने के लिए, समानता की दृष्टि का एक दर्जा हम सबको देना होगा।
समाज के जो परिवार बेरोजगार हैं, युवा वर्ग जो यहां-वहां भटक रहा है, आज चारों सम्प्रदाय में बड़े – बड़े उद्योगपति हैं, यदि हम चाहें तो इस असमानता को दूर करने के लिये, बेरोजगारी को दूर करने के लिए, समाजिक समन्वयता से एकता को बढ़ाने के लिये है। सबसे पहले हम अपने जैन बंधुओं को जो कि आज जॉब के लिये इच्छुक है, कुछ व्यापार के लिये इच्छुक हैं, और उसके पास संसाधनों की कमी है, दिमाग तो है लेकिन उनके पास धन नहीं है। समाज के युवाओं के पास प्रतिभाओं की कमी नहीं है, यदि हम इनका उपयोग करें, तो हमारी जैन समाज उद्योग क्षेत्र में कई गुणा वृद्धि कर सकती है। हमें सिर्फ इन साथियों का साथ लेना होना। हमें अपनी आत्मीयता दिखाकर युवाओं को इसमें शामिल करें। उनकी एजुकेशन का सही ढंग से इस्तेमाल करें तो हम काफी आगे बढ़ सकते हैं। आज सुचिता वाला धर्म कहता है कि हम जो भी कार्य करें वह ईमानदारी से करें। आदमी के चित्र का जितना प्रभाव नहीं पड़ता, उससे अधिक प्रभाव चारित्र का पड़ता है। हमारे समाज का चारित्र जितना अच्छा होगा, समाज का भविष्य भी उतना ही अच्छा होगा। हमारे लिये शौच को सत्य से पहले रखा क्योंकि हमारा अंतरंग मन पवित्र होगा तो हमारे मुख, हृदय से हमेशा ही सत्य निकलेगा।
श्री नरेश आनंद प्रकाश जैन : अपनी समस्याओं को निबटाने के लिये जैन मंचों का गठन हो जाए तो यह बहुत बड़ा काम होगा। जो हमारे अंदर कटुता का भाव आ जाता है, उन सबसे मुक्ति मिलेगी।
(Day 11समाप्त)