ठुकराओ मत, गले लगाओ, जब गले लगाना सीख जाएंगे तो हमारा वात्सल्य, स्नेह हर जीव पर टपकेगा : आचार्यश्री देवनंदी

0
775

8 नहीं, 10 नहीं 18 आने वाले समय में आंदोलन भी बनेगा

सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 13 सितंबर 2021

सब पापों को अब धोने का ये वक्त निराला आया है
ये दिन जो है बड़े पावन हैं, सब धर्म का सार समाया हैं
नवकार यहीं जैनत्व यहीं, महावीर की वाणी जग में
उस वाणी को साकार करें, यह पर्व पर्यूषण आया है।
अब सबको हम माफ करें, सब हमको भी माफ करें
इतनी है दिल की है आरजूं..
हम सबके अब हो जाएं, सब अपने अब हो जाएं
इतनी है दिल की है आरजूं….।
जो पाप किये, इन पापों को नष्ट करें, कुछ धर्म करें
जो अपनी गति भी अच्छी हो, कुछ ऐसे अपने कर्म करें
कई जन्मों के जब पुण्य मिले, तो मानव का यह जन्म मिला
यह धर्म मिला, महापर्व मिला, अब तो खुद का उद्धार करें
अब सबको हम, सब हमको भी इतनी सी है दिल की आरजूं…
हम सबके अब हो जाएं, सब अपने अब हो जाएं
इतनी सी है दिल की आरजूं…।
अब सबको हम माफ करें, सब हमको भी माफ करें
इतनी सी है दिल की आरजूं…।

संयोजक श्री हंसमुख गांधी इंदौर :
खिलते हैं चमन, जहां गुरुवर का हो जाता है आगमन।
दुर्भिक्ष भाग जाता है, खुशहाल हो जाता है चमन।
पड़ते हैं जहां गुरुवरों के चरण,वहां हो जाता है अमन ही अमन।
ऐसे समस्त गुरुवरों को हमारा सौ-सौ बार नमन।
इन पंक्तियों से गुरुवरों के चरणों में नमन करते हुए सभा का शुभारंभ किया।

डायेरक्टर श्री मनोज जैन, दिल्ली : 10वीं दिवस की प्रयोगशाला में न 8 न 10, 18 बस में णमोकार मंत्र में पंचपरमेष्ठियों का सुमरिन इस प्रकार से किया –
मंत्र जपो नवकार, मनवा मंत्र जपो नवकार
पांच पदों के पैंतिस अक्षर, हैं सुखके आधार।
अरिहंतों का सुमरन कर लें, सिद्ध प्रभु का नाम तू जप ले
आचार्य सुखकार, मनवा मंत्र जपो नवकार।
उपाध्याय को मन में ध्या ले,
सर्व साधु को शीश नवा लें
होवें जग पार,
मनवा मंत्र जपो नवकार।

आज के विषय उत्तम आर्जव पर बोलते हुए कहा कि उत्तम आर्जव कपट मिटावे, दुर्गति त्यागि सुगति उपजावें। आर्जव धर्म अपनाने से मन एकदम निष्कपट तथा राग-द्वेष से रहित हो जाता है। सरल हृदय व्यक्तियों के घर में लक्ष्मी का भी स्थायी वास रहता है।
एकता के सूत्र में बांध कर आगे बढ़ रहे हैं हम

डायरेक्टर श्री सुभाष जैन ओसवाल : महावीर देशना फाउंडेशन की स्थापना पिछले वर्ष हुई, हम ये उद्देश्य लेकर चलें कि इसे ऐसा मंच बनायें, जिसमें धर्म के वो लोग जुड़ने चाहिए, वो विद्वान, वो कार्यकर्ता जुड़ने चाहिए जिनकी हम कहीं न कहीं उपेक्षा कर रहे हैं। इस मंच पर इस कार्य करने के लिये कामयाब हो रहे हैं। हमारे इस मंच को पिछले वर्ष भी लगभग 30-35 जैन आचार्यों ने आशीर्वाद दिया और प्रेरणा दी कि हमने इस संस्था के माध्यम से 8 नहीं, 10 नहीं 18 – एक ही हमारा श्लोगन है कि श्वेतांबर और दिगंबर पर्यूषणों को, दशलक्षण पर्व को किस तरह से एकता के सूत्र में बांध कर आगे हम बढ़ा सकें। यह नारा आने वाले समय में आंदोलन भी बनेगा, क्योंकि प्रमुख संत – आचार्य हमारी बात से सहमत हैं। हमारे साथी भाई अनिलजी, राजीव जी, मनोज जी चारों लोग हम जिस रूप से हमने गठन किया, किस रूप से मंच को सजाने के लिये, आगे बढ़ाने के लिये जो हमने टीम का चयन किया, हंसमुखजी, राजेन्द्र महावीर, अमित राय जैन आदि का मैं अभिनंदन करता हूं।
तन से सेवा कीजिए, मन से भले विचार

आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव : आज भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के माध्यम से यहां 18 दिन का पर्यूषण पर्व मनाया जा रहा है, हालांकि मैंने जबसे राजस्थान में प्रवेश किया है विशेषकर मेवाड़ में यहां सदियों से युगों से विशेषकर उदयपुर, डुंगरपुर, बांसवाड़ा में 18 दिन का पर्यूषण देखता आ रहा हूं। जहां छोटे-छोटे गांव हैं, चाहे यहां एक ही सम्प्रदाय हो, लेकिन सभी 18 दिन का पर्यूषण रखते हैं। यह अच्छी बात है, और आज यहां जैन एकता की बात कहीं जा रही है। दशलक्षण महापर्व कहता है कि हमें मात्र जैन एकता नहीं, बल्कि विश्व मैत्री स्थापना करनी है। धर्म कहता है – निंदा, चुगली, आलोचना, टीका टिप्पणी से हटकर हम अगर एकसाथ मिलकर चलें तो बहुत कुछ कर पाएंगे। क्षमावाणी विश्व मैत्री दिवस मैंने महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली, राजस्थान, म.प्र. आदि अनेक स्थानों पर देखा है कि जहां सकल जैन समाज की महावीर जयंती एकसाथ मनती है।

जब भगवान महावीर का 2500वां निर्वाण महोत्सव आया था, तब सकल दिल्ली ने एकसाथ मनाया था। कण-कण मिल जाएं तो वे अच्छी चट्टान का रूप ले सकते हैं और अगर वह चट्टान कण-कण बन बिखर जाए तो धूल बन जाए। हम सब मिलकर आओ एकता के साथ चलें, इस हेतु हमें यह ध्यान रखना है कि हमारे पास कितने अच्छे गुण हैं, उन अच्छे गुणों पर हम बात करें। रोज प्रतिक्रमण के अंदर पढ़ते हैं, दोषों पर मौन हो जाएं। जहां जितना अच्छा मिलता है, वैसे मिलकर चलेंगे।
ख्वाब भले टूटते रहें, मगर हौंसले फिरभी जिंदा हो।
हौंसला अपना ऐसा रखो, जहां मुश्किलें भी शर्मिंदा हो
चेहरे की हंसी से गम को भुला दो
कम बोलो पर सबकुछ बता दो।
खुद न रुठो, पर सबको हंसा दो
यही राज है जिंदगी का
जियो और जीने दो – सबको सिखा दो।
महात्मा गांधी ने जैन धर्म में से अहिंसा, सत्य को अपनाया और उसके बल पर उन्होंने देश को आजाद कर दिया। एक पिक्चर आई जिसमें बाहुबली नाम को लिया गया और उसने करोड़ों कमा लिये। फिर आपने देखा भाजपा पार्टी बहुत संघर्ष कर रही थी, लेकिन जब से भाजपा में णमो आ गया, वो णमो – णमो के अंदर वह विश्व की पार्टी बन गई। इसी तरह जियो और जीने दो में से ‘जियो’ शब्द अपनाने से करोडों रुपये कमा लिये। इंदिरा गांधी जी विद्यानंद जी महाराज से आशीर्वाद लेने गई, आचार्य श्री ने हाथ उठाया तो उस हाथ को ही अपनी पार्टी का चिह्न बना लिया। जैन धर्म एक बहुत बड़ी ताकत है, लेकिन हम स्वयं अपनी ताकत पहचान नहीं पा रहे हैं। हमें मिलकर एकसाथ चलना होगा।
आज क्षमा मांगना आसान है, हमें क्षमा करना आना चाहिए, मिलकर रहना चाहिए। तन से सेवा कीजिए, मन से भले विचार। धन से इस संसार में करिये उपकार और दुश्मनी जमकर करें, कि इतनी गुंजाइश रखें जब कभी दोस्त बन जाएं तो शर्मिदा न हो।

संयोजक डॉ. अमित राय जैन : भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के अंतर्गत जैन एकता समन्वय के लिये चलाये जा रहे कार्यक्रम में आज डॉ. विनय कुमार जैन (विश्वास), आपने सन् 1962 में दिल्ली में जन्म हुआ, आपने धार्मिक सामाजिक पृष्ठभूमि के परिवार से आगे बढ़ते हुए दिल्ली विवि से पीएचडी उपाधि प्राप्त की। आपके निर्देशन में दो पीएचडी सम्पन्न हो चुकी हैं और दो शोध कार्य चल रहे हैं। आपने अपनी शोधात्मक कविताओं से विशेष स्थान बनाया है। देश के सर्वोच्च श्रेणी के लालकिले पर होने वाले कवि सम्मेलन में आपके कई बार काव्य पाठ गुंजायमान हुआ है, जिसने पूरे देश में जैन समाज का नाम आपके माध्यम से गौरवान्वित किया है। जिस प्रकार आप राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बुद्धिजीविता के बल पर सेवायें दे रहे हैं, आपका जैन मुनियों के प्रति पूर्ण आस्था भाव है। पैतृक रूप से जैन संस्कार हैं, लेकिन आप अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर पूज्य श्री सुभद्र मुनि के संघ के निरंतर सहयोगी बने रहते हैं।
आचरण – व्यवहार में दिखाई देनी चाहिए एकता

डॉ. विनय विश्वास : जैन एकता के स्वर गूंजित हो और वो जैन एकता हमारे आचरण और व्यवहार में दिखाई दे। भगवान महावीर देशना फाउंडेशन को और उससे जुड़े हर कार्यकर्ता का मैं नमन प्रस्तुत करता हूं। मेरी पत्नी दिगंबर जैन परिवार से है, मेरा जन्म श्वेतांबर स्थानकवासी परंपरा में हुआ। मैंने जैन समाज की सम्प्रदाय में बुनियादी अंतर नहीं पाया। ये बुनियाद प्रकाशित हो पूरे विश्व में, ऐसी कामना करते हुए, भगवान महावीर की वाणी को समझते हुए कुछ छंद निवेदित कर रहा हूं। भगवान महावीर ने पूरी दुनिया को संदेश दिया –
ज्ञान से चारित्र जुड़ पाये तो उजड़ जाए
शत्रुता का मूल, भाई झगड़े ने भाई से,
छोटे को भी छोटा समझो न कभी
और बड़े बन कर दिखाओ सचमुच की बढ़ाई से
गुस्से और माया से बचाओ मित्रता को
गुण अपने बचाओ लोभ की बुराई से
महावीर बोले वासना को जीतो संयम से
क्रोध को क्षमा से जीतो, भय को सच्चाई से
महावीर ने बताया नष्ट हो जाएगी काया
और माया और माया और ये पुकारो मत
सांसों को निहारते जो सदा कराहते हैं
जीना वो भी चाहते हैं, उनको भी मारो मत
कोई न किसी का सगा, भेदभाव दूर भगा
आत्मा में ध्यान लगा, देह को विचारों मत
बाहर के शत्रुओं को जीत लोगे
भीतर के क्रोध मान लोभ जैसे शत्रुओं से हारो मत
दूसरों के दुख देख के उदास हुआ पर
अपने दुखों को देख-देख मुस्करा दिया
चिंता व चिंतवन के बीच आते-जाते रहे जो
परिचय आनंद से उनका करा दिया
जग को डराने वाले त्रास पहुंचाने वाले
हड्डियां कंपाने वाले, डरों को डरा दिया
महावीर की ये महावीरता थी
जालिमों को ऐसे जीता, एक-एक जुल्म को हरा दिया
लोभ था तो संपदा को नश्वर बताया
और धरती पर भूख थी तो उपवास दे दिया
खुले आसमान के नीचे रहते हैं लोग
यह देख-देख अपने को वनवास दे दिये
वासना के घेरे राग-द्वेष के अंधेरे छांटे
शक्ति के सवेरे हेतु हांड मांस दे दिये
दुख देने वालों के दुखों से रोये महावीर
सब व्यथा को ऐसे-ऐसे इतिहास दे दिये।

रास्ता जो चंड के प्रचंड क्रोध का शिकार था
उसी पे चलने का अभय दिखा दिया
सहने के भी सर्प दंश दिया माधुर्य अंश
ऐसा होता धर्म वंश सबको बता दिया
दूसरों की भावनाओं का ख्याल कैसे रखें
ये विचार सांप को भी करना सिखा दिया
क्रोध के जहर को ही जानती रही जो जीभ
स्वाद उसे भी क्षमा के दूध का चखा दिया।

मौन साधना के होठों से अज्ञानी क्रूरता के
अत्याचारों का जहर पिया महावीर ने
सारे प्राणियों को अपने से माना जीते रहे
अहिंसा का अमृत यो दिया महावीर ने
धैर्य डोरी समता मच्छानी बना वेदना के सागर का
मंथन किया महावीर ने
कानों में जो कीलें भी ठोकने से भी न कांप सका
आत्मशुद्धि का वो ध्यान दिया महावीर ने।

नारियों को दिया मान, दीनों को दी पहचान
बेबसों को मुस्कान, द्वार धर्म ध्यान के किसी के लिये वंदना
जिसको खरीदा बेचा जा चुका था,
जीवन में जिसके खुशी का रहा कभी कोई चंदना
संघ साध्वियों का बनाया तो प्रमुख हुई
अक्षय अनंत सुख हुई वही चंदना
नीर कर दिया क्षीर, जड़ से मिटाई पीर
धन्य-धन्य महावीर, कोटि-कोटि वंदना।

नाम में जैन जरूर लिखें, एकता को बल मिलेगा

श्री विजय लुहाड़िया : निश्चय ही पर्यूषण पर्व 18 दिन मनेगा तो लोगों में एकता की भावना आएगी, लेकिन हमें यह विचार करना अवश्य करना पड़ेगा कि हम इस बात तक पहुंचे क्यों, आखिर ऐसा क्योें हो रहा है? हमें अपनी सोच को बदलना होगा। मैं अभी तक यह नहीं समझ पाया कि जैन धर्म में तो एक जानवर से भी लड़ना नहीं बताया जाता, तो हम आपस में जैन लोग लड़ते हैं। इसका मतलब यह है कि हम धर्म को आचरण में नहीं लाते। अगर हम व्यवहार सीख गये होते, तो हमारे यहां कुरीतियां पैदा नहीं होती। हम जैन लिखते नहीं, श्वेतांबर – दिगंबर से इंट्रोडक्शन देते हैं। हम यही कमस खा लें कि हमें गोत्र नहीं लिखना, केवल जैन लिखना है। मैं गुजरात में रहता हूं, यहां दोनों सम्प्रदाय हैं, लेकिन यहां नाम से ये ही पता नहीं चलता कि ये जैन हैं। जैन लिखने से हमारी एकता को बहुत बड़ा बल मिलेगा।

हम दुनिया के लोगों के साथ बैठना पसंद करते हैं, क्लबों में जाते हैं खूब व्यवहार करते हैं लेकिन दिगंबर – श्वेतांबर एक जगह बैठने को तैयार नहीं है। इसका कारण है कि हम लोगों की ईगो हमको परेशान कर रही हैं। हमें अपनी ईगो को त्यागना पड़ेगा। एक और बात की हर कोई कहता है कि हम तो न्यायालय में देख लेंगे। अरे आज तो मनभेद, मतभेद है भी तो आमने-सामने बैठकर दूर किया जा सकता है। समाज में मैं दिगंबर-श्वेतांबर की बात कर रहा हूं, ओवरओल की बात कर रहे हों, बहुत गिने-चुने व्यक्ति ऐसे हों जो खाली राजनीति करते हैं एकता न होने की लेकिन खड़े होकर बात करते हैं एकता की। समाज बहुत कम लोगों से चलता है। हमारे समाज में 95 प्रतिशत लोगों को मालूम ही नहीं है कि हमें लड़ना है, सिर्फ 5 प्रतिशत लोग ही लड़ा रहे हैं। हमें उन लोगों का इलाज करना होगा।
मेरी प्रार्थना है कि हमें और आपको यह सोचना चाहिए कि 20 साल बाद कैसा प्रारूप होगा। आज यहूदी समुदाय कितना कम है, लेकिन पूरे विश्व पर राज करता है। जैन समाज धनाढय जरूर है लेकिन राज बिल्कुल नहीं करता। हम अगले 20 साल मेहनत करें, तो जैन समाज की काया पलटी नजर आ सकती है। हमें पहली से दस साल के बच्चों से प्रयास करना होगा, क्योंकि इस आयु के बच्चे सबसे ज्यादा आज्ञाकारी होते हैं। हमारे जैन समाज में एक बहुत बड़ी भूल हैं कि हम 25 प्रतिशत इनक्म टैक्स देते हैं। लेकिन अगर 2 प्रतिशत भी जैन गरीब है, तो 1 लाख जैन गरीब होगा। जरा सोचिये, कोशिश करें कि 100 प्रतिशत हमारा जैन भाई पढ़ा लिखा हो, और वह आईएएस बने।
जैन एकता की बड़ी लकीर खींचनी हैं हमें

डायरेक्टर श्री अनिल जैन सीए : इस मंच की स्थापना के पीछे बुद्धिजीवियों की सलाह है। हमने यह बड़ी रेखा खींची है, यह प्रयास जो किया है वह एक प्रयोग है। इस मंच के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि हमको केवल बात नहीं करनी चाहिए, प्रयोगशाला बनानी चाहिए। 18 दिवसीय हमने ये नहीं कहा करना चाहिए, हमने पिछले साल भी किया और इस साल भी किया और इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा सुनी जब पिछले 40 आचार्य – साधु सभी संप्रदायों के, सभी ने एक ही बात की। सभी इस बात का पक्षधर हैं। जब अष्ट कर्मों की बात हुई तो सभी ने अष्ट कर्मों की परिभाषा बताई आज उत्तम आर्जव का दिन है, मृदुता का दिन, सरल जीवन जीने का दिन है। आज की भी चर्चा हम किसी से करेंगे, तो उसका अर्थ और उसका समाधान दोनों ही एक ही दशा में जाते हैं कि हमें सरल जीवन जीना है और हमें चपलता से मुक्त होना है।

मैं सदन को बताना चाहूंगा कि ये जो यहूदी है ये मात्र इजरायल में 70 लाख हैं, पूरे विश्व पर राज करते हैं। उनके भी चार सम्प्रदाय हैं, आर्थोडेक्स जो 8-9 प्रतिशत है, दूसरा ग्रुप रिलीजियस है। वो चर्या से नहीं बंटे हुए, वो केवल 16 प्रतिशत हैं। तीसरा ग्रुप ट्रेडिशनल और चौथा ग्रुप है सेक्युलर। यहूदी सम्राज्य ईसा के पहले स्थापित हुआ। यदि वो विश्व में इकट्ठे होकर राज कर सकते हैं तो यह मंच आह्वान करता है कि हम जैन भी इकट्ठे होकर अपने को मजबूत करें। यह मंच केवल व्यवस्था प्रदान कर रही है, जिसे एकता की बात आगे लानी है, वह इसका इस्तेमाल कर सकता है।

महासाध्वी श्री मधुस्मिता जी महाराज: जब इकट्ठे हो जाते हैं, संगठन हो जाता है तो सबकुछ हो जाता है। करने वाला चाहिए, कुदरते दिल मौत से भी लड़ने वाला चाहिए। हमने यह निर्णय पिछले साल ही कर लिया था कि एकता का कार्य करेंगे, अब उसको उजागर करने की जरूरत है और आज दशलक्षण पर्व के अंदर हम निश्चित रूप से अंगीकार कर रहे हैं, आचरण में ला रहे हैं। जो सुना है अब तक आचरण में लाने का प्रयत्न हो ही रहा है। प्रीति महाराज ने भी आशीर्वाद दिया है कि ये एकता की मिसाल जो जलाई है, ये बेहद प्रशंसनीय कार्य है।

उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी महाराज : 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व का आज दसवां दिन है, यह आयोजन समग्र समाज के लिये बहुत ही सुंदर, अच्छा है, विभिन्न बातों की समीक्षा हो रही हैं, चर्चाएं हो रही हैं, अनेक मुद्दे सभी के संज्ञान में आ रहे हैं। आपका और हमारा मस्तिष्क उन सारी समस्याओं पर जुगाली कर रहा है और समय आने पर उन सबको सही दिशा में लेकर के हम और आप बढ़ेंगे और धीरे-धीरे एक समान धारा वालों का यह मंच निश्चित रूप से सम्पूर्ण जैन समाज की सेहत को और अच्छा बनाने में सहयोगी बनेगा।

उत्तम आर्जव धर्म : आर्जव की परिभाषा देते हुए कहा है ऋजुता, सरलता का भाव ही आर्जव है। सरलता है तो ऋजुता अपने आप है ही। छल – कपट – माया का सेवन करने वाले के व्यक्ति में मन में कुछ, वचन में कुछ, आचारण-व्यवहार में कुछ और होता है। ऐसे लोग हमेशा घबराये-घबराये से रहते हैं, तेरी पोल-पट्टी खुल गई तो क्या होगा? हर समय चिंतित रहते हैं कि मेरी बात, सोच उजागर हो गई तो क्या होगा। सरल व्यक्ति घबराता नहीं, उसके चेहरे पर शांति और सौम्यता का भाव हमेशा बना रहता है।

धर्म कहां निवास करता है? भगवान ने कहा जिसके हृदय में सरलता है, ऋजुता है, वह अपने जीवन में अपने धर्म को जीता है और उसके जीवन में धर्म विद्यमान है। तो धर्म को ढूंढने के लिये कहीं जाने की आवश्यकता नहीं। हम अपने मन मंदिर, अपने अंर्तमंदिर को बुहार लें, साफ कर लें, सरल हो जाएं, तो हमारा बहुत बड़ा काम सध सकता है।

चार तरह की मनोवृत्ति के लोग पूरी दुनिया में देखे जाते हैं। पहली श्रेणी के अंदर से भी सरल है और बाहर से भी। दूसरी श्रेणी के वो लोग हैं जो अंदर से तो सरल हैं, लेकिन बाहर से सरल नहीं। तीसरी श्रेणी के बाहर से सरल हैं, लेकिन अंदर से नहीं। बाहर के व्यवहार में बड़े भोले लगते हैं, लेकिन अंदर कपट भरा रहते हैं। चौथी श्रेणी के लोग न अंदर से न बाहर से सरल हैं। तीसरे और चौथ नंबर वाले लोग तो हमारा आदर्श हो ही नहीं सकते, बनना है तो प्रथम श्रेणी का बनो – अंदर से भी सरल, बाहर से भी सरल। लेकिन कदाचित् अगर प्रथम श्रेणी का न बन पाए तो दूसरी श्रेणी का ही बन जाए, क्योंकि उसे घर पर बच्चों पर अनुशासन करना है, शिक्षक को बच्चों पर अनुशासन करना है। वे बाहर से सख्त लगते जरूर हैं, लेकिन अंदर से सरल होते हैं।

छल-कपट का शल्य जो हमारे में है, उसे निकाल बाहर करना है। माया का कांटा हृदय में है, तो वह चैन से नहीं बैठने देता, हमारे को पीड़ा परेशानी में डालता है और छल-कपट करने वाले मामा शकुनि की तरह महाभारत खड़ा करने को तत्पर रहते हैं। हमें सरलता के द्वारा समस्याओं का हल ढूंढना है। आज का दिन सिखाता है कि सरलता, अध्यात्मा का सुंदर रूप है। कदाचित् हमारी क्रियाओं में कम – ज्यादा हो सकती है, लेकिन ऐसी आध्यात्मिक भावना जो हमारे दस धर्मों में समाई हुई है, ये हमारे को आध्यात्म की दिशा की ओर ले जाती है, हमारा आंतरिक अध्यात्म बढ़ेगा और कल्याण की ओर बढ़ेंगे।

आचार्य श्री देवनंदी जी महाराज : जैन समाज की एकता का यह जो मंच लगातार अपने विचारों से सिर्फ समाज को ही नहीं पूरी मानव जाति के लिये है। एक आदर्श प्रेरणा प्रस्तुत कर रहा है। हम जैन जाति की अपेक्षा सभी एक हैं, हमारा धर्म तो अहिंसा परमो धर्म की बात कहता है और सदैव मैत्री की उस युक्ति को चरितार्थ करता है जिसमें एकन्द्रिय से पंचेन्द्रिय जीवों का हित समाहित हो। तो हम मानवता की रक्षा और सुरक्षा की बात करते हैं, तो हम तो जैन हैं, हमारे जैन परिवार एक होना चाहिए। भले ही हम जैन होने के नाते अलग-अलग गोत्रों में, भागों में, अलग-अलग देशों में रह रहे हों, किंतु आखिर पालते तो हम महावीर का धर्म है, पालते महावीर की अहिंसा है। जब हम महावीर की इतनी विराट अहिंसा का पालन करते हैं तो कोई जैन भाई हमसे टूट जाए, बिछुड़ जाए, मांसाहारी व्यसनी हो जाए, तो क्यों न हम उसे अपने समाज में वापस लाएं। क्या 24 कैरेट का गोल्ड कीचड़ में गिरने से कीमत कम होती है।

हम जमीन में गिरे हुए गोल्ड को भी उठाते हैं, धोते हैं, साफ करते हैं तो उसकी कीमत वही रहती है। यदि हमारा जैन परिवार का कोई भाई-बहन, बेटी किसी कारण से राह भटक गई है और धर्म से च्युत या पतित हो गई है तो यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम उसे पुन: अपनाएं। हम उन्हें ठुकराए नहीं। हमारा धर्म कहता है हम पापों से, व्यसन से घृणा करें, पापी से नहीं। पाप किसी से भी हो सकता है, उस पाप का प्रायश्चित भी हो सकता है। ध्यान रखें यदि सुबह का भटका शाम को घर आ जाए, तो उसे हमें भूला नहीं कहते। जब जागो तभी सवेरा। यदि हमने अपनों को अपना लिया तो निश्चित रूप से हम बहुत कुछ कर पाएंगे। आज हमने प्रयासों से नान जैन लोगों के लिये शाकाहारी बनाने का प्रयत्न करते हैं, उन्हें व्यसन मुक्ति का संदेश देते हैं तो क्या अपने जैन भाईयों को यह संदेश देकर उन्हें वापस अपने परिवार में सम्मिलित नहीं कर सकते।

पुन: पुन कह रहा हूं ठुकराओ मत, गले लगाओ। जब हम गले लगाना सीख जाएंगे तो हमारा वात्सल्य, स्नेह हर जीव पर टपकेगा। इसके लिये हमें एक अच्छा संवेदनशील मानव बनने के लिये अपने मन में सरलता लानी होगी। जो सरलता, जो स्वच्छता, स्पष्टवादिता हमारे मंदिर, आचार्य-भगवंतों के सान्निध्य में होती है, वही सरलता अपने बिजनेस, व्यवहार में करने लग जाए तो धर्म का वह अंश हमारे में आ जाएगा। हमारी संस्कृति सरलता से शुरू होती है, जो जितना सरल रहेगा, उसकी उतनी कीमत होगी। जंगल में बहुत सारी लकड़ियां होती हैं, लेकिन जो लकड़ियां टेढ़ी – मेढ़ी होती हैं, वे ईंधन के काम आती है और जो लकड़ियां सीधा होती हैं वे तुम्हारे घरों में इंटीरियर बनता है।

डायरेक्टर श्री अनिल जैन : जैन संस्कृति सरलता से प्रारंभ होती है। हमने अष्ट कर्मों की निर्जरा की। फिर क्षमा को धारण कर लिया। कल हमारे में मृदुता आ गई और आज हमने अपने मन को वश में करना सीख लिया। यदि हम 10वें दिन तक भी रहें तो समझ जाएंगे कि हमारे अंदर ही अनेक समस्याओं का समाधान निहीत है, बशर्ते हमारी कथनी और करनी में फर्क न हो। मैं मान रहूं कि तन उजला किस काम का, जब हो मन में मैल। ये भी देख रहा हूं कि माया की जो गांठ है, कपट की गांठ है, वह कैंसर से भी ज्यादा खतरनाक होती है। यहां तो कैंची भी काम नहीं करती। हमें सुई की भूमिका निभाना चाहिए और उस सुई के माध्यम से धागे में उतने मोती पिरोने चाहिए जितने मोती हमारे यहां, ये विरासत में हमें मिली हैं, संस्कृति के रूप से मिली है। विजय भाई ने कहा कि हमारे यहां 2 प्रतिशत निरक्षर होंगे, लेकिन उन्हें भी साक्षर बनाना है।

यदि हमारी इतनी बड़ी सोच है हमारी, शिक्षा की समृद्धि वहां तक जानी है तो ऐसी समृद्धि के साथ में क्या हम समृद्धशाली नहीं हो सकते। अनेक प्रश्नों के जवाब हमारे अपने धार्मिक आचरण के अंदर छुपे हुए हैं। हम अपनी पिछली, आज की और आने वाले कल में भूल नहीं करने की भावना रखेंगे। मानव की रक्षा हेतु एकता कितनी आवश्यक है, इसको जानने के लिये इसको समझने के लिये विजय भाई ने जो हमें यहूदियों का उदाहरण दिय, उसे हमें धारण करना चाहिये और उसके ऊपर यदि हम अमल कर लें तो मैं समझता हूं कि बहुत बड़ा काम इस मंच के माध्यम से, इस प्रयोग के माध्यम से हम सब सभी के समक्ष हो पाएगा।
हम इन सभी विषयों पर इस मंच के माध्यम से काम तब कर पाएंगे जब हम एक हो जाएंगे, और एक हो जाएंगे तो क्या मजाल कोई हमें आंख दिखा सकेगा। (Ðay 10 समाप्त)