अहंकार के पत्थर को तोड़ने के लिये नमस्कार जरूरी है। जिसे झुकना आता है, वह मार्दव धर्म को प्राप्त कर सकता है:: ग. आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण

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भगवान महावीर देशना फाउण्डेशन
18 दिवसीय पर्यूषण पर्व 2021 का 9वां दिवस- संवत्सरी – अंतराय कर्म – उत्तम मार्दव
सान्ध्य महालक्ष्मी की EXCLUSIVE प्रस्तुति

सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 12 सितंबर 2021

ऊँ णमो अरिहंताणं णमो विवीरं णमामि गौतम
ऊँ णमो सिद्धाणं क्षमा वीरस्य भूषणम्
ऊँ णमो आइरियाणं अहिंसा परमो धर्म
ऊँ णमो उवज्झायाणं जैन धर्मोस्तु मंगलम्
ऊँ णमो लोए सव्व साहूणं जैन जयतु शासनम्
रहना सभी श्रावक बनकर न श्वेतांबर, न दिगम्बर
हम जैन हैं, कहो हम जैन हैं
रहे हम महावीर के ही बनकर न श्वेतांबर, न दिगम्बर
हम जैन हैं, कहो हम जैन हैं धर्म से जैन हैं, कर्म से जैन हैं।

संयोजक एडवोकेट क्रिस्टी जैन ने नवें दिवस का शुभारंभ करते हुए सभी श्रोताओं का भगवान महावीर देशना फाउंडेशन की ओर से अभिनंदन करते हुए कहा कि आज संवत्सरी, उत्तम मार्दव और अंतराय कर्म की निर्जरा का दिन है। इस उपलक्ष्य में मेरी भावना की दो लाइनें सुनाई –

अहंकार का भाव न रखूं, नहीं किसी पर क्रोध करूं
देख दूसरों की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या भाव धरूं।

रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार करूं
बने जहां तक इस जीवन में औरों को उपकार करूं।

यह भावना मेरी भी है, इस फाउंडेशन की भी है और इस सम्मिलित प्रयास की भी है जिसमें आप और हम जुड़ हुए हैं। महावीर फाउंडेशन पिछले साल और इस साल भी एक अनूठा प्रयोग कर रहा है जिसमें वो सम्पूर्ण जैन समाज को, सभी परम्परायें, सभी समुदाओं को एक मंच पर लाने का प्रयास कर रहा है। इसी पहल के तहत ये 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व जो पहले कोई 8, कोई 10 दिन का मनाया करता था, उसकी जगह हम ये 18 दिवसीय जैन पर्यूषण पर्व मना रहे हैं।

डायेरक्टर मनोज जैन : पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हुए, मंच पर मौजूद सभी आचार्य भगवंतों, साधु वृंद को नमन करते हुए भजन प्रस्तुत किया-
चाहे सुबह हो, चाहे शाम हो, मेरे मुख पे प्रभुजी का नाम हो।
नाम प्रभु का, है अति प्यारा, मन मंदिर में करें उजाला।
भव जग से है तारण हारा, कर लें अपना वारा-न्यारा।
चाहें सुबह हो, चाहे शाम हो, मेरे मुख पर प्रभु जी का नाम हो।
दुनिया है एक रैन – बसेरा, क्यों करता है मेरा – मेरा।
पगले जग में कौन है तेरा, मोह माया ने तुझको घेरा।
चाहे सुबह हो, चाहे शाम हो, मेरे मुख पे प्रभुजी का नाम हो।

उन्होंने कहा पिछले कई दिनों से इस प्रयोगशाला के अंदर तरह-तरह के प्रयोग महाराज साहब के सान्निध्य में किये जा रहे हैं। आचार्य देवनंदी जी महाराज, उपा. रविन्द्र मुनि जी म. साहब ने बताया कि युद्ध मैदान में नहीं, युद्ध मन में प्रारंभ होता है। उसे रोकने के मापदंड या शस्त्र भगवान महावीर ने हमें दिया है। पर्यूषण की अनोखी इस जैन प्रयोगशाला में आज हम जानेंगे, समझेंगे और धारण करेंगे – मिच्छामि दुक्खड़म्, खम्मत खाम्ना व उत्तम क्षमा। जब व्यक्ति विशेष द्वारा किये गये कृत्यों के लिये माफी या क्षमा मांगते हैं, तो खम्मत खाम्ना कहा जाता है। आज इन्हीं विषयों पर इस प्रयोगशाला में हमें हमारे विशिष्ट अतिथियों द्वारा, मुनिगण, साध्वियों द्वारा मार्गदर्शन हमें मिलेगा, जिससे कि हम भगवान महावीर की देशना को इस मंच से देश-विदेश में पहुंचा पाएंगें।

संयोजक डॉ. अमित राय जैन : नौवें दिन आज विशेष रूप से एक मांगलिक दिवस है – संवत्सरी महापर्व, इस दिन हम सभी एक-दूसरे से क्षमा का दान प्रतिदान करते हैं। क्षमा मांगते हैं और क्षमा भी करते हैं।
उन्होंने आज की सभा के विशिष्ट संबोधन करने वाले गुरु तथा बुद्धिजीवियों का परिचय दिया। (उपरोक्त चार्ट देखें)
न तेरा न मेरा, हम सबका पर्यूषण

श्री महेश जैन : सभी से बारंबार क्षमा याचना करते हुए उत्तम मार्दव में सबसे पहले ‘मैं’ को त्यागना है, उसी के लिये जो 18 दिन का पर्यूषण पर्व शुरू किया है, भगवान महावीर देशना फाउंडेशन का सुंदर एवं समयानुरूप संगठन है, जैन एकता का इसका प्रारंभ एक सुंदर चिंतन के साथ हुआ है – 18 दिन का पर्यूषण, न तेरा न मेरे, हम सबका पर्यूषण भगवान महावीर के सिद्धांत को प्रस्तुत कर रहा है। उपासना विधि सबकी अलग हो सकती है, लेकिन भगवान द्वारा प्रदत्त सिद्धांत सबके लिये समान है, भगवान के सामने सिर्फ मनुष्य के कल्याण का लक्ष्य था। भगवान के अनुयायी अलग क्यों, हम सब वैचारिक धरातल पर एक बनें और समाज की राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में चिंतन, मंथन एक मंच पर करें, तो मैं मानता हूं कि निश्चित रूप से हम विश्व मंच पर जैनों की एक पहचान बना सकते हैं।

संयम, समता, समानता, सामर्थ्यता और समृद्धि में जैन हमेशा अग्रणीय रहे हैं, क्योंकि वे सिद्धांतों के साथ जीते हैं। चाहे वे श्वेतांबर हो या दिगंबर सबके सिद्धांत एक ही हैं। इनको एक सूत्र में बांधने का काम जो फाउंडेशन ने किया, मैं सुभाष जी और उनकी टीम को बधाई देता हूं और समाज के अंदर नई युवा पीढ़ी आपका ऋणी रहेगी। 18 दिवसीय पर्यूषण जीतो सन् 2007 से मनाता हुआ आ रहा है। मेरे यहां आज भी पूर्यषण 18 दिनों तक मनाया जा रहा है। जीतो के 14 हजार सदस्य इसका अनुसरण करते हैं। जीतो में यह नहीं पूछा जाता कि वह किस समुदाय से है, सिर्फ जैन होना चाहिए। जो भी आपने पहल की है वह सराहनीय है।

आओ, भगवान महावीर शासन प्रभावना में सब एक हो जाएं

डायरेक्टर श्री सुभाष जैन ओसवाल : सभी का मंच की ओर से स्वागत करते हुए कहा कि आज पर्यूषण पर्व का 9वां दिन है। हमारा कार्यक्रम 3 तारीख से आरंभ हुआ, कल भी हमने संवत्सरी पर्व मनाया। आज हम स्थानकवासी और तेरहापंथी परंपरा के संवत्सरी पर्व को पूरे देश में मना रहे हैं। आज दशलक्षण पर्व का दूसरे दिवस और हमारा 9वां दिवस है। भ. महावीर देशना फाउंडेशन का जो गठन किया, वह पूर्णतया ऐसा मंच बनाया है, जो सेवा का कार्य करेगा, संतों को, सामाजिक व्यवस्थाओं को जोड़ने का कार्य करेगा। सामाजिक दूरियां जो हुई हैं संतों में, श्रावकों में उसको हम कैसे जोड़ सकते हैं, ये लक्ष्य लेकर हमने महावीर फाउंडेशन की स्थापना की। हम चार इस टीम में हैं – भाई अनिल जी प्रबुद्धजीवी चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जैन समाज का जाना पहचाना नाम है, माता इंदु जी का वर्धस्व इनके सिर पर है। राजीव जी सीए हैं और आचार्य शिवमुनि जी के विशेष कृपापात्र हैं, स्वाध्यायी हैं और जैन शासन की प्रभावना में उनका बहुत बड़ा योगदान है और तीसरे हमारे जैन समाज का उभरता हुआ सितारा जो जिन शासन की प्रभावना में आज दिल्ली में जितना बड़ा नाम मनोज का है, दूसरा नाम नजर नहीं आता। इन तीनों के साथ मिलकर हमने एक कल्पना की, योजना बनाई कि हमें एक ऐसा मंच बनाना चाहिए और इसके सूत्रधार हमारे दोनों सीए हैं – अनिल जी और राजेश जी, मुझे भी साथ में काम करने का इस उम्र में अवसर दिया, मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं कि ये मंच अभूतपूर्व मंच बनेगा। पिछले वर्ष हमने लगभग 40 जैन आचार्यों को इस मंच से जोड़ा, चाहे वे दिगंबर, स्थानक, श्वेतांबर, तेरापंथी, मूर्तिपूजक हो। हमने कोई भेद नहीं रखा कि कौन वाहन विहारी है, कौन अपनी क्रिया ज्यादा, कम पालता है, कौन गच्छपति है। हमने इन चीजों को भुलाकर, जो केवल भगवान महावीर के शासन की प्रभावना कर रहे हैं।
क्षमा, कोमलता, विनय भाव जगाओ

महासाध्वी श्री अर्चना जी महाराज मीरा ने अपने संबोधन में भगवान महावीर देशना के प्रमुख सिद्धांतों पर चर्चा करते हुए हमें कैसा जीवन जीना है और उसमें क्षमा के महत्व पर प्रकाश डाला। पर्यूषण पर्व की आवश्यकता के बारे में बताया। पर्व में हमें काफी कुछ समझ आता है और वह जब उसका स्वागत करता है तो उसकी आत्मा का विकास होता है। जिनवाणी को सुनकर एकचित्त होकर जब वह सुनता है और अवलोकन करता है तो उसके जीवन में परिवर्तन आ जाता है। संतों के पास तो आज स्वाध्याय परंपरा है लेकिन आम जन बाहरी आकर्षण के कारण स्वाध्याय से दूर है। ज्ञानी कहते हैं कि सिर्फ यही अपेक्षा रखों कि मेरे अंदर क्षमा भाव, कोमलता, विनम्रता, विनय भाव जागे। हम अंदर में मनन, चिंतन करें, मक्खन जरूर निकलेगा। संतों की वाणी खाली कभी नहीं जाती।
अहंकार, मान, घमंड का त्याग करें

जस्टिस अभय गोविल : इस महावीर देशना फाउंडेशन से यूं कहूं कि मैं तो पहले से ही जुड़ा हूं, जब इसकी स्थापना की थी तब मेरे से चर्चा हुई थी। समस्त कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि जहां तक समाज की एकता और भगवान महावीर देशना फाउंडेशन की जो परिकल्पना है, पूरी समाज को पूरे देश को जैन सम्प्रदाय को एक मंच पर लाने की, वह निश्चित रूप से अनूठी है। समय की मांग है कि पूरे जैन समाज को एक मंच पर आना चाहिए। सारे देश के हमारे वरिष्ठ साधुगण इस कार्यक्रम से जुड़ रहे हैं, विदेशी लोग भी जुड़ रहे हैं। हमने सराकोद्धारक आचार्य ज्ञान सागर महाराज जिनकी पिछले वर्ष समाधि हो गई, उन्होंने काफी सारे संगठन – वकील, जज, डाक्टर्स, सीए, साइंटिस्ट को सबको एक मंच पर लाने की कोशिश की। जब हम उजला का गठन (यूनिवर्सल जैन लॉयर एसो.) कर रहे थे, तब हमारे सुशील कुमार जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जो सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट हैं, ने आचार्य श्री के सामने एक ही शर्त रखी थी कि हम जैन समाज में बीच में कोई भेद नहीं करेंगे, सभी प्रकार के जैन हमारी संस्थाओं में शामिल हो सकेंगे। आचार्य श्री ने झट से इस बात को स्वीकार किया था कि हमारा जो मंच है, हमारी जो एकता का संदेश है वह हम यही समाज को देना चाहते हैं। हम सिर्फ देखगें कि उसकी जैन धर्म में आस्था है।
पर्यूषण पर्व तीन बार आते हैं। हमें वर्ष में हर तीन महीने ध्यान रखना है कि अहंकार को छोड़ना है। आज मार्दव धर्म के दिवस में अंहकार, मान, घमंड का त्याग करना है। जैन धर्म की एक अनूठी और उच्च परंपरा है कि हम उन गुणों के लिये व्रत रख रहे हैं। जैसे क्षमा की बात हमें बचपन से सिखाई जा रही है। हमें क्षमा भी मांगनी है और देनी भी है। ऐसे संस्कारों में हम पले- बढ़े हुए हैं। अभी इन दस धर्मों का प्रचार जैनेत्तर समाज में नहीं हो रहा है। अहिंसा के लिये बहुत काम हो रहा है दुनिया में। जैनोलोजी आज दुनिया भर में पढ़ाई जा रही है, लेकिन इसके बावजूद हिंसा नहीं मिट पा रही है। हमें कोशिश करने की फाउंडेशन अपने उद्देश्य के साथ अहिंसा का भी प्रचार करे। इस संस्था का नाम इसलिये जरूर लिखा जाएगा कि समाज की एकता के लिये यह संस्था आगे आई और काम किया।
क्षमा से ही आत्मा का उन्नोत्तर विकास

श्री विवेक मुनि जी महाराज : संवत्सरी के स्वर्णिम अवसर पर क्षमा धर्म की साधना – आराधना तीन रूपों में करनी है। क्षमा रखनी है, क्षमा मांगनी है और क्षमा लोगों को प्रदान करनी है। किसी ने आपके प्रति अनुचित बर्ताव किया हो, पीड़ा दी हो, ठेस पहुंचाई हो, ऐसी स्थिति में मन को शांत रखिये और क्षमा रखिये। आपके विचारों में कलुषता आई हो, द्वेष वश, कषाय वश, किसी के साथ दुर्भाव किया हो तो आप तुरंत क्षमा मांग लीजिए। आपने कोई भूल नहीं की है, दूसरे ने आपके प्रति अनुचित व्यवहार किया है, मन को दुखाया है, उसे जब अपनी भूल का एहसास हुआ और आपसे क्षमा मांगने आया तो उसे उदार हृदय से क्षमा प्रदान कीजिए। जो इन तीन रूपों में क्षमा धर्म की आराधना करता है, उसका तप – जप – प्रतिक्रमण सार्थक होते हैं और आत्मा की उन्नोत्तर विकास होता है। अहंकार मुक्त होकर क्षमा मांगिये, विपरीत स्थितियों में क्षमा धारण कीजिए, यही इस पर्व की सार्थकता और उपयोगिता है।

उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी महाराज : उत्तम मार्दव – मृदुता, कोमलता, जो हमारे विचारों में और हमारे स्वभाव में शामिल होती है, वहीं मृदुता है। कठोरता जब आती है, तो कई दिक्कतें आती हैं। कठोर अहंकार का प्रतीक है और मृदुता उसके विपरीत कोमलता का प्रतीक है। दुनिया में सभी धातुओं में सोना-चांदी कीमती माना जाता है क्योंकि वह स्वभाव से वह अन्य धातुओं की अपेक्षा नम्र होता है और उस कारण उसे गलाना, छीलना, उसमें नग – नगीना आसान रहता है, लेकिन अन्य धातुएं कठोर होती हैं, उन्हें पिघलाने में तापमान अधिक लगता है। सोने की कीमत ज्यादा है उसकी नम्रता, मृदुता की वजह से। यदि हमारे स्वभाव में भी कोमलता, नम्रता है तो यह मार्दव का भाव हमें पूजनीय, आदरणीय, सम्मानीय बताता है और नम्र व्यक्तियों के काम कहीं अटकते नहीं है। गुणवान व्यक्ति झुकता है, फलदार वृक्ष झुकता है, और मुर्दे के शरीर में तो मरण के बाद और अधिक अकड़ाहट ही पैदा होती है, उसमें किसी प्रकार का लचीलापन उसमें नहीं रहता है। बाहुबली भगवान के जीवन का घटना क्रम देखें। वे भ. आदिनाथ के परिवार थे। समय आता है, दीक्षा लेते हैं बस मन में एक दिक्कत थी कि मेरे से पहले दीक्षित अन्य भाइयों के चरणों में, मैं नमन क्यों करूं। एकांत में चले गये, साधना करते हैं, आसपास बेले उनके शरीर पर लिपट जाती हैं, कठोर साधना करते हैं, लेकिन अफसोस औरों को केवलज्ञान हो रहा है, लेकिन उनको केवलज्ञान की उपलब्धि नहीं हो रही है।

जब उनकी स्वयं की बहनें ब्राह्मी और सुंदरी उन्हें कहती है भईया हाथी से नीचे उतरों। कानों में शब्द गये तो उन्होंने सोचा मैं कौन से हाथी पर हूं। उन्होंने भाव समझा कि आप अभिमान रूपी हाथी पर चढ़े हुए हो। अभिमान को छोड़ो, मृदुता को ग्रहण करो। जब उनको अहसास होता है, विचार करते हैं कि मेरे अंदर घमंड है और तभी मैं अलग साधना कर रहा हूं। उन्होंने अपनी गलती स्वीकारी और अपने भाईयों को वंदन करने, नमन करने आगे बढ़ते हैं तो इतिहासकार कहते हैं कि उनको केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। जीवन में मृदुता, नम्रता को अंगीकार करें।

दुनिया की सारी नदियां एक प्रतीक हैं, कि सारी नदियां समुद्र की ओर जाती हैं। एक बार समुद्र ने एक नदी से कहा कि बाकि की बहनें कुछ न कुछ अपने साथ पेड़, झाड़ आदि बहाकर सम्मान के रूप में आती है, लेकिन तू खाली हाथ क्यों आती है। नदी ने कहा कि मेरी मजबूरी है कि मेरे दायें – बायें जो पेड़ हैं, वो दूसरे पेड़ नहीं है, बैत के पेड़ हैं, जंगल है, बांस के जंगल हैं लेकिन जब आंधी-तूफान आते हैं, बाकि पेड़ तो टूट कर गिर जाते हैं लेकिन बैत इतनी सॉफ्ट होते हैं, जहां की हवा चलती है, झुक जाती हैं और तूफान के बाद वे दोबारा खड़ी हो जाती हैं, वे टूटती नहीं, मेरे अंदर समाती नहीं। यह प्रतीक है कि हम अगर जीवन में विनम्र हैं, झुकने की कला हमें आती है, तो संघ में समाज में कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाता। हम झगड़े, विवाद करेंगे तो हमारा बहुत कुछ बिगड़ जाता है। कहावत है अधजल गगली छलकता जाए, आधा – अधूरा व्यक्ति और व्यक्तित्व वो बार-बार अपने अभिमान को छलका कर प्रकट करता है कि मैं हूं, लेकिन गंभीर व्यक्तित्व के धनी विनम्र हो जाते हैं और स्वयं अपने बारे में कुछ नहीं कहते, बड़े आराम से रहते हैं। कुछ लोग गलती करते हैं अपने अभिमान को स्वाभिमान की ड्रेस पहनाने को कोशिश करते हैं। अभिमान और स्वाभिमान में अंतर समझकर चलें। स्वाभिमान बुरा नहीं है, लेकिन अभिमान बुरा है।

अभिमान को छोड़े, मृदुता को, मार्दव धर्म को ग्रहण करें, मृदुता हमारे कल्याण में, सर्व समाज को जोड़ने में सहायक है।

कोमलता होगी तो क्षमा स्वयं प्रकट हो जाएगी

गणिनी आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण माताजी : उत्तम मार्दव धर्म मुलायम, नम्र बनाता है और जहां कोमलता होगी, वहां पर क्षमा अपने आप प्रकट हो जाएगी। मार्दव धर्म हमें झुकना सिखाता है, उत्तम मार्दव धर्म की अर्घ्यावली में सारे अर्घ्य नमन के थे, यानि नवदेवताओं को, सर्व साधुओं को, सभी अतिशय-सिद्ध क्षेत्रों को नमन यानि जहां नमन के भाव हैं, वहां मान-कषाय नहीं है। सब कोमल हो या नहीं, लेकिन सबको प्रिय होती है कोमलता। जब हम झुकते हैं तो मान-कषाय को चोट लगती है। णमोकार महामंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसमें कोई मनवांछा पूरी करने की बात नहीं की, कोई सिद्धि नहीं है। यह तो केवल नमस्कार मंत्र है, इसे सबसे बड़ा मंत्र माना है कि इसमें नमस्कार के अलावा कुछ नहीं कहा है। अरिहंतों को, सिद्धों को, आचार्य परमेष्ठी, उपाध्याय परमेष्टी, लोक में समस्त साधुओं को नमस्कार किया है। 84 लाख मंत्रों का राजा कह दिया। कारण यह है कि जितनी बड़ी शक्तियां इन पांच परमेष्ठियों में समाहित हो गई, इनके चरणों में झुकने में जो मिलता है, उनकी शक्ति हमारे में आनी शुरू हो जाती है। एक और विशेषता है कि हर पद में णमो शब्द का प्रयोग करों यानि पहले पद में झुको, दूसरे से लेकर सभी में झुको। जैसे नारियल एक चोट में नहीं टूटेगा, दो में नहीं टूटेगा लेकिन पांच चोटों में तो टूट ही जाएगा। इसी तरह अहंकार के पत्थर को तोड़ने के लिये नमस्कार जरूरी है। जिसे झुकना आता है, वह मार्दव धर्म को प्राप्त कर सकता है। जहां णमोकार है, वहां अहंकार नहीं।

यदि मान कषाय कम नहीं हुई है, समझना अभी हमने णमोकार मंत्र पढ़ा ही नहीं है, मात्र औपचारिकता पूरा कर रहे हैं। मान कषाय मनुष्य गति में तीव्रता होती है, वैसे क्रोध की तीव्रता नरक में है। मान की तीव्रता मनुष्य गति में, माया की तीव्रता तिर्यंच और लोभ की तीव्रता देव गति में है। जब नरक में जीव पैदा होता है, सबसे पहली कषाय उसकी क्रोध होती है, इसी तरह मनुष्य में पहली कषाय मान, तिर्यंच में माया और जब देव गति में जन्म होता है तो पहली कषाय लोभ होता है। तो इंसान मनुष्य गति में मान लेकर पैदा हुआ है और इस मान को नाक बना लिया है, मेरी नाक कट जाएगी, मेरा स्टेटस कम हो जाएगा। ये सब दिखावा है, जहां धर्म है, वहां दिखावा है ही नहीं। मान कषाय को हवा देने के लिये आज सारा संसार इतने भौतिक साधनों का उपयोग करता है। आठ प्रकार का मान आचार्यों ने बताया है। ज्ञान, पूजा, जाति, कुल, बल, ऋद्धि, तप और रूप का मद इन आठों मदों में 24 घंटे उलझें रहते हैं और जीवन मान कषाय की भूख को शांत करने में सारी जिंदगी समर्पित करता है।

मुनि श्री अमित सागरजी : धर्म के दस लक्षण होते हैं, यह आप बचपन से जानते हैं, लेकिन आपको एक बात समझनी चाहिए कि विश्व में जितनी भी धर्म संस्कृतियां है, उन सब में दस धर्म ही बतायें हैं। जैन धर्म के दस धर्मों में उत्तम विशलेषण लगा है और हर धर्म शरीर का कोई न कोई प्रदूषण दूर करता है।

आचार्य श्री देवनंदी जी : हम आज दो धाराओं के विचारों को एकत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। अंतराय कर्म की निर्जरा – सबसे बड़ा रहस्यमय कर्म है। इस कर्म की वजह से हमें कुछ करने की इच्छा होती है, हम कर नहीं पाते हैं। कभी -कभी हम खाते-पीते बहुत कुछ होता है लेकिन हमारा शरीर लकड़ी सरीका पतला हो जाता है। उस विघ्न देने वाले कर्म को अंतराय कर्म आचार्यों ने कहा है। इच्छा होते हुए भी हम कोई कार्य नहीं कर पा रहे हैं इसका मतलब है कि हमारा अंतराय कर्म कहीं न कहीं आड़ा आ रहे हैं। फाउंडेशन का तीन सूत्रीय कार्यक्रम खाली जैन समाज का नहीं बल्कि समूची मानव जाति का कल्याण करने वाले कार्य हैं। और यदि हम ये कार्य इच्छा करते हुए भी नहीं कर पा रहे हैं, पुरुषार्थ में कमी नहीं की है, फिर भी हमारी कोई कमी रह जाती है, सफलता नहीं मिलता तो भी हमें परिश्रम नहीं छोड़ना है। इसे हम अंतराय कर्म कहते हैं, इसे आचार्यों ने रहस्य कर्म कहा है। कभी – कभी थाली सामने होते हुए भी हमें खाना छोड़कर जाना पड़ता है, ये हमारा लाभांतराय कर्म है। हमारा पैसा सद्कार्यों में नहीं लग पा रहा है वहां दानांतराय कर्म का उदय है। फिर भी करने की इच्छा अपने मन में करते रहना चाहिए। घर में सब साधन होते हुए भी हमें डायबटीज, कैंसर, ट्यूमर हो जाता है तो हम सुख-सुविधाओं को भोग नहीं पा रहे हैं। यह भोगांतराय कर्म है। हमारे वस्त्र अच्छे हैं, अच्छी डैÑस तैयार कराई है, फिर भी नहीं पहन पाते हैं, यह उपभोगांतराय कर्म का उदय है। हमारे अपने फ्लैट हैं, फिर भी हम रैंट के मकान में रह रहे हैं, यह उपभोगांतराय का उदय है। इसें हमें समझना चाहिए।

हमें अच्छे कार्यकर्ताओं को जोड़ना महत्वपूर्ण बात है। इस मंच के साथ सैकड़ों कार्यकर्ता जुड़े हैं। हर वनस्पति में कोई औषधि गुण है, हर अक्षर में कोई मंत्र बनने की शक्ति है, हर व्यक्ति में कोई न कोई योग्यता है किंतु एक अच्छे आयोजक की जरूरत पड़ती है। अच्छे आयोजक हमें फाउंडेशन के रूप में जो चार लोग मिले हैं, ये हमारे चार स्तंभ हैं। आज इन चारों को हम सबको मिलकर संभालना होगा।

जो द्रव्य हम दान में घोषित कर देते हैं, वह हमारा नहीं रहता, उसे निर्माल्य द्रव्य कहते हैं और उसे खुद के लिये उपयोग नहीं करना चाहिए। वह द्रव्य उस संस्था का है, जिसके लिये हमने घोषित कर दिया है। हम किसी को तकलीफ न दें, तो अंतराय कर्म की निर्जरा होगी।

व्यक्ति को झुक करके चलना चाहिए। बड़ों को प्रणाम करना, छोटों की महानता है और छोटों का सम्मान करना बड़ो की महानता है। एक में विनम्रता है, दूसरे में वात्सल्यता है, अपने-अपने स्थान पर दोनों की महानता है। हम बड़े हैं, तो हम छोटों की कद्र करें, आप कहकर बुलाएं। विनम्र सूचक शब्द कहने से दो परिवार एक हो जाएंगे, बंटे हुए सारे एक हो जाएंगे। हमारी कषाय संवत्सरी पर्व पर पानी में रेखा के समान हो जाती है। प्रमाद से, कषाय से हमारा पारा आसमान पर चढ़ जाता है, उस समय हमें विवेक से काम लेते हुए कषाय को समाप्त करना चाहिए। अगर हम विनम्रता से लघुता से चलते हैं तो हमारे परिवार में दो दीवारें कभी नहीं खड़ी होगी। आज हम परिवार, घरों, समाज को बांट रहे हैं, यदि इस बंटवारे से बचना है तो मार्दव धर्म को अपनाना होगा। मार्दव से निश्चित रूप से हमारी समाज, हमारा देश अखंडता को प्राप्त करेगा। हमारे हाथ की पांचों उंगलियां एक तरी की नहीं होती है, भिन्न होकर भी जब एक होकर मिलती है तब हम कोई काम कर पाते हैं। इसी प्रकार हमारे परिवार में 4-5 लोग हैं तो जरूरी नहीं कि सभी के विचार एकसे हो, किंतु सबका मन एक होना चाहिए। हमारे समाज का मत एक नहीं हो, लेकिन मन एक बनाकर चलना चाहिए, जैसे आज हम महावीर देशना फाउंडेशन के माध्यम से हम अपने आपसी विचारों के मतभेदों को भूलकर एक मंच पर उपस्थित हुए हैं, यही बड़ी उपलब्धि है।

डायरेक्टर श्री अनिल जैन : आज की धर्म सभा में भगवान महावीर देशना फाउंडेशन प्रस्तुत इस प्रयोगशाला उपस्थित प्रदान कर रहे समस्त गुरुवरों को फाउंडेशन परिवार को नमन करते हुए, महान चारित्र आत्माएं जो इस कार्यक्रम से जुड़ रहे हैं उनका अभिवादन करते हुए कहा कि संवत्सरी और मृदुता – इन दोनों का मिलान हो जाएं तो कितने समाधान इसमें छुपे हुए हैं, आज हमने यह जाना। मान कषाय से मुक्ति के लिये विनम्रता और वात्सल्यता अपनानी है। एक समाज की चार धारायें, ये तो हम निश्चित करें कि हम एक धर्म के वाली हैं। यदि धर्म एक हैं तो रेखाएं हमारी पानी की तरह होनी चाहिए ताकि जब हम आगे बढ़े तो पीछे की रेखा अपने आप छुप जाए। यह मंच एक सार्वजनिक मंच है और इसका प्रयोग वे सब लोग कर सकते हैं जिन्हें अपनी बात कहने के लिये मंच चाहिये, केवल एक ही कंडीशन है कि वे एकता के लिये, एकतास्वरूप बात होनी चाहिए, ताकि हम इन दो धाराओं को एक कर सकें, एक बन सकें। ये आज बड़ा रहस्यपूर्ण कर्म है आज का जिसका नाम है अंतराय है। मनमुताबिक कार्य नहीं होते हैं तो कई धाराएं बन जाती हैं, तो यह मंच मनमुताबिक करने के लिये प्रयासरत है।
(Day 9 समाप्त)