युद्ध मैदान में नहीं, युद्ध मन में प्रारंभ होता है, उसे रोकने का मापदंड या शस्त्र भगवान महावीर ने दिया है :आचार्य देवनंदीजी

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जैन एकता का अद्भुत आयोजन

सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 11 सितंबर 2021

देखो पर्व पर्यूषण आया, सारे जैनों का त्यौहार आया
स्थानक में, मंदिर में सब मिलकर चलेंगे
गुरुवर के चरणों में समर्पित रहेंगे
सारे कर्म काटने का अवसर है आया
गुरुवर की कृपा की सबपर हो छाया
देखो पर्व पर्यूषण आया, सारे जैनों का त्यौहार आया
तप, साधना के दीप ये जलायें
और सब साथ मिलकर खुशियां मनाएं
आत्मा की शुद्ध का ये पल है आया
धर्म की वृद्धि का ये पल है आया
आया पर्व पर्यूषण आया, सारे जैनों का त्यौहार आया
पर्वों का राजा है, अभिमान अपना
सारे पंथ एक हो, बस ये है कहना
समता जताने का मौका है आया
एकता दिखाने का ये पल आया
आया पर्व पर्यूषण आया, सारे जैनों का त्यौहार आया

पर्यूषण आत्मा से जोड़ने का पर्व

8 न 10, बस 18 के लक्ष्य को लेकर भगवान महावीर फाउंडेशन एक ऐसा अद्भुत आयोजन पूरे विश्व के जैन समाज के लिये लाया है, जिससे जैन एकता का शंखनाद इसके माध्यम से होने जा रहे हैं। संयोजक श्री राजेन्द्र जैन महावीर सनावद ने सभा का शुभारंभ करते हुए कहा कि पर्यूषण पर्व का अर्थ सब जानते हैं। पर्व का अर्थ होता है जोड़ना। गन्ने की जो गांठ होती है, ज्वाइंट को भी पर्व कहते हैं, अगर उसे बो देते हैं तो एक नया गन्ना खड़ा हो जाता है। तो मूल रूप से पर्यूषण पर्व को कहा जाता है कि यह आत्मा से जोड़ने का पर्व है। हम सब आत्मिक रूप से जैन समाज के लोग इस पर्यूषण पर्व को भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के तरह आज गौत्र कर्म के साथ उत्तम क्षमा धर्म को अंगीकार करेंगे। ये शुभ अवसर जो मिला है, उसमें प्रतिदिन परम पूज्य आचार्य श्री देवनंदी जी महाराज, परम पूज्य उपाध्याय श्री रविंद्र मुनि जी महाराज, परम पूज्य महासाध्वी श्री मधुस्मिता जी महाराज एवं परम पूज्य आर्यिका गणिनी श्री स्वस्तिभूषण माताजी का सान्निध्य प्राप्त हो रहा है। चारों संतों की स्वीकृति संपूर्ण 18 दिनों की स्वीकृति मिली है, जो हमारे लिये गौरव की बात है। सर्व श्री सुभाष जैन ओसवाल, अनिल जैन एफसीए, राजीव जैन सीए, मनोज जैन दिल्ली – निदेशक मंडल आयोजन समिति को जागरूक करता है। अब हमें दिगंबर, श्वेतांबर, बीसपंथी, स्थानकवासी जितनी भी चीजें हैं हमें इन सबके नल बंद करके, केवल जैन होने की बात करना है। हम सब का एक ही लक्ष्य हैं अहिंसा और जैन व अहिंसा पर्यायवाची शब्द हैं। हम जैन हो जाएं और सारे समुदाय एक होकर अहिंसा परमोधर्म की आवाज को पूरे विश्व की आवाज बना दें। इन्हीं भावना के साथ भगवान महावीर देशना फाउंडेशन काम कर रहा है।

डायरेक्टर मनोज जैन ने अपने भजन से मंत्रमुग्ध कर दिया, जिसके बोल इस प्रकार थे –
हमें यह ऐसा वर दे दो,
गुणगान करें तेरा
हम बालक के सिर पर,
गुरु हाथ रहे तेरा।
नहीं द्वेष रहे मन में,
रहे वास गुरु तेरा
इस बालक के सिर पर, गुरु हाथ रहे तेरा।
तेरे ध्यान में सोऊं मैं, सपनों में रहे मेरे
चरणों से लिपट जाऊं, गुरु ध्यान करो मेरे।
शुभ कार्य करने वाले उच्च गौत्र पाते हैं

महासाध्वी श्री मधुस्मिता जी महाराज : सातवां कर्म है गौत्र कर्म। गौत्र की दो प्रकृतियां प्रकार की होती हैं – उच्च और नीच गौत्र। अहंकार, अभिमान करने से आठ प्रकार के अहंकार होते हैं – जाति मद, कुल मद, बल मद, रूप मद, श्रुत मद, तप का मद आदि ये सारे के सारे मद जो रोज हम प्रतिक्रमण में छेड़ते हैं, अगर हमने इन मदों को स्वीकार कर लिया तो आगे चलकर हमें वापस नीच गौत्र में जाना पड़ता है। जो शुभ कर्म करते हैं, वे उच्च गौत्र वाले कहलाते हैं, जैसे तीर्थंकर, गणधर, उनकी शिष्य परंपरा वाले उच्च गौत्र वाले होते हैं। एक-दूसरे को मारने वाले, गाली-गलौज करने वाले, अनेक तुच्छ काम करने वाले नीच गौत्र वाले कहे जाते हैं। हमें चाहिए कि हम इस प्रकार के बंध ही न करें।
लुक एंड लर्न पाठशाला से
50 हजार जैन बच्चे जुड़े हैं

संयोजक अमित राय जैन : उन्होंने श्रद्धेय नम्र महाराज के दो कार्योें का उल्लेख किया – 1. पूरे विश्व भर में लुक एंड लर्न के नाम से पाठशालाओं में करीब 50 हजार जैन बच्चे भारत समेत पूरे विश्व से भाग ले रहे हैं। उसमें जैन बच्चों के अंदर जैन संस्कार उन्हीं की भाषा और शैली में डालें जाते हैं। 2. मानवता की रक्षा और सेवाएं देने के लिये अर्हं युवा ग्रुप के नाम से कार्यक्रम चलाया. इस कोविड के समय स्वयं गुरुदेव ने युवाओं को प्रेरित किया कि साधर्मी भाईयों को कहीं भी कोई परेशानी है तो हमें बताएं चाहे वह दवाई हो, आर्थिक हो, भोजन की हो, हर व्यवस्था चाहे वह करोड़ों तक में हो वह हम करेंगे। रोटी बैंक की व्यवस्था की जिसमें लाखों रोटियां गुरुदेव की प्रेरणा से रीटा अम्बानी परिवार ने की है, यह जैन समाज के लिये गौरव की बात है।

श्री आनंद छल्लानी जैन : फाउंडेशन के गठनकर्ता के रूप में, मील के पत्थर श्री सुभाष ओसवाल, अनिल जैन, राजीव जैन एवं मनोज जैन को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि 18 दिवसीय आराधना जो चल रही है, वह अपने आप में अनोखी है। इसकी सफलता की मंगल कामना करता हूं। जिस उद्देश्य से इस संस्था का गठन हुआ है, आप उसमें नित प्रगति करें। बच्चों को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक नई राह दिखाई, समाज के कमजोर वर्ग को पूरा – पूरा फायदा मिलें। सुभाष जी ने समाज के लिये सदैव तत्पर रहने वाले आज भी सामाजिक कार्य के लिये हमेशा अग्रणी रहते हैं। इस उम्र में भी आपका उत्साह और उमंग हमेशा बढ़ता रहता है।

बिना क्षमा के दस धर्मों का महल ठहर नहीं सकता

आचार्य देवनंदीजी महाराज : आज का दिवस स्मरणीय है क्योंकि अभी तक अष्टदिवसीय अष्ट कर्मों की निर्जरा कराने वाला पर्वराज की आराधना कर रहे थे। तो दूसरी ओर आज इसी जैन समाज की एक और उच्च वर्गीय शाखा दिगंबर जैन समाज, उसका आज पहला पर्व उत्तम क्षमा के रूप में यहां मना रहे हैं। क्षमा ये हमारे पर्व की मूलभूत नींव है। बिना क्षमा के हमारे दस धर्मों का महल ठहर नहीं सकता। क्षमा है तो हमारा धर्म है, त्याग तपस्या सार्थक है, परिवार हमारी समाज हमारा देश है। यदि हमारे हृदय से क्षमा है तो हमारे शरीर में संतुलन बना रहता है। जब-जब संयम का बांध टूट जाता है, संतुलन बिगड़ जाता है तो पूरे परिवार, समाज पूरे देश का भी अहित हो सकता है। युद्ध मैदान में नहीं, युद्ध मन में प्रारंभ होता है। जब हमारे मन में युद्ध की हिंसा की भूमिका चलती है तो उसे कोई रोक नहीं सकता। फिर उसे रोकने का मापदंड या शस्त्र भगवान महावीर ने दिया है तो हमारे लिए क्षमा दिया है। हम हाथ में क्षमा की ढाल बनाकर चले।

हम जिस गौत्र कर्म की निर्जरा की बात कर रहे हैं, गौत्र कर्म मदों से, अहंकार से शुरू होता है। जब हम किसी बात का अहंकार लेकर चलते हैं तो हमें वहां गौत्र कर्म का बंध शुरू हो जाता है। चाहे जाति मद हो चाहे कुल मद हो, चाहे बल या रूप का मद करें या अपने ज्ञान, ऐश्वर्य, धन-संपत्ति का मद करें, ये हमारे लिये ही नहीं, सभी के लिये घातक है। जब पेड़ में फल लगते हैं, तो पेड़ की डालियां नीचे आती हैं और आदमी के पास जब ऐश्वर्य, सुंदरता, प्रभुत्व, प्रतिष्ठा, पद आ जाते हैं तो उस इंसान की भी अधिक नम्र प्रवृत्ति होनी चाहिए। गौत्र कर्म की निर्जरा के लिये हमें सभी प्रकार के अहंकारों से दूर रहना चाहिए। आजकल आपसी मतभेद, संघों में मतभेद, समाज में यहां तक गुरुओं में मतभेद पैदा कर दिया, यह मतभेद पैदा करना भी गौत्र कर्म के बंध का कारण है। संघ में फूट डालना, श्रावकों का गुरुओं से भिड़ जाना, गुरुजन की विनय नहीं करना आदि हमें नीच गौत्र का बंध करा देती हैं।

पर की निंदा करना जो आज समाज में बहुत मात्रा में होने लगी है, लोग रस लेने लगे हैं। किसी की आलोचना करना, टीका-टिप्पणी करना, दूसरों की कमियों को ढंूढते हैं। जैसे हम गुप्त अंग को ढक कर रखते हैं, उसी तरह हमें दूसरों की कमियों और खामियों को ढक कर रखना चाहिए। पर की निंदा करना या सुनना ये हमारे लिये नीच गौत्र के बंध का कारण है। खुद की प्रशंसा करना, खुद की प्रशंसा सुनकर फूल कर कुप्पा हो जाना भी नीच गौत्र का कारण है। आदमी का बड़प्पन स्वयं, स्वयं के मुखारबिंद से करने की बजाय अपनी निंदा, आलोचना करनी चाहिए।

जैन एकता बढ़ाने के लिये यदि हम क्षमा को अपने जीवन में लाएं और एक-दूसरे के प्रति सहनशीलता, सहनुभूति बनाते हुए, संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़े, हाथ से हाथ, कंधे से कंधे मिलायें, इतना न हो तो मन मिला कर चलें। मन मिल गया तो सबकुछ मिल जाएगा। मतभेद हो, लेकिन मनभेद ने हो। यह तभी संभव है जब भगवान महावीर के उत्तम क्षमा के सिद्धांत को लेकर चलें। हमारा इस दुनिया में किसी भी जीव से वैर नहीं, सभी जीव मेरे मित्र है, इस मंगल भावना को निभाते हुए हम चलते हैं तो भगवान महावीर देशना फाउंडेशन का एकता का नारा, सबसे बड़ा प्यारा नारा है और यह नारा भगवान महावीर के सिद्धांतों पर आधारित है। भ. महावीर के सिद्धांतों को आत्मसात करते हुए सातवें गौत्र कर्म की निर्जरा करने का पुरुषार्थ करें।

विद्वानों, संतों को एक मंच पर लाकर 8 नहीं,
10 नहीं, बस 18 को लेकर एकता का मंत्र

डायरेक्टर सुभाष जैन ओसवाल : इस कार्यक्रम को भव्यता देने का, देशव्यापी बनाने वाले और पर्दे के पीछे रहकर जिन महान संतों ने हमें आशीर्वाद दिया कि पिछले वर्ष हमने इस योजना को आरंभ किया, परम श्रद्धेय आचार्य श्री शिवमुनि जी महाराज, नित्यानंद जी महाराज, आचार्य देवनंदी जी, ज्ञानमती माताजी और नम्र मुनि जी महाराज जो कि पिछले वर्ष जिस रूप से, जिस भव्यता से इस कार्यक्रम को देश में ही नहीं विदेशों में पावन धाम के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुंचाया और हमारी साध्वी प्रतिसुधा जी, मधु जी, स्वस्ति भूषण माताजी की वाणी द्वारा हमने इस कार्यक्रम को देश-विदेश में किस रूप से प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, इसका श्रेय मेरे साथियों अनिलजी, राजीवजी, मनोज जी और कार्यक्रम के संयोजकगण को। ये हमारी योजना देशना फाउंडेशन की स्थापना इन चार लोगों ने की और एकमात्र उद्देश्य यही था कि हम देश के सारे विद्वानों, संतों को एक मंच पर लाएं और ये कार्यक्रम हमने 8 नहीं, 10 नहीं, 18 जिस रूप से शुरूआत किया, ये आत्मशुद्धि का महान पर्व – आज हमारा एक समुदाय सम्वत्सरी महापर्व मना रहा है, कल दूसरा पर्व मनाएगा। आज दिगंबर परम्परा का दशलक्षण का पहले पर्व भी आरंभ हो गया। यह ऐसा अनूठा जैन एकता का मंच अपने आप में अभूतपूर्व मंच है कि जैन एकता, जैन संगठन का नारा देने वाले श्री आनंद छज्जलानी का इस मंच पर स्वागत हो रहा है। राष्ट्रसंत जो 1300 साधुओं के नायक हैं, उन्होंने अपने मुखारबिंद से श्री आनंद को 1 लाख लोगों के नेतृत्व करने का अवसर प्रदान किया।
एकता की सुगंध फैलती है तो रोम-रोम खिल उठता है

गुरुदेव श्री नम्र मुनि जी महाराज : भ. महावीर देशना फाउंडेशन के उपक्रम से ये 18 दिवसीय उत्सव चल रहा है, एकता का जो शो, सद्भावना का जो ये माहौल चल रहा है, सत्ता योग होना और सबका सहयोग होना, ये भी अपने आप में, जब हृदय की सरलता होती है तो सभी का योग और सहयोग होना सरल हो जाता है। जब हम एक रूप होने की प्रक्रिया में प्रवेश करते हैं, तब कहीं न कहीं आगे भी देखना होता है और पीछे भी देखना होता है। हमारी दृष्टि में भूत की भूलों को सुधारना और भविष्य की प्लानिंग करना जरूरी होता है। पिछले वर्ष भी हम सब एकत्र हुए थे लेकिन मुझे एक उदाहरण देना है कि पिछले 9 दिन के प्रवचन यहां से लाइव अमेरिका जा रहे हैं और अमेरिका में ‘जैना’ के माध्यम से 1 लाख 50 हजार परिवार जुड़े हुए हैं और उन सभी के हृदय और ब्रेन में भी परमात्मा का स्थान है। वहां कोई पंथ नहीं है, वहां साथ मिलकर, एक होकर, एकता का, प्रभु के अनुयायियों की एकत्वा का जयघोष करते हैं। एकता उनके पेपर पर भी है, उनके रेपर पर और एकता उनके कनटेंट पर भी आने लगी है। पेपर और रेपर पर आना आसान है लेकिन अंदर का कंटेंट भी एक होता जाए तो फिर हम अंदर से भी, और बाहर से एक होने लगते हैं। इसका असर हमारे समाज पर ही नहीं, अन्य समाजों पर भी असर होने लगता है।
मैं इतना जरूर कहूंगा कि हमें कहीं ने कहीं स्ट्रोंग बनने के लिये, हमें पास्ट के रांग देखना पड़ेगा। कहां – कहां मिस्टेक हो रही है और किस प्रकार से हमारी एकता में कहां-कहां प्रोब्लम हो रहा है। कितनी बार मिली जुली सरकार चलती है तो हमारे बीच में भी कॉमन प्रोग्राम चलते रहेंगे, तो हमारी एकता का इंजन हमेशा -हमेशा के लिये चलता रहेगा। पीछे कम्पार्टमेंट जुड़ते जाएंगे और हर स्टेशन से पैसेंजर चढ़ते जाते हैं।

जब हम साथ मिलकर कार्य करते हैं, तब हमें एक बात पर ध्यान रखना होगा। आज 50 के ऊपर के लोग पिछले संस्कार के कारण धर्म से जुड़े हुए हैं। लेकिन हमारे सामने बहुत बड़ी चैलेंज आ रहा है कि सोशल मीडिया के अंदर, सभी प्रकार का कंटेंट मिल रहा है। उसमें अपने-अपने क्षेत्र के प्रभाव पुरुषों के प्रवचन, अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं। युवा वर्ग कहते हैं कि हमारे जैनत्व हमें ऐसा स्पेशल कुछ लगता ही नहीं है। इस बार महावीर जन्मोत्सव पर हमने एक मूवी रिलीज की – भगवान महावीर सुपर साइंटिस्ट के नाम से। और महावीर के तथ्यों को, उनके शास्त्रों में आने वाले रहस्यों को जो साइंटिफिक बेस पर प्रूव हो चुके हैं, ऐसे बहुत सारे सीक्रेट समाज के सामने रखने का प्रयास किया, तब युवाओं ने कहा ये तो स्पेशल है और अगर ऐसा स्पेशल महावीर भगवान ने कहा है तो हमें जानना पड़ेगा कि भगवान महावीर क्या है? हम पुरानी स्टोरी घुमा फिराकर प्रवचनों में रखने लगते हैं, इससे क्या होता है कि बड़े जन तो श्रद्धा से स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन जो आज के युवा है, उन्हें तो साइंटिफिक एप्रोच चाहिए। जैना में चल रहे प्रवचन में जब हमने कहा कि हमें संवत्सरी मनाने के लिये ब्रेन के दो भागों को चैक करना पड़ेगा। एक में गुड मेमोरीज और दूसरे में बैड मेमोरीज। और जितनी भी मेमोरीज सेव हो रही है सिर्फ मिच्छामि दुक्कड़म् करने मात्र से मैमोरी डिलीट नहीं होती है। इस डिलीट करने के लिये कहीं न कहीं ओवरराइट सिस्टम होना चाहिए और जब हम मानवता के, सद्भावना के कार्य करते रहते हैं, तो हमारे अंदर गुड मेमोरीज बढ़ती जाती है और धीरे-धीरे बैड मेमोरीज शून्य हो जाती हैं। तब जाकर हमारी संवत्सरी सार्थक हो सकती है।

हम सबको एक और ही अगली प्लानिंग की ओर जाना चाहिए। समाज में हमारे जैनत्व को अलग ही आयाम पर ले जाने के लिये कुछ ऐेसे सिद्धांतों को व्यक्त करना पड़ेगा कि गांधी जी के अंदर में जैनत्व का प्रभाव था, उसको 70-80 साल बीत गये हैं। अब नये-नये जितने भी आ रहे हैं, उन सब पर जैनत्व का प्रभाव किसी न किसी तरीके से लाना पड़ेगा। फाउंडेशन से जुड़े कार्यकर्ताओं को यही प्रेरणा देना चाहता हूं कि हम ऐसे प्रभाव का सर्जन करें, जिसके द्वारा अलग-अलग क्षेत्र के महानुभावों के अंदर अपने जैनेत्व के प्रति इतना प्रभाव आना चाहिए कि उनके मुख से बातों ही बातों में निकले और सुनने वालों के अंदर दिलचस्पी आने लगती है। मेरे प्रवचन में 120 देश के लोग जुड़ते हैं, वे सुनने का प्रयास करते हैं। हम तो बहुत छोटे संत हैं, फाउंडेशन के मंच पर तो बहुत बड़े – बड़े संत हैं, कुछ ऐसा साइंटिफिक एप्रोच लाकर हम जैन दर्शन को विश्व फलक पर सिर्फ उपासना, आराधना के फलक पर ही न ले जाकर इसे साइंटिफिक फलक पर ले जाएं तो मुझे लगता है कि अपने आप ही अपने धर्म की शासन प्रभावना करने में श्रेष्ठ हो जाएंगे।

हम सिर्फ जूम पर ही न मिलें, हम तो रोम-रोम से मिलें ऐसे और ऐसी फ्रेगनेंस फैलाये कि जिसके द्वारा चारों ओर हमारे जैनत्व का जय-जयकार कर पाएं। मान होता है, सम्मान होता है हमारे दिल में जब मैं एक मंच पर भगवान महावीर देशना के मंच पर संतों-आचार्यों को लाने का पुरुषार्थ देखता हूं तो आनंदित हो जाता है। हमारी एकता की जो सुगंध फैलती है, यही हमारे दिल का सबसे बड़ा सेटिफेक्शन है। जब हम पंथ से ऊपर होकर जब हम परमात्मा की राह पर आ जाते हैं, तो उसकी समाधि कुछ और होती है।

गणिनी आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण माताजी : श्रमण जी को सुनने के बाद मेरे मन में विचार आया कि जैसे वैज्ञानिकों के लिये प्रयोगशाला बनाकर अनेक इंस्ट्रूमेंट लगाकर खोज की जाती है। ऐसी ही प्रयोगशाला जैन समाज की भी होनी चाहिए, उसमें इस तरह जैन धर्म की प्रभावना हो, क्योंकि जैन साधु जब प्रभावना करते हैं, सबका अपना-अपना क्षेत्र है, इतना कि संपूर्ण क्षेत्र नहीं हो पाया। लगता है कि बहुत हो गया, लेकिन नहीं हुआ है। लेकिन एक समिति, एक संगठन ऐसा तैयार हो जो संपूर्ण क्षेत्र को कवर करें, देश और विदेश को कवर करें जिससे जैन धर्म की प्रभावना का संदेश एक सा और एक जैसा जाए।

कई दिनों से कर्म पर चर्चा कर रहे हैं। कर्म एक ऐसा बीज है, जो आत्मा रूपी धरती में बोआ जाता है, तो वह एक बोना पर एक नहीं निकलता। एक बीज का फल एक नहीं होता। धरती में एक बीज डालते हैं तो कम से कम बीस बीज वापस आते हैं। ठीक ऐसे ही एक कर्म जब किया जाता है, तो उसका फल अधिक होकर आता है, कहते हैं पककर वापस आता है। ठीक ऐसे ही कर्म, कर्म को लेकर आता है। कर्म दो तरह के पुण्य और पाप। पुण्य क्रिया से पुण्य और पाप क्रिया से पाप कर्म आता है और क्रिया ही करते रहेंगे तो कर्म से कब छूटेंगे? तो अकर्म से ही कर्म रुकता है वो अकर्म की अवस्था है ध्यान की।

कुछ लोग उच्च गौत्र में नीच गौत्र का बंध करते हैं और कुछ नीच गौत्र में रहकर उच्च गौत्र का बंध करते हैं। वर्तमान में वह कैसा बंध कर रहा है, यह उसके वर्तमान में कार्य कैसा कर रहा है, उस पर निर्भर करता है। अंतराय कर्म सबके साथ लगा हुआ है, यह कहीं भी आ सकता है – दान, लाभ, भोग, उपभोग, शक्ति में कहीं भी आ सकता है। अंतराय कर्म के माध्यम से जो हमें मिलने वाला है, वे नहीं मिल पाता है। जैसा कर्म किया था, वैसा ही फल उदय में आया।

किसी भी कार्य के दो कारण हैं- अंतरंग (कर्म होता है), बाहर में सामने वाला कार्य होता है जो रोक लगा रहा है या कुछ भी कर रहा है। वैसे कहा है कोई भी कर्म तब तक फल नहीं दे सकता, जब तक उसके अनुसार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव प्राप्त न हो। और यदि उसके अनुसार यह न मिले तो कर्म बिना फल दिये भी निकल जाता है।
जैन संस्कृति बचाने के लिये 4 लेवल फार्मूला

डॉ. अनुपम जैन, इंदौर : यह आयोजन बहुत महत्वपूर्ण है और इसे व्यापक सार्थकता देने के लिये और लंबे समय तक इसकी गूंज सुनाई देती रहे इसके लिये जो माताजी ने अभी प्रयोगशाला का सुझाव दिया, वह बहुत महत्वपूर्ण है।
पर्यूषण पर्व का जैन समाज में बड़ा महत्व है। जैन समाज के लिये ये अनादिनिधन पर्व है। इन दिनों जैन समाज में उत्साह देखते ही बनता है। कोई भी मंदिर, स्थानक, उपासना स्थल छोटा पड़ जाता है। इसलिये एक बहुत बड़ी तादाद हमारे समाज के भाई-बहिन की ऐसी है जो केवल पर्यूषण के दिनों में ही अपने जैनत्व को जागृत कर पाती है। कुछ दिन 8 दिन और कुछ 10 दिन, ये मिलाकर हमें 18 दिन तक आत्मचिंतन, आत्मशोधन और अपनी संस्कृति को जानने और समझने का अवसर जो महावीर फाउंडेशन ने दिया है, ये बहुत ही महत्वपूर्ण है और मैं कहता हूं कि जैन एकता के लिये कुछ वर्ष पूर्व आचार्य महाश्रमण ने संवत्सरी को एक करने को कहा था। आचार्य शिवमुनि जी और आ. रामलाल जी महाराज साहब जिस बात पर सहमति दे दीजिए मैं उनके साथ हूं।

आज जो 18 दिवसीय आयोजन का प्रकल्प जो पिछले वर्ष शुरू किया गया, यह जैन एकता के लिये आधारभूमि तैयार करेगा क्योंकि कुछ लोग कहते हैं कि हमारी परंपरा छूट जाएगी। ऐसा कुछ नहीं है? 10 वर्ष पूर्व माताजी ने हमें फार्मूला बताया था कि जो जिस परम्परा में जो जिस गुरु के साथ जुड़ा हुआ है और अपनी परंपरा और जो भावना है वह अपनी परंपरा का निर्वाह करें – यह पहला लेवल है। दूसरा लेवल है कि चाहे वह किस परंपरा का व्यक्ति है, वह अगर श्वेतांबर तो श्वेतांबर के साथ रहे और दिगंबर अपने परंपरा के साथ रहे। तीसरा लेवल है हो सकता है बहुत से ऐसे काम है जहां दिगंबर – श्वेतांबर की कोई बात नहीं। जैसे सल्लेखना, साधुओं की निहार चर्या, पिच्छी की बात आई थी – ये ऐसे मुद्दे हैं जिनमें दिगंबर और श्वेतांबर एक होकर एक मंच पर आकर जैसे भगवान महावीर देशना फाउंडेशन इसके मंच पर आकर के दिगंबर और श्वेतंबर अपना-अपना मत और अपना-अपना पंथ बनाये रखें कि समग्र रूप से शासन और प्रशासन के साथ जाकर अपनी बात रख सकते हैं।

चौथा लेवल है – चाहे स्वामी नारायण के लोग या जयुपर के लोग हों, जो शाकाहारी हैं, पशु हिंसा के विरोधी उन सब लोगों को, माहेश्वरी समाज के लोग हैं, और भी ऐसी सम्प्रदाय के लोग हैं जो शुद्ध शाकाहारी हैं, अहिंसा को मानते हैं, उन सबको लेकर के भारत की राजनीति को प्रभावी कर सकते हैं। यह आज की आवश्यकता है। अगर हम संगठित नहीं होंगे तो हमारे तीर्थ, हमारी परम्पराएं, हमारी संस्कृति सब असुरक्षित हो जाएंगे, और इसके दुष्परिणाम हम देख रहे हैं। जहां हम एक हुए हैं, वहां हमें विजय मिली हैं। इस पर्यूषण की पुनीत बेला में यह जरूरी है कि हम भ. महावीर देशना फाउंडेशन जैसे संगठनों के साथ जुड़कर के इसमें पहल करें, संवत्सरी को एक करने की कोशिश करें। 18 दिन के पर्यूषण हर साल मनायें।

आज विश्व की जो समस्यायें हैं, उसके मूल में क्षमा भाव के पुरोहित हो जाना ही है। क्षमाशील होंगे, तो क्रोध नहीं आएगा। क्षमा से अहिंसा आती है और अहिंसा से दुनिया की तमाम समस्याओं का हल हो सकता है, और अहिंसा बिना क्षमा के नहीं आ सकती है। इसीलिये अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र ने प्रोजेक्ट आॅफ फोरगिवनेस शुरू किया है। वो जानती है कि जो व्यक्ति क्षमाशील होगा उसका मस्तिष्क उर्वरक होगा, उसमें नये शोध और विचार आ सकेंगे।

कभी प्रक्रिमण नहीं किया तो सांवत्सरिक प्रतिक्रमण तो कर लो
वर्ना शुभ गति नहीं मिलेगी

उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म. : संवत्सरी पर्व आत्मशुद्धि का पर्व है। हमारे यहां साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका के लिये प्रतिक्रमण करने का विधान है। अपने पाप दोषों की मिच्छामि दुक्ड़म् देने के लिये साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका प्रतिदिन सुबह-शाम प्रतिक्रमण करें। कहा गया है कि कभी किसी कारण से प्रमादवश प्रतिक्रमण प्रतिदिन न दे पाए तो पन्द्रह दिन के बाद जब पक्ष परिवर्तित होता है, उस समय प्रतिक्रमण करे। किसी प्रमाद और कषाय के वशीभूत कोई यदि पन्द्रह दिनों में प्रतिक्रमण नहीं करता तो चार महीने चातुर्मास में प्रतिक्रमण करें और प्रबल कषाय के वशीभूत यदि चातुर्मासिक प्रतिक्रमण नहीं करता तो कम से कम सांवत्सरिक प्रतिक्रमण कर के चार गति चौरासी लाख जीवा योनी के साथ क्षमा भाव प्रकट करें, क्षमा मांगे और क्षमा प्रदान करें। और जो इसका भी अतिक्रमण कर जाता है, उसकी शुभ गति होनी बहुत कठिन है। इसलिये संवत्सरी महापर्व क्षमा का पर्व है, इसके साथ क्षमा का भाव जुड़ा है और हमारे दिगंबरी परंपरा के अंदर जब दशलक्षण पर्वों का शुभारंभ होता है, उसमें प्रथम धर्म क्षमा का है। क्षमा पूरी दुनिया का ऐसा अनूठा पर्व है कि बाकि के अनेक विषम को लेकर पर्व – त्यौहार मनाए जाते है। लेकिन जैन समाज को छोड़कर कहीं पर भी क्षमा भाव को लेकर कोई पर्व नहीं मनाया जाता है। जैन समाज इस पर्व की गरिमा को बना करके रखे और उसको विश्व व्यापी बनाने की कोशिश करें। पूरी दुनिया में आज जो हिंसा और आतंकवाद का बोलबाला है, उसमें क्षमा याचना के भावों को बढ़ाने की बहुत-बहुत आवश्यकता है।

साधु के लिये कहा जाता है कि साधु के द्वारा किसी के प्रति मान लो किसी के प्रति द्वेष भावना आ गई है, तो साधु व श्रमण जब तक क्षमायाचना न कर ले तो आहार-पानी-भोजन ग्रहण न करें, स्वाध्याय न करें, शौच की क्रिया से निवृत न हो, पहले क्षमायाचना कर लें। यदि वह व्यक्ति सामने है नहीं तो भाव रूप से क्षमायाचना उसे मांग ही लेनी चाहिए।

यदि आप व्यापक अध्ययन करें और थोड़ा सा ग्रंथों का आलोडन- विलोडन करें तो दस धर्मों का विवरण श्वेतांबर-दिगंबर दोनों परम्परा में हैं। बस ये होता है काल क्रम से चले आ रहे पर्व, मन मानस पर छा जाते हैं और व्यक्ति समझता है कि शायद ऐसा यहां ही वर्णन है। श्वेतांबर ग्रंथों में स्थानांग सूत्र है उसके पांचवें ठाणे में दस धर्मों के दो रूपों में प्रस्तुत किया है, वहां इसका अच्छा वर्णन है। ऐसे और भी ग्रंथ है जिसमें इनका वर्णन है। तत्वार्थ सूत्र में बहुत अच्छा विशलेषण किया है। तो हम मानकर चलें कि दस के दस सूत्र मात्र जैन के लिये ही नहीं, मानव मात्र के लिये उपयोगी हैं, बशर्ते इनका प्रचार बढ़ें। इनके आर्टिकल राष्ट्रीय अखबारों में जाएं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जो हिंदी साहित्य के भारी समालोचक थे, उन्होंने कहा था कि वैर विरोध जो है क्रोध का आचार है। किसी चीज का हम आचार डालते हैं जैसे, तो क्रोध का आचार है वैर-विरोध। क्रोध का मुरब्बा है वैर – विरोध। आज पूरी दुनिया में, संघों में, समाजों में, व्यक्तियों में वैर-विरोध बहुत देखने में आ रहा है। आज की नई पीढ़ी तो इस सूत्र की बहुत गिरफ्त में आ गई है, वह जैसा को तैसा वाली नीति अपनाने लगे हैं लेकिन ऐसे लोग क्षमाभाव नहीं अपना सकता। हमें जैसे को तैसे वाली नीति को काट पेश करनी है और क्षमा धर्म को हमें बढ़ाना है। क्षमा कायर नहीं बहादुर लोग ही दे सकते हैं।

तालिबान जैसा हमारा हाल न हो
विकल्प निकालो और एक राह पकड़ लो

डायरेक्टर श्री अनिल जैन : आज के इस स्मरणीय त्रिवेणी अनूठे दिवस पर समस्त गुरुजनों के सान्निध्य में मैत्री के मसीहें अपनी आत्मा का शोधन कर रहे हैं। 8 और 10 गणित की देन है, तो क्यों न 18 भी गणित की देन बन जाए। तो ये बहुत बड़ी जो हमारे बीच की दूरी है, हम चतुर्थी को भी बनाएं, पंचमी को भी मनाए, अनंतचौदस के बाद भी मनाएं, तो संवत्सरी के रूप में उत्तम क्षमा के रूप में हम इस कार्यक्रम को जितनी बार मनायें, उतना ही हमारा शायद आत्मचिंतन और आत्म कल्याण हो सकता है, ऐसा संदेश इस सभा ने हमें दिया है। एक बात समझ में आई है कि श्रमण संस्कृति में त्याग का जो स्वरूप है और उसके साथ अनेक क्रियाएं हैं, साथ में अनेक परम्पराएं हैं, इन सबको अपनाने के लिये कई किस्म की सावधानियां हैं। कहीं हमने इसको धर्म और जाति के साथ तो नहीं जोड़ दिया, किसी पंथ से नहीं जोड़ दिया। यदि हम आज भी नहीं सुधरे तो जो हाल आज हम तालिबान में देख रहे हैं, यदि हम संगठित नहीं हुई तो निश्चित रूप से हमें आने वाले समय में असुरक्षित हो जाएंगे।

हम सब यहां बैठकर एक प्रयोग कर रहे हैं। एक-दूसरे की बात सुनते हैं और साइंटेफिक रूप से एनालिसिस करते हैं। वैज्ञानिक रूप से आज इस मंच जो गुणी, प्रबुद्ध जनों का मंच है, इतिहास जानते हैं, गणित भी जानते हैं, उनसे निवेदन रहेगा कि हमें अगले 10 दिनों में मौके मिलेंगे कि हम कहीं न कहीं आत्म चिंतन, आत्ममंथन करें और ऐसे विकल्प को ढूंढकर बाहर निकालें कि हम अगले वर्ष से नहीं, 18वें दिन से ही एक हो जाएंगे और 18 दिन बाद हम सब मिलकर एक ही रास्त पकड़े, एक ही राह पर आगे चलें।
( Day 8 समाप्त)