भगवान की भक्ति से सुंदर रूप मिलता है, शरीर लंबा -ठिगना , गोरा -काला, मोटा-पतला -कुछ भी हमारे हाथ में नहीं

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ऋजुता, सरलता से अशुभ नाम कर्म का क्षय होता है

भगवान महावीर देशना फाउण्डेशन
18 दिवसीय पर्यूषण पर्व 2021 का 7वां दिवस नाम कर्म निर्जरा
सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 10 सितंबर 2021

संयोजक श्री राजेन्द्र जैन ने सभा का शुभारंभ करते हुए मंच पर होने वाले संतों एवं विद्वत वर्ग के उद्बोधन के बारे में जाानकारी दी। भगवान महावीर देशना फाउंडेशन आयोजन समिति के अंतर्गत 18 दिवसीय पर्यूषण महापर्व मनाये जा रहे हैं। निदेशक मंडल बहुत ही समृद्ध और विचारों की एकता की मिसाल है, उसमें आदरणीय श्री सुभाष जैन ओसवाल, अनिल जैन एफसीए दिल्ली, राजीव जैन सीए दिल्ली एवं मनोज जैन, दिल्ली – ये चारों निदेशक लगातार दूसरे वर्ष 18 दिवसीय पर्यूषण महापर्व को मनाने का उपक्रम कर रहे हैं। सब चाहते हैं जैन एकता हो, जैन धर्म के विचारों की जो प्रभावना है, वह जन-जन तक पहुंचे। हम एक हो जाएं और जैन विचारों के माध्यम से हम पहचाने जाएं।

हमारा विचार एक है – अहिंसा, आहार एक – शाकाहार, हम सब एक और एकता के महापर्व 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व का आज 7वां दिन मना रहे हैं जिसमें नाम कर्म की निर्जरा के बारे में जानेंगे।

डायेरक्टर श्री मनोज जैन : भगवान महावीर का जयघोष करते हुए णमोकार महामंत्र की महिमा इन पंक्तियों से प्रारंभ कर महामंत्र का वाचन किया –
मंत्र नवकार हमें प्राणों से प्यारा है
ये वो है जहां, जिसने लाखों का तारा है, मंत्र नवकार हमें प्राणों से प्यारा है…
विकर्षण नहीं, आकर्षण नहीं, हमें तटस्थ भूमिका चाहिए

महासाध्वी श्री मधु स्मिता – प्रीति सुधा जी म. : पूरा जैन समाज णमोकार महामंत्र का जाप बड़ी श्रद्धा से करता है। ऐसे नवकार जाप करने वाले लोग कैसे टूट सकते हैं? जुड़ जाएं टूटे धागे, सोये भाग जागे। पूरा जैन समाज हमारा सम्पन्न समाज है, पूरे समाज एक तत्व को मानने, एक भगवान को, एक महामंत्र को मानने वाला है। हम एक-दूसरे की विपरीत चर्चा नहीं करें, किसी प्रकार से हम एक-दूसरे को छोटा बताने की कोशिश न करें। हमें जो वैभव मिला है, उसका गैर-उपयोग न करें। उसके निमित्त से कर्मों का बंध न करें।

शरीर-इंद्रीय के निमित्त से कोई बंध न करें और अपने आपको सावधान रखें, यही हमारी साधना है। जिस प्रकार में हम संतों की आहारचर्या में सावधान रहते हैं, उसी तरह हमें हर कार्य में जागरूक होकर रहना चाहिए। हम अगर पाप की तरफ आकर्षित हो रहे हैं, तो तुरंत अपने आप को रोक लेना। विकर्षण भी नहीं और आकर्षण भी नहीं चाहिए, हमें तटस्थ भूमिका रही और ज्ञातादृष्टा बन गये तो नये कर्मों का बंध नहीं होगा।
हमारा पर्यूषण 18 दिन का है, हम आठ पर नहीं रुकेंगे और अगले 10 दिन भी मनाएंगे। हम 18 दिन का पर्यूषण ही मनाएंगे। हमें इस मंच पर अच्छे विचार सुनने को मिल रहे हैं।

आचार्य श्री देवनंदी जी महाराज : पर्वराज पर्यूषण पर्व की हम सभी मिल-जुलकर चर्चाएं कर रहे हैं, जिससे हमारी समाज एक सूत्र में बंध हो सके और भ. महावीर के संदेश के उपदेशों को आत्मसार कर अपने परिवार, समाज और देशवासियों के कल्याणक के साथ-साथ समूचे विश्व की कल्याण भावना कर सके, ये पवित्र भावना हमारे इस पर्वराज पर्यूषण पर्व में है। इस पर्व में आध्यात्किम शुद्धि के साथ आज आठवें दिन हम नाम कर्म की चर्चा कर रहे हैं। ये नाम कर्म किसी का पता या परिचय नहीं है। नाम कर्म वह कर्म है जिसके कारण हमें विविध गतियों में शरीर की विविध रचनायें प्राप्त होती है। जब कोई नरक में जाता है तो उसे नरक गति नाम कर्म का उदय रहता है। इसी तरह तिर्यंच, मनुष्य और देव नाम कर्म का उदय रहता है। असंख्य मनुष्य हैं, लेकिन एक मनुष्य दूसरे से भिन्न हैं। इस भिन्नता का कारण है नाम कर्म। यह चित्रकार के समान है, जैसे वह अपनी आर्ट से विभिन्न चित्र बनाकर मनोरंजित करता है, इसी तरह नाम कर्म विभिन्न प्रकार के शरीरों की रचना कराता है।

संसारी रंगमंच पर होने वाले नाटक के कोई प्रेक्षक हैं तो वे हैं अरिहंत भगवान है, जो अपने सर्वज्ञता से, केवलज्ञान से संसारभर के समस्त चराचर पदार्थों को, जीवों के इस विविध प्रकार की संसार भ्रमण वाली प्रक्रिया को बहुत अच्छी तरीके से देखते हैं। जीव संसार रूपी रंगमंच पर नृत्य कर रहा है, नाना-प्रकार के शरीर धारण करता है। ये विभिन्न शरीर हमें नाम कर्म के बंध के कारण धारण किया है। कभी ये नाम कर्म की व्यवस्था हमें उच्च गति में तो कभी निचवी गतियों मे ंले जाती है। कभी हम ऐसी जगह चले जाते हैं जहां जीव-आत्मा का बोध नहीं हो सकता है। कभी-कभी हमारे पुण्य कर्म का उदय आता है, तो हम देव गति को प्राप्त हो जाते हैं, लेकिन देव के वैभव भी प्राप्त करने पर हम आत्म कल्याण करने से वंचित हो जाते हैं, कभी हम मनुष्य जन्म को भी प्राप्त होते हैं, लेकिन यहां भी कभी हमें ऐसी भूमिका नहीं मिल पाती है, जहां देव शास्त्र गुरु का सान्निध्य प्राप्त कर सम्यक्त्व की भूमिका में आ सके।

नाम कर्म से कभी शुभ शरीर मिलता है, अंग सुंदर मिलते हैं, लोग गुणगान करते हैं। शुभ नाम कर्म के उदय के कारण हमारे शरीर की धातु-उपधातुएं अपने ठिकाने पर रहती हैं और हम स्वस्थता अनुभव करते हैं। कभी हमारा शरीर कुरूप, विकलांग, अपंग होता है, किसी इन्द्रीय में दोष होता है, इन सबमें नाम कर्म की भूमिका है। जब हमारा अशुभ नाम कर्म का उदय होता है तो शरीर एकदम कुरूप होता है। इसका कारण है – जब कोई व्यक्ति अपने मन-वचन-काय की कुटिलता करता है, उल्टा-पुल्टा करता है, मन में कुछ, शरीर से कुछ करता है, ऐसे को दुर्रात्मा कहा है। उनके लिए अशुभ नाम कर्म का बंध होता है। जो स्वर्ग-मोक्ष की क्रियाएं लेकर आचरण कर रहे हैं, उसमें कोई बाधा बनता है, भक्ति करने से रोके, सामाजिक कार्य करने में रुकावट डालें तो उनके लिये अशुभ नाम कर्म का बंध होता है। इस बंध के कारण फिर वे अपने जीवन में अच्छे कार्य नहीं कर सकते हैं।

शुभ नाम कर्म के लिये धार्मिक पुरुषों और स्थानों का दर्शन करें, गुरुजनों का आदर-सत्कार करें, साधर्मियों के प्रति सद्भाव रखें, अपने जीवन में कोई छोटा-बड़ा व्रत नियम संयम लें, संसार शरीर भोगों से हम विरक्त रहें, प्रमाद का त्याग कर व्रतों का पालन करें, देव पूजा, गुरुपास्ति करें, मंदिर बनायें जिससे धर्म साधना कर सकें, एक-दूसरे से हित मित प्रिय वचन बोले, पाप रहित अपनी आजीविका चलायें, तो निश्चित अशुभ नाम कर्म की निर्जरा हो सकेगी।

डॉ. महेश कुमार जैन, भोपाल : भ. महावीर देशना का कार्यक्रम भविष्य में मील का पत्थर बनेगा। हम अभी तक केवल उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल को लेकर चर्चा किया करते थे, अब हमारी कभी जब भविष्य की चर्चा होगी तो यह भी होगी की महावीर देशना ने 18 दिवसीय कार्यक्रम चालू किया था, ये निश्चित ही एक युगांतर का रूप आगे चलकर मील का पत्थर बनेगा।

अगर आज नाम कर्म समझ में आ जाए तो विश्व के सारे कास्मेटिक, ब्यूटी पार्लर बंद हो जाएं, क्योंकि हमें लगता है कि हम क्रीम-पाउडर लगाकर सांवले से गौरे हो जाएं। लेकिन नाम कर्म ही हमें गोरा-काला करता है। नाम कर्म की 93 प्रकृतियों में से जैसी हमारी प्रकृति होगी, वैसी हमारी आकृति होगी। अंदर के परिणाम अगर कुटिलता है, तो हम शरीर को सुगम नहीं बना सकते। हम केवल अपने परिणामों में ही परिवर्तन कर सकते हैं। हमें अपने भावों को सुधारना है। हमने जैसे कर्म किये होंगे, तदानुसार हमें शरीर मिला है। 18 दिन हमने आत्मा की चर्चा की और वर्ष के शेष दिनों में शरीर को संभालते हैं। हमें सुधार बाहर नहीं, अंदर में करना है। जितनी सरलता हमारे में होगी, उतना हमारा शरीर सुंदर होगा।

श्री प्रकाश जैन, जयपुर : शुभ नाम कर्म हमें कोई बाधा नहीं देता। जैन आगम में पाप कर्मों के क्षय की बात आती है। पुण्य तो हमें आगे बढ़ाने में सहायता करता है और स्वयं अपने आप खत्म हो जाता है। अशुभ नाम कर्म के बंध के कारणों में मन वचन काया की वक्रता और विसंवाद सहितता ये आगमों के अंदर मुख्य रूप से कारण बतायें। अगर हम आलोचना का सहारा लेते हैं, जिसमें व्यक्ति के द्वारा जो गल्तियां हो गई है, उनका निरीक्षण कर उनके प्रति खेद प्रकट करना – ये आलोचना की पद्धति है। अशुभ नाम कर्म के बंध में मुख्य कारण माया है, वक्रता। चाहे वह मन की हो, वचन की, काया की या भावों की। उस वक्रता को हटाने के लिये आलोचना का उपाय है। अपने जीवन में सरलता को स्थान दें। वक्रता घटेगी तभी सरलता आएगी और वही अशुभ नाम कर्म की निर्जरा में मदद करेगा। माया का क्षय करने से ऋजुता आती है और ऋजुता आने से जीवन में सरलता प्रवेश करती है।

गणिनी आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण माताजी : नाम कर्म का मुख्य कारण है शरीर की रचना करना। मां के गर्भ में शरीर का निर्माण होता है। कर्मों के अनुसार देखा जाए, तो मां निमित्त है लेकिन बच्चे के शरीर का निर्माण नाम कर्म से हुआ है। जैसे एक मकान बनाने में आर्किटेक्ट, इंजीनियर, कारीगर, डिजाइनर, लेबर सब अलग-अलग अपना-अपना कार्य करते हैं इसी प्रकार शरीर के एक – एक अंग, एक-एक उपांग, हड्डियों को बनाना, नसों को बनाना, अंदर शक्ति पैदा करना सबका अपना-अपना कार्य क्षेत्र अलग-अलग है, हर कर्म अपना-अपना काम करता है।

शरीर लंबा होना है, ठिगना होना है, गोरा -काला होना है, मोटा-पताल होना है, आंखें बढ़ी होनी है या छोटी, बाल कैसे होने कुछ भी हमारे हाथ में नहीं है, सारा का सारा काम मात्र नाम कर्म ही करता है। जो भगवान की भक्ति करता है, उसे सुंदर रूप की प्राप्ति होती है। वर्तमान समय में आज इस शरीर के रूप के पीछे पागल जो लोग हैं, वो दुनिया भर की चीजों का इस्तेमाल करते हैं, और उसके माध्यम से सुंदर बनना चाहते हैं, लेकिन जब तक नाम कर्म सुंदर नहीं होगा, तब तक यह शरीर सुंदर नहीं बनेगा। शरीर को सुंदर बनाने के लिये आत्मा को सुंदर बनाना होगा। भगवान की वाणी सिद्धांत एक ही हैं, तब उसका फल भी एक है और भगवान महावीर भी एक ही हैं। तो सभी मिलकर के आज आवश्यकता है कि सब एक होकर बंधी मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की। मिलकर रहेंगे तो शक्ति बढ़ती है और अलग-अलग रहेंगे तो शक्ति कमजोर हो जाएगी।

चार की टीम लेकर चली एकता की जोत

डायेरक्टर श्री सुभाष जैन ओसवाल : इस मंच की पृष्ठभूमि के पीछे सबसे बड़ा योगदान परम श्रद्धेय उपाध्याय रविन्द्र मुनि जी महाराज क्योंकि वे जैन एकता के बहुत बड़े पक्षधर हैं, जिनकी भावना – विचार इस रूप से हैं कि हम सब जैन क्यों ने एक मंच पर आएं। उसी सपना को साकार करने के लिये पिछले वर्ष आचार्य शिवमुनि जी म., आचार्य श्री प्रज्ञसागरजी, देवनंदी जी महाराज, नित्यानंद जी म., नम्र मुनि जी म. अनेक संतों का हमें इसपर आशीर्वाद मिला और इस संस्था को हमने विधिवत रूप से आरंभ किया। चार डायरेक्टर हैं इस संस्था के और इसे कंपनी एक्ट में रजिस्टर कराया। हमारे साथी चार्टर्ड एकाउंटेट अनिल जैन, युवा नेता मनोज जैन और स्वाध्यायी राजीव जैन सीए के साथ मिलकर हम चारों ने मिलकर एक कल्पना, योजना बनाई कि एक ऐसा मंच बनना चाहिए जो जैन संगठन के लिये, सामाजिक एकता के लिये, समाज में उस वर्ग को आगे लाने का काम करना चाहिए, जो हमसे दूर जा रहा है। आज हमारा यह मंच इस बात का प्रतीक बन गया कि हम किस रूप से स्वाध्यायियों को, विद्वानों को बिना की सम्प्रदाय के, बिना किसी मतभेद के हर रोज प्रस्तुत कर रहे हैं। हमारी यही सोच बनी कि अगर आज जैन जगत में विद्वानों का आदर नहीं होगा, तो हमारी परम्पराओं, धर्म की रक्षा कौन करेगा? इसी भावना को लेकर हमने इस मंच का गठन किया। 18 दिन यह कार्यक्रम बहुत भव्यता से चल रहा है। कार्यक्रम संचालन के लिये हमने एक संयोजक समिति का गठन किया।

हमारे अंदर जुड़ने के जब भाव आते हैं, हमारे अंदर महावीर होता है

पूज्य श्री रमणीक मुनि जी महाराज : फाउंडेशन से जुड़े सभी लोगों से मैं हृदय से अभिनंदन करता हूं, उनकी मानसिकता को नमन करता हूं। जब भी हमारे अंदर जुड़ने के भाव आते हैं, हमारे अंदर महावीर होता है। जैन धर्म जो है वो भाव प्रधान है, क्रिया प्रधान नहीं। हम लोगों का डिवीजन क्रियाओं के आधार पर है, भाव के आधार पर नहीं। भाव में अगर महावीर है तो क्रिया गौण हो जाता है और जब क्रिया मुख्य हो जाता है, तो महावीर गौण हो जाता है। हर परंपरा की अपनी व्यवस्थायें हैं, उन व्यवस्थाओं का पालन करने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन उन क्रियाओं को ही मुख्य मानना और उन क्रिया के आधार पर बंटवारा करने की कोशिश करना, ये हमारे अशुभ नाम कर्म का उदय करने वाला है और अशुभ गति में ले जाने वाला है।

ये बात अगर हमारे अंदर जच गई, फिट हो गई तो सच कहता हूं हर व्यक्ति महावीर से जुड़ेगा, जो महावीर से जुड़ेगा वह अरिहंत से जुड़ेगा और जो अरिहंत से जुड़ेगा वह आत्मा से जुड़ेगा। जिन शासन में मानव को महामान, वीर को महावीर, आत्मा को परमात्मा बनने की प्रेरणा दी है। यह प्रेरणा भाव प्रधान है। जो दौलत पर भरोसा करते हैं मैं उन्हें नास्तिक कहता हूं, जो पुण्य – कर्म पर भरोसा करते हैं उन्हें आस्तिक कहता हूं। लेकिन जो प्रेम और मैत्री पर भरोसा करता है, उसे मैं धर्मात्मा – जैन कहता हूं।

आपने जीवन की किताब को ढंग से न पढ़ा और न लिखा तो यह टिशयू पेपर समान बन जाएगी। जो भी आपकी क्रियाओं से जुड़ी हुई मानसिकता है उससे आपके नाम कर्म का निर्माण होने वाला है। हमारी जिंदगी एक गाड़ी और दिल ड्राइवर है। आपने दिल में महावीर को ड्राइवर बना लिया तो आपको कही रोकने-टोकने वाला नहीं होगा। कर्म भी आपको कहीं चैक नहीं करेंगे, यही ताकत है महावीर की। इस पवित्र मुहिम से मंच पर उपस्थित एक-एक को नमन करता हूं, क्योंकि उनका विश्वास एकता में, जोड़ने में है। जोड़ने वाली जितनी भी मानसिकता है, उनको मैं हृदय से अनुमोदना करता हूं और आप सचमुच महावीर पथ के अनुगामी है, मैत्री के मसीहे हैं। जैन धर्म वह है जहां मोहनीय कर्म को मैत्री भाव में तब्दील करने की प्रेरणा और साधना दी जाती है, क्योंकि मोहनीय कर्म एक महारोग है, मैत्री भाव महाओस भी है, अगर मोहनीय कर्म कमजोर करना है तो मैत्री भाव से हो सकता है।

छल-कपट के भाव छोड़ो, ऋजुता लाओ

उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म. : देशना फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित 18 दिवसीय पावन पर्यूषण पर्व की भव्य संयोजना चल रही है, प्रतिदिन नए-नए वक्ताओं का आगमन हो रहा है, और निर्धारित प्रवचन माला पर बहुत अच्छे से हर वक्ता अपनी तरह से आगमानुसार प्रदान कर रहे हैं। पूरी दुनिया में लाख चाहने के बावजूद एक रूपता देखना में नहीं आती। कोई सुंदर है, बदसूरत है, कोई काला, कोई गोरा है, किसी को यश, किसी को अपयश तो कोई सौभाग्यशाली, कोई दुर्भाग्यशाली है, अनेक प्रकार की विपरीतताएं हम इस दुनिया में देखते हैं और ये जो भिन्नताएं हैं, इन भिन्नताओं का कारण नाम कर्म है। इसे चित्रकार की उपमा दी गई है।

वह अच्छा चित्र भी बनाता है, डरावने भी। शुभ नाम कर्म बंध के 4 कारण हैं – काया की ऋजुता, भाषा की ऋजुता, भावों की ऋजुता, अविसंवादेन योग्य (कथनी करनी में समानता)। ऋजुता कहते हैं सरलता को। इनके आने पर हम अच्छे नाम कर्म के लिये बढ़ जाते हैं। अगर हम छल, कपट, मायाचार का भाव करते हैं तो अच्छा नहीं है। हम अंदर-बाहर की सरलता को लेकर आएं तो अच्छे नाम कर्म का बंध करते हैं।

जैन शब्द एकता लाता है, दिगंबर-श्वेतांबर अनेकता

मुनि श्री प्रज्ञा सागरजी : जैन एकता और नाम कर्म। इस विषय पर हम सभी बैठकर चिंतन कर रहे हैं, मंथन कर रहे हैं। अपने-अपने विचारों से समाज को एक सूत्र में बांधने का सार्थक प्रयास किया जा रहा है। समय एकता और अखंडता का है। समय अखंड भारत और अखंड समाज का है। क्योंकि मुट्ठी बंद है, तो जीवन है। मुट्ठी खुली है तो मृत्यु है, इसलिये एकता जीवन का संदेश देती है। बच्चा पैदा होता है, मुट्ठी बांधकर आता है। देश को भी अपनी मुट्ठी बांध करके रखना चाहिए। बस यही एकता का सबसे बड़ा पैगाम।

बात यदि हाथ खुलने की है, तो हाथ सिर्फ देने के नाम पर खुले तो श्रेष्ठ होगा क्योंकि हाथ हमारे बिखर गये, हम खंड-खंड में विभाजित हो गये तो वह मृत्यु का ही प्रतीक है। भले ही वह मृत्यु हमारी मृत्यु न हो, लेकिन हमारी जाति, कुल की, धर्म, सभ्यता,संस्कृति की मृत्यु है, इसलिये अखंडता और एकता की अनिवार्यता है। बात जैन एकता की। जहां पर जैन शब्द आ जाता है, वहां एकता हो जाता है। जहां दिगंबर – श्वेतांबर -स्थानकवासी – तेरापंथी आते हैं, वहां पर अनेकता हो जाती है। बात एकता की होती है तो हम सब जैन है, जैन थे, जैन रहेंगे।

आज हम सब लोग 18 दिन का महामहोत्सव हमारे द्वारा मनाया जाए, इस भाव के साथ उपस्थित हैं। श्वेतांबर यदि 8 दिन का तो दिगंबर समाज 10 दिन का दशलक्षण पर्व मनाती है। श्वेतांबर के पर्व समाप्त होते हैं और दशलक्षण पर्व प्रारंभ होते हैं। एक विराट सोच कि हम 8 और 10 को संयुक्त करके यह महामहोत्सव करें और जैन एकता का परिचय दें। भ. महावीर देशना फाउंडेशन निश्चित तौर पर एक महत्वपूर्ण पहल कर रहा है कि सभी साधुओं पर एक मंच पर एकत्रित करना, कोरोना काल में जूम चैनल के साधन से हम सब लोग एकसाथ बैठकर अपने विचारों को एक-दूसरे तक पहुंचा सकते हैं। जूम चैनल जैन एकता के साथ झूम चैनल हो जाता है और सब झूमने लगते हैं।
दोनों हाथों से मिल रहा है आशीर्वाद

संयोजक श्री हंसमुख गांधी इंदौर : हमें दोनों हाथों से संतों का आशीर्वाद मिल रहा है, साधुओं की अमृत वर्षा हो रही है। आप सबकी मधुर वाणी से यह जैन एकता प्रफुल्लित होगी और आगे बढ़ती जाएगी। संतों का यह आशीर्वाद रोज हमारे पर बना रहे, समस्त जैन जगत पर आशीर्वाद ऐसा बने कि जैन एकता का बिगुल बज जाए। (Day 7 समाप्त)