पहले 5 दिनों का जबर्दस्त मंथन केंद्रीय संस्थाओं की जैन UNO बनें
भगवान महावीर देशना फाउण्डेशन
18 दिवसीय पर्यूषण पर्व 2021 का 6वां दिवस – आयुष्य कर्म निर्जरा
सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 09 सितंबर 2021
संयोजक श्री हंसमुख जैन इंदौर ने सभा में मौजूद सभी साधु-वृंदों का वंदन करते हुए, अतिथियों, सहयोगियों का अभिनंदन किया और मंच पर विशिष्ट संबोधन देने वाले गुरु भगवंतों तथा विशिष्ट उद्भोदन के लिये पधार रहे बुद्धिजीवियों के बारे में जानकारी दी।
शुभ संकल्पों से शुभ आयु बंध
महासाध्वी श्री मधु स्मिताजी म.: मंगलाचरण निम्न पंक्तियों में कुछ इस तरह प्रस्तुत किया –
कुंडलपुर के लाल तेरी महिमा है अपार
भगवान महावीर नमस्कार, नमस्कार।
भारत का भाग्य जगमगाया फिर से एक बार
भगवान महावीर नमस्कार, नमस्कार।
जय हो, जय हो, जय भगवान।।
त्रिशला की गोद लेके आई फिर से सवेरा
वो आया चारों ओर उजराई-उजेरा
अंधियारी रात बीत गई, भागा अंधेरा
अब टूटने पे आ गया अज्ञान का डेरा
आया था देवलोक से तेजस्वी वह कुमार
भगवान महावीर नमस्कार, नमस्कार।
ओ वीर तू संसार में बेजोड़ वीर था
क्या वीर था, साधु-संयमी सच्चा फकीर था
सागर से गहरे दिल का धरती का धीर था।
तेरे हाथ में बंदूक न कोई भाला-तीर था
पर भी विजय होती रही, तेरी बार-बार
भगवान महावीर नमस्कार, नमस्कार।
महासाध्वी जी ने कहा जिस कर्म से आयु का बंध हो उसे आयुष्य कर्म कहते हैं, जिससे जीव चार गतियों में जाता है – नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव। आयु कर्म की 4 प्रकृतियां हैं और उसके कारण जीव चारों गति चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है, इसलिये शुभ कर्म करने की प्रहुति जो दी जाती है क्योंकि कर्म का आयु का बंध जीवन के एक तिहाई में बांधा जाता है। एक तिहाई में ही आयु का बंध होता है, तब आयु का अगले जन्म के आयु का बंध होता है, इसलिये पंचमी, अष्टमी, ग्याहरस, चर्तुदशी आदि में तपस्या, धर्म-ध्यान किया जाता है, अशुभ कर्म से परे रहा जाता है और अच्छी-अच्छी बातों को शुभ संकल्प किया जाता है ताकि आने वाला आयु बंध शुभ हो।
भगवान महावीर देशना फाउंडेशन देता है जैन वठड का मंच
डायरेक्टर श्री राजीव जैन सीए : भगवान महावीर देशना फाउंडेशन का डायरेक्टर समूह लम्बे समय से जैन समाज में कार्य कर रहे हैं। जैन समाज की पीड़ा है, एक आवश्यकता है, एक कमी है उसको हमने महसूस किया। हमारे पास धर्म स्थान, मंदिर, उपासरे बहुत हैं या यूं कहें कि हमारी पुरानी विरासत है, वो ही इतनी बड़ी है और आज हम संख्या में इतने कम है कि वो उस विरासत को उठाने के काबिल भी नहीं। मैं नहीं कहता कि नये मंदिर-स्थानक नहीं बनाने चाहिए क्योंकि परिवर्तन संसार का नियम है, जरूर बनाने चाहिए। लेकिन कहीं न कहीं पूरे जैन समाज की आवश्यकता है कि ऐसी संस्था, ऐसे मंच का निर्माण हो, जहां सभी जैन आमनाएं अपनी-अपनी साधना पद्धति का पालन करते हुए एक मंच पर अपनी समस्याओं के लिये बैठ सकें।
उदाहरण के तौर पर यूनाइटेड नेशन आर्गनाईजेशन (यूएनओ), क्या यह किसी देश के आंतरिक मामले में दखल देता है, नहीं देता है। लेकिन फिर भी यूएनओ एक ऐसा मंच है जहां विश्व के सभी सदस्य आकर बैठते हैं, सभी को नेतृत्व भी मिलता है और जो बड़ी शक्तियां हैं उन्हें मान्यता भी मिलती है। तो क्या हम जैन समाज की सारी आमनाएं यूएनओ का फॉरमेट बनाकर एक मंच पर नहीं बैठ सकते? जहां उस मंच पर बिना किसी के आंतरिक मामलों में दखल दिये, बिना किसी पूजा-साधना व्यवस्था में दखल दिये, क्या हम एक मंच पर, एक धार्मिक-सामाजिक संगठन के रूप में अपनी समस्याओं के लिये नहीं बैठ सकते? इस मंच की आवश्यकता को देखते हुए भ. महावीर देशना फाउंडेशन का गठन किया गया।
पिछले वर्ष मात्र यह पहला कदम था, जब कोई संस्था हमारे पास नहीं था, एक विचार था। इस विचार को इस वर्ष हमने मूरत रूप दिया, सेक्शन 8 कंपनी मनाई और भगवान महावीर देशना फाउंडेशन का स्वरूप आज पूरे देश, पूरे विश्व के जैन समाज के सामने समर्पित है। एकता का हमारा पहला प्रोजेक्ट 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व। यह एक ऐसा मंच जहां पूरे देश के हमारे संत और समाज शिरोमणि एक मंच पर आकर कमिटमेंट देते हैं कि 18 दिन हमारे, 8 दिन भी हमारे और 10 दिन भी हमारे हैं, तो जैन एकता का यह बिगुल शंखनाद पूरे देश में जाएगा। लेकिन हर वृक्ष के मूल में एक बीज है, और हर संगठन और हर एकता और हर आंदोलन एक विचार से उत्पन्न होता है। तो 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व हमारा पहला विचार है। अनेकों बातें हैं, हम ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते, जो अन्य संगठन कर रहे हैं। हमारे पास जीतो, बीजेएसएस जो चैरिटी, व्यापार, आर्थिक मामलों के केस में बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, लेकिन सामाजिक संगठन के रूप में धार्मिक संगठन के रूप में हमारे पास कोई ऐसी संस्था या विचार उपलब्ध नहीं है।
हमने इस मंच से दूसरा विचार दिया – संत समन्वय समिति यानि भगवान देशना फाउंडेशन के अंतर्गत जूम के माध्यम से, इलैक्ट्रानिक प्लेटफार्म के माध्यम से, हमारे पास एक ऐसा मंच उपलब्ध है जहां पूरे देश के अपने संत शिरोमणियों का एकसाथ संवाद करा सकें। संवाद बड़ी से बड़ी समस्या का निदान कर देता है।
तीसरी अहं आवश्यकता – ये सब विचार हम प्रस्तुत कर रहे हैं, इन विचार पर समुद्र मंथन करेंगे, फिर अमृत निकालेंगे। आज जैन समाज की जितनी भी केन्द्रीय संस्थाएं हैं, क्या यूएनओ जैसा मंच बनाकर वो केन्द्रीय संस्थाएं एक मंच पर अपने समाधान के लिये नहीं बैठ सकती। उनको हम एक केन्द्रीय सेटअप (आॅफिस) प्रदान करें। संस्थाओं के नामिनेटिड लोग उस संस्था को चलाएं, आपस में विचार-विमर्श करें, रोटेशन से प्रधान बनें। संस्थाएं के जो प्रधान में जो मूल जो केन्द्रीय बड़ी संस्थायें हैं चाहे वह दिगंबर की हो, स्थानकवासी , मूर्तिपूजक, तेरहपंथ की केंद्रीय संस्था हो, इन संस्थाओं को सिक्योरिटी काउंसिल जैसा रूप दिया जाए। संस्थाओं के प्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। यह तीसरा विचार भगवान महावीर फाउंडेशन का है।
आयुष्य कर्म पैरों में पड़ी बेड़ी के समान है
उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म. – मंच पर प्रतिदिन प्रबुद्ध चिंतनशील नये-नये चेहरे आकर अपना चिंतन, समाज के हित की बाती, सामूहिक रूप से चर्चा-वर्ताएं चल रही हैं जो समाज को अच्छी दिशा में लेकर चलेंगे। 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व में प्रथम चरण में आज चर्चा में आयु कर्म क्या है? हमारा जन्म है तो हमारी मृत्यु भी है और मरण की स्थिति हम अलग-अलग देखते हैं। कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो मां के गर्भ में ही मृत्यु को प्राप्त कर जाते हैं और कुछ जन्म के कुछ ही घंटों में चले जाते हैं, कुछ भरी जवानी में दुनिया छोड़ जाते हैं और कुछ 100-100 साल की उम्र भी प्राप्त करते हैं।
जैसे जेल में कैदी बंद है, वह जेल से बाहर आना चाहता है लेकिन आ नहीं पाता क्योंकि जब तक उसकी जेल की अवधि पूर्ण नहीं होगी, वह बाहर नहीं आएगा। इसी प्रकार जीव के अपने-अपने भव की जब तक स्थिति आयु पूरी नहीं होती, तो वह दूसरे जन्म, यानि वह दूसरी गति में नहीं जाएगा, चाहे वह कितना ही प्रयत्न करेगा। गोम्मटसार में कहा यह पैर में बेड़ी के समान है। बेड़ी में व्यक्ति छटपटा जा रहा है, लेकिन जब तक बेड़ी टूटती या खुलती नहीं, वह अन्य स्थान पर यानि अन्य गति में नहीं जाता। गरीबी, बीमारी, भय आतंक से बहुत सारे लोग दुखी रहते हैं और कहते हैं कि मुझे मौत क्यों नहीं आ जाती? लेकिन मौत किसी के चाहने मात्र से नहीं आती, जब तक वह अपनी आयु को भोग नहीं लेता।
अगले भव का आयुष्य कर्म जीव कब बांधता है? ऐसा कहते हैं कि जिस भव में वो है, उस भव के टोटल आयु का जब तिहाई हिस्सा, तीसरे हिस्से में प्रवेश करता है तब उसका आयुष्य कर्म बंधता है, खासतौर मनुष्य और पंचेन्द्रीय में। 90 साल की उम्र है तो 60 और 90 के बीच की उम्र जब चल रही है तब कभी भी आयुष्य कर्म का बंध हो सकता है। देवता और नारकी जब इनकी उम्र छह महीने रहती है, तब छह महीने के दौरान इनका अगली गली का आयुष्य कर्म का बंध होता है।
आकस्मिक मृत्यु क्यों और कब होती है? आयु के दो प्रकार होते हैं, अनपवर्तनीय मतलब जो आयु पूरी भोगी जाती है, बीच में नहीं टूटती और दूसरी अपवर्तनीय जिसमें पविर्तन संभव है, जो बीच में टूट सकती है। इस प्रकार खंडित होने वाली घटनायें हम बहुत देखते हैं। बहुत कारणों से जैसे बीमारी, अचानक गिर जाना, एक्सीडेंट, विष भक्षण, तलवार से काट देना – कई कारणों से ऐसा हो जाता है।
4 गतियों के कर्म बंध और किस कारण से उन गतियों में जाता है? सभी गतियों में जाने के 4-4 कारण ग्रंथों में बताए गए हैं। व्यवहारिक दृष्टि से कहा जाए तो जो जैन धर्म मत को जानता है, सुनता है, स्वाध्याय करता है, उसे धीरे-धीरे कर्मों के बारे में बोध हो जाता है। हमें स्वाध्याय करके बेसिक सिद्धांतों को समझे, जैन तत्वों बोध की प्राप्ति करने में प्रयत्नशील रहना चाहिए, ऐसा करेंगे तो आपका जीवन सुंदर और प्रभावशाली बनेगा।
समाज के विकास के लिये एकता ही मूल मंत्र है
श्री जिनेश्वर जैन, इंदौर : कहते हैं संगठन में ही शक्ति होती है। ये वाक्य जितना छोटा दिखाई देता है, वास्तव में उतना छोटा नहीं। प्रत्येक समाज के लिये और प्रत्येक कार्य के लिये यह सफलता का मूल मंत्र है। प्रत्येक समाज की उन्नति, उस समाज की एकता में निहित होती है। जिस समाज में एकता, संगठन नहीं, वह समाज कभी भी विकास की राह में दौड़ नहीं सकता। इतिहास गवाह है कि बिना एकता और संगठन के उस समाज का कभी भी महत्व दिखाई नहीं देता। व्यक्ति किसी वस्तु को जो नीचे गिर जाती है, यदि उसे उठाना चाहता है, तो वह एक अंगुली से नहीं उठा सकता और अगर वह पांचों उंगलियों को मिलाकर उठाता है तो वह भारी से भारी वस्तु को उठा सकता है, उसी प्रकार आज समाज को एकता की आवश्यकता है। जैन समाज की एकता के बारे में हमें गंभीरता से विचार करना चाहिये। भ. महावीर ने जैन धर्म की जब स्थापना की तो उस समय यह नहीं कहा कि मैं श्वेतांबर जैन का, स्थानकवासी, दिगंबर जैन को, तेरापंथी जैन का महावीर हूं। जिन्होंने उनके मार्ग का अनुसरण किया, उन सबके महावीर थे।
हमारी पूजा-आराधना पद्धति अपनी-अपनी हो सकती है लेकिन हम कहीं न कहीं एक हो सकते हैं, एकता को हमें सर्वोपरि मानना चाहिए। पयूर्षण पर्व की 18 दिवसीय आराधना भ. महावीर देशना फाउंडेशन का यह पहला सार्थक प्रयास है। समाज एकता और संगठन करने की दिशा में प्रयास किया है, निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगा। जिस प्रकार जैन कुल में जन्म लेना हम सौभाग्य मानते हैं, तो इसी प्रकार से प्रत्येक जैन को यह मानसिकता बनानी होगी कि जैन-जैन भाई है, एक है, हममें कोई भेद नहीं, हम सब एक ही महावीर के अनुनायी हैं। जंगल में आग लगी और सभी पशु-पक्षी उसमें जलने लगे, सभी अपने स्तर पर उस आग को बुझाने का प्रयास करने लगे। एक चिड़ी जो उस जंगल में रहती, अपनी चोंच में पानी लाती और उस आग को बुझाने का प्रयास करती। तब एक दूसरा जानवर पूछता है कि तू क्यों ये निर्थक प्रयास कर रही है, तेरी चोंच के अंदर जो पानी आ रहा है, उससे इस आग को शांत नहीं कर सकते। तब चिड़ी ने प्रत्युत्तर दिया कि जब-जब इस आग लगने का इतिहास लिखा जाएगा, तब-तब मेरा नाम आग लगानों में नहीं, आग बुझाने में लिखा जाएगा।
भ. महावीर देशना फाउंडेशन के माध्यम से 18 दिवसीय कार्यक्रम में वर्च्युल माध्यम से कम लोग जुड़े हों, लेकिन प्रतिदिन अलग-अलग बुद्धिजीवियों, अलग-अलग गुरुओं का सान्निध्य प्राप्त करने का जो सार्थक प्रयास कर रहे हैं, आपके कार्यक्रम की सुगंध पूरे भारत में फैल रही है – शनै:-शनै: ही सही, लेकिन निश्चित आपने जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिये भ. महावीर देशना फाउंडेशन निश्चित रूप से अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगी।
संयोजक अमितराय जैन : मंच पर जुड़े समाज के विद्वान, लब्धप्रतिष्ठित व्यक्तित्व का अभिनंदन करते हुए कहा कि पोलेंड के फिलिप्स रुचिस्ंिक जिनका भारतीय नाम शुभानंद शास्त्री है। आप पोलित भाषा बोलते हैं, आपने भारत की संस्कृति, सभ्यता, श्रमण संस्कृति का विशेष अध्ययन किया और पारिवारिक रूप से आपकी माताजी ने भारतीय दर्शन में पीएचडी की हुई है और बड़े भाई ने संस्कृत साहित्य में बड़ा शोध किया है और दूरदर्शन पर आप रूटीन में संस्कृत भाषा में प्रस्तुति देते रहे हैं। फिलिप्स ने पोलेंड से ज्यादा भारत में घूम-घूमकर भारतीय दर्शन का अध्ययन करते हुए बिताया है।
फिलिप्स रुचिंस्की (वॉरसा विवि पोलैंड से) : वर्तमान स्थिति में जैन धर्म की प्रासंगिकता और पोलेंड भारत की संस्कृति को किस रूप में देखता है इस बारे में बताया। जैन धर्म के प्रति बहुत पहले से मेरी विशेष रूचि और सम्मान है क्योंकि सबसे पहले जो अहिंसा की बात, अहिंसा का मूल्य है यह हमारे घर में शुरू से ही है। हमारा घर शुद्ध शाकाहारी है। जैन धर्म का प्रभाव यूरोप में कम दिखाई देता है, लेकिन प्रभावकारी है। जब भी मैं यम और नियम की चर्चा करता हूं तब हमेशा मुझे जैनों का इसमें अधिक योगदान है। चारित्र के साथ जुड़े हुए और उपकार के लिये सबसे अच्छा दर्शन जैन धर्म में ही है। आप जो यह शुभ कार्य कर रहे हैं, पूरे विश्व के लिये आदर्श है कि किस प्रकार जैन धर्म का रक्षण और विश्व कल्याण के लिये कार्य हो रहा है। यूरोप इससे काफी कुछ सीख सकता है।
जितनी आयु पाई है,धर्म आराधना कर उसे सार्थक करें
गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी : यह प्रसन्नता का विषय है कि भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के माध्यम से दिगंबर और श्वेतांबर साधु मिलकर के ये 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व चल रहा है। एक मंच पर बैठकर भगवान महावीर के शासन और धर्म की। दस धर्म तीन बार आते हैं – माघ, चैत्र और भाद्रपद में किंतु भारतवर्ष में मनाने की परंपरा भाद्रपद में है।
जैन सिद्धांत कर्म सिद्धांत में टिका है। आयुष्य कर्म ऐसा है जो हमें और आपको किसी भी शरीर में रोक कर रखता है। ये ध्यान रखें कि मनुष्य पर्याय में कई बार आयु का छेद भी हो जाती है, अकाल मृत्यु भी संभव है। जैन महाभारत में आया है सबसे ज्यादा अकाल मृत्यु हुई है। तो हमने जितनी आयु पाई है, उसे सार्थक करने के लिये धर्म का आराधना करें। हम जैन एकता के विषय में चिंतन करें। हम और आप सन् 1974 में एक होकर भ. निर्वाण उत्सव मना चुके हैं। हम सबका कर्तव्य है कि महामंत्र का स्मरण करने में, भगवंतों के शासन के अनेकांत शासन की प्रभावना में, कर्म सिद्धांत के विषय में, अहिंसा की प्रभावना में हम सब एक हैं और एक रहेंगे। हमारी जैन एकता अखंड बनी रही और हम सब मिलकर अहिंसा परमो धर्म को आकाश की ऊंचाइयों तक पहुंचाते रहें क्योंकि विश्व में शांति और पर्यावरण की शुद्धि अहिंसा से ही संभव है। पर्यूषण आने वाले दस धर्म प्राणी मात्र के लिये हितकारी है।
सुखद – अद्भुत – बेहतरीन मंच
गुरुदेव श्री नयपदम सागर जी महाराज : यह सुखद आयोजन हुआ है यह बहुत अद्भुत और बेहतरीन है। अभी पूज्य विद्वान ज्ञानमती माताजी को भी सुना। बात सच है कि चौथी कक्षा तक पढ़ी हुई एक विदुषी महान आर्यिकाजी और जिन शासन की प्रभावना के लिये उन्होंने जो अपने पुरुषार्थ से, शक्ति का समर्पण किया है वह बहुत ही अद्भुत, बेजोड़ और अद्वितीय है।
आज आयुष्य कर्म के चिंतन प्रक्रिया है। आठ कर्मों में एक आयुष्य कर्म ऐसा है जिसका बंध पूरे जीवन में एक बार ही करते हैं। तीर्थंकर, महापुरुषों का निर्धारित आयुष्य परिपूर्ण होता है लेकिन हम लोगों का आयुष्य कम भी हो सकता है। जिनशासन में इसलिये पर्व तिथियों में आराधना, साधना, उपासना करते हैं, अध्यात्म की अनुभूति को पाने करने का प्रयास करते हैं। जैसे चतुर्दशी, दूज, पंचमी, अष्टमी, ग्याहरस, चतुर्दशी इस तरह पर्व तिथियां चलती रहती है और इन तिथियों में सर्वाधिक आयुष्य बंध की संभावना होती है। इसलिये इन तिथियों में विशेष आराधना करते हैं और भोजन के अंदर में भी सब्जियों को इस्तेमाल नहीं करते हैं।
सम्पूर्ण कर्मों से मुक्त होकर के महाअनंत अक्षय स्थिति को पाने का हम सभी का लक्ष्य है। आयुष्य ये संसार के परिभ्रमण की बहुत गंभीर जंजीर है। इतनी कड़क और कठोर है कि आत्मा उस जंजीर के अंदर जकड़ कर अलग-अलग गति में परिभ्रमण करता है और ये गति से मुक्त होने का उपाय आत्म साधना है, इसलिये तत्वार्थ सूत्र में कहा – आत्मा सम्पूर्ण कर्मों से मुक्त बने, उसका मोक्ष, उसकी मुक्ति निश्चित है।
सुभाष जी की पूरी टीम, विद्वान, गुरु भगवंतों के इस मंच पर दर्शन हो रहा है, ये सच है कि विश्व को बदलाव की जरूरत है, पूरा विश्व शांति चाहता है, चाहे पर्यावरण, चाहे युद्ध का तांडव, चाहे क्राइम का विषय हो, ये सारे विषयों में आज विश्व हमें देख रहा है। विश्व के लोग अंधकार में भटक रहे हैं, उनके पास कोई मार्ग नहीं है। इसलिये उन सभी को सही दिशा देने के का दायित्व हम सभी पर ज्यादा आधारित है।
हम जैन एक हो जाए तो विश्व की कोई ताकत हमें रोक नहीं सकती। भगवान श्वेतांबर, दिगंबर, तेरापंथ, स्थानकवास नहीं है, वह तो वीतराग है, तीर्थंकर प्रभु है, उन्होंने विश्व के सभी जीवों के कल्याण के लिये उपदेश दिया है। हमारा दुर्भाग्य है कि केसरिया तीर्थ जैसे विवादों में पड़े हैं, क्यों नहीं हमारे ज्येष्ठ आचार्य बैठ कर जो फैसला करें, वह समाज को सर्वमान्य हो। हर व्यक्ति अपना अहंकार लाता है और नुकसान समाज का होता है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगाल की परिस्थितियां हम देख रहे हैं, अपने ही देश में केरल, तमिलनाडु, जम्मू कश्मीर, गोवा की प्रक्रिया हमें पता है, दक्षिण भारत में हजारों-हजारों साधुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था। हम सभी को मिलकर सर्वांगीण विकास की भूमिका में आगे बढ़ना चाहिए। हमारे अनेकों स्कूल-कॉलेज हैं, उन सभी जैन इंस्टीट्यूटें हैं, उन बच्चों में परिवर्तन की प्रक्रिया आज से हम शुरू करें, ये क्रांति का शंखनाद हमें करना पड़ेगा। दिल्ली में एक बड़े अस्पताल और कॉलेज का निर्माण हम कर सकते हैं।
हमने दिल्ली सरकार से क्या लाभ लिया? हमने राजस्थान, पंजाब सरकार से क्या लाभ लिया? सरकार हम से पूरा उपयोग लेती है लेकिन हमारे समाज को सरकार क्या दे रही है। भारत के अंदर 5 करोड़ परिवार 32 करोड़ लोगों को रोटी जैन समाज देता है, और दूसरी तरफ हमें सरकार क्या दे रही है। हमें अपनी सारी शक्तियों को केंद्रित करना पड़ेगा। विद्वान गुरु भगवंतों का एक संयुक्त संगठन तुरंत तैयार करना चाहिए। एक अकेला इंसान कुछ नहीं कर सकता। एक-एक महापुरुष की तपश्चर्या-साधना होती है। आज मुस्लिम का वक्फ बोर्ड है, क्या हमारे पास जैन बोर्ड है। माइनोरिटी के अंदर हमारी प्राकृत भाषा को कोई दर्जा मिला हुआ है? उसके बारे में हमने क्या सोचा? इन सारे विषयों पर हमें गंभीरता से चिंतन और मनन की प्रक्रिया में आगे बढ़ना होगा, लेकिन प्रेक्टिकल रूप से, केवल बातें नहीं। जिंदगी बहुत छोटी है।
सुभाष जी आप दिल्ली में अस्पताल का मिशन आगे बढ़ायें। आप जैसा सुयोग्य श्रावक है, आप चारों सम्प्रदायों को लेकर चलते हैं, आपकी पवित्र भावना है। आने वाले दस साल भारत के लिये तय करने वाले साल होंगे। आयुष्य का कोई भरोसा नहीं है, इसलिये जितनी भी आयु बची है, उसमें हमें महान कल्याणकारी, जिनशासन की खूब सेवा करनी है। अद्भुत सेवा के माध्यम से हमें आत्मकल्याण की ओर अग्रसर होना है।
दिगंबर-श्वेतांबर एक हों, एक बन जाएं तीर्थों के झगड़े,वकील कर रहे मिसयूज
डायेरक्टर सुभाष जैन ओसवाल : आज का उद्बोधन पदमसागरजी महाराज का बहुत अभूतपूर्व रहा। मैं उसकी जैन जगत की पीड़ा कह दूं तो अतिश्योक्ति नहीं। उन्होंने निश्चित रूप से कहा कि हम कहां जा रहे हैं, हम महावीर की अहिंसा, त्याग को अहं की वजह से भूल गये। वकील इस चीज का मिसयूज करते हैं, क्यों न हम दिगंबर-श्वेतांबर मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करें, कि आज जितने भी मुकदमें, अव्यवस्थायें हुई हैं, वो एक हो सकें, एक बन जाएं। इतने लंबे समय समाज से जुड़ने के बाद और जो दायित्व आने वाले समाज के लिये मैं चाहता हूं, जिस रूप से राजीवजी, अनिलजी, मनोज जी, अमितजी जिस रूप से समाज में हम लोग प्रस्तुत कर रहे हैं, गुरुदेव एकमात्र आप ऐसे हैं, यदि आप पहल करोगे तो पहल बन जाएगा एकता का। पहल करने का पहला कदम आपका आएगा, तो सौ कदम फिर जुड़ जाएंगे। लेकिन पहल करनी पड़ेगी एकता के लिए। बात हम मंच से करते हैं लेकिन आपने कार्य ऐसे करके दिये हैं जो आने वाले कई पीढ़ियों के लिये सदैव मील का पत्थर साबित हो गई। जीतो का निर्माण, जिस उद्देश्य और आत्मिकता से आपने किया वह जैन जगत के लोग भुला नहीं सकते। सारे देश के ऐसे बुद्धिजीवियों और उद्योगपतियों को एक मंच पर लाने का श्रेय किसी एक जैन संत को है तो श्रद्धेय नयपदमसागरजी महाराज को है, ऐसे संत को पुन: पुन: अभिनंदन-नमन करता हूं। आप वाणी के जादूगर है, सरस्वती के पुत्र हैं।
नीलम सिंघवी ने भगवान महावीर पर सुंदर भजन की प्रस्तुति दी जिसका मूल संदेश था कि जो जग में आज हा-हाकार मचा है, हर ओर अशांति है, मानवता का अंत हो रहा है, ऐसे में एक बार फिर भगवान महावीर अवतार लेकर आयें।
सभा के अंत में डायरेक्टर श्री राजीव जैन सीए ने कहा कि देशभर से मुनिवर जो हमारे साथ जुड़ रहे हैं, सबने हमारे अंदर जोश भर दिया है। हमने निर्णय लिया है संत समन्वय समिति बने। बहुत जल्द ही हम भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के मंच से सभी संतों से प्राथमिक बात करके फिलहाल 7 या 8 संतों की देश व्यापी समिति की घोषणा करेंगे जो पूरे जैन समाज को मार्ग दर्शन देंगे। जब प्रमुख संत एक मंच से जुड़ेंगे और एक आवाज में बोलेंगे तो उसकी गूंज पूरे विश्व के जैन समाज को सुनाई देगी और भगवान महावीर देशना फाउंडेशन का काम करना सिर्फ मंच प्रदान करने का है, सिर्फ एकता के सूत्र में पिरोने का है। संतों को गाइड करने का हमारा कतई काम नहीं है। संत जो आदेश, प्रोजेक्ट देंगे, काम कहेंगे, हम उसका सिर्फ क्रियान्वयन करेंगे। हमारा आत्म उद्देश्य सिर्फ संतों को एक साथ एक मंच पर लेकर लाने का है। पूरे देश से पहले कदम के रूप में करीब 8 संतों को एक मंच पर जोड़ने का भाव है ताकि समय-समय पर आप एक दूसरे से चर्चा करके पूरे देश के जैन समाज पर जो भी कभी आफत आए तो आपकी एक आवाज पूरे जैन समाज को मिलती चली जाएगी।
नरकायु की बंध से बचने के लिये सर्वप्रथम मिथ्यात्व को हटाना होगा
आचार्य श्री देवनंदी जी : कुंदकुंद आचार्य श्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भवों में मनुष्य भव श्रेष्ठ है, मनुष्यों में ज्ञानी श्रेष्ठ है, ज्ञानियों में जो कोई सम्यकदृष्टि है, वह श्रेष्ठ है और उनसे भी श्रेष्ठ जो हैं, वो चारित्र को धारण करने वाले संयमी, वीतरागी, वैराग्य पथ पर चलने वाले, रत्नत्रय को धारण करने वाले अनुयायी हैं, वे बहुत ही पुण्यवान और श्रेष्ठ है क्योंकि चरित्र से ही निर्वाण की प्राप्ति होती है। भवों का अंत करने के लिये सबसे पहले – सम्यक्त्व की भूमिका महत्वपूर्ण है। यदि हम सम्यक्त्व की भूमिका में आ जाते हैं, तो सम्यकदृष्टि के लिये नरक और तिर्यंच आयु की निर्जरा हो जाती है, क्योंकि एक बार सम्यकदर्शन के पश्चात् जो अत्यंत दुखदायी, अत्यंत क्लेशकारी संसार के अनंत दुखों को देने वाला मिथ्यात्व छूट जाता है, तो मिथ्यात्व के छूटते ही नरक आयु का बंध भी छूट जाता है। आगम में मिथ्यात्व को सबसे खतरनाक कहा है। जब तक यह मिथ्यात्व हमारे भीतर बैठा रहता है, तब तक हम नरक के बंध से नहीं छूट सकते हैं। इसलिये नरकायु की बंध से बचने के लिये हमें सर्वप्रथम मिथ्यात्व को हटाना होगा।
दूसरी बात – अनंतानुबंदी कषाय से बचें। ये अनंतानुबंदी कषाय तिर्यंच आयु का बंध कराती है। इसके रहते हुए हमें दो आयु मिलती हैं – एक नरक और दूसरी तिर्यंच। मिथ्यात्व हटता है तो नरक आयु हट गई और अगर अनंतानुबंदी कषाय – क्रोध, मान, माया, लोभ हटता है तो तिर्यंच आयु का बंध हटता है। धर्मोपदेश के समय यदि हम मिथ्या बातों को मिलाकर प्रचार करते हैं, शील रहित जीवन, अतिसंतान प्रियता, या मरण के समय नील, कपोत लेश्या रूप परिणाम, आतरौद्र परिणाम करते हैं तो तिर्यंच आयु का बंध होता है। देव आयु का क्षय करना हमारे हाथ में है। यदि हम अपने जीवन में विनम्रता को धारण करते हुए सम्यक्त्व को धारण करने के पश्चात् जब हम मनुष्य पर्याय में रहते हुए हम उपशम क्षपक श्रेणी चढ़ते हैं। उपशम श्रेणी पर चढ़ा हुआ वापिस जीव पुन: वापस आ जाता है, लेकिन क्षपक श्रेणी पर चढ़ा हुआ जीव पुन: लौटता नहीं है। वह नियम से केवलज्ञान अवस्था पूर्वक वह सिद्धत्व को प्राप्त करता है।
अंत में डायरेक्टर श्री अनिल जैन एफसीए ने कहा कि आज बड़ा अभूतपूर्व दिन रहा। हमने बहुत कुछ सीखा, जाना और बहुत बड़ा मार्गदर्शन लिया। जैन एकता के दृष्टिकोण से हम क्या-क्या काम कर सकते हैं। सभी काम में हमने देखा कि गुरुवर जो भी यहां मौजूद रहें उन्होंने एक ही बात कहीं कि हम कम है, लेकिन कमजोर नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि आप लोग एक कदम बढ़ेंगे तो हम दस कदम आगे बढ़ेंगे। तो हम लोग एक कदम बढ़ चुके हैं गुरुदेव। आज छठवें दिन भी हम आपके बीच मौजूद हैं और जो भी आप जिम्मेदारी देंगे, उन्हें पूरा करने का प्रयास करते रहेंगे।
(Day 6 समाप्त)