वेदनीय कर्म सुख और दुख दोनों का अनुभव कराता है-दुख में कर्म याद आता है, सुख में याद नहीं आता

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सम्पूर्ण विश्व में बजे जैन समाज की एकता समन्वय, सौहार्द का बिगुल

भगवान महावीर देशना फाउण्डेशन
18 दिवसीय पर्यूषण पर्व 2021 का चौथा दिवस वेदनीय कर्म निर्जरा
सान्ध्य महालक्ष्मी की EXCLUSIVE प्रस्तुति

सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 07 सितंबर 2021

चतुर्थ दिवस का संयोजन करते हुए डॉ. अमित राय जैन ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व में जैन समाज की एकता समन्वय, सौहार्द और आपसी अपनात्व की परस्परोग्रहो जीवनाम् की अंतर्भावना से निहित भगवान महावीर देशना फाउंडेशन द्वारा संचालित 18 दिवसीय पयूर्षण पर्व की श्रृंखला चल रही है। उन्होंने संस्था के फाउंडर श्री सुभाष ओसवाल जी के जन्मदिवस पर कहा कि हम कामना करते हैं कि अगला वर्ष आपका अमृत महोत्सव है, हम सब आपके सहयोगी हैं। जैन समाज के कुछ विशिष्ट स्थाई कार्य इस अवसर पर हम लोग आपके साथ मिलकर करेंगे।

मंगलाचारण : श्रीमती नीलम सिंघवी ने णमोकार महामंत्र का वाचन करते हुए मंगलाष्टक के साथ सभा का शुभारंभ किया।

डायरेक्टर राजीव जैन सीए : भगवान महावीर के वीरशासन काल में श्री सुभाष जैन ओसवाल ऐसी शखस्यित जिसका देश ही नहीं पूरे विश्व में जैन समाज को एक करने के लिये प्रभाव है। हर त्यागी-वैरागी को आप वंदन करते हैं चाहे वह किसी भी जैन संप्रदाय का हो। भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के प्रणेता श्री सुभाष जैन ओसवाल का आज 74वां जन्म दिवस है। मंच पर मौजूद सभी संतों ने उन्हें आशीर्वाद दिया। एक वीडियो के जरिये फाउंडेशन ने उन्हें अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की और श्री शुभम् जी की पंक्तिया उन्हें समर्पित की।

सागर में उठी तेरे नाम की,
तुम्हें मुबारक खुशियां हर जहान की।
तुमको तो है अनंत में जाकर मिल जाना….।।

डायरेक्टर अनिल जैन एफसीए ने शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सुभाष जी आपको नमन करता हूं और 74 दिवस पर आपको अनेकों बधाई देता हूं और कामना रखता हूं कि हर राह आसान हो, हर राह पर खुशियों हो और हर दिन खूबसूरत हो।

डायरेक्टर मनोज जैन ने कहा कि बड़ा सौभाग्य है कि इस मंच से हमारे आदरणीय बाबूजी के जन्मदिन को वर्च्युल मोड में महाराज साहब के सान्निध्य में मना रहे हैं। संबंध में तो आप मेरे अंकल हो सकते हैं, लेकिन मेरी आत्मा से आप मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं। जिनके साथ मैं अपने जीवन के किसी भी प्रकार की बात को साझा कर पाता हूं।
जीवन में न कभी आयें आपको मुश्किलें
दामन में सुख के फूल खिलें
सारे जहां की खुशियां आपको मिले
हैप्पी बर्थडे बाबूजी, हैप्पी बर्थडे बाबूजी।

संयोजक हंसमुख गांधी जी : आज हमारे लिये सौभाग्य है कि भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के फाउंडर और जैन रत्न, समाज रत्न एक बड़ी विभूति जो समाज को एक करके, सबको साथ लेकर और समाज की एकता के लिये प्रतिबद्ध हैं, ऐसी विभूति को जन्मदिवस की शुभकामनाएं, हमें शतायु तक नेतृत्व मिलता रहे।

डायरेक्टर सुभाष जैन ओसवाल : साधना के शिखर पुरुष, आचार्य प्रवर, परम विदुषी साध्वी सरिता जी म., उपाध्याय श्रद्धेय रविन्द्र मुनि जी, गणिनी आर्यिका रत्न श्री स्वस्ति भूषण माताजी समेत सभी गुरुओं का वंदन करते हुए कहा कि आपने मेरे जन्मदिवस के अवसर पर बहुत बड़ी शुभकामनाएं आशीर्वाद दिया। मैं सौभाग्यशाली हूं कि जिस मंच पर वरिष्ठ साधु-साध्वी वृंद हो और देश के प्रबुद्ध श्रावक-श्राविकाओं हों, सबका आशीर्वाद मेरे जीवन के लिये एक नया मोड़ लाएगा। आपने ये कार्यक्रम जिस रूप से प्रस्तुत किया, मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं कि जो दायित्व मुझे समाज देना चाहे, उस दायित्व को मैं पूरा करने का प्रयास करूंगा। मेरे जीवन का एक बहुत बड़ा सपना है कि दिल्ली में इस महामारी काल में जो मेडिकल लाइन में अव्यवस्थता रही, हमने स्थानक, मंदिर, 200-400 गज में बहुत बना लिये।

परसों हमारे बीच में प्रज्ञ सागरजी महाराज, श्रद्धेय प्रवीन ऋषि जी म., रविन्द्र मुनि जी म. और 18 दिन तक हमें नेतृत्व और आशीर्वाद देने के लिये देवनंदि जी महाराज से ये प्रार्थना करना चाहता हूं कि इस महामारी काल में भाई-भाई से नहीं मिल सका, पति – पत्नी से नहीं मिल सका और मेडिकल की जो असुविधाएं रहीं, बैड मिला तो आक्सीजन नहीं मिली, वेंटीलेटर मिल गया तो डॉक्टर नहीं मिला। आज राजधानी में महावीर देशना फाउंडेशन से एक प्रार्थना करूंगा कि मेरे साथ तीन साथी जो आने वाले समाज का भविष्य हैं, इन तीनों को मैं दायित्व देना चाहता हूं कि एक ऐसा भव्य हॉस्पीटल बनना चाहिए जो अपने आप में बेमिसाल हो। इसके लिये मैं अपने आप को समर्पित कर अपनी सेवाएं देना चाहता हूं। मेरे जीवन में कम से कम 200-250 बैड का अस्पताल बनना चाहिए। हमारे पास रोहिणी में बहुत बड़ा भूखंड है, हमारा प्रयास होगा कि भगवान महावीर हास्पीटल जो बना हुआ है, उसके साथ मिलकर राजीवजी, अनिल जी, मनोज जी हम सब मिलकर सुंदर और व्यवस्थित कार्य करें जो आने वाले पीढ़ियों, समाज के लिए दिशा निर्धारित करें, प्रेरणा दें – इन्हीं भावनाओं के साथ मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।

हमारे ही कर्म, हमें सुख-दुख देते हैं

आचार्य श्री देवनंदि जी : समाजरत्न ओसवाल जी को मंगलमय आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि उनकी शुभ संकल्प और प्रयास पूर्ण हो। पर्यूषण पर्व आत्मशोधन का पर्व है जो आध्यात्मिक शुद्धि के साथ मोक्ष मार्ग की ओर लेकर चलता है। क्रमश: कर्मों के स्वरूप को समझते हुए, कर्मों की निर्जरा का हम प्रयास कर रहे हैं। कर्मों की हम निर्जरा कर रहे हैं, ये हमारे शुभ-शुद्ध परिणामों पर निर्भर करता है। जब हम अपने वैचारिक शंका को धारण करते हैं, क्योंकि सुख और दुख ये हर प्राणी के साथ लगे हुए हैं। संसार में ऐसा कोई प्राणी नहीं है, जो कर्म सहित हो और उसे कर्म जनित साता और असाता न हो। हम सभी प्रकार के साता या असाता में रहते हैं, हमें कभी हर्ष होता है, कभी विषाद होता है। कभी हमारे चेहरे पर आनंंद की लहर दौड़ जाती है, कभी दुख व्यक्त होता है। यह सब कर्म की विविध स्थितियां हैं, जिन्हें शास्त्रों में वेदनीय कर्म कहा है। यही वेदनीय कर्म हमारे लिये साता-असाता के रूप में खड़े हुए रहता है। साता वेदनीय कर्म के उदय से हमारी इंद्रीय, शरीर को, मन वचन काय को मनोज्ञ लगने वाले पदार्थ वो हमारे लिये सहजता से प्राप्त हो जाते हैं वो हमारे लिये साता कार्य फल प्रदान करते हैं।

असाता कर्म के उदय से अप्रिय लगने वाले दुखदायी ऐसे संयोग बनते हैं जिनसे हमारे लिये सतत दुख होता है, उसी का नाम असाता वेदनीय कर्म है। हम कर्मों का उदय, कर्मों का फल जानते हुए निर्जरा कैसे करें? एक ही उपाय है कि हम श्रद्धा बना लें कि हमें सुख और दुख देने वाला कोई दूसरा नहीं है, हमारे ही कर्म हमें सुख-दुख देते हैं। यदि हम अपने दुख-सुख के लिये किसी दूसरे को दोषी ठहराते हैं तो ये भी मिथ्यात्व बुद्धि है। आज स्वाध्याय न करने से हम कर्म सिद्धांत को नहीं समझ पाते हैं।

प्रेक्टिकल रूप से किसी से मन वचन काय से अशुभ रूप से प्रयोग करना, परनिंदा करना, चुगली करना, किसी जीव के प्रति दया के भाव नहीं होना, किसी के हाथ- पांव आदि को तोड़ना, किसी को बांधना – ये सारे के सारे असाता का बंध करते हैं। इन सबसे बचने के लिये इन सारे जीवों को हम मुक्त करें, तकलीफ से छुड़ायें, साथ ही साथ साताकारी कर्मों को संचित करने के लिये कहा हम हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह – इन पांच पापों से बचते हुए व्रती – त्यागमयी जीवन जियें। जितना हो सकता है, त्यागी – व्रतियों पर अनुकंपा करते हुए उनका विहार- आहार अच्छा हो, ऐसा प्रयत्न करना चाहिए, इससे साता कर्म का बंध होता है। जिस प्रकार सुभाष जी ने अपना सपना जताया कि हम दिल्ली में बड़ा हास्पिटल बनाना चाहते हैं। ये जीव दया का काम है, इससे लोगों को साता मिलेगी, स्वास्थ्य ठीक होगा और हमारे लिये इससे अच्छे कर्म का साता होगा

18 दिवसीय महापर्व पर्यूषण इतिहास बनने जा रहा है

महासाध्वी श्री मधुस्मिता जी म. : हमारा जो 18 दिवसीय महापर्व पर्यूषण हैं बहुत ही संदेशों को लेकर हमारे सामने आया है। ये इतिहास बनने जा रहा है कि कैसे आने वाली पीढ़ियों के लिये जैन शासन का झंडा सदैव लहराता रहेगा। ऐसा संदेश देने वाले सभी महानुभाव, संतगण, साध्वी वृंद उपस्थित हैं। ये जो 18 दिवसीय उपक्रम हैं, उसका हम लाभ उठायें। सुभाष जी के पावन जन्मदिन पर महासाध्वी जी ने कहा-
ये आया जन्मदिन बधाई लिये,
सुभाष बाबू प्यारें चिरायु रहें।
ये देखो कैसा अनोखा सफर है,
न इन्हें कोई चिंता फिकर है।
प्यार सबके, प्यार सबसे, गुरु का आशिक है।
उन्होंने जो हास्पिटल बनाने की अपनी भावना जो सबके सामने रखी है, वह निश्चित रूप से अनुकरणीय है।
जीवन परोपकारी बनायें

आर्यिका श्री चैतन्यमती माता जी: यह आयोजन बहुत ही सराहनीय है। लोक में कोई गरीब, कोई अमीर, ज्ञानी है, अज्ञानी है, कोई रोगी है कोई निरोगी है। इसका कारण जानने के लिये यह आयोजन रखा गया है। हम स्वयं जो कर्म करके गये, पर आज हम जो विद्यमान है, उस कर्म के विचित्रता को हम पहचाने। जैन दर्शन यही कहता है जो जैसा कर्म करेगा, वैसा ही फल प्राप्त करेगा। जब कर्म उदय में आएगा, उसका फल भोगना पड़ेगा। इस कोरोना काल में किसी के कुछ काम में नहीं आया, तो यह जैन दर्शन तो पहले से ही कहता है कोई किसी का नहीं है।

3 तरह के कर्म बतायें हैं – द्रव्य, भाव और नौ कर्म। जो हम भाव करते हैं उस समय जो कर्म वर्गणायें हमारे आत्म प्रदेश में स्थापित हो जाती हैं, उसे द्रव्य कर्म कहते हैं। ये आठ प्रकार के कर्म होते हैं। इन्हीं की विचित्रता के माध्यम से सारे संसार का नाटक चल रहा है। ज्ञानावर्णीय – पराक्रमी बाहुबली को भी एक वर्ष तक ज्ञान नहीं होने दिया, दर्शनावर्णीय – यथाख्यात चारित्र को प्राप्त करते हुए भी हमने आत्मदर्शन नहीं करने दिया, ऐसा भी नरक निगोद की यात्रा करता है, वेदनीय – जागरूक करता है कि सारी रात सनत कुमार, श्रीपाल जी ऐसे – ऐसे कुष्ठ रोगी बने असाता का उदय था, ऐसे महापुरुष मोक्षगामी को भी असाता ने नहीं छोड़ा है, तो हम कौन से खेत की मूली है। इसलिये हमें सावधान रहना चाहिए। मोहनीय – रामचन्द्र अपने भ्राता लक्ष्मण के शव को लेकर छह महीने तक घूमते रहे और जंगल-जंगल में सीता को खोज कराई, ऐसा मोह कर्म रहता है।

आयु कर्म – श्रेणिक जो क्षायिक सम्यकदृष्टि थे, उनको भी नरक की यात्रा करनी पड़ी है, रावण जैसे महापुरुष को भी आज नरक में रहना पड़ रहा है, यह कर्म कहता है कि अभी भी हम जागरूक हो जाएं, जीवन एक जागरण है, आज हमारे साधु – संत संसार को जागरूक कर रहे हैं। नाम कर्म – इसके उदय से गूंगा – बहरा – लूला – लंगड़ा ऐसे-ऐसे शरीर को प्राप्त कराया है। शरीर की रचना नाम कर्म से हुई है। इस शरीर से काम लो, व्रत नियम उपवास करो, साधुओं की वैयावृत्ति करों वर्ना यह शरीर कोई काम का नहीं है। मनुष्य गति सर्वश्रेष्ठ पर्याय है और जैन धर्म मिला इसलिये अपने जीवन को सफल बनाये और परोपकारी शरीर प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त करो। सम्यकज्ञान, सम्यकदर्शन, सम्यकचारित्र प्राप्त कर 8-10 भवों में मोक्ष प्राप्त हो सकता है। इसके साथ ही माताजी ने गोत्र, अंतराय कर्म का उदाहरणों के साथ चर्चा की। अंत में उन्होंने कहा कि हम सब श्वेतांबर – दिगंबर एक हो जाएं तो हम क्षेत्रों, साधु-संतों को बचा सकते हैं। हम सब एक हैं, हमारे इरादे नेक होने चाहिए। गाय और शेर को एक घाट पर पानी पीने दो, ये बिखरे हुए मोती को एक धागे में पिरोने दो। महावीर की अहिंसा पुकार-पुकार कर कह रही है- जियो और जीने दो।
एकजुट हो जाएं, तो एतिहासिक काम होंगे

श्री सुरेश पाटिल जैन : पूरे जैन समाज को इकट्ठा कर 18 दिवसीय पर्यूषण चल रहा है, ये एतिहासिक कार्य है। भ. महावीर की अहिंसा सिर्फ जैनों के लिये नहीं बल्कि पूरे जगत के लिये है। हम जब समोशरण में देखते हैं कि पशु-पक्षी तिर्यंच गति जाने वाले भी उसमें शामिल होते हैं, सब जगह देखते हैं कि जैन समाज सब लोगों के लिये काम करता है। मैं सोचता हूं कि जब जैनों के चारों सम्प्रदाय इकट्ठा होकर कार्य करें। विश्व में जैन समाज सभी समाज के लिये काम करता है लेकिन जब पंथवाद होता है, तो हमारे विवाद बढ़ते हैं। समाज को इकट्ठा होना जरूरी है। इंडस्ट्री में, इन्कम टैक्स, काम में जैन समाज सब जगह आगे है तो अगर हम एकजुट होकर कार्य करेंगे तो एतिहासिक काम होंगे। खाली देश ही नहीं, विश्व का जैन समाज इकट्ठा होना चाहिए। जहां-जहां पंथ है, वहां उनको करने दो लेकिन जब सामाजिक तौर पर हम इकट्ठा हो तो एक जैन होकर सामने आएं। उससे जैन समाज के लिये ही नहीं, पूरे देश में जैन सबसे आगे रहेंगे।

एकता प्रक्रिया में गुरु-भगवंतों का रोल ज्यादा जरूरी

श्री पारस मोदी जैन : भ. महावीर देशना फाउंडेशन की ओर से दिगंबर एवं श्वेतांबर सभी जैन धर्मियों को एकसाथ करने के लिये आयोजकों ने 18 दिवसीय जैन पर्यूषण पर्व 2021 की शुरूआत की है। हम अपने कर्मों की निर्जरा करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। हम हर रोज गुरु भगवंतों की सेवा में उपस्थित होकर जिनवाणी का लाभ ले रहे हैं। दिगंबर – श्वेतांबर को एक करने का प्रण जो फाउंडेशन ने लिया है, मैं उसकी अनुमोदना करता हूं। जैन समाज हर क्षेत्र में आगे हैं, लेकिन हमारी कमियों के वजह से राजकीय स्थल में पीछे हैं। अगर हम सभी एक हो जाएं, इस एक होने में श्रावक-श्राविकाएं तो साथ देंगे ही, इसमें गुरु भगवन अपना रोल और ज्यादा अच्छी तरह से निभा सकते हैं। क्योंकि हर जैन भाई अपने गुरुदेव का आदेश पालने में कहीं भी कमी नहीं रखते हैं। उनका आदेश सर्वोपरि होता है। इस प्रक्रिया में गुरु-भगवंतों का रोल बहुत ज्यादा जरूरी है। उनके चरणों में निवेदन है कि भले ही हम अपनी-अपनी क्रियाएं कर सकते हैं, लेकिन जब भी हमें कहीं भी आगे बढ़ना है तो सिर्फ जैन कहकर ही आगे बढ़ेंगे तो हमारा सामाजिक वर्चस्व बढ़ेगा।
बच्चों को जैन स्कूलों में पढ़ाओ
शहर-शहर में अच्छे जैन स्कूल खोलो

श्रीमती विमल जैन बाफना : सभी श्रेष्ठीजनों का अभिनंदन करते हुए उन्होंने कहा कि प्रकृति जो हमें संदेश दे रही है, वह हमारे भ. महावीर स्वामी का ही है। हम 18 दिवसीय पर्यूषण मनायें, उसकी वजह एक ही है ये 18 दिवस एक संधिकाल होता है, उस काल में प्रकृति संदेश देती है कि हमें धर्म आराधना ज्यादा से ज्यादा करें और ये काल बहुत सुंदर होते हैं। इसमें आराधना करना हमारे लिए आवश्यक है। हमारे साधु-संत भी कहते हैं, हम कर भी रहे हैं, मुझे लगता है कि मैं जब भी जैन कांफ्रेंस के पद पर भी आई, आपके समाने भी यह भावना रखना चाहूंगी कि हम औरों के लिए बहुत सारी चीजें करते हैं, क्या अपने लिये कुछ करते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे उस स्कूल में जाएं, जो जैन लोगों ने बनाएं हैं। 10-20 साल पहले की बात और कुछ थी कि स्कूलों में खाना नहीं दिया जाता था लेकिन आज सभी स्कूलों में वैज-नॉन वैज खाना दिया जाता है। बच्चों को इसकी समझ नहीं रहती।

इसलिये आज जरूरी हैं कि हमारे बच्चे जैन स्कूलों में ही पढ़ें। मैं चाहूंगी कि हमारे शहर-शहर में अच्छे लेवल के स्कूल हो जिसमें हम अपने बच्चों को भेज सकें। क्या हम नहीं कर सकते? दुनिया के लिये करते हैं क्यों नहीं अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये ये कार्य करें। उन स्कूलों में जैन संस्कार दें, जो अन्यत्र नहीं मिलते। देश-विदेश की जैन पहचान है, जैन फूड मिलता है। हमें इस पहचान को जीवंत रखना होगा। हम स्थानक, मंदिरों में छोटे बच्चों के लिये स्कूल शुरू कर सकते हैं। हम पांच साल के बच्चों को जो संस्कार दे दिये, वे जीवन भर चलेंगे। हमारी इतनी सारी जगह हैं, क्यों नहीं उसका इंटीरियर अच्छा करके अच्छे लेवल के स्कूल खोलें।

जब तक कर्म हैं, संसार में परिभ्रमण करते रहेंगे

महासाध्वी श्री सरिता जी म. : अगर कर्म है तो जैन संस्कृति है। हम दिगंबर-श्वेतांबर-स्थानकवासी या तेरापंथी ये बाद की बात है लेकिन हमारी संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति रही है। जब तक कर्म हैं, तब तक हम संसार में परिभ्रमण में है, जब कर्म नहीं होंगे तब हम संसार परिभ्रमण में नहीं होंगे। कर्म के कारण ही हमारी चार गति है, चौरासी लाख योनी है, कर्म ही सभी परिभ्रमण का कारण है। कर्म से ही दीन है, हीन है, कर्म से ही योगी है, भगवान है। हर कर्म अपने-अपने रूप में आता है और अपने-अपने गुणों को ढक देता है।

वेदनीय कर्म आठों कर्मों में समाहित रहता है, जैसे ज्ञान मिल गया हम सुखी हो गये। अगर हम जड़मति हो गये, दुखी हो गये तो वह वेदीनय कर्म है। ऐसे ही दर्शनावर्णीय कर्म सुख हो आ गया तब भी, दुख में भी, ऐसे ही मोहनीय कर्म हमें अच्छा कुल मिल गया तो सुखी, नहीं मिला तो दुखी, ऐसे ही अंतराय कर्म- अच्छा मिल रहा है तो ठीक है, नहीं मिल रहा तो हम रोते हैं, यानि असाता में आ जाते हैं। ये वेदनीय कर्म आठों कर्मों में निहित होता है। इसके लिये हमारे आचार्यों ने कहा कि शहद लगी तलवार को मुंह में रखते हैं, तो मीठा – मीठा शहद जाता है तो अच्छा लगता है लेकिन तलवार से जीभ कट जाती है तो असाता हो जाती है, दुख मिलता है। वेदनीय कर्म साता और असाता रूप में रहता है, लेकिन कौन ऐसा व्यक्ति, ऐसा ज्ञानी, ऐसा संसार में इंसान रहा है जिसको वेदनीय कर्म नहीं आए। भ. पार्श्वनाथ के परिषहों, उपसर्ग देखें। उन्होंने असाता को सहन किया। समूल कर्म को नष्ट करना साधु जीवन है, गृहस्थ में रहकर पूरे कर्म नष्ट नहीं हो पाते।
दुख में कर्म याद आता है, सुख में याद नहीं आता

गणिनी आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण माताजी : कर्म की पूर्ण व्याख्या केवल जैन धर्म में बताई है। कैसा कर्म करेंगे, फल कैसा मिलेगा, ये वाख्या केवल जैन धर्म में ही बताई है। भ. महावीर ने कर्म की इतनी सूक्षम व्याख्या दी है कि पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि बस आंख बंद करो और बैठ जाओ, आंख खोलो मत। उन्हीं आठ कर्मों में से आज वेदनीय कर्म पर चर्चा चल रही है। वेद का मतलब होता है जानना, अनुभव करना। यहां जो वेदनीय कर्म है, वो अनुभव कराता है सुख और दुख का। यदि हम सुखी हैं तो वो भी कर्म का फल है, हम दुखी हैं वो भी कर्म का फल है। जब हम सुखी होते हैं तो कभी भी नहीं कहते कि हम कर्मों से सुखी हैं लेकिन जब दुखी होते हैं तो कहते हैं कि हे भगवान कौन से कर्म का उदय आ गया। दुख में कर्म याद आता है, सुख में याद नहीं आता। जबकि वेदनीय कर्म सुख और दुख दोनों का अनुभव कराता है।

सामाग्री इकट्ठी कराने का काम भी वेदनीय कर्म का है। यह कर्म आघातीय होते हुए भी घातीय के समान फल देता है, इसलिये इसे घातिया कर्मों के बीच में रखा है। असाता वेदनीय का बंध होता है तो दुख, शोक, आक्रंदन, वध आदि हिंसा के परिमाणों से असाता यानि दुख का बंध होता है। सुख का बंध जितने भी अच्छे कार्य होते हैं – षट् आवश्यक, सेवा, पूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप आदि कर्मों से सुख का बंध होता है। अंत में महत्व की बात कुछ इस प्रकार –
स्वभाव में नम्र का, भोजन में गर्म का
जीवन में धर्म का, बड़ा ही महत्व है।
मनुष्य के प्रभाव का, नदी में नाव का
मनुष्य के अच्छे स्वभाव का, बड़ा ही महत्व है।
कर्म के झड़ने से, भव से तरने का
जीवन में अच्छे कर्म करने का, बड़ा ही महत्व है।
देने में दान का, रहने में मकान का
करने में ध्यान का, बड़ा ही महत्व है।

उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म. : कार्यक्रम में कर्मों की आराधना के साथ सामाजिक समस्याओं पर चिंतन भी चल रहा है, अनेकों विचार सुनने-समझने का अवसर सबको प्राप्त हो रहा है। जो कर्म आत्मा को सुख – दुख का अनुभव करवाता है, वह वेदनीय कर्म कहलाता है। संसारिक प्राणियों का जीवन न पूरा सुखमय न पूरा वेदना रूप है। जो अनुकूल है, वह सुख है और जो प्रतिकूल है, वह दुख के समान है। हमारे यहां पर असाता वेदनीय कर्म का उदय या कर्म का बंधन कैसे होता है। असाता के आठ कारण हैं – पहला जो गुरुजनों को अभक्ति करता है, माता-पिता, अध्यापक और धर्मगुरुओं की जो अविनय असातना करता है, दूसरा कहा है अक्षमा, जो किसी को क्षमा नहीं देता, बात-बात पर क्रोध – कलह और क्लेश और रोष व्यक्त करता है। तीसरा कारण क्रूरता, जहां दया नहीं है, क्रूरता का भाव है, वहां ऐसा होता है।

चौथा कारण अव्रत – जो जीवन में कोई भी व्रत, नियम, मर्यादा ग्रहण करने के लिये तैयार नहीं रहता, वह ऐसे कर्म का बंध बांधता है। पांचवां – अयोग प्रवृति : जो अपने मन वचन काय व्यवाहर पर नियंत्रण नहीं रख पाता। छठा कारण कषाययुक्त होना : यानि क्रोध, मान, माया, लोभ पर कोई नियंत्रण संयम नहीं है, यह भरपूर मात्रा में इन कषायों का सेवन करता है। सातवां – दान वृत्ति का अभाव : सक्षम होते हुए भी जो दान नहीं देता, कृपणता बरतता है, उसको भी ऐसे असाता वेदनीय कर्म का बंध बांधना होता है। अंतिम कारण – धर्म पर दृढ़ न रहना : धर्म को समझता है लेकिन संकल्प में मजबूती नहीं है। जैसे कपड़े का झंडा जिधर की हवा चलती है, उधर लहरने लगता है। ऐेसे व्यक्ति में दृढ़ता नहीं होती।

साता कर्म का बंध कैसे होता है? गुरु के प्रति, गुरुओं के प्रति, समस्त साधु समाज के प्रति भक्ति करना। यहां यह बात स्पष्ट कर दूं कि आज संपूर्ण जैन में बीमारी फैल रही है कि अपने-अपने महाराजों के लिये तो तन-मन-धन सब समर्पित हैं लेकिन अन्य साधुओं की अपेक्षा भी देखी जाती है, ऐसा कोई भी श्रावक-श्राविका न करें। अंतत: वह तो है वह पंच महाव्रतधारी। तो सबके समान समानता का भाव रखे। दूसरा क्षमाभाव रखे। तीसरा दया और करुणा का भरपूर पालन करे और पालन करवायें। व्रत और नियमों के प्रति विशेष जागरूक रहे। छोटे-छोटे चाहे नियम ले, छोटी मर्यादा को स्वीकार करे। शुभ योग – अपने मन वचन काय को शुभ दिशा में, शुभ कार्यों में लगाने का प्रयत्न करना और बार – बार संकल्पबद्ध होकर अपनी कषायों को पतला करना, हल्का करना, नियंत्रण में लाना और जितनी ताकत है, उतनी यथाशक्ति दान देने की भावना रखना। धर्म पर दृढ़ता रखना और अकाम निर्जरा का कार्य करना, माता-पिता की सेवा करना – ये दस कारण जो हैं, साता वेदनीय कर्म बंध के कारण हैं। यह व्यक्ति के अधिकार में है, वह किस दिशा में चलना चाहता हैं।

डायरेक्टर अनिल जैन एफसीए ने सभा को समाप्त करते हुए कहा कि निश्चित रूप से इस मंच से जुड़ रहे लोग इस कार्यक्रम का प्रचार जितना अधिक हो सकता है, उतना अधिक आप लोग करें, ताकि हम एक-एक करके अनेक हो जाएं और फिर जब अनेक संख्या में हो जाए तो पुन: एक बार इस एकता के बिगुल को इकट्ठा होकर उस हास्पीटल जिसके बारे में आज भाई सुभाष जी ने कहा है और निश्चित रूप से यह कार्य मुझे, राजीवजी और मनोज जी को सौंपा है, तो मैं उनको आश्वस्त करता हूं कि उन्होेंने जो विचार रखा है, उसे पूरा करने का हम हरसम्भव प्रयास रखेंगे।
(Day 4 समाप्त)