आकिंचन्य धर्म के बिना श्रावकों का कुछ बिगड़े न बिगड़े, लेकिन आकिंचन्य के बिना, साधु के जीवन में गड़बड़ हो जाएगी : श्री रविन्द्र मुनि जी म.

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भगवान महावीर देशना फाउण्डेशन
18 दिवसीय पर्यूषण पर्व 2021 का 16वां दिवस
उत्तम आकिंचन्य धर्म

सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 19 सितंबर 2021

आत्मज्ञानी, युगप्रधान शिवाचार्य भगवन के जन्मोत्सव पर नीलम गजेंद्र सिघवी ने गीत प्रस्तुति से 16वें दिवस का शुभारंभ हुआ –
शुभकामनाएं हम देते हैं,
शिवचार्य भगवन का जन्मोत्सव है
मंगल बधाई हम देते हैं,
शिवचार्य भगवन का जन्मोत्सव है।
जन-जन कम न चहक रहा है,
कण-कण देखो महक रहा है
चारों दिशाओं में है हर्ष ध्वनि,
शिवाचार्य भगवन् का जन्मोत्सव है।

संयोजक क्रिस्टी जैन : भ. महावीर देशना फाउंडेशन द्वारा आयोजित 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व के आज 16वें दिवस पर उत्तम आकिंचन्य धर्म मना रहे हैं। यह एक प्रयास है, सभी जैन सम्प्रदायों को एक मंच के अंतर्गत लाने का और इस प्रयास में यह पहला कदम है कि हम यह 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व मना रहे हैं।

डायरेक्टर श्री मनोज जैन : गुरुजों के चरणों में नमन वंदन करते हुए णमोकार मंत्र की महिमा का गुणगान कुछ इस तरह किया –
मंत्र नवकार हमें प्राणों से प्यारा है,
ये वो है जहाज जिसने लाखों को तारा है
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं,
णमो आइरियाणं, णमो उवज्झयाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं।
आज 16वें दिवस उत्तम आकिंचन्य का विषय है और परम सौभाग्य की बात है कि राष्ट्र संत परम श्रद्धेय आचार्य सम्राट श्री शिवमुनि जी महाराज का 80वां जन्मदिवस है। ये भगवान महावीर देशना फाउंडेशन का बड़ा सौभाग्य है कि आज इस मंच पर गुरुवर के श्रीचरणों में नमन कर अभिनंदन कर पा रहे हैं।

डायरेक्टर श्री सुभाष जैन ओसवाल : भ. महावीर देशना फाउंडेशन की ओर से आज जैन जगत के ऐसे महान आचार्य जो पिछले 36 वर्षों से वर्षीतप का पारणा कर रहे हैं। एक दिन उपवास और एक दिन पारणा करते हैं। आज सारे देश में उनका जन्मदिन तप, संयम, त्याग, मौन, साधना और सामायिक के रूप में मनाया जा रहा है। वे 1300 साधु-साध्वियों का नेतृत्व कर रहे हैं, कि आज हमारे जैन समाज में एकमात्र आचार्य हैं, जितना बड़ा समुदाय, जितनी बड़ी शिष्य परंपरा, जितने बड़े भक्त उनके हैं, दूसरे किसी संत संप्रदाय में नहींं है। आचार्य श्री शिवमुनि जी महाराज के 80वें जन्मदिन पर कोटि-कोटि नमन – अभिनंदन करता हूं। पिछले वर्ष झूम के माध्यम से आचार्य श्री हमारे कार्यक्रम में पूर्ण रूप से आये। आप स्वस्थ रहें, जिनशासन की प्रभावना, आत्मा पर आपका चिंतन आगे बढ़ता जाए। इस मंच से विनती भी है कि आने वाले समय में आपने पहले भी यह आश्वासन दिया था कि सम्मेलन के बाद 3-4 साल गुजरात, महाराष्ट्र में विचरण करके, पुन: आप उत्तर भारत पधारें। हम चारों डायरेक्टर, कार्यकारिणी की ओर से निवदेन है कि आप दिल्ली के लिये विहार करें।

उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म. : जिस धर्म संघ का मैं सदस्य हूं – श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ। उस श्रमण संघ के हमारे सिरमौर पट्टधर आचार्य हैं आचार्य सम्राट पूज्य श्री शिवमुनि जी महाराज, जो कि 1350 साधु-साध्वियों के प्रमुख हैं। उनके कैबिनेट मंत्रिमंडल में वो स्वयं आचार्य हैं, उनके नीचे एक युवाचार्य हैं, छह उपाध्याय, सात प्रवर्तक और चार मंत्री हैं और ये 1350 साधु-साध्वियों का संगठन पूरे देश भर में कश्मीर से कटक तर फैला हुआ है और ये जन-जन के बीच जाकर भगवान महावीर का संदेश प्रदान करते हैं। आप स्वस्थ रहते हुए, जिनशासन की प्रभावना और हम सबका नेतृत्व इसी प्रकार प्रदान करते रहें और आपके पावन पुनीत चरणों में बारं बार नमन, वंदन।
आज के विषय उत्तम आकिंचन्य धर्म बहुत ही श्रेष्ठ है आज का दिन। आकिंचन्य धर्म के बिना साधु जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। श्रावकों का कुछ बिगड़े न बिगड़े, लेकिन आकिंचन्य के बिना, साधु के जीवन में गड़बड़ हो जाएगी। बाह्य और आभ्यांतर परिग्रह को त्यागकर, आत्म भावों में जो रमण करें, वो ही वास्तव में आकिंचन्य है। साधु घर-बार, माता-पिता, रुपया-पैसा सबको छोड़ कर आता है। समाज उसके लिये न्यूनतम व्यवस्थायें करता है। रहने के लिये मंदिर, स्थानक, त्यागी गृह, धर्मशालाएं हैं। विहार में सरकार-प्राइवेट स्कूलों, फैक्ट्री, फार्म हाउस में रुकते हैं, वे उसकी शोभा है।

मान लो मेरे पास ये चादर है और मैं चादर से आसक्त हूं कि ये चादर मेरी है, कहां गई, कौन ले गया – तो समझो मेरा परिग्रह भाव आ गया। इस शरीर के साथ भी ऐसा है। मेरी आत्मा सुरक्षित है, लेकिन मुझे मेरे शरीर से आसक्ति नहीं है, जब भी शरीर का प्राणांत होना हो, तो होगा लेकिन मैं इस शरीर के आसक्ति के प्रति किसी प्रकार का लगाव नहीं रखता। इस शरीर को मैं केवल एक साधन मात्र मानता हूं, ये दृष्टि एक साधु की होनी ही चाहिए। जैन आगम ग्रंथ आप पढ़ेंगे तो सभी का यही सार है कि परिग्रह का त्याग करके हम निरासक्त भावना से साधना करें – ये बात हो गई साधुओं की।

आम मानव की बात करें तो पूरी दुनिया में जो हिंसा, चोरी, कुशील, भ्रष्टाचार, आपाधापी है, सूक्षमता से चिंतन करेंगे तो आपको परिग्रह का भाव मिलेगा। अमरीका की चाहत है कि पेट्रोल – डीजल के सारे सेंटर पूरे दुनिया के मेरे कब्जे में आ जाए। चीन की नियत है कि सारी दुनिया में मेरा झंडा गढ़ जाए और जितनी महत्वपूर्ण धातुओं की खानें हैं अफगानिस्तान में मुझे मिल जाए, चाहे तालिबान का समर्थन ही क्यों न करना पड़ जाए। देशों की नियत भी ये हैं और व्यक्तियों की नीयत भी काफी हद तक ऐसी हो जाती है। तभी तेरापंथ के आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा था – अहिंसा परमो धर्म तो है लेकिन अपरिग्रह परमो धर्म को भी मानकर चलें क्योंकि परिग्रह की भावना जितनी बढ़ेगी, उतनी लूट खसूट की मनोवृत्ति लोगों के अंदर आएगी।

हम देह में रहते हुए भी देह से निरासक्त रहें। देह तो एक माध्यम है आत्मा के रहने का, लेकिन उसके प्रति आसक्ति का भाव रखते हुए हम निरासक्त रहें। आज भी घोर भौतिकवादी युग में भी जैन साधु-साध्वियां और श्रावक-श्राविकाएं अंतिम समय में सल्लेखना – संथारा करते हैं। यह कहता है कि जिसमें भेद विज्ञान की भावना आ गई, जो अपने शरीर से आसक्ति नहीं रखता, तो उसे अपनी देह का विसर्जन करने में, समाधिपूर्ण तरीके से उसे कोई कष्ट नहीं होता। उसके मन में संस्कार है कि मैं अंतिम समय में सल्लेखना ग्रहण करूं। आज बहुत बड़ी समस्या संपूर्ण जैन समाज की सभा धाराओं में देखने में आ रही है। वह है साधु समाज में अपने बुढ़ापे को लेकर के ख्याल कि हमारे बुढ़ापे में हम कहा बैठें, कौन हमें रुकवाएगा, कौन हमारी व्यवस्था करेगा, उसका एक बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है कि साढ़े सत्रह हजार जैन साधु-साध्वियों का 50 प्रतिशत अपने बुढ़ापे के लिये आश्रम, संस्थायें बनाने के लिये जी जान से लग जाते हैं। जो पैसा संघों का आना चाहिए, वह आज साधुओं की संस्थाओं को जाने लगा है, यह कटु सत्य है। साधुओें को जब श्रावक वर्ग सुरक्षा देने में असमर्थ हो जाए, या व्यवस्थायें भंग हो जाएं तो व्यक्तिगत भवन में सारा श्रम लगा देते हैं और करोड़ों रुपया संस्था में लगाते हैं। व्यक्ति के लिये 8 गुना 8 का कमरा बहुत होता है, लेकिन आसक्ति इतनी होती है कि कही -कही एकड़ों में आश्रम बनते हैं और उसमें लक्जरीपन आ जाता है। जब ऐसा होना शुरू हो जाएगी और उनका आकिंचन्य क्षीण – क्षीण होती चली जाएगी और बहुत बड़ी दिक्कत शुरू हो गई है। इसका निराकरण एक ही है, बड़े आचार्य जो होते हैं, अपने अंडर में रहने वाले साधुओं की रक्षा-सुरक्षा और व्यवस्था पर ध्यान देते हुए, ऐसी विकृतियों को समय रहते ठीक करने का प्रयत्न करें।

परम पूज्य महासाध्वी श्री मधुस्मिता जी महाराज : आचार्य शिवमुनि जी के जन्मदिवस पर श्रद्धा भक्ति करते हुए कहा –
जन्मदिन ये मनाओ, श्रद्धा के दीप जलाओ
भक्ति भाव के संग में शीश अपना झुकाओ
जन्मदिन ये मनाओ।
है ये चंदन सा जीवन, लगता जैसे यह सावन
मिश्री जैसी है वाणी, सबको करती है पावन
महके संयम की बगिया, जैन शासन दिखाओ
भक्ति भाव के संग में शीश अपना झुकाओ।
इस प्रकार हमारे आचर्य भगवंत जो भगवान महावीर के सम्यक मार्ग को अपनायें हुए, 36 वर्ष से एकांतर तप चल रहा है। बाह्य और अंतर तप के अंदर ध्यान, कायोत्सर्ग और समाधि के अंदर डूब जाते हैं। हमने 2019 पूना के अंदर साथ में चातुर्मास किया था। इसी ध्यान को और पुष्ट बनाने का प्रयत्न किया था।
आज 16वें दिन में आकिंचन्य तत्व जो है, हम और ज्यादा आगे बढ़ रहे हैं। क्रमानुसार हम चल रहे हैं, पहले सरलता लाओ, मृदुता लाओ, क्षमा लाना जरूरी है, त्याग जरूरी है, त्याग के बाद और ज्यादा अंतर जाना है तो आकिंचन्य में जाओ। संतों के पास कुछ नहीं होता है, वे तो निर्लिप्ति होते हैं। वस्तु तो क्या वे तो भीतर की भावना से भी अलप्ति हो जाते हैं।
तप के अंदर हमने अंतरतप लिया था। इस अंतर तप को बहुत सुंदर मन से लिये और वाणी में बोला –
हो चुकी पूजा पुजारी, पुष्प हाथों से गिरा दे
झिलमिलाते भू पर दीपों से नहों का पुछ उजाला
जैन मंदिर को न चमका पायेगी ये दीपमाला
जैन मंदिर में महाध्यान अग्नि की ज्योति जगा दे
हो चुकी पूजा पुजारी, पुष्प हाथों से गिरा दे।
आज मानव के हृदय में वीर का तू जोश भर दे
शांत ध्वनि से द्रव्य भौतिक श्रेष्ठि में जयघोष कर दे
सो रहे मानव प्रमादी आज तू उनकों जगा दे
हो चुकी पूजा पुजारी, पुष्प हाथों से गिरा दे।

इसमें कहा गया है कि जैन मंदिर के अंदर तो ध्यानाग्नि जलनी चाहिए। हम समाज के अंदर फैलाये कि आकिंचनता और त्याग जीवन में लाना होगा। हम शरीर तक ही सीमित न रहें, पूजा पाठ तक न रहे, आगे चलकर आत्मसाधना करनी होगी।
तन कोई छूता नहीं, चेतन निकल जाने के बाद।
फैंक देते हैं फूल को, खुशबू निकल जाने के बाद।

संयोजक डॉ. अमित जैन : फाउंडेशन का उद्देश्य है कि जैन समाज जैन दर्शन, जैन कल्चर और जैन लिट्रेचर जितना समृद्ध है, परंतु उसकी समृद्धता जैन समाज तक सीमित न रहकर, वह पूरे विश्व के समक्ष प्रकट हो और उसका फायदा, व्यापकता वैश्विक स्तर पर बढ़े। इस छोटे से मंच पर यह अब दिख रहा है। हम चाहते हैं भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के मंच पर ऐसे सभी व्यक्तियों को जोड़े जो अपने-अपने स्तर पर कहीं न कहीं जैन समाज को, जैन दर्शन और धर्म को आगे बढ़ा रहे हैं, चाहे वह क्षेत्र उनका राजनीतिक, कल्चर का, धार्मिक हो तो मैं सभी इस अवसर पर धर्मसभा में विराजमान साधु संतों के चरणों में नमन करता हूं।

डायरेक्टर श्री राजीव जैन सीए : जो ध्यात्मिकता आचार्य श्री शिवमुनि जी के जीवन में है, आज उत्तम आकिंचन्य पर्व पर वो आध्यात्मिकता हम सभी के जीवन में प्रकट हो, ऐसी मंगल कामना है।
हमारे मन में पीड़Þा है, कि कैसे हमारा जैन समाज एकत्रित हो? मंच पर बहुत से ऐसे व्यक्तित्व विराजमान हैं, जिनका न्याय के क्षेत्र में या समाज को समाधान प्रदान करे के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान है। हम लोग जो चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जो एडवोकेट्स हैं, न्यायविंद हैं, दुनिया के पास समस्यायें हैं और हमारे पास उसका समाधान है। ये हमारी विशेषता है, ये हमारी समाज को देन है। दुनिया के पास समस्यायें और हमारे पास समाधान है। 1974 में जैन एकताच का एक अनूठा प्रयोग हुआ। उसके पीछे कारण क्या था? उसके पीछे कारण था संतों की एकता। हमारे संत एक मंच पर आकर विराजमान थे, चाहे वे किसी भी परंपरा को मानने वाले थे। पूरे देश में जो एकता का जैन प्रभाव बना, वह धीरे-धीरे क्षीण हो गया। क्योंकि जो उस समय संस्थाओं का निर्माण हुआ, उसके साथ कोई विजन नहीं था एकता के। वो संत भिन्न-भिन्न दिशाओं में अपनी चर्या के अनुसार विहार कर गये और दोबारा से उन संतों को मिलवाकर एक मंच पर बिठाया नहीं जा सका, जिस सामाजिक संस्था का निर्माण हुआ – भगवान मैमोरियल समिति का, उनके पास ऐसा कोई संवैधानिक ढांचा तैयार नहीं हुआ जिससे वे पूरे जैन समाज को प्रतिनिधित्व प्रदान कर सके। चुनिंदा लोगों की वो बॉडी रह गई, जो संतों, श्रावकों से पूरी तरह अलग रही। आज जो भगवान महावीर देशना फाउंडेशन का जन्म हुआ, वो हमारी इस पूजा को देखकर हुआ, कि हम जैन समाज तितर-बितर है, टूटा हुआ है, बिखरा हुआ है।

किसी चार व्यक्ति को खड़ा करें और कह दें कि ये जैन समाज है, तो ऐसा नहीं है। अगर मैं विशेष सम्प्रदाय की बात करूं तो श्वेतांबर का बहुत बड़ा संत समाज है। उसमें बहुत सारे ग्रुप हैं, बहुत सारे संप्रदाय हैं और उन संप्रदायों का आपस में मिलन नहीं है। तो इस वजह से हमारा समाज बिखर गया। यदि किसी एक सम्प्रदाय को उठाकर हम बैठ जाएं कि कहें कि हमारे समाज का पूरा प्रतिनिधित्व आ गया है, तो बात नहीं बनेगी। तो हमने सुझाव दिया कि इसका समाधान क्या है? हमने यहां सिर्फ 3 सूत्र दिए – पहला 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व, दूसरा संतों का अधिवेशन, जिसमें संतों का मिलना हो, तीसरा सूत्र दिया यूएनओ जैसा जैनों का एक संगठन। तीसरा सूत्र आप सभी वकीलों, विद्वानों के मतलब का है और ये किस प्रकार से संगठन खड़ा किया जाए, उसमें आप सबकी स्पेशलिटी और विचार की जरूरत है। समाज का प्रतिनिधित्व हमारी संत परम्परा, मूर्धन्य आचार्य जब वो साथ मिलकर बैठते हैं तो समाज का प्रतिनिधित्व होता है। जो हमारे समाज की भिन्न-भिन्न आमनाओं की केन्द्रीय संस्थाओं हैं, जब वे साथ मिलकर बैठते हैं तब पूर्ण प्रतिनिधित्व होता है। जो छोटी से छोटी संस्था भी है, उसे प्रतिनिधित्व नहीं मिले, तब तक जैन समाज की संपूर्ण एकता स्थापित नहीं होती। हम सब भगवान महावीर के अनुयायी हैं, यदि हम ऐसा संगठन खड़ा करें, जिसमें हरेक आमना, हरे सम्प्रदाय का जो केन्द्रीय संगठन है, उसको प्रतिनिधित्व जिस प्रकार यूएनओ में हरेक प्रतिनिधित्व मिलता है। उसको अपनी बात कहने का अधिकार है, उसको कामन एजेंडा पर विचार करने का अधिकार है और एक-दूसरे की समूची एकता दिखाने का। साथ में हम क्यों मिलना चाहते हैं, हमारे उद्देश्य क्या है?

जैन एकता हमारा उद्देश्य है? हम इकट्ठे मिलकर अपने उद्देश्य को प्राप्त करें। हमारा फारमेट कैसा होगा? कि भारत की जितनी भी केन्द्रीय संस्थायें हैं, चाहे वो किसी भी आमना की हो, उन सभी को जिस प्रकार से यूएनओ में सदस्यता मिलती है, उन्हें सदस्यता मिले। उनके प्रतिनिधि यहां नोमिनेट हो, उन प्रतिनिधियों की एक एसेम्बली क्रिएट हो जो सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोकर, पूरे भारतवर्ष के लिये निर्णय ले, साथ में जिस प्रकार यूएनओ में सिक्योरिटी काउंसिल हैं जिसमें पांच स्थाई सदस्य हैं और चार अस्थाई, उसी प्रकार से हमने देखा कि हमारे देश की बड़ी आम्नायें हैं, चाहे वह दिगंबर हो, स्थानकवासी समाज में आचार्य शिवमुनि जी, तेरहपंथ समाज में महाश्रमण उन्हें सिक्योरिटी काउंसिल की तरह स्थाई एक काउंसिल बनाकर उसका स्थाई सदस्य बनायें और साथ में बची जो छोटी आम्नायें जो इन चारों में भी समाहित नहीं होती, उनको एक अलग से फ्लक्ट्युलेटिंग मेम्बरशिप दी जाएगी और वो काउंसिल पूरे जैन समाज लीडरशिप उपलब्ध करायें। जो स्थाई सदस्य हैं, जिस प्रकार से वीटो का अधिकार होता है, सिक्योरिटी काउंसिल में वीटो की पावर को यूज करते हैं, उदाहरण के लिये कोई प्रस्ताव आया, और हमने स्थानकवासी समाज का प्रतिनिधित्व करता हूं, उसको एक वीटो पावर मिली है। कोई प्रस्ताव आता है, जिसको मैं एग्री नहीं करता, और मैं यदि उस प्रस्ताव को मना कर देता हूं, तो वह प्रस्ताव पास नहीं होगा तो इससे क्या होगा कि आपस में हमारा प्रेम प्यार बढ़ेगा, आपस में हम साथ एक मंच पर बैठ पाएंगे और पूरे देश के हर छोटे से छोटे जैन समाज को, हर छोटी-छोटी सी जैन पंरपरा को ला पाएं। वो मंच जहां पर प्रतिनिधि हैं, वो आपस में निर्णय करेंगे, पूरे देश का संचालन करेंगे तो भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के मंच पर यूनाइटेड जैन, कुछ भी नाम रख लीजिए उसका एक चार्टर बनाना चाहते हैं, जिस तरह से यूएनआ का चार्टर है। उसे बनाने के लिये हमारे साथ जस्टिस नरेन्द्र कु. जैन, जस्टिस अभय गोविल साहब, डी.आर. मेहता साहब, क्रिस्टीजी, हम सब वकील, सीए हैं, हम लोग इस मंच से आज विशिष्ट संबोधन आपका चाहते हैं किस प्रकार एक हम ऐसा चार्टर तैयार करें, वो संस्थाओं के सामने रखें। एक सेन्ट्रल बॉडी बना दें जो पूरे देश को, सारे संतों को साथ लेकर चलें और पूरे समाज को साथ लेकर चलें।

डीआर मेहता जी
: आज जैन धर्म, ऐसा लगता है रहा ही नहीं है, सिर्फ संप्रदाय रह गई है। उस पर चर्चा आवश्यक है। प्रश्न यह है कि इसका समाधान क्या हो? मुख्य बात तो यह है कि धर्म में रुचि कैसे आये? आज युवा जैन धर्म से बिल्कुल अलग हो गया है। बच्चे जबर्दस्ती आ जाए, मन से नहीं आते हैं। आज 40-50 लाख रह गये हैं, बच्चे नहीं आए तो क्या होगा? मेरा सुझाव है कि धर्म में रुचि कैसे आये? दर्शन की चर्चा होनी चाहिए, जैन धर्म की समस्या मैं समझता हूं, धर्म की क्लासिफिकेशन, सब क्लासिफिकेशन कर दिया है, इतना कम्प्लीकेट कर दिया है, सीधी सरल बात नहीं होती। आज सरदार, इस्लाम धर्म देखिये कितने सिम्पल हैं वे लोग। एक बार सरदार मित्र मुझे ले गये शीशगंज गुरुद्वारे। मत्था टेका, वापिस आया तो देखा जूता साफ। संभ्रात व्यक्ति बैठे थे, मैंने पूछा आप कौन? उन्होंने कहा सेवक हूं। बाहर आया तो पता लगा कि वे हाईकोर्ट के जज रहे हैं।
अगर सीधा सरल तरीके से धर्म प्रस्तुत हों, उसका क्रियान्वयन हो, कम्पीकेशंस में नहीं पड़े तो लोगों की रुचि जगेगी। मेरे ग्रांड चिल्ड्रन हैं, सदियों से जैन धर्म में हैं, आज उनकी कोई रुचि नहीं है। मैं पूछता हूं, तो कहते हैं इसमें क्या है? उनकी रुचि एनिमेल वैलफेयर में है, बिना कहे रोज जाते हैं। आज रुचि पैदा की जाये धर्म में। जो प्रमुख सिद्धांत हैं, जैसे अहिंसा, उसका स्वरूप को महत्व दें तो ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ेंगे और नई पीढ़ी जुड़ेगी।

जैन धर्म सबसे वैज्ञानिक धर्म है, 21वीं सदी का धर्म है। आज की समस्याओं का समाधान जैन धर्म में ही है। अहिंसा से हिंसा का समाधान है, असहिष्णुता का इलाज अनेकांतवाद है। मानवीय अधिकारों का हनन – भ. महावीर कहते हैं सब समान हैं। जैन धर्म कहता है, सब आत्मायें बराबर हैं। जैन धर्म ने सबसे पहले दुनिया में पुरुष और स्त्री को बराबर समझा।

जस्टिस नरेन्द्र कुमार जैन :
जैन एकता के लिये 8 न 10, अब 18 बस – यह निश्चित रूप से गत वर्ष भी सभी संत-साध्वियों का इस बीएमडीएफ को आशीर्वाद प्राप्त हुआ था और इस बार भी इस कार्यक्रम 03 से 20 सितंबर तक रखा है, देखा सभी मुनियों, साधुओं, वक्ताओं ने बीएमडीएफ को इस कार्यक्रम के लिये बहुत-बहुत अपना आशीर्वाद दिया है। कल जब ललितप्रभ जी ने जैन एकता को लेकर बीएमडीएफ के बारे में कही कि वास्तव में जो दीवारें खिंची हुई है, उनमें दरवाजें – खिलड़कियां खोलने का काम करो। बीएमडीएफ यही कर रही है, मैं फाउंडेशन के सभी पदाधिकारियों को उनके अद्वितीय कार्य के लिये बहुत-बहुत साधुवाद देना चाहूंगा।

आज हम सब भ. महावीर के अनुयायी हैं, हम सब जब एकसाथ बैठते हैं, हमारे में बात होती है कि ये दिगंबर, ये श्वेतांबर है, ये तेरापंथी है, जबकि हमारा नवकार, 24 तीर्थंकर, भक्तामर, भ. महावीर का सिद्धांत जियो और जीने दो, वो भी सब एक हैं तो ये चीजें जब बीएमडीएफ के दिमागों में आई कि ये क्यों ऐसा हो रहा है तो क्यों ने ऐसा मंच बनाएं जहां हम सब मिलकर बैठे। वास्तव में जो सूत्र बीएमडीएफ को संभालना चाहिए, वह है कि यूएनओ की शुरूआत कैसी हुई? आज हमारा जो मानवाधिकार आयोग है, उसका जो कानून बना हुआ है – ह्यूमेन राइट्स प्रोटेक्शन एक्ट 1993 जो भारतीय संसद में पारित हुआ, यह यूएनओ के दबाव में ही पारित हुआ। 1939 से 1944 के बीच में जब द्वितीय महाविश्व युद्ध हुआ और जब सैकड़ों देशों के बीच इतना लड़ाई हुई, कई देश जो इससे प्रभावित नहीं थे उनके भी लोगों को इस वज्र को सहन करना पड़ा। जब इसकी समाप्ति 1944 में हुई तब सभी देशों ने मिलकर 1945 में यूएनओ को कम्पैल किया कि इस मानवता के जो मानव धर्म सबसे बड़ा धर्म है, उस मानवता के बचाव के लिये निश्चित रूप से लिखित रूप में कानून बनाई। एक कमेटी यूएनओ ने बनाई और 1949 में यूनिवर्सल डिक्लेरेशन आॅन ह्यूमन राइट्स – लिखित में पहला सार्वभौमिक मानवता के अधिकार, वो आया 10 दिसंबर 1949 को। इसीलिये 10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानव दिवस मनाया जाता है। इसमें जितने भी अनुच्छेद दिये हुए हैं, वो सब मानवता के ऊपर आधारित हैं, जो भगवान महावीर की देशना में आप पाएंगे।
अगर बच्चों को धर्म से जोड़ना है, तो उन्हें दूसरे रूप में उन्हें समझाना पड़ेगा भ. महावीर के सिद्धांत क्या है, और विश्व को उनसे क्या लाभ हैं? भगवान महावीर का नाम जोड़कर, महावीर का जो काम किया जयपुर के फुट ने दुनिया के दिव्यांगों के लिये, इस तरह की चीज हम एक मंच पर बैठकर करें, वास्तव में हमारा यह मंच का उद्देश्य जैन एकता का पूर्ण होगा और न केवल जैन बल्कि अजैन भी आपके कार्यक्रम से जुड़ेंगे।

जो वकील है, जज है, उन्हें सबसे ज्यादा तकलीफ होती है, जब हमें पता लगता है कि आज उस जिले में, उस शहर में ये मुकदमा चल रहा है। दो तरीके से हो रहे हैं – एक जैन और अजैन या जैन और सरकार के बीच में, दूसरे जैनियों के आपसी संप्रदायों के बीच में। ये कैसी एक विडम्बना है कि हम सब भ. महावीर के अनुयायी हैं और हम अपने झगड़ों को आपस में बैठकर नहीं सुलझा पा रहे हैं। श्रावक आपस में बैठे उन मुकदमों को निबटायें और संत भी इसमें दखल दें। संतों की समन्वय समिति बने। संतों के दखल से ही श्रावक निश्चित रूप से मानेंगे, आप समझायेंगे कि आप भ. महावीर के अनुयायी हैं, यह झगड़ा किस बात का?

साध्वी युगल श्री निधि कृपा श्री महाराज : भ. महावीर देशना फाउंडेशन का ये 18 दिवसीय पूर्यषण पर्व अत्यंत सराहनीय, अत्यंत अमोदनीय और अभिनंदनीय है क्योंकि फाउंडेशन का मुख्य उद्ेदश्य है अपने को लेबल से पार होकर देखने सीखे, अपने को लेबल से पार होने के लिये लेबल को बढ़ाना होगा, लेकिन लेबल के साथ अगर हम लेवल को रेज नहीं करते हैं तो हम उन लेवलों से चिपक जाता है। उस लेवल से पार होने के लिये विराट दृष्टि का लेवल बढ़ाना होगा और इसलिये इस संदर्भ में हमारा एक विचार है कि भ. महावीर की जो मूल साधना है, उसे छूते हुए कि यदि परम्पराओं के साथ हम स्प्रिच्युल बनते हैं तो अपना-पराया भेदभाव समाप्त हो जाता है यानि टेÑडिशनल होने के साथ अगर अपना ओरिजनल स्वरूप याद आ जायें कि मैं कौन हूं? तो फिर सारे मेरे-तेरे की रेखा समाप्त हो जाएगी। इसका रिजल्ट यह भी मिलेगा कि अपने-पराये के बीच की दीवार खटखटाने से दीवारों में दरवाजे बन सकते हैं, बस कोई खटखटाने वाला चाहिए और ऐसी बीएमडीएफ बड़ी सुंदरता से खटखटाने का कार्य कर रही है।

स्वस्ति श्री चारूकीर्ति भट्टारक जी, मूडबिद्री : आज बहुत अच्छी बात डॉ. मेहता जी ने हम सबको बताई। उत्तम आकिंचन्य धर्म यानि मेरा सबकुछ नहीं है, तेरा सब कुछ है – ऐसा वक्ता को आपने बुलाया यही आकिंचन्य धर्म है। जैन धर्म में बताया कि ये शरीर भी मेरा नहीं है। शरीर अलग है, आत्मा अलग है और चेतन-अचेतन पदार्थ के बारे में कदापि राग नहीं करना। इसलिये किंचित मात्र भी संसार की जितनी भी वस्तु हैं – मेरी नहीं है। प्राचीन समय में जहां – जहां ऋषि मुनि थे, कितनी बड़ी श्रमण परम्परा थे, वहां के लोग कितना संपत्ति का उपार्जन करते थे, हर धर्म के शिष्यों के रूप में औषध, विद्या, अन्न दान के रूप में हजारों-हजार साल तक दान और धर्म किया, मंदिर के निर्माण किये, तो क्यों किया? वे समझते थे कि अपना कुछ नहीं है। उत्तर भारत में 18 दिन का पर्यूषण पर्व मना रहे हैं, यह बहुत आनंद का बात है।

आचार्य श्री देवनंदी जी : दस लक्षण पर्व के ये दिन हमारे लिये अपनी आत्मशुद्धिकरण के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत जीवन की उन्नति और विकास के लिये जहां ये प्रेरणा देते हैं, वहीं ये पर्व हमारे लिये, हमारे परिवार, समाज और समूची मानव जाति के लिये ही नहीं, प्राणी मात्र के कल्याण की देशना प्राप्त होती है। सभी जीवों के उत्थान की बात हमारे धर्म और संस्कृति में है। हम एक इन्द्रिय से पंच इन्द्रिय जीवों की सुरक्षा की चर्चा करते हैं, वहीं हम बीएमडीएफ के मंच पर बैठकर जैन एकता की बात भी करते हैं। हमारी समाज एक विचारशील समाज है, बहुमुखी प्रतिभा की धनी और आज हमारे में जो प्रतिभायें विद्यमान हैं, वे अन्यत्र नहीं मिलेगी, शायद इसलिये कि हमें बचपन से ही भगवान महावीर के पवित्र विचारों से सुसंस्कारित हुए हैं। कई लोगों को बहुत प्रयासों, साधनों से ये विचार प्राप्त हो पाते हैं लेकिन हम जैनों को विरासत में यह संस्कृति मिली है।

हमारे माता-पिता, गुरुओं को जैन समाज के बच्चों को सिखाना नहीं पड़ता है कि बेटा चींटी मत मारो, वे बचपन से जीवों की रक्षा की बात करते हैं। इन संस्कारों पर न दिगंबर की, न श्वेतांबर की मोहर लगी है। अहिंसा सबके लिये हैं। जो त्याग और आध्यात्म को अपनाएगा, उसकी आत्मा की शुद्धि होगी। रही बात इस वीतरागता के मार्ग पर बढ़ने के लिये ये अपनी संयम की पराकाष्ठा को जितना उपलब्ध हो जाएगा, उसे उतनी जल्दी आत्मउपलब्धि होगी। इसके लिये हमें किसी आडम्बर, दिखाने की, प्रदर्शन की आवश्यकता है। जरूरी है हमारे आत्मिक विचारों की शुद्धि की। ये विचार भी बाह्य परिग्रह त्याग पर ही निर्भर है। जैसे चावल का छिलका दूर नहीं होता तब तक चावल की लालिमा दूर नहीं हो सकती। इसी प्रकार से हमारे जीवन का बाह्य आडम्बर, मोह-माया, ममत्व भाव नहीं हटता है तब तक आंतरिक शुद्धि नहीं मिलेगी और आकिंचन्यता का पद प्राप्त नहीं होगा।

श्रीमती बिमला बाफना : आज 16 दिन बीत गये हैं, सभी को यहां आने की इच्छा होती है। मंच पर आये वक्ताओं से जो विचार प्राप्त हो रहे हैं, उससे निश्चित रूप से जैन एकता का उद्ेदश्य पूर्ण करेंगे। हमें यूएनओ वाले सूत्र बनाना ही चाहिए। आज डीआर मेहता जी ने जो अपनी पीड़ा बताई कि बच्चों में धर्म के प्रति कैसे रूचि पैदा की जाए और उनकी जो शैली, काम करने का तरीके देखा, तो बहुत खुशी हुई कि जयपुर फुट जो देश-विदेश तक ले गये और भगवान महावीर का नाम उन्होंने कहां तक पहुंचाया, वह सचमुच प्रशंसनीय है। इसी तरह न्यायधीशों के वक्तव्यों ने हमें मार्ग दिखाया है, साध्वी महाराज ने रिच्युल से निकलकर स्प्रिच्युल तक होना चाहिए, भट्टाकर जी ने जैनिज्म का इतिहास बताया और उससे कैसे शिक्षा लें। सभी संतों ने हमारे पर अपने विचारों के उद्बोधन से बहुत कृपा की। इस मंच के चार लोग चार लाख के बराबर है और ये 40 करोड़ तक पहुंचना का कार्य करेंगे।

सभा के अंत में आचार्य श्री शिवमुनि जी के जीवन पर एक वीडियो प्रेजेंटेशन के साथ उनका 80वां जन्मदिवस मनाया।
(Day 16 समाप्त)