जहां पर मानसिक प्रदूषण नहीं होता, जहां वाचनिक प्रदूषण नहीं होता, जहां कायिक प्रदूषण नहीं होता, वहां से पर्यूषण पर्व प्रारंभ होता है

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न 8 न 10 अब 18 बस-
18 दिवसीय जैन पर्यूषण पर्व 2021 की रोजाना 03 से 20 सित. तक रोजाना सान्ध्य महालक्ष्मी की EXCLUSIVE प्रस्तुति

सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 04 सितंबर 2021

पानी आग को बुझा देता है, आग पानी को जला देती है
लेकिन दोनों की मित्रता रेल को पटरी पर चला देती है
यह वर्तमान स्थित की आवश्यकता।

जैनी एक हो जाना
इधर-उधर क्या ढूंढ रहे हो, यहां पड़ा है खजाना।
जैनी एक हो जाना।।
धर्म हमारा एक है तो फिर आपस में क्यों लड़ना
महावीर की हम संतानें, भेद-भाव क्या रखना।
भाई से भाई बिछुड़ रहे हम, वंश – पंथ पर पड़कर
सुख शांति में आग लगाई, इन राहों पर चलकर।
जैनी एक हो जाना।।
हम चाहें तो भेदभाव की दीवारों को तोड़ें
तू है दिगम्बर, मैं श्वेताम्बर मतभेदों को छोड़े।
अपना मंत्र भी एक है भाई, अपना चिंतन एक
अपनी मंजिल एक है भाई, अपना रास्ता एक।
जैनी एक हो जाना।।
स्थानक तेरहापंथी एक धागे बंध जाए
महावीर ने राह दिखाई आज उसे अपनाएं
प्रेम के मजबूत धागे में हम मोती बन जाए
मोती माला बेशक-बेशक, घर-घर में पहुंचाएं
जैनी एक हो जाना।।

भगवान महावीर देशना फाउंडेशन द्वारा आयोजित 18 दिवसीय जैन पर्यूषण पर्व 2021 के इस आयोजन का अपना मंगल सान्निध्य प्रदान कर रहे प.श्रद्धेय आचार्य श्री देवनंदी जी महाराज, उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म., महासाध्वी श्री मधु स्मिता जी म.सा., प. श्रद्धेय गणिनी आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माता जी के पावन चरण कमलों में कोटिश: वंदन करते हुए श्री राजीव जैन सीए ने प्रारंभ उद्घोष में आज इस महापर्युषण पर्व के प्रथम उद्घाटन दिवस पर मंगल उद्बोधन दे रहे संतों – प. श्रद्धेय आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी, आचार्य श्री कुलचन्द्र सूरिश्वर जी म.सा., युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि जी म.सा. एवं आ. श्री लोकेश मुनि के चरणों में कोटिश: वंदन करते हुए भगवान महावीर देशना समिति तथा भगवान महावीर देशना फाउंडेशन की परिकल्पना करने वाले चारों डायरेक्टर – सर्व श्री सुभाष जैन ओसवाल, अनिल जैन एफसीए, मनोज जैन एवं राजीव जैन सीए की ओर से सादर जयजिन्नेद्र कर 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व का शुभारंभ करते हुए कहा कि न 8, न 10, अब से 18 बस। साथ बैठें, मिलकर बैठें – ये संदेश हमारे सभी संतों का है। पर्यूषण पर्व संवत्सरी से 7 दिन पहले मिलाकर कर लिये श्वेतांबर, संवत्सरी के 10 दिन बाद ले लिये दिगंबर ने, कुल मिलाकर हो गये 18 और जब पूरे देश का जैन समाज 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व एक साथ मिलकर मनाएगा तो यह हमारा एकता का प्रतीक होगा।

श्वेतांबर की एक मान्यता के अनुसार पर्यूषण पर्व 03 सितंबर 2021 से और दूसरी मान्यता के अनुसार 04 सितंबर से शुरू होगा। अंनत चतुर्दशी 19 सितंबर की और 20 सितंबर को प्रतिक्रमण के साथ इस 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व को समापन करेंगे। इस उद्देश्य के साथ सभी संत-मुनिराज, श्रावक देशभर से इस आयोजन में सम्मिलित हैं।

आत्मा के समीप रहने का, आत्मा को शुद्ध बनाने का, सांसारिक गतिविधियों से दूर रहने का यह पर्व है। हमारे संत मुनिराज पूरे वर्ष पर्यूषण मनाते हैं, लेकिन यह पर्यूषण सांसारिक लोगों के लिये हैं कि हम कम से कम 18 दिवस अपनी आत्मा के समीप रहें।
भगवान महावीर देशना फाउंडेशन ने पिछले वर्ष यह संकल्प लिया, ये संदेश पूरे देश को दिया कि जैन एकता में 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व अनिवार्य है, जब तक पूरा जैन समाज 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व नहीं मनाएगा, हमारी एकता, हम एक मंच पर सिर्फ कहने के लिये बैठेंगे, वह हमारी स्थाई एकता नहीं होगी। यह विचार आगे बढ़ा, देश के आचार्य भगवंतों, विद्वानों ने प्रतिष्ठित महानुभावों ने इस बात को बल दिया कि इसे आगे बढ़ाने लायक हैं। हमने इस साल इस संस्था को स्वरूप दिया – भगवान महावीर देशना फाउंडेशन एक प्रा. लि., सेक्शन 8 की कंपनी, एक ऐसा मंच जिसमें चुनाव नहीं होंगे, जिसमें पूरे देश की जैन समाज को, संतों को, त्यागियों को सभी को एक मंच दिया जाए, सभी श्रावकों को, विद्वानों का सम्मान, कार्यकर्ताओं का सम्मान किया जाए और ये 05 अगस्त 2021 को भगवान महावीर देशना फाउंडेशन जैन समाज के इस एकीकृत मंच का गठन किया गया सेक्शन-8 कंपनी के स्वरूप में। अब हमें 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व मनाने का संकल्प लेते हैं कि जीवनभर इस संकल्प का पालन करेंगे। यह संकल्प एक आंदोलन है, जो आपके जुड़ने से, सहभागिता से मिलेगा। इसके लिये आपको हमारी वेबसाइट पर जाकर अपना संकल्प पत्र भरकर भेजना होगा। वह संकल्प पत्र आप प्रिंट कराकर अपने संस्था, घर में भी लगायें।

महासाध्वी मधु स्मृतिजी : पंच परमेष्ठी को नमन करते हुए मंगलचारण के पश्चात् महाराज साहब ने कहा कि देशना कार्यक्रम प्रारंभ हो चुका है, इसे आगे बढ़ायें।

डायरेक्टर अनिल जैन एफसीए : हमारे यहां रत्नत्रय की बात की जाती हैं। जब हमारा णमोकार मंत्र एक, चिंतन एक तो हम मतभेद कब छोड़ेंगे? हम चिंतन करते हैं लेकिन अनुसरण नहीं करते। आज हम जैन जो वस्त्रधारी हैं, उनसे हमें कोई श्वेतांबर या दिगंबर नहीं कह सकता, फिर हमारे में मतभेद क्यों? जो रत्नत्रय – सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान, सम्यकचारित्र का मंत्र जो हमारे जैन धर्म क पास है, पांच महाव्रत महावीर के दिये हुए हैं और पर्यूषण इतना बढ़ा विशाल पर्वों का पर्व पर्यूषण वह भी 8 और 10 दिनों में बंट गया। 8 दिनों के पर्यूषण और 10 दिनों का दसलक्षण रह गये। ये कब तक चलेगा? जब सन् 1951 में हमारे पार्लियामेंट में 15 जैन सदस्य थे और जीरों हैं।

हमारे पास उतना बढ़ा आज नेतृत्व देश की राजनीति में नहीं रह गया, आखिर वह प्रतिनिधित्व हमें क्यों नहीं मिलता? क्यों नहीं दो भाई दिगंबर और श्वेतांबर मिलकर एक मंच पर बैठकर इसका चिंतन करें। इस विचार को सामने रखते हुए हमारी यह संरचना आपके समक्ष है। समाज के सभी कार्यों के करने के लिये इस मंच का उद्घाटन हुआ है। मैं पूरे जैन समाज से आह्वान करता हूं कि वह किसी भी वर्ग से आता हो, वह अपने वर्ग को भूलकर इस पर्यूषण को धारण करें, पांच महाव्रत को, रत्नत्रय को धारण करें और हमारे साथ मिलकर अद्भुत संरचना प्रस्तुत करें।

डायरेक्टर मनोज जैन : सभी के दिलों में, सभी के लिये प्यार, आने वाला हर पल लाए खुशियों की बहार, इस उम्मीद के साथ भुला के सारे गम, इस आयोजन को आओ हम सब मिलकर करें वेलकम – इस उद्घोष के साथ मंच का हार्दिक अभिनंदन किया। पिछले वर्ष के कार्यक्रम से मिली प्रेरणा से हम इस वर्ष भी कार्यक्रम ला रहे हैं। इसमें मुनि लोकेश महाराज का भी बहुत बड़ा हाथ हैं, जो जैन धर्म की ध्वजा भारत में ही नहीं, विदेशों में भी भ. महावीर के संदेशों को फैला रहे हैं, जैन ध्वजा फहरा रहे हैं। उन्होंने संयोजकगण हंसमुख जैन गांधी इंदौर, अमित राय जैन बड़ौत, जिनेश्वर जैन इंदौर, पारस लोहाडे नासिक, विमल बाफना मुंबई, नरेश आनंद जैन दिल्ली, राजेन्द्र जैन महावीर सनावद, बहन सृष्टि जैन का आभार व्यक्त किया।

युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि : जैन संस्कृति में जैन परंपरा में संवत्सरी महापर्व का विशेष स्थान है। आषाढ़ी पूनम के पश्चात् 50 दिन बीत जाने पर और कार्तिक की पूनम से पहले 70 दिन अवशिष्ट रहने पर संवत्सरी की परिउपासना की जाती है। जो इस आराधना को सम्पन्न करता है, परमात्मा प्रभु महावीर के तीर्थ में उसे आराधक कहा जाता है। इस आराधना के लिये जैन परंपरा में दो प्रकार के प्रवाह प्रचलित हैं – पहला आठ दिन की आराधना और फिर दस दिनों की आराधना होती है लेकिन दोनों का केंद्र संवत्सरी है। ऐसी सांवत्सरिक आराधना जो जैन परंपरा में 18 दिनों तक गतिमान होती है, उन दिनों की आराधना को एक धारा में पिरोने का कार्य पिछले वर्ष भगवान महावीर देशना समिति द्वारा किया गया और उसी उपक्रम को पुन: इस वर्ष भी दोहराया जा रहा है। इसके चारों डायरेक्टरों ने देश भर में जैन एकता के प्रमुख आग्रही ऐसे अनेक बंधुओं को जोड़कर यह उपक्रम आगे बढ़ाया है। इस उपक्रम से आराधना अधिकाधिक मात्रा में सम्पन्न हो और जैन एकता का यह जो छोटा सा प्रारंभ बिंदु है, वह आगे आने वाले समय में विशाल रूप धारण करें और संपूर्ण विश्व में जैन एकता इस रूप में साकार बनें।

आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी : पर्यूषण का शाब्दिक अर्थ है परि मतलब चारों तरफ से ऊषण मतलब धर्म प्रभावना। हमारी आत्मा में जहां चारों तरफ से धर्म की आराधना प्रारंभ हो जाती है, उसका अर्थ पर्यूषण कहलाता है। जहां पर मानसिक प्रदूषण नहीं होता, जहां वाचनिक प्रदूषण नहीं होता, जहां कायिक प्रदूषण नहीं होता, वहां से पर्यूषण पर्व प्रारंभ होता है। हम मन वचन काय के प्रदूषण को दूर करें। हमारे में संघर्ष, अहंकार, कषायों का प्रदूषण भर चुका है, इन्हें दूर करने के लिये पर्यूषण आता है। हमारा यह मंच व्यक्तियों के अंदर प्रदूषण भरा हुआ है, उसे दूर करने के लिये पूर्यषण पर्व को एकता के प्रतीक के रूप में ज्ञात होगा। अब नहीं, तो कब? ये 8 और 10 नहीं, अब 18 बस – ये बात एकता का प्रतीक है। ग्रंथों के हिसाब से चार महीने के चातुर्मास को ही पर्युषण पर्व कहते हैं। इन चार महीनों में प्रदूषण दूर नहीं कर पा रहे हैं तो कम से कम इन 18 दिनों में अपना प्रदूषण दूर करें। आप अपना अस्तित्व रखो, पर यह न कहो कि आप संवत्सरी या दसलक्षण मना रहे हो, आप कहो पर्यूषण पर्व मना रहे हैं। इससे पूरे विश्व में यह संदेश जाना चाहिए कि जैन लोग 18 दिन एक धर्म मनाते हैं जिसमें साधना, तपस्या करते हैं। सभी एक साथ बैठकर अपनी आत्मा, परमात्मा की आराधना करते हैं। यह संदेश देने के लिये हमने इस मंच के माध्यम से भावना रखीं।

उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि : जैन एकता की दृष्टि से इन 18 दिनों के इस पर्व का प्रयोग संपूर्ण जैन समाज में बहुत बड़ा प्रतिशत इस बात को लेकर हर्षित होगा और उनका सहयोग समर्पण आप लोगों को निश्चित तौर पर प्राप्त होगा। सह अस्तित्व और पर्यूषण। जैन परंपरा में परस्परोग्रहो जीवानां में ही कह दिया गया कि सारी सृष्टि में संपूर्ण जीव एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे पर निर्भर है। यानि मेरे बिना आप अधूरे हैं और आपके बिना मैं अधूरे हैं। हम एक-दूसरे के विरोधी नहीं, एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसे सहअस्तित्व की भावना, प्रकृति के संतुलन को बनाने के लिये भी आवश्यक है और मानव समाज के संतुलन को बनाने के लिये भी यह सहअस्तित्व अर्थात् परस्परोग्रहो जीवानां वाली बात बहुत-बहुत आवश्यक है। आज हम मोटे तौर पर दिगंबर – श्वेतांबर दो भागों में और श्वेतांबर में तीन हिस्से हैं। हम कितना ही दावे कर लें लेकिन एक परंपरा दूसरे के बिना अधूरी है और दूसरी परंपरा पहले वाले के बिना अधूरी है। तो इन सबको मिलाने का सम्यक प्रयास यह मंच कर रहा है।

आचार्य कुलचंद्र सूरिश्वर म.सा. : हमारा जीवन किसी के उपकार से चलता है, चाहे वह साधु-साध्वी ही क्यों न हो। उपकार लिये बिना हमारा जीवन एक दिन भी नहीं चलता। छोटे से लेकर बड़े जीव हमारे पर उपकार करते हैं। भ. महावीर ने इसी लिये सूत्र दिया – परस्परोग्रहो जीवानाम्। जैन समाज के भीतर हमें 4 संप्रदाय नजर आती हैं – दिगंबर, श्वेतांबर मूर्तिपूजक, श्वेतांबर स्थानकवासी और श्वेतांबर तेरापंथी। ये चारों संप्रदाय एक हों, यही माध्यम से 18 दिवसीय पयूर्षण पर्व का आयोजन किया गया है। समाज में भी संगठित होना है, तो निश्चित तौर पर हमें एक-दूसरे से जुड़कर रहना, संगठित होना होगा।

श्री लोकेश मुनि : महान चारित्र आत्माओं का वंदन करते हुए मुनिश्री ने कहा कि यह जैन एकता का फाउंडेशन को बहुत-बहुत साधुवाद देता हूं कि उन्होंने एक ऐसा बीड़ा उठाया और इस 18 दिन के उपक्रम को शुभ भविष्य का ऐलान करता हूं। इस फाउंडेशन से जुड़े देश भर से चेहरों से आशा की किरण दिखाई देती है। हम सभी ने भगवान महावीर के आदर्शों के लिये गृह छोड़ा और भ. महावीर कहते हैं जो कषाय से मुक्त है, वही मुक्ति का अधिकारी है। धर्म का पात्र वही है, जो सरल है, ऋजु है, जो पवित्र है। चाहे क्लाइमेट चेंज की बात हो, तालिबान की समस्या हो, कोरोना का समय हो, सभी ने यही संदेश दिया है कि भगवान महावीर के संदेश इन समस्याओं को हल करने में सशक्त हैं।

आचार्य श्री देवनंदी जी : हम सब अपनी सहअस्तित्व के साथ एक साथ मिलकर आत्मशुद्धि करने के लिये यहां उपस्थित हुए हैं। यह पर्व जाति, पंथ, आदि से परे होकर मात्र मानवता की पहचान बनाने के लिये प्राणीमात्र को संसार के बंधन से मुक्त करने के लिये एवं पारिवारिक, सामाजिक और भारतीय सौहार्दता को बनाए रखने के लिये हम पर्यूषण पर्व मनाने जा रहे है। जैन समाज में अनेक पर्व होते हुए भी उनमें सबसे बड़े महत्व का त्याग, आध्यात्म, आत्मशुद्धि का पर्व पर्यूषण पर्व है। आत्मा की दूषणता को, कर्म बंधन को, राग-द्वेष को, कर्माें को, बैठा हुआ वैर-वैमनस्य को दूर करने के उद्देश्य से जब हम इस पर्व को मनाने के लिये चाहे हम मंदिर, स्थानक, चाहे हम तेरापंथी भवन चाहे स्वाध्याय में जाए, जहां कहीं भी बैठें हमारी आत्मा का शुद्धिकरण हो। हमारे माध्यम से किसी भी जीव की आत्मा न दुखे, हम आज सहअस्तित्व के साथ यह पर्व मना रहे हैं।

डायरेक्टर सुभाष जैन ओसवाल : भ. महावीर देशना फाउंडेशन का जो सपना है, भगवान महावीर के शासन को जन-जन तक पहुंचाना है, देश ही नहीं विदेश में भी। इस कार्य के लिये आयोजन समिति के जुड़े लोगों की अनुमोदना करता हूं।

संयोजक अमित राय जैन, हंसमुख जैन गांधी ने कहा कि हम 45 लाख जैनी एक हो जाएंगे तो हम 740 करोड़ के सिरमौर हो जाएंगे। हमारे पास भगवान महावीर की अहिंसा बहुत बड़ा अर्थ है। यह अहिंसा बम है जो विश्व में शांति समता लाता है। हमें यह अहिंसा बम पूरे विश्व पर फेंकना है। (Day 1 समाप्त)