मुख से लाल अग्नि की लपटें , भूत प्रेत का डर दिखला। भव दुख कारण हेतु कमठ ने ,जहर स्वयं ही पर उगला- मुनि श्री प्रणम्य सागर जी, कल्याण मंदिर स्तोत्र में

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11 मार्च 2023/ चैत्र कृष्ण चतुर्थी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
क्रोधित होकर क्रूर कमठ ने नभ मंडल को छूने वाली, धूली उड़ाई तूफानों से तहस-नहस करने वाली।।
दूर रहे प्रभु देह आपकी, छाया को भी छू न सके। मलिन हुआ वह स्वयं कर्म से, नभ में थूके ज्यों सनकी।।
फिर उस दैत्य कमठ ने, बादल गरज गरज कर के आवाज। काली रात अंधेरी करके, कड़ कड़ करती डाली गाज।
मुसल सम मोटी जल बूंदे, पटकी मानो हो तलवार। स्वयं कमठ ने अपने ऊपर, मानो कीने दुस्तर वार।।
नर मुंडो की अति डरावनी, लंबी लंबी मालाएं । बिखरे केश देखकर जिनके, डर जाती हो अबलाएं।
मुख से लाल अग्नि की लपटें , भूत प्रेत का डर दिखला। भव दुख कारण हेतु कमठ ने ,जहर स्वयं ही पर उगला ।।

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी, कल्याण मंदिर स्तोत्र में 31 से 33 गाथा, आज तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी के केवलज्ञान कल्याणक के अवसर पर

श्री पार्श्वनाथ को महामुनिराज के रूप में दीक्षा लिए चार माह हो गए। तब उन्होंने जिस वन में दीक्षा ली, उसी वन में जाकर देवदारू वृक्ष के नीचे विराजमान हो गए। वह 7 दिन का योग लेकर ध्यान मग्न हो गए। तभी संवर देव अपने विमान द्वारा आकाश मार्ग से जा रहा था । अकस्मात उसका विमान रुक गया। देव ने अपने विभंगा अवधी ज्ञान से देखा, तो उसे अपने पूर्व भव का स्मरण हो गया, यानी उसे मरुभूति भाई के समय अपने कमठ तक से 10 भव से चल रहा बैर, अब उसके दिमाग में चिर अंकित हो गया था। वह क्रोध में फुंकार लेने लगा। उसने भीषण गर्जन तर्जन करके प्रलंयकर वर्षा करना प्रारंभ कर दिया। फिर उसने प्रचंड गर्जन करता हुआ पवन प्रवाहित किया। पवन इतना प्रबल वेग से बहने लगा, जिसमें वृक्ष , नगर, पर्वत तक उड़ गए। तब इतने पर भी श्री पारसनाथ ध्यान से विचलित नहीं हुए।

तब वह अधिक क्रोधित होकर नाना प्रकार के भयंकर शस्त्र अस्त्र चलाने लगा। वह शस्त्र तप के प्रभाव से तीर्थंकर के शरीर पर पुष्प बनकर गिरते थे । (कुछ जगह ऐसा भी लिखा है कि वह उनके शरीर को छू भी नहीं सकते थे)। तब घातक शस्त्र भी निष्फल हो गए । तब संवर ने माया से अप्सराओं का समूह उत्पन्न किया । कोई गीत द्वारा रस संचार करने लगी ।कोई नृत्य द्वारा वातावरण में मादकता उत्पन्न करने लगी। अन्य अप्सराएं नाना प्रकार के हावभाव और चेष्टाएं करने लगी । किंतु आत्म ध्यानी वीतराग प्रभु अंतर विहार में मग्न थे। उन्हें बाहर का पता ही नहीं था। किंतु देव भी हार मानने वाला नहीं था । उसने भयानक रौद्र मुखी हिंसक पशुओं द्वारा उपसर्ग किया।

कभी भयंकर भूत प्रेतों की सेना द्वारा उत्पात किया । कभी उसने भीषण उपल वर्षा की ।उसने पार्श्वनाथ महामुनिराज पर अचिंत्य, अक्लप्य उपद्रव की सारी शक्ति लगा दी , उन्हें पीड़ा देकर ध्यान से विचलित करने में । परंतु वह धीर वीर महायोगी अविचल रहा । वह तो बाहर से एकदम निर्लिप्त , शरीर से निर्मल होकर आत्म रस में विहार कर रहे थे । इस प्रकार उस दुष्ट संवर देव ने 7 दिन तक पारसनाथ महामुनिराज पर घोर उपसर्ग किये। यहां तक कि उसने छोटे-मोटे पर्वत तक लाकर उनके समीप गिराए ।