जिनसे उत्तम क्षमा परिभाषित हुई, पारस प्रभु 2900वां जन्म-तप कल्याणक महामहोत्सव 7 जनवरी: पौष कृष्ण एकादशी
05 जनवरी 2024 / पौष कृष्ण नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
जिनसे उत्तम क्षमा परिभाषित हुई, क्षमा के अनेकों रूप देखे हैं, बड़े से बड़े, पर फिर भी 23वें तीर्थंकर पारस प्रभु के सामने सब छोटे पड़ जाते हैं। हकीकत में उत्तम क्षमा को अगर सर्वोच्च रूप में परिभाषित किया है, तो वह केवल पारस प्रभु ने। शायद इसी उत्तम क्षमा के कारण वह मात्र 250 वर्ष के सबसे छोटे तीर्थकाल के बावजूद सबसे लोकप्रिय हैं आज भी, शायद ही ऐसा कोई जिनालय या तीर्थ हो, पूरे विश्व में, जहां 3 या अधिक प्रतिमायें हो, और वहां पारस प्रभु की प्रतिमा ना हो। सच तो यह कि उत्तम क्षमा को पारस प्रभु ने अपने चारित्र से परिभाषित किया है। वैसे तो क्षमा को सार्थक करने वाले कई महापुरुष हुये।
हां, महात्मा गांधी जी प्रार्थना कर लौट रहे थे कि नाथू राम गोडसे ने उनको छलनी कर दिया। लोगों ने गोडसे को पकड़कर दण्ड देने को कहा, पर ‘हे राम’ अंतिम शब्द कहने वाले महात्मा गांधी ने उसके लिये गोली मारने वाले स्थान पर ही कुटिया बनाकर देने को कहा।
महात्मा बुद्ध जंगल से गुजर रहे थे कि उनके अनुयायियों ने कहा कि यहां से ना जाये, यहां अंगुलीमाल डाकू है, जो अगुंलिया काट कर, जान ले लेता है। बुद्ध बढ़े और अंगुलीमाल ने ललकारा। बुद्ध स्थिर खड़े होकर उसे उपदेश देने लगे और सुनते ही उसका हृदय परिवर्तन हो गया, चरणों में गिरकर गलत कार्यों की क्षमा मांगने लगा।
हमलोक के प्याले में जहर पीते हुये सुकरात ने यही कहा, जाने का समय आ गया, मुझे मरना है और तुम्हें जीना, यह भगवान ही जानता है और कहते हुये विरोधियों को क्षमा करते, संसार से विदा ले ली।
चक्रवर्ती भरत अपने छोटे भाई बाहुबली पर ही चक्र चला देते हैं, वो प्रदक्षिणा कर लौट आता है। तीनो युद्धों में पहले ही जीत गये थे, बाहुबली पर अब कहते हैं, हे बंधु, मैंने आपकी विनय न करके अपराध किया है, मेरी इस चंचलता के लिये क्षमा कर दीजिए।
सीता परीक्षा देने के लिए श्रीराम जी के सामने अग्निकुंड में प्रवेश करने लगी, तो शील के प्रभाव से वह अग्नि शीतल जल हो गई। श्रीराम बोले – मेरे अपराध के लिए क्षमा कर दो। सीता जी ने कहा – हे राजन! मैं किसी तरह दूषित नहीं, किसी के कहने पर मुझे छोड़ दिया कोई बात नहीं, पर धर्म को कभी नहीं छोड़ना।
द्रोपदी के सभी पुत्रों की हत्या करने वाले अश्वथामा को जब अर्जुन बांध कर उसके समक्ष सजा के लिये लाये, तो द्रोपदी ने उसे क्षमा करते हुए कहा – आज जिस तरह मैं पुत्र वियोग में तड़प रही हूं, ऐसे ही गुरुमाता तड़पेंगी, तो इसे क्यूं मारुं।
हिरण समझकर जरत कुमार ने जंगल में श्रीकृष्ण के ऊपर जहरीला बाण चला दिया। अपनी मृत्यु को जानते हुये भी उन्होंने जरत को अभय दान देते हुए कहा – फौरन चले जाओ यहां से, बलराम ने देख लिया तो तुम्हें मार डालेंगे।
ऐसे तो अनेकों उदाहरण हैं, जैन इतिहास में गज सुकुमाल मुनि, यशोधर मुनि, सुकौशल मुनि, सुकुमाल मुनि, सुदर्शन मुनि, अकम्पाचार्य, आदि अनेक चरित्र हैं, पर दस भवों तक क्षमा को सजीव किया, तो केवल एक ही नाम है, तीर्थंकर श्री पार्र्श्वनाथ और इसी क्षमावान, क्षमाशील के कारण वे मात्र 250 वर्ष के तीर्थकाल के बावजूद 2800 वर्ष से ज्यादा बीत जाने के बाद भी सबसे लोकप्रिय हैं।