पारस टोंक के पास भीषण आग, पावन तीर्थ व पर्यावरण के लिये खतरा

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 12 मार्च 2021
पिछले 8 दिनों से पारस टोंक के बांयी ओर एक बार फिर जंगल में आग लगई हुई है। ऐसा पहली बार नहीं है, पर जब-जब इन जंगलों में आग लगती है तो उसकी सीधी चोट हमारे शाश्वत पावन तीर्थ श्री सम्मेदशिखरजी पर पड़ती है और पर्यावरण को सीधा नुकसान पहुंचता है।
अफसोस तो इस बात का है कि 8 दिनों से लगी आग को बुझाने के लिये प्रयास प्रशासन द्वारा कोई गंभीर प्रयास नहीं किये जा रहे, और इतने समय में आग हल्की होने की बजाय और फैल गई है। लाखों रुपये का प्रशासन प्रचार करता है, वन को बचायें, संरक्षित करें क्योंकि वन है तो जल है, तो जीवन है। पर इस क्षेत्र के वनों के जलने और खत्म होने से हमारे अनादिनिधन तीर्थ को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि वन ही ऐसी पहाड़ी श्रृंखला की मजबूती बनाये रखने के आधार होते हैं। इनकी जड़े ही पहाड़ों को मजबूत रखते हैं। ये पहाड़ी श्रृंखला कोई मामूली नहीं है, यह हमारे शाश्वत तीर्थ की पावन धरा है, जिसका कण-कण कोड़ा-कोड़ी महामुनिराज के तप की गाथा कहती है, मोक्ष का धारा यहीं से निकलती है, तीर्थंकरों को रचाने-बसाने वाली धरा है और वहां वन कटाव, वन का जलना बहुत घातक है।
यह आज किसने लगाई, अभी तक कारणों का कहना संभव नहीं है, क्योंकि इसकी जांच ही शुरू नहीं हुई। कैसे लगी यह आग?
– क्या प्राकृतिक कारणों से, यानि भीषण गर्मी से, पर मार्च के पहले माह में अभी इतना तापमान नहीं बढ़ा कि आग लग जाये।
– तो फिर क्या जंगलों में रहने वाले ग्रामीण आदिवासियों की यह चूक है?
– क्या यह नक्सलियों का ध्यान भटकाने का षड्यंत्र है या उन्हीं की गलती से यह आग लगी?
– क्या अर्द्धसैनिक बलों द्वारा नक्सलियों को अपने छिपे अड्डों से बाहर निकलने की चाल है?
कारण कोई भी हो सकता है, पर चोट पर्यावरण के मस्तक पर लगने के साथ, यहां के शाश्वत तीर्थ के आधार पर हो रही हैं। ऐसे ही चलता रहा तो इस शाश्वत तीर्थ का धीरे-धीरे क्षरण होता जाएगा, और अपनी ही अनमोल विरासत को मिटाने के दोषी हम ही कहीं न कहीं होंगे।