7 दिन के भयानक उपसर्ग के बाद केवल ज्ञान की प्राप्ति : सबसे कम तीर्थ प्रवर्तन काल और सबसे ज्यादा लोकप्रिय

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सबसे कम तीर्थ प्रवर्तन काल, किसी भी तीर्थंकर का लगभग 100 वां हिस्सा या उससे भी काफी कम महज 250 वर्ष और सबसे ज्यादा लोकप्रिय, सिर्फ उत्तम क्षमा भाव के कारण।
10 भव तक उपसर्ग सहन करके भी उफ तक नहीं। 4 माह तक तप करने वाले, पारस प्रभु का जब तप करते 3 माह 3 सप्ताह बीत गए, तब एक दिन, आकाश मार्ग से जाते संबर देव ने नीचे देखा कि यह तपस्वी तप कर रहा है, इससे तो मेरा पूर्व भव का बैर है। इसका नाना था और जरा सा नाती मुझे ही ज्ञान बतलाता था। बस क्रोध बढ़ता गया और त्यों त्यों उपसर्ग भी बढ़ता गया। भीषण गर्जना के साथ वर्षा , जो सब कुछ बहा दे । तूफानी पवन, जो सब कुछ उड़ा कर चूर कर दे। शस्त्रों की वर्षा , जो पहाड़ों को चीर दे । छोटे-छोटे पहाड़ नुमा पत्थरों की वर्षा , जो सब कुछ चूर चूर कर दे। भूत प्रेतों का तांडव, अप्सराओं का मादक नृत्य, क्या मजाल उनको छू भी पाए।
ऐसे 7 दिन तक घोर उपसर्ग के बाद, जब इंद्र ने रौद्र रूप दिखाया, तब संवर देव पारस महामुनी रात के चरणों में लोटने लगा और क्षमा मांगने लगा एक बार । फिर उसे क्षमा कर दिया महामुनिराज ने और अहि क्षेत्र में चैत्र कृष्ण चतुर्थी को प्रातः काल में श्री पारस महामुनिराज को केवल ज्ञान की प्राप्ति हो गई । फिर आगे चलकर आप 23वें तीर्थंकर बने। बोलिए , श्री पारस प्रभु की जय जय जय।