॰ न कमेटियों, न विद्वानों, न ही साधु संघों पर समय कि उनका गुणगान किया जाता, उसको एक विशाल रूप दिया जाता, किसी के पास फुर्सत ही नहीं है
07 अगस्त 2024// श्रावण शुक्ल तृतीया //चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
मीडिया पर जो नजर रखते हैं, वे सब सान्ध्य महालक्ष्मी की इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि विभिन्न धार्मिक-सामाजिक संस्थान अपने किसी गुरु-देव की 50वीं – 100वीं जयंती होती है, तो बड़े जोड़-शोर से मनाते हैं, नेताओं के शुभकामना संदेश बरसते हैं, सत्ता-प्रशासन के सहयोग के बड़े दरवाजे खुलते हैं, फण्ड मिलता है, पूरा समाज जोर-शोर से मनाता है।
अब अपने जैन समाज की बात करते हैं, उसके इतिहास को सरकार पहले मात्र 2650 वर्ष प्राचीन बताकर, उसकी मानो जग हंसाई करती है, या अपनी लकीर बड़ी दिखाने के लिये उसकी छोटी करती है, जैन समाज में किसी को फर्क नहीं पड़ता। कोई आवाज नहीं।
हां मनायेंगे हर साल की तरह, इस बार भी श्रावण शुक्ल सप्तमी, यानि रविवार 11 अगस्त को मोक्ष सप्तमी। हां, मनायेंगे क्या, उस दिन पारस प्रभु की पूजा या अर्घ्य चढ़ेगा – नीर गंध अक्षतान पुष्प चारु लीजिए… और कमेटी द्वारा बनाये लाडू में से एक लेकर वेदी के सामने रख देंगे। हो गया, मना लिया, हां कहीं पारस कथा हो जाएगी, कहीं भजन हो जाएंगे, और संतों के प्रवचन बस इतना ही।
बुरा ना माने तो अपने गुरु की जन्म या दीक्षा जयंती से भी कम उत्साह से मनाकर खत्म हो जाएगी मोक्ष सप्तमी। हर बार यही तो होता है। अपनी 25वीं हो या 50वीं, बाहर पार्टी देते हैं। गुरु की हो, तो बड़ा टेंट, बड़ा प्रोग्राम होता है, सैकड़ों बाहर से आते हैं, भोजन की बड़ी व्यवस्था होती है, यह सब भी नहीं होती अधिकांश जगह पर। हां, कुछ जगह तो होगी, पर उस रूप में नहीं।
हमें महावीर स्वामी का 2550वां निर्वाण महोत्सव तो मालूम रहा, क्योंकि कुछ साधुओं ने, कुछ विद्वानों ने उस पर प्रकाश डाला, कार्यक्रम किये। प्रधानमंत्री मनाने आये, हां महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के दिन 07 अप्रैल को मोक्ष कल्याणक मनाया गया। वैसे वो महावीर स्वामी के कार्यक्रम से ज्यादा उनकी चुनावी सभा ज्यादा लग रही थी, जी हां, भारत मण्डपम की बात कर रहे हैं।
पर बात यहां हम 23वें तीर्थंकर के मोक्ष कल्याणक की कर रहे हैं, जी हां, 2800वां खत्म हो गया, उसको एक वर्षपूरा हो जाएगा, 2801वां मनाया जाएगा। पर क्या मजाल किसी मौहल्ले के नेता ने बधाई दी हो, 2800वें के नाम पर समाज में किसी कमेटी ने, किसी साधु के सान्निध्य में कोई संख्यानुसार बड़ा आयोजन हुआ हो। नहीं, कहीं नहीं, न हमें फुर्सत है, ना कोई मतलब है। अब तीर्थंकरों के कल्याणकों से उतना नाता भी नहीं रहा है। अपने गुरुजी का बर्थडे मना लेते हैं, उनकी दीक्षा तिथि मना लेते हैं, अब तीर्थंकरों के कल्याणक पर, वो भी मोक्ष कल्याणक पर, 2-3 तीर्थंकरों के तो लाडू चढ़ा ही देते हैं। सान्ध्य महालक्ष्मी ने 25-30 चातुर्मास के कार्ड – पोस्टर – फोल्डर – देखे, हां, अधिकांश में उनके या उनके गुरु की जन्म दीक्षा जयंती का क्रम भी था, पर मोक्ष सप्तमी का 2800वां वर्ष, कहीं उल्लेख नहीं मिला।
आज सबसे ज्यादा मूर्तियों वाले, क्षमा के श्रेष्ठतम प्रतीक, सबसे छोटा काल वाले, सभी की जुबान पर रहने वाले, तीर्थंकर पारस प्रभु की प्रतिमायें यहीं सोच रही होंगी, आज जैन कैसे हो गये, अपनी तीर्थंकरों की प्राचीनता से उन्हें कोई सरोकार नहीं।
चलिये जय बोलिये, पारसनाथ तीर्थंकर नहीं, ऐसे अनजान, बिजी, सम्पन्न जैन समाज की, जिसे मोक्ष सप्तमी से तो मतलब है, पर 2800वां मोक्ष कल्याणक वर्ष है, इसकी खबर नहीं, न ही कोई चिन्ता या चिंतन।