अंखिया भूल गई सोना, जब हुआ राधेपुरी पंचकल्याणक: शक्ति अनुसार तप करने से तन मन चेतन स्वस्थ और मोक्ष मार्ग प्रशस्त , इसीमें सबका कल्याण

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09 फरवरी 2023/ फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ प्रवीन जैन
मुख्य संयोजक श्री राकेश जैन पुष्प ने कहा यह बड़ा हर्ष का विषय है कि राधापुरी जैन समाज को दो नवीन वेदी मुनिसुव्रतनाथ एवं वासुपूज्य भगवान की बनाने का मौका मिला, समाज ने अवसर दिया और दोनों वेदियों के पंचकल्याणक महोत्सव 27 जनवरी से 01 फरवरी तक पांचों कल्याणक भव्यता से मनाये गये। सभी इन्द्र-इन्द्राणियों, पूरी समाज ने उत्साहपूर्वक बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सभी युवा संगठन, जैन मिलन, महिला समाज और पूरी राधेपुरी कमेटी ने एकजुट होकर पंचकल्याणक कमेटी के रूप में सुगठित होकर बहुत सुंदर कार्य किया। जन्मकल्याणक शोभायात्रा बहुत सुंदर निकाली गई। सभी का धन्यवाद है कि उन्होंने बारिश के बावजूद पूरे जोश-उत्साह के साथ भाग लिया। पूरी समाज को हृदय की गहराई से धन्यवाद देता हूं कि जितने भी कार्यकर्ता चाहे वे पुलिस वाले हो, समाज हो सभी ने साथ दिया है।

संयोजक श्री नवीन जैन ने कहा कि आचार्य श्री श्रुतसागरजी एवं मुनि श्री अनुमान सागरजी प्रतिष्ठाचार्य पं. नरेश जी कांसल (हस्तिनापुर), बड़ौत से डॉ. श्रेयांस जी के निर्देशन, सहप्रतिष्ठाचार्य अशोक जैन धीरज के सहयोग से यह पंचकल्याणक धूमधाम से मनाया गया। इतनी पब्लिक हमने पहले कभी नहीं देखी है, पूरा कार्यक्रम ऐतिहासिक रहा। गोद भराई में दूर-दूर से पब्लिक आई। जन्माभिषेक में हमारे पात्र तो अभिषेक कर रहे थे, साथ ही स्वर्ग से इन्द्रगण आकर बारिश के रूप में अभिषेक कर रहे थे। पूरा दृश्य विस्मृत कर देना वाला था। सारा कार्यक्रम एक से बढ़कर एक हुआ। मुख्य संयोजक श्री राकेश जैन पुष्प ने पूरी टीम को जोड़कर साथ रखा, पूरी कमेटी उनका धन्यवाद करती है।

संयोजक भरत जैन ने राधेपुरी पंचकल्याणक में पूरी यमुनापार, दिल्ली समाज का बहुत सहयोग मिला। यह एक अभूतपूर्व पंचकल्याणक सिद्ध हुआ। हमारी आयोजन समिति ने जो अपेक्षा की थी, उससे कई गुणा ज्यादा आप सभी का, गुरुओं का, समाज का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

27 जनवरी : मंगल ध्वजारोहण – जिनाराधना अभिषेक पूजन के पश्चात् गुरु आज्ञा, प्रतिष्ठाचार्य आमंत्रण के साथ ही श्रीजी की रथयात्रा एवं घटयात्रा नृत्य करती हुई इन्द्राणियों के साथ पंडाल पहुंची जहां पंडाल – मंडप उद्घाटन, ध्वजारोहण, श्री जी स्थापन, मंगल कलश, अखंड ज्योति स्थापन आदि क्रियाएं सम्पन्न हुई। आचार्य श्री श्रुतसागरजी मुनिराज ने अपने प्रथम दिवस उद्बोधन में कहा कि पचंकल्याण के माध्यम से हम अपने तन-मन-चेतन को पवित्र करते हैं और हम अपने आपको भगवान से जोड़ते हैं। जो हमारे पूर्व संचित कर्म है उनकी निर्जरा करने के लिये ये सारे कार्यक्रम आयोजित करते हैं। उन्होंने पूरी राधेपुरी पंचकल्याणक कमेटी, कार्यकर्ताओं, समाज तथा समस्त यमुनापार समाज को आशीर्वाद प्रदान किया। रात्रि में प्रतिदिन डॉ. श्रेयांसजी बड़ौत वालों के तथा विद्वानों के प्रवचन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। प्रतिदिन टी.वी. कलाकारों द्वारा सौरभ जैन, ललितपुर (भारतीय तपोवन आर्ट ग्रुप) की मनोरम प्रस्तुतियां मंच पर देखने को मिली।

28 जनवरी : गर्भकल्याणक महोत्सव – यागमंडल विधान आरंभ हुआ। श्री अनिल जैन सिटीकिंग के नेतृत्व में बाहुबली एन्क्लेव की समस्त कमेटी ने आकर मंच पर भक्ति नृत्य किया। यमुनापार दिगंबर जैन समाज रजि. से अध्यक्ष महेश जैन, सुनील जैन शिवम्, प्रवीण जैन जवाहर पार्क, बिजेन्द्र जैन प्रवक्ता. चैनल महालक्ष्मी – सान्ध्य महालक्ष्मी से शरद जैन-प्रवीन जैन, कैलाश नगर से श्री सुनील जैन भगतजी, श्री नेमचंद जैन का अभिनंदन किया गया। गर्भकल्याणक के अवसर पर मुनि श्री अनुमान सागरजी ने कहा कि यह पंचम काल दुख का काल है, फिर भी भगवान की भक्ति करके हम सुखकर प्राप्त कर रहे हैं।

अपने जीवन को आनंदमय बना रहे हैं। यह पंचकल्याणक के माध्यम से हम उन क्रियाओं को देखते हैं, यह मात्र संस्कार विधि चल रही है। दक्षिण भारत और उत्तर भारत ये दो परंपरायें चल रही हैं, लेकिन संस्कृति की जो परंपरा है, जो संस्कृति हमारी सुरक्षित है वह दक्षिण परंपरा है। आचार्य जिनसेन जी ने गर्भाधारण की 53 क्रियायें बताई हैं। अपने जीवन में एक बार आदिपुराण जरूर पढ़ना चाहिए और उसमें गर्भाधारण की क्रियाएं जो होती हैं, यदि हम किसी घर में भी रहते हैें तो पहले उस घर की सफाई करते हैं। ऐसे ही ये गर्भ जहां तीर्थंकर बालक आने वाला है, उस गर्भ की सुरक्षा, वहां की सुविधा किस प्रकार से संस्कार दिये जाते हैं, जहां बालक को जन्म लेना है। उसके लिये पृथ्वी नहीं, स्वर्ग से सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से गर्भ का शोधन करने के लिये अष्टकुमारियां आती हैं। संस्कार जन्म से नहीं, गर्भ से दिये जाते हैं। आजकल घरों में बालक आने पर भौतिकता के युग में, मानते हैं कि आज महावीर का जन्म नहीं हो सकता, लेकिन यदि हमने संस्कार दिये हैं तो महावीर के लघुनंदन समान संत आज भी पैदा हो सकते हैं।

मां बिना जग सूना
आचार्य श्री श्रुतसागरजी ने कहा माता के भोजन से ही गर्भ में बालक ऋद्धि को प्राप्त करता है। माता के, पिता के एक-एक कोशिकाएं, एक-एक सैल मिलकर बालक का अवतरण होता है। शेष सारी कोशिकाएं मां से मिलती हैं। आचार्यों ने बताया कि गर्भ में बच्चा आता है तो छह पर्याप्तियां होती हैं –
1. आहार। मां नव जन्म देती है, वह मानव है और मां के गर्भ में 9 माह संस्कार पाता है। आहार ग्रहण करने की शक्ति मां से मिलती है, वह आहार पर्याप्ति है।
2. शरीर पर्याप्ति – ग्रहण किये हुए आहार को शरीर में बदलने की शक्ति आती है।
3. इन्द्रियां पर्याप्ति 4. श्वाच्छोश्वास 5. भाषा पर्याप्ति 6. मन पर्याप्ति – सोचने – समझने की शक्ति का आना मन पर्याप्ति है।

दोपहर में माता मरुदेवी की गोद भराई में भीड़ उमड़ी। रात्रि में गर्भ कल्याणक दृश्य, इन्द्र सभा, माता की सेवा, स्वप्न दर्शन, महाराज नाभिराय दरबार आदि का मंचन हुआ।

29 जनवरी : जन्मकल्याणक महोत्सव- प्रात: सभा में चित्र अनावरण करने का सौभाग्य ऋषभ विहार समाज ने प्राप्त किया। मुनिश्री अनुमान सागरजी ने जन्मकल्याणक के अवसर पर कहा कि आप जब भी अपने बच्चे का नामकरण की बहुत बड़ी सार्थकता होती है। उनका नामकरण भगवान के 1008 नामों में से करें तथा उन्हें संस्कृत करें कि वे नाम अनुरूप अपना आचरण करें। तत्पश्चात् प्रथम जन्माभिषेक रजतमयी कलश – श्री सम्मेद शिखर कलश गुलशन राय जैन परिवार (हलवे वाले) लेने का सौभाग्य पर्वत किया। इसी तरह दूसरे कैलाश पर्वत कलश तथा तृतीय कलश का चयन किया गया। आचार्य श्री श्रुतसागरजी मुनिराज ने कहा कि दो कल्याणक मां के तथा शेष तीन कल्याणक महात्मा के आधीन हैं। मां जीवन प्रदाता है। बालक भगवान जन्म लेते ही तीनों लोकों में आनंद छा जाता है। नरक में भी एक क्षण के लिये आनंद होता है। सौधर्म इन्द्र का आसन कम्पायमान हो जाता है। हमारा मन-वचन-चेतन भगवान के जन्म से आनंदित, प्रफुल्लित हो जाता है।

सौधर्म इन्द्र ऐरावत हाथी पर शचि इन्द्रणी के साथ भव्य शोभायात्रा के रूप में तीर्थंकर बालक को जन्माभिषेक के लिये पांडुकशिला पर ले जाता है। रात्रि में तीर्थंकर आदिनाथ का पालना, बुआ द्वारा काजल लगाना, देव बालकों की क्रीड़ा होती है।

30 जनवरी: तप कल्याणक – शंकर नगर, शाहदरा, यमुना विहार आदि स्थानों से कमेटियां पधारी, यमुनापार दि. जैन समाज के पदाधिकारियों का राधेपुरी पंचकल्याणक कमेटी ने अभिनंदन किया। जन्मकल्याणक संस्कारोपण, बालवृद्धि संस्कार किये गये। मुनि श्री अनुमान सागरजी ने कहा हम तीन दिनों से संस्कार विधि देख रहे हैं। एक-एक क्रिया व्यवस्थित रूप से संस्कारों के साथ होती है। नामकरण संस्कार, मुंडन, अन्न पान, विद्या, लिपि संस्कार होते हैं। आज बच्चों का मन नहीं लगता, उनकी बुद्धि पढ़ाई में नहीं लगती तो मां-बाप उनकी विद्या के संस्कार करायें। बच्चों के हाथ में मंत्र लिखा जाता है, उन्हें मंत्र बताया जाता है। यह पंचकल्याणक एक पाठशाला है, शिविर लगा है, आगे जीवन में इसका प्रयोग करना है। यहां जिन संस्कारों को देख रहे हैं, उनका अपने जीवन में पालन करें। विवाह गृहस्थ जीवन की दीक्षा है। इन्द्रियों का दमन, कषायों का क्षमन करने पर दीक्षा होती है, तब मुनिराज अपनी आत्मा में रमण करते हैं। यह संन्यास जीवन की दीक्षा है।

आचार्य श्री ने कहा आप देव-शास्त्र-गुरु की छत्रछाया में है, इसलिये बहुत भाग्यशाली हैं। भगवान ऋषभदेव को मति-श्रुति-अवधि ज्ञान जन्म से ही होता है। बालक भगवान का क्रीड़ा इसलिये दिखाया जाता है कि सभी बच्चे उस खेल का आनंद ले सकें। देव कुमार – राजकुमारों की बाल क्रीड़ा होती है। ये क्रीड़ा करने से मनोबल, वचोबल, कायबल बढ़ता है। मान-कषाय जब जाता है तभी ध्यान होता है। बच्चों को पार्क में बाल क्रीड़ायें करानी चाहिए।

रात्रि में युवराज राज्याभिषेक, राजाओं द्वारा भेंट समर्पण, नीलांजना नृत्य, प्रभु वैराग्य, दीक्षा गमन, पालकी विवाद आदि का सुंदर मंचन हुआ। डी.पी. कौशिक ग्रुप – सुषमा कौशिक, मुजफ्फरनगर द्वारा भव्य नृत्य नाटिका ने सबको मोहित कर दिया।
31 जनवरी केवलज्ञान कल्याणक : महामुनि श्री आदिनाथ जी की आहार चर्या, पंचाश्चर्य वृष्टि, दोपहर में प्राण प्रतिष्ठा मंत्र, सूर्य मंत्र आदि सम्पन्न हुए। मुनि श्री अनुमान सागरजी ने कहा जिस प्रकार आहार शरीर के लिये तो पूजा अर्चन आत्मा की विशुद्धि के लिये आवश्यक है। दुखी जीवों की मदद करना करुणा दान है। उत्तम पात्र हैं तीर्थंकर महामुनिराज, मध्यम पात्र ऋद्धिधारी मुनिराज तो जघन्य पात्र सामान्य पात्र हैं। आज के कलिकाल में जो मुनिराज आदिनाथ चर्या का पालन करते नवधा भक्ति के साथ ही 24 घंटे में एक बार आहार करते हैं। स्व और पर के कल्याण के लिये जो दिया जाता है, वह दान कहलाता है, दान स्वेच्छा से दिया जाता है। जो आहारदान देता है, वह कभी कुगतियों में नहीं जाता। आचार्य श्री श्रुत सागरजी ने कहा कि आत्मा में आत्मा का प्रतिष्ठा होना, आपे में रहना, आत्मा को परमात्मा बनाना ही परम ध्यान है। सम्यक रूप से भगवान का नाम लेते हुए सल्लेखना करना है। कषाय – भोजन कम करना सल्लेखना है। 8 साल के बाद हर व्यक्ति को नियम संयम लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए। फिर मरण के वक्त चारों प्रकार का आहर त्याग करना यम सल्लेखना है।

समोशरण में आचार्य श्री ने दिव्य देशना में कहा – भगवान की दिव्य ध्वनि में 5 अस्तिकाएं, 6 द्रव्य, 7 तत्व, 9 पदार्थ यानि द्वादशांग वाणी 27 तत्वों में गर्भित है। प्रतिदिन थोड़ा स्वाध्याय-ध्यान करो। आत्मा का कल्याण कैसे हो व और कब तक होगा। इस सवाल पर आचार्य श्री ने कहा कि मनुष्य जन्म बड़ी दुर्लभता से मिलता है। इस पंचकल्याणक में पांच कल्याणक होते हैं। तप करने से केवलज्ञान और मोक्ष होता है। इसलिये शक्ति अनुसार तप करने से तन मन चेतन स्वस्थ हो जाता है और मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इसीमें सबका कल्याण है।

रात्रि में विराट कविसम्मेलन में पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा, अरुण जैमिनी, विनीत चौहान, डॉ. प्रवीण शुक्ल, डॉ. कीर्ति काले, शम्भू शिखर ने अपने काव्यों से सबको विस्मृत किया।

01 फरवरी – मोक्ष कल्याणक : श्री आदिनाथ द्वारा योग निरोध, ध्यान, मोक्ष गमन का सुंदर चित्रण, अग्निकुमार देवों द्वारा अग्नि संस्कार किये गये।
मुनि श्री अनुमान सागरजी ने कहा कि पाषाण से परमात्मा का जो रूप धारण किया है, उससे जल का स्पर्श हो जाता है तो वह गंधोदक बन जाता है और उसे लगाने से हमारी व्याधि दूर हो जाती है। संस्कारों का कितना बड़ा प्रभाव है और ये पंचकल्याणक पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से निर्विघ्न सम्पन्न होना, सबसे बड़ी प्रभावना है। जो भी यहां बैठा है किसी को भी व्याधि ने परेशान नहीं किया। इस तरह के आयोजनों में आप इन्द्र बनें, मुनिराज बन ऊंचाइयों को छुएं, ऐसा मेरा आशीवाद है।
आचार्य श्री श्रुत सागरजी मुनिराज ने कहा आप बहुत भाग्यशाली है कि यहां इतना विशाल पंचकल्याणक कार्यक्रम हुआ। राधापुरी समाज, पूरी कमेटी, धर्मानुरागी राकेश जैन पुष्प, भरत भाई, राकेश जैन पद्मावती, सभी लोगों ने मिलकर अद्भुत कार्य किया है। आनंद ही परमात्मा का स्वरूप है। वह आनंद निज स्वरूप में व्यवस्थित है। जो ध्यान नहीं करता है, उसे वह आनंद प्राप्त नहीं होता है। मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान तुम्हारे चरणों में, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में। हम तन-मन-धन से अपार पुण्य का संचय कर लिया है, यह हमारे लिये मोक्ष मार्ग में बढ़ने के लिये ये मोक्ष कल्याणक मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करें, यही मंगल कामना करते हैं।
धर्मसभा के पश्चात् प्रतिष्ठित जिनबिंबों को पांडाल से मंदिरजी रथयात्रा के रूप में गाजे-बाजे, नाचते-गाते हुए ले जाया गया। वहां अभिषेक, पूजन के बाद नववेदियों में जिनबिम्बों को विधि विधान से विराजमान किया।
संयोजक भरत जैन ने गुरुओं के चरणों में नमोस्तु करते हुए पंचकल्याणक में सभी के दिये गये सहयोग, आशीर्वाद के लिये हार्दिक धन्यवाद प्रेषित करते हुए कमेटी की सभी त्रुटियों के लिये क्षमायाचना की। गुरुओं, प्रतिष्ठाचार्य, इन्द्रों, समाज से क्षमा मांगी।
पंचकल्याणक की संपूर्ण व्यवस्था का सुंदर आयोजन में जुटे मुख्य संयोजक श्री राकेश जैन पुष्प ने मंगलाष्टक, भगवान एवं गुरुओं के जयकारों के साथ कहा कि परम हर्ष का विषय है कि गुरुओं के आशीर्वाद एवं प्रतिष्ठाचार्यों के सहयोग से यह पंचकल्याणक बहुत ऊंचाइयों को प्राप्त हुआ है। जब पूरी कमेटी आचार्य श्री के चरणों में पंचकल्याणक का निवेदन करने गई थी तो उन्होंने कहा कि आप जैसा पंचकल्याणक चाहते हैं, वैसा कराऊंगा, यह पंचकल्याणक भव्यात्मक होगा। यह सब गुरुदेव के आशीर्वाद का प्रभाव है कि इस पंचकल्याणक ने नई ऊंचाइयों को छुआ। भरत भैया के माता-पिता जिनेन्द्र कुमार-संतोष कुमार जी, सौधर्म इन्द्र विपिन-काजलजी, कुबेर, मनीष-इन्दुजी और सभी पात्रों ने जो भक्ति की वह अतुलनीय है। सभी लोग चाहे वे वर्धमान टेंट वाले हो, साउंड वाले हो, शुद्ध भोजन के राम कुमार के सुपुत्र, बिजली वाले, पंडितजी के पुजारियों ने अच्छी व्यवस्था संभाली, नाट्य मंडली सौरभजी, बबलू कटनी वालों के लोगों ने, विक्की भाई, मंदिर की मिश्रा-नंदू टीम आदि सभी लोगों को पंचकल्याणक-मंदिर कमेटी की ओर से धन्यवाद देता हूं। श्री चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन महिला मंडल ने जो कार्य किया वह शब्दों से बयान नहीं किया जा सकता। उन्होंने समाज में जो क्रान्ति लाई, 11 दिनों तक भजन-कीर्तन किये वे बहुत ही सुंदर थे। श्री चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन युवा मंडल ने भोजन – पांडाल व्यवस्था संभाल कर कमेटी का काम आसान कर दिया। हमारी जैन मिलन भाईयों का कार्य भी सराहनीय रहा। हमारी पूरी कमेटी के सभी लोगों ने मिलजुल कर कार्य किया, विशेष रूप से संजीव भाई की जिम्मेदारी यादगार है।

प्रधान श्री अमरचंद जैन ने कहा मुझे बहुत खुशी हुई कि पंचकल्याणक समिति ने इतना सुंदर कार्य किया, पूरे राधेपुरी समाज का धन्यवाद है। जिन्होंने भी इसमें सहयोग दिया चाहें वह भोजन दातार हो, सामग्री दातार हों सभी का धन्यवाद करता हूं। भगवान से प्रार्थना करता हूं कि आगे भी हमारा राधेपुरी समाज – छोटा जरूर हैं, लेकिन कोई भी कार्यक्रम हमारा छोटा नहीं हुआ। आठ साल में हमने 7 चातुर्मास कराएं हैं। समस्त समाज का मैं धन्यवाद करता हूं।