11 जनवरी 2022/ माघ कृष्ण चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
छठवें तीर्थंकर पद्मप्रभ भगवान का गर्भ कल्याणक दिवस है, गर्भ में आने के 6 माह पहले से सौधमेन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने रत्नों की तीनों पहर वर्षा शुरू कर दी और फिर 6 माह बाद वह दिन आया माघ कृष्ण षष्ठी (जो इस वर्ष 13 जनवरी को है), जब प्रीतिकर विमान में आयु पूर्ण कर जीव महारानी के गर्भ में आया। ये थे छठें तीर्थंकर श्री पद्मप्रभु जी, जिनकी आयु 30 लाख वर्ष पूर्व थी और कद था 1500 फुट ऊँचा। लाल कमल के चिन्ह से आपकी प्रतिमाओं की पहचान होती है और काया का रंग भी लाल था।
भगवान श्रीपद्मप्रभजी के पूर्व भव
1. राजा अपराजित:-धातकीखंड द्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर वत्स देश के सुसीमा नगर के राजा अपराजित ने विषय-वासनाओं से एक दिन विरक्त हो कर अपने पुत्र सुमित्र को राज्य दे वन में जा कर पिहितास्रव आचार्य के पास दीक्षित हो गया। राजा अपराजित ने आचार्य के पास खूब अध्ययन, कठिन तपस्या, दर्शन- विशुद्धि आदि सोलह भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर नामक पुण्य प्रकृति का बंध कर लिया।
2.ऋध्दिधारी अहमिन्द्र:-राजा अपराजित की आयु जब समाप्त होने को आई, तब वह समस्त बाह्य पदार्थों से मोह हटाकर शुद्ध आत्मा के ध्यान में लीन हो गया, जिससे मर कर नव में ग्रैवेयक के ‘प्रीतिकर’ विमान में ऋध्दिधारी अहमिन्द्र हुआ। वहां पर उसकी आयु इकतीस सागर की थी, शरीर दो हाथ ऊंचा था, श्वेत वर्ण की लेश्या थी। वह वहां निरन्तर जिन-अर्चा और तत्व-चर्चा आदि में ही समय बिताया करता था। जन्म से प्राप्त अवधिज्ञान से ऊपर विमान के ध्वजा-दण्ड तक और नीचे सातवें नरक तक की बात वह अहमिन्द्र स्पष्ट जान लेता था। यही अहमिन्द्र ग्रैवेयक के सुख भोग कर भरत क्षेत्र में पद्मप्रभ नाम के तीर्थंकर हुए।
जब अहमिन्द्र की आयु छह माह बाकी रह गई, तभी से महाराज धरण के घर पर प्रतिदिन आकाश से करोडों रत्न बरसने लगे। महारानी सुसीमा ने माघ कृष्ण षष्ठी के दिन सोलह सपने देखने के बाद मुंह में प्रवेश करते हाथी को देखा। पति के मुख से स्वप्नोंका फल भावी तीर्थंकर पुत्र का प्रभाव सुन कर महारानी प्रसन्न हुई। सबेरा होते ही देवों ने महाराज-महारानी का सत्कार कर भगवान पद्मप्रभ के गर्भ-कल्याणक का उत्सव किया
“कौशाम्बी नगरी के राजा धरण राज के आंगन ही।
वर्षे रतन सुसीमा माता हर्षी गर्भ बसे प्रभुजी।।
माघ कृष्ण छठ तिथि उत्तम थी इन्द्रों ने इत आ कर के।
गर्भ महोत्सव किया मुदित हो हम भी पूजें रुचि धर के।।
ॐ ह्रीं माघकृष्णाषष्ठ्यां श्रीपद्मप्रभगर्भकल्याणकाय नमः अर्घ्य….”