माघ कृष्ण षष्ठी (03 फरवरी) को छठे तीर्थंकर श्री पदमप्रभु जी कौशाम्बी नगरी की महारानी सुसीमा देवी के गर्भ में पधारे। इससे पूर्व तीर्थंकर श्री सुमतिनाथ जी के 90 हजार करोड़ सागर बीत जाने के बाद।
वैसे इसकी पहचान माता को सोलह स्वप्न से हो गई और वहां पर 6 माह पहले से तीनों पहर में साढ़े तीन – साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा से जो लगातार जन्मदिवस तक 15 माह तक चलती रही।