१ पापानूबंधी पुण्य
२ पापानूबंधी पाप
३ पुण्यानुबंधी पाप
४ पुण्यानुबंधी पुण्य
एक है बंध और एक का है उदय ।
पापानुबंधी पुण्य:- उदय तो चल रहा है पुण्य का , मगर बांध रहा है पाप । जैसे जिनवाणी सुन रहा है तो पुण्य का उदय चल रहा है , मगर ध्यान और कही है , नीन्द ले रहा है इस कारण से पाप का बंध हो रहा है ।
पापानुबंधी पाप :– यानि पाप का उदय चल रहा है और पाप ही बांध रहा है । जैसे किसी की job चले गयी , प्रिय का वियोग हो गया , व्यापार मैं नुक़सान लग रहा है आदि पाप का उदय चल रहा है ,और इस कारण से परिणाम आकुलित व्याकुलित हो रहे है जिस कारण से पाप का ही बंध हो रहा है ।
पुण्यानुबंधी पाप :– यानी पाप का उदय चल रहा है और बांध रहा है पुण्य । जुतो पर बेठकर प्रवचन सुन रहा है , किसी प्रिय का वियोग हो गया , व्यापार मैं नुक़सान लग रहा है या लग गया आदि पाप का उदय चल रहा है , इतना सब कुछ होने पर भी परिणाम मैं सरलता है आकुलित व्याकुलित नहीं हो रहा है इस कारण से पुण्य का बंध हो रहा है ।
पुण्यानुबंधी पुण्य:– उदय चल रहा है पुण्य का और बंध भी हो रहा है पुण्य का , जैसे कोई जिनवाणी सुन रहा है , किसी को बहुत धन का लाभ हो रहा है आदि का पुण्य उदय चल रहा है , और जिनवाणी बहुत भाव पूर्वक सुन रहे है , धन लाभ का उपयोग मंदिर बनवाने मैं , स्वाध्याय भवन बनाने मैं , जिनवाणी छपवाने मैं कर रहा है , इस कारण पुण्य का बंध हो रहा है ।