सैकड़ों अनाथों की नाथ – बन गई 4 युवा जैन बहनें-युवापन को बच्चों के बालपन को संवारने के लिये समर्पित

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अनेक रूपों में भक्ति-सेवा करने से पुण्य संचित होते हैं, कोई मन्दिर जाकर, भगवान का नाम गुनगानकर अपने पाप कर्मों का क्षय कर स्वयं के कल्याण के लिए पुण्य संचित करते हैं, यह तो हम सब करते हैं। पर कुछ ऐसे भी होते हैं, जो ‘पर’ का कल्याण कर, सहयोग कर ‘स्व’ के कल्याण की गाथा लिखते हैं, ऐेसे ही एक स्वरूप की बात बता रहा है सान्ध्य महालक्ष्मी। जिसका कोई नहीं होता, उनके कल को संवारने के लिए अपना वर्तमान समर्पण कर दिया है चार जैन बहनों ने।

सन् 2007 में इसी रूप में जोधपुर में शिखा जैन ने, शुरूआत की जब उन्होंने अपने जीवन का 16वां सावन देखने से पहले ही कर दी थी। पहले जरूरतमंदों की सेवा, जो गरीब उन बच्चों को स्कूली शिक्षा दिलवाना, कहीं बाल विवाह होना, उसे रुकवाना यह सब मां-बाप के आशीर्वाद से करती गई और बढ़ती गई।

परिवार का टेक्सटाइल का कारोबार है, मां-बाप चले गये, पर उसने हिम्मत नहीं हारी, साथ मिला तीन और बहनों का – गीता, सुमन और सोनम का। सभी आज 30 बरस से कम उम्र की हैं। कोई दिगम्बर, कोई श्वेताम्बर, कोई स्थानकवासी पर सम्प्रदायों के सारे भेद मिटाकर सब जैन हैं, सभी अविवाहित रहकर आज अनाथों का जीवन सुधारने में लगी हुई हैं।

सन् 2016 में जोधपुर, 2018 में सूरत और पिछले वर्ष 2020 में बेंगलुरु में वात्सल्यपुरम् की नींव पड़ी। फिलहाल जोधपुर में 60 तथा सूरत-बेंगलुरु में 25-25 अनाथ बच्चे हैं, जिनमें जैन भी, अजैन भी। अब सबकुछ करने की तमन्ना लेकर, जैन धार्मिक शिक्षा के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
सान्ध्य महालक्ष्मी की शिखा व गीता बहनों से एक्सक्लूसिव बात हुई।

उन्होंने बताया कि छोटे-छोटे बच्चों को संभालने में कभी कोई तकलीफ नहीं समझती, सभी 12 साल से छोटे हैं। सभी अनुशासन के पक्के हैं, रात में भोजन नहीं, कंदमूल बिल्कुल नहीं, बगैर स्नान कुछ नहीं, एक साथ बैठकर खाना खाना, एक साथ पानी बिना, सभी की एक ही तरह की ड्रेस, जब समानता के बीज अंकुरित हो जायें, तो झगड़े का सवाल ही नहीं होता।

गीता ने बताया कि रोजाना डेढ़ घंटे की पाठशाला होती है, बच्चों को प्रतिक्रमण सिखा दिया है। कुछ बच्चों से वहां की जानकारी भी ली, सभी कुछ न कुछ अलग-अलग बनने का सपना बुन रहे हैं, कोई टीचर, कोई डॉक्टर, कोई पायलट, कोई इंजीनियर। छोटे-छोटे बच्चों के बड़े-बड़े सपने।
इन सब में गीता सबसे बड़ी है, पहले वह वृद्धाश्रम में सेवा करती रही, फिर शिखा के जज्बे को देख उनके साथ जुड़ गई छोटे बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए। उसने सान्ध्य महालक्ष्मी को बताया कि सूरत में जहां बच्चों पर 70 हजार, वहीं जोधपुर और बेंगलुरु में एक-एक लाख प्रति माह खर्च हो रहा है। पिछले वर्ष के कोरोना काल से दानवीरों में काफी कमी आ गई है। सूरत वात्सल्यपुरम् के लिये किराये की जगह अपनी जगह की भी जरूरत है।

चारों बहनें अपने फोटो-प्रचार से बहुत दूर रहती हैं। हमने चाहा कि अपनी फोटो प्रकाशनार्थ दे दीजिए, तो उन्होंने टालते हुए कहा कि इन बच्चों की ले लीजिए, हरेक के चेहरे में हम चारों के चेहरे आपको नजर आ जाएंगें।

चारों बच्चों के साथ खेलती हैं, पढ़ाती हैं, अपने जीवन को उनके रूप में ढाल लिया है। हम उनके जज्बे को देखते रह गये और वे बच्चों के साथ कैरम खेलने बढ़ गई।

प्रणाम चारों के जज्बे को, जिन्होंने अपने युवापन को बच्चों के बालपन को संवारने के लिये समर्पित कर दिये। जयजिनेन्द्र।