तीर्थ राज सम्मेद शिखर जी मे चर्या शिरोमणि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के प्रथम शिष्य श्रमण मुनि श्री मनोज्ञ सागर जी ने दीक्षा गुरु श्रमणाचार्य विशुद्ध सागर जी के चरणों में भगवान चन्द्र प्रभु जिनालय में और संघस्थ सभी साधुओं की साक्षी में 12 साल की नियम सल्लेखना अभ्यास रूप में ग्रहण कर बहुत से नियम भी ग्रहण किए
आपातकाल में 200 Km की सीमा बांधकर गमनागमन का जीवन पर्यन्त त्याग
समाधि काल के अंतिम समय को दृष्टिगत रखते हुय मुनक्का ( किशमिश ) को छोड समस्त ड्राई फ्रूट का त्याग
आचार्य , उपाध्याय आदि पदों का त्याग
वैयावृत्ति कराने , मोबाइल रखने, न्यूज पेपर पढ़ने , जाप माला रखने , पंखा , कूलर , क्षेत्र मंदिर बनवाने-तुड़वाने का त्याग , स्वयं का चौका आदि रखने जैसे 32 नियम तो आप के पिछले लगभग 18 वर्षों से चल रहे हैं
मुनि श्री ने आचार्य भगवन के समक्ष भावना भाई है कि संसघ सानिध्य में ही मेरी सल्लेखना समाधि हो और गुरुदेव की गोदी में हमारी अंतिम श्वास निकले ।
हम सभी मुनि श्री की पवित्र भावना और त्याग की अनुमोदना करते हुए उनके उज्जवल भविष्य का मंगल भावना भाते है
– वैभब बड़ामलहरा