सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल
जूनागढ़ की राजकुमारी राजुल संग विवाह के लिये जाते हुए नेमिनाथ जी रास्ते में करोड़ों बंधे पशुओं का कन्द्रन सुन संसार की असलियत जान लेते हैं। उसी क्षण वैराग्य की भावना बलवती हो जाती है और वहीं जूनागढ़ के गिरनार पर्वत पर पंचमुष्टी केशलोंच कर एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर लेते हैं। एकमात्र तीर्थंककर जो विवाह का बंधन बांधते, उसमें चंद क्षण पूर्व कर्मों का बंधन नष्ट करने को तैयार हो गये।
चार वर्ष आठ माह के कठोर तप के बाद आश्विन शुक्ल एकम् को उर्जन्त पर्वत पर मेघश्रृंग वृक्ष के नीचे आपको केवलज्ञान की प्राप्ति होती है और फिर जगह – जगह समोशरण के माध्यम से 699 वर्ष 10 माह 4 दिन तक आपकी दिव्य ध्वनि खिरती है, जो आपके 11 गणधरों से ऋषियों-मुनिराजों तक पहुंचती है।
आपकी प्रमुख आर्यिका राजुलमती बनी, शासन देव सर्वाणहदेव रहे, पर शासनदेव से ज्यादा शासन देवी कुष्मांडनी देवी लोकप्रिय हो गई, जिन्हें अम्बिका देवी के नाम से भी जानते हैं।
इस वर्ष तीर्थंकर श्री नेमिनाथजी का ज्ञान कल्याणक 07 अक्टूबर को है। बोलिए 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी के ज्ञानकल्याणक की जय-जय-जय। (शरद जैन)