कदम बढ़ रहे थे राजुल के गले में वरमाला डालने के लिए , पर अचानक क्या हुआ कि उन्होंने वरमाला डाल दी किसी और के गले में और चल दिए

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2 अगस्त 2022/ श्रावण शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
जी हां , यह सोलह आने पूरा सच है 21 वे तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान जी के 5 लाख में एक हजार कम वर्ष के बाद , 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी का श्रावण शुक्ल छठ को महाराजा श्री समुंद्रविजय जी की महारानी शिवा देवी जी के गर्भ से शौरीपुर में जन्म होता है आपकी आयु 1000 वर्ष थी और कद 10 धनुष , नीलवर्ण की काया और आपने राज्य नहीं किया।

सुंदर राजकुमारी को देख, विवाह की तैयारियां भी हो गई, जूनागढ़ की राजकुमारी राजुल के संग। चल दिए विवाह के लिए जूनागढ़ की ओर, बढ़ते जा रहे थे कि अचानक राह के दोनों ओर बंधे पशु देखें, जो बहुत करुणा कर रहे थे। मानो अपनी मृत्यु से बचने के लिए चिल्ला रहे थे। बंधे पशुओं को देख कर मन में चिंतन हुआ कि यह क्या हो रहा है ।

राह में उन पशुओं को चालाकी से बंधवाया, उन्हीं के चचेरे भाई श्रीकृष्ण जी ने। श्री कृष्ण जी जानते थे कि वह मुझसे बलवान है और अगर इनको संसार के मार्ग से नहीं हटाया , तो यह मुझसे सदा आगे ही रहेंगे, मैं इस मार्ग से बढ़ता हूं वह उस मोक्ष मार्ग पर बढ़ जाए। बस अपनी इस चतुर सोच से, उन्होंने विवाह की ओर बढ़ते मार्ग पर दोनों तरफ करोड़ों पशु बंधवा दिए थे। राजुल राजकुमारी सामने हार लेकर खड़ी थी और नेमिनाथ जी के मन में कुछ और मंथन चल रहा था। वह गले में हार डाल दे, इससे पहले ही, जैसे राजकुमार नेमिनाथ जी ने किसी और के गले में माला डालने का जैसे संकल्प कर लिया था।

वह दिन भी यही श्रावण शुक्ल की छठ थी। बस वह चल दिए उसके गले में माला डालने के लिए। जी हां , वही गिरनार पर्वत, जिसकी पांचवी टोंक से उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया और उस क्षण बन गए वह महामुनिराज। उन्होंने राजुल की तरफ देखा । राजुल रो रही थी, वह पूछ रही थी मेरा क्या कसूर है उन्होंने साफ कहा यह तेरा कसूर।

नहीं यह संसार का दस्तूर है। मुझे अब सांसारिक लक्ष्मी नहीं , मोक्ष लक्ष्मी का वरण करना है । तू भी चल इसी रास्ते, यही उत्तम रास्ता है और यह कहते-कहते उसी समय श्री नेमिनाथ जी महामुनिराज का रूप धारण करने और तप के लिए चल दिए। बोलिए 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी के जन्म और तप कल्याणक की जय जय जय।